Ishq Baprwah Nahi Tera... - 4 in Hindi Love Stories by Santoshi 'katha' books and stories PDF | इश्क बेपरवाह नहीं तेरा... - 4

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इश्क बेपरवाह नहीं तेरा... - 4



इसी तरह लगभग 15 दिन बीत गए,, वैशाली अब पुरी तरह ठीक लग रही थी। वो धीरे धीरे चलने भी लगी थी। 
आगे.......

रात का समय____

रात हो चुकी थी थोड़ी ठंड थी हवा में, वैशाली बालकनी में एक आराम कुर्सी पर बैठी आसमान में खिले चांद को देख रही थी। उसके चेहरे पर खुशी तो थी, वैभव के पास होने की पर एक सुना पन भी था। वैभव की आंखों में जो बेचैनी वो देखती है। उसके पिछे की वजह जाननी थी उसे...

" वैशाली.... वैशू, कहा हो यार... “
वैभव बालकनी के दरवाजे पर पहुंचा 

“ ओ तो तुम यहां हो मैं पुरे घर में ढुंढ रहा हूं, तुम थोड़ा चलने क्या लगी, कहीं भी चली जाती हो... " 

वैभव पुरे घर और कमरे में वैशाली को खोजता थोड़ा परेशान सा बालकनी में उसे देख बोला
वैशाली ने जवाब में बस मुस्कुरा कर अपना हाथ उसकी तरफ बढ़ा उसे अपने पास आने का इशारा किया।
वैभव भी हल्की मुस्कान के साथ उसका हाथ थाम उसके पैरों के पास ही जमीन पर ही बैठ गया...

दोनों एक-दूसरे की आंख में देख रहे थे। वैभव फ़िक्र भरी आवाज़ में बोला 

" वैशू तुम्हारी तबीयत अब बिल्कुल ठीक है ना,( उसके चोट लगे हुए पैर को हल्के से सहलाते हुए ) अब पैरों में दर्द तो नहीं है ना? चलने में कोई प्रोब्लम तो नहीं? देखो कुछ हो तो बिना झिझक के मुझसे बोलना..." 

वैशाली बोलते हुए वैभव की आंखों में एक अजीब सी बेचैनी और परेशानी देख पा रही थी। जैसे वो कुछ छुपाने की कोशिश कर रहा हो, वैशाली ने वैभव के चेहरे को अपनी हाथों में भर उसे अपनी ओर किया फिर थोड़ा झुक कर उसके बोलते होंठों पर अपने नर्म होंठ रख उसे चुम लिया। 

जिसके एहसास से वैभव की आंखों में भरी बेचैनी... पलके बंद करते ही दो बूंद आंसूओं में बह गई। 
वैशाली के आंखों से भी कुछ बूंद आंसू गिर पड़े... दोनों जैसे सब भूल गए हो बस एक दुसरे के स्पर्श को महसूस करते एक दूसरे को किस कर रहे थे।

वैभव वैशाली को देखते हुए उसके सर को चुम कर उसे देखने लगा…

" वैभव! एक बात पुछूं सच सच बताओगे? ( वैभव बस पलकें झपकाए देता है ) क्या हुआ है। मुझे पता है कोई बात है जो तुम्हें परेशान कर रही है। देखो मैं जानती हूं, तुम्हारे जिन्दगी में मेरे अलावा तुम्हारा काम सबसे जरूरी है। तुम अपने काम को कितना पसंद करते हो, पर अब पन्द्रह दिन से ज्यादा हो गए। एक बार भी तुम ऑफिस नहीं गए ना तुमने घर पर हि कोई काम किया। तुम अकेले में बेचैन परेशान रहते हो, बार बार बैंक अकाउंट चैक करते हो... 
हुआ क्या है। प्लीस बताओ ना वैभव तुम्हें मेंरी कसम! "

वैशाली की आवाज में थोड़ी घबराहट और आतुरता थी।

" वैशू, ये कसम वसम देने की जरूरत नहीं है। वो दरअसल तुम्हारे एक्सिडेंट वाले दिन, उस दिन मैं बहोत इम्पोर्टेंट मीटिंग में था। फोरन क्लाइंट आए थे मीटिंग के लिए, हमे एक बड़ा प्रोजेक्ट मिलने वाला था। 
लेकिन जब मुझे पता चला तुम्हारा एक्सिडेंट हो गया है तो मुझे कुछ नहीं सूझा और मैं मीटिंग बीच में छोड़ कुछ बताएं बिना ही आ गया।
क्लाइंट को ये अपनी बेइज्जती लगी उन्होंने डिल कैसल कर दी। और इसलिए हमारी कम्पनी के ओनर ने मुझे जॉब से निकाल दिया। " 

वैभव ये सब जैसे बड़े आराम से बोल गया पर वैशाली के लिए ये एक करंट के झटके और शौक से कम ना था। वो हैरान और थोड़ी नाराज़ होती हुई बोली

क्या? क्या बोल रहे हो वैभव, जॉब से निकाल दिया मतलब? वो... वो ऐसा कैसे कर सकते हैं। और तुम... तुम इतने दिनों से ये बात मुझसे छुपा रहे हो, ये सारी प्रोब्लम, ये सारा स्ट्रैश अकेले झेल रहे हो? तुमने मुझे बताना भी जरूरी नहीं समझा क्यों? क्या तुम्हें मुझपर विश्वास नहीं... के मैं तुम्हारे प्रोब्लम को समझूंगी? इतना ही भरोसा है अपनी वैशू पर? " 

वैभव वैशाली के चेहरे को हाथों भर उसे समझाने लगा।

" वैशाली ऐसी कोई बात नहीं है। मैं जानता हूं, तुम तो मेरी हर कहीं अनकही बात को समझ लेती हो... जैसे अभी मेरे बिना कहे समझ गई। के कोई बात मुझे परेशान कर रही है। पर उस वक़्त तुम्हारी हालत ऐसी नहीं थी कि मैं ये सब तुम्हें बताऊं। तुम पहले ही इतने दर्द में थी। मैं ये सब बता के तुम्हें और दुःखी नहीं करना चाहता था। बस, पर अगर तुम्हें बुरा लगा तो सॉरी!" 

वैभव ने अपने मन की बात साफ शब्दों में वैशाली के सामने रख दी थी।
वैशाली ने भावुक होकर उसके दोनों कंधे पकड़ लिये।

" नहीं वैभव सॉरी मत कहो, मैं जानती हूं तुम मुझे कभी दुखी नहीं देख सकते...पर वो लोग ऐसे कैसे तुम्हें कम्पनी से निकाल सकते हैं। तुमने दिन रात इतनी मेहनत की है उस कम्पनी पर वो लोग भूल गए क्या आज जिस मुकाम पर वो कम्पनी है वो सिर्फ तुम्हारी वजह से... तुमने कहा नहीं कुछ, वो ऐसा कैसे कर सकते हैं। " 

वैशाली थोड़ी तेज़ आवाज़ में झुंझलाती हुई बोल रहीं थीं।

" वैशू... वैशू... शान्त हो जाओ ssssss.... " वैभव खड़ा हो वैशाली को दोनों हाथों से घेरकर उसके परेशान मन को शांति करने लगा। वो रो रही थी शायद ये सब उसकी वजह से ही हुआ है। ये सोचती वो वैभव से माफ़ी मांगने लगी।

" वैभव... वैभव प्लीज़ मुझे माफ़ कर दो ये... ये सब मेरी वजह से हुआ है ना? ना मैं उस दिन तुमसे झगड़ा करती और ना मेरा मन दुखी होता ना मैं गिरती... और ना तुम... I'm so sorry! "

वैभव बोलतीं हुईं वैशाली के होंठों पर अपने होंठ रख उसे चुप करा देता है। वैशाली के आंखों से आसूं अब भी बहे रहे थे। जिसे पोंछ वैभव एक गहरी सांस लेकर बोला

 " नहीं, तुम्हारी वजह से कुछ नहीं हुआ है। कहते हैं ना जो होता है अच्छे के लिए होता है। ये सब हुआ तभी तो मुझे पता चला के मेरे जीवन में तुम्हारी क्या जगह है। 
जब तुम्हें दर्द में करहाते हुए देखा था तो तुमसे ज्यादा दर्द मुझे हुआ। और ये जो पन्द्रह दिन का टाइम हमने एक दूसरे के साथ बिताया है ना... देखना ये टाइम हमारी जिंदगी का सबसे बैस्ट टाइम में से एक होगा, जिसे हम कभी नहीं भूलेंगे। ( वैशाली हल्के से मुस्कुरा कर हां कहती हैं जिसपर वैभव उसके आंसू पोंछ ) और जॉब का क्या है। तुम्हारा हसबैंड कितना इंटेलिजेंट है इस तरह कई जॉब तो मुझे ( चुटकी बजाने कर ) यूं.... मिलेंगी, तुम हो ना मेरे साथ ( वैशाली हां में सर हिलाती है ) तो बस फिर कोई फर्क कि बात नहीं,
मैं तो सोचता हूं अब मैं अपनी खुद की कम्पनी खोलू क्या कहती हो?" 

वैशाली ये सुनते ही बच्चों की तरह मुंह बनाती हुई बोली
" हां, अब तुम अपनी कम्पनी खोलो और... और उस मोटी, टकलू को दिखा दो उसने क्या खोया है। हमारी कम्पनी उसकी कम्पनी से आगे होनी चाहिए मैं भी उसमें काम करूंगी... और जब वो मोटू मेरे सामने आया ना तो उसे, उसे बहोत चिढाऊगी... " वैशाली जैसे बच्चों सा मुंह कर बोले जा रही थी। जिसपर वैभव मुस्कुरा दिया।

" ओ के बेबी हम ऐसा ही करेंगे हम्मम! " वैशाली झट से वैभव के गले लग जाती है। वैभव भी उसके बालों को चुम कर उसके सर को सहलाने लगा पर वैभव की आंखों और चेहरे पर परेशानी उभर रही थी। वो जानता है ये सब इतना आसान नहीं इतनी बड़ी कम्पनी से निकाले जाने के बाद कोई भी कम्पनी उसे उसी पोस्ट पर जॉब नहीं देगी जिस पोस्ट पर वो था। 
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To be continu........

[ कई बार पति-पत्नी के रिश्ते में परिस्थितियां ऐसी हो जाती है। जब चाहकर भी दोनों अपने मन की बात नहीं कहे पाते... कोई डर, या झिझक के कारण
पर इसका मतलब ये तो नहीं कि वो आपको धोखा दे रहे, हो सकता है वो आपको उस परिणाम से बचाना चाहते हो जो पता चलने के बाद आपको भुगतना पड़े। और गलती का एहसास हो जाने पर एक-दूसरे से माफ़ी मांग लेंने में कोई बुराई नहीं, फिर तो सामने वाले पर डिपेंड करता है। आपकी गलती माफ़ी लायक़ है कि नहीं... ]

# सिर्फ अपने मन की कही है। बाकी आप भी कुछ कहे सकते हैं। रोका नहीं है किसी ने.....
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