Ishq Baprwah Nahi Tera... - 2 in Hindi Love Stories by Santoshi 'katha' books and stories PDF | इश्क बेपरवाह नहीं तेरा... - 2

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इश्क बेपरवाह नहीं तेरा... - 2


रात को वैशाली और वैभव का बड़ा झगड़ा हुआ। जिससे दोनों एक-दूसरे से बहोत नाराज़ हुए। 


अब आगे...

सुबह का समय,

वैभव ऑफिस के लिए तैयार होने के लिए नहाकर निकला तो देखा उसकी सारी चीज़ बिस्तर पर पड़ी थी। टिफीन भी टेबल पर रखा था वो चुप चाप तैयार हो कर बाहर आया और किचन में खड़ी वैशाली को आवाज़ देकर टाई बांधने के लिए कहता है।
वैशाली किचन से बिना किसी भाव का चेहरा लिए बाहर निकल वैभव के पास आने लगी, वैभव वैशाली को देख खुश होने लगा था। 

पर वैशाली अभी भी अपनी नाराज़गी जताते हुए सख्त चेहरे लिए उसके बाजू से निकल चुप चाप कमरे में जाकर दरवाजा का बंद कर देती है। जिसपर वैभव हैरानी और चिढ़ से भवे सिकोड़ कर टाइ को बैग में ठुस कर बाहर चला गया।

कुछ दिन इसी खामोशी की लड़ाई में गुजरने लगे वैभव कोशिश तो करता वैशाली को मनाने की, बात करने की पर वो जैसे मानने को तैयार नहीं थी। 
दोनों आमने-सामने होकर भी चुप रहते। वैभव वैशाली से बहोत प्यार करता था। दोनों की लव मैरिज थी, दोनों साथ पढ़ा करते थे कॉलेज में... दोनों के प्यार और एक-दूसरे की परवाह मशहूर थी उनके ग्रुप में... पर आज दोनों एक-दूसरे को समझने के लिए तैयार नहीं...

दोनों बिस्तर पर एकसाथ रहकर भी दो कोना पकड़े एक दुसरे को पीठ दिखाकर सो जाते... इस बीच वैशाली की रोती हुई सिसकारियां वैभव को परेशान भी करती, वो हाथ आगे बढ़ाता पर वैशाली जैसे बिल्कुल टुट चुकी थी। उसके व्यवहार से...
उसके दिल में बस एक ही बात बैठ गई की अब वैभव का प्यार, परवाह सब खत्म हो चुका हैं उसके लिए...

"" हो गया है इश्क बेपरवाह तेरा मेरे लिए
अब जिन्दगी से शिकायतें भी क्या किजे
कल तलक जो मरते थे हम पर
बदलते वक़्त से बदले तो क्या किजे ""
_________________________________________

एक दिन___

वैभव एक बहोत जरूरी मीटिंग में था। वो अपने क्लाइंट्स को बहोत जरूरी प्रेजेन्टेशन समझा रहा था। काफी देर से उसका फोन जो साइलेंट मोड पर वाइब्रेटर हो रहा था। उसपर वैशाली का कॉल आ रहा था। एक पल के लिए वैभव खुश हो गया। पर मीटिंग के बीच फोन उठाना उसे सही नहीं लगा तो उसने फोन इग्नोर किया पर मजबूरी में...
उसने सोचा वो मीटिंग के बाद बात कर लेगा।

पर फिर उसे एक मैसेज आया अचानक उसकी आंखें मैसेज पर पढ़ी और उसने जैसे ही मैसेज पढ़ा उसकी सांसें रूक सी गई। वो अचानक ही घबराया सा सबकुछ बीच में ही छोड़कर बाहर भागा। किसी को कुछ समझ नहीं आया हुआ क्या...

वैभव बड़ी तेजी से गाड़ी चलाकर घर पहुंचा। देखा तो जैसे उसके घर के बाहर कुछ पड़ोसी खड़े आपस में भुनभीना रहे थे और उसे देखते ही उसे घुरने लगे। 

उसकी घबराहट का ठिकाना नहीं था वो हॉल में आया तो वहा भी दो तीन औरतें खड़ी थी। तभी एक कराहने की आवाज़ सुनाई दी उसे, वो तेज कदमों से बैडरूम की तरफ बढ़ा देखा तो वैशाली बैंड पर लेटी हुई थी। उसके सर पर पट्टी बंधी थी। उसके चेहरे पर खून लगा था। और डाक्टर उसके पैरों में भी पट्टी बांध रहे थे। वो दर्द से कराहती रो रही थी।

वैभव जैसे एक पल को डर से कांप गया वो तेज कदमों से वैशाली के पास बैठ उसके चेहरे को हाथ में भरता हुआ बोला " वैशाली... ये... ये सब कैसे हुआ। तुम्हें इतनी चोट कैसे आई हां...? " 

" साहब वो मेम साहब बाहर बिल्डिंग की सिडीयो से गिर गई। बहोत चोट आई है। आपको कितना फोन लगा रहे थे पर आपने फोन ही नहीं उठाया " पिछे खड़ी नौकरानी ने कहा, वैशाली दर्द भरी आंखों से उसे देखतीं बस रोए जा रही तो वैभव को भी इस बात का अफसोस था। 

" मिस. वैभव... वैसे तो सर पर कोई गंभीर चोट नहीं है पर इनके पैरों में बहोत चोट आई है। जिसकी वज़ह से ये कुछ दिन ज्यादा चल फिर नहीं पाएगी, इन्हें कम्प्लीट बैड रैस्ट की जरूरत है। सी इज फिजिकली विक... " 

डाक्टर सब कुछ समझाकर चला गए। शाम हो चुकी थी। वैशाली दवा के असर से अब भी सो रही थी। तो वैभव जैसे उसका हाथ पकड़ बैठा हुआ था। 
अचानक वैशाली आंखें खुली, देखा तो सामने वैभव था। बहोत परेशान लग रहा था वो... 

" वैसू तुम ठीक हो ना, तुम्हें दर्द तो नहीं हो रहा है। " वैभव उसके गाल पर प्यार से हाथ फेरते हुए बोला, जिसपर वैशाली भावुक हो उसके गले लग रोने लगी। इतने दिनो बाद वो वैभव को अपने इतने करीब देख रही थी। उसे उसकी आंखों में अपने लिए परवाह दिखाई दी... जैसे उसे भी उसके दर्द से दर्द हो रहा था।


" तुमने तो मेरी जान ही निकाल दी थीं। जब उस मैसेज में पढ़ा तुम्हारा एक्सीडेंट हो गया है। ऐसे लगा जैसे मेरी धड़कन रूक गई हों... कैसे हां... कैसे हुआ ये सब कहा ध्यान था तुम्हारा... अगर तुम्हें कुछ हो जाता तो, मेरा क्या होता कभी सोचा है। " 

वैभव की बातों में वैशाली के लिए परवाह के साथ बेसूमार प्यार भी छलक रहा था। वैशाली उसे सुनती बस उसके सीने से चिपकी रोए जा रही थी। पता नहीं ये आंसू शरीर पर लगे चोट के थे या उस चोट से हो रहे दर्द के जो जाने अंजाने वैभव ने वैशाली को दिए थे। पर वैशाली वैभव को अपने पास देख खुश थी। उसकी बाहों का ये घेरा, उसकी छुअन और उसकी ये बातें उसे बहोत सुकून दे रही थी।


वैभव उसके चेहरे को चुमते हुए उसके आंसू पोंछ कर बोला " चुप हो जाओ वैसू मैं हूं ना तुम्हारे पास... कुछ नहीं होगा तुम्हें, सब ठीक हो जाएगा। " 
वैभव की आंखें भी नम थी, तो वैशाली ये देख फिर से उसके गले लग गई। कुछ देर जैसे वैभव वैशाली को वैसे ही अपनी बाहों में संभाले हुए था। वैशाली को भी वैभव की बाहों में बहोत आराम मिल रहा था।

तभी वैभव का फोन बजने लगा वो वैशाली से अलग हो फोन देखता है। ऑफिस से फोन था। वो फोन लेकर बाहर आ गया। वैशाली को ये अच्छा नहीं लगा उसे लगा जैसे फिर से वैभव ने उसके और काम के बीच काम को चुना हो...

वैभव कुछ देर बात कर किचन में आया तो देखा नौकरानी ने खाना बना रखा था। और वो वैभव को देखते ही बोली 

" साहब मैंने सारा काम कर दिया। मेमसाहब को डाक्टर ने हल्का खाना और सुप के लिए बोला है तो मैंने वो अलग बाना दिया है और आपके लिए भी..." 

" हां ठीक है। बाकी मैं देख लूंगा, "

" साहब आप कहो तो मैं रूक जाती हूं। रात को मेम साहब को मेरी जरूरत पड़ी तो..." नौकरानी ने फिर कहा

" नहीं, इसकी जरूरत नहीं मैं वो सब देख लूंगा, आप जाओ..." वैभव पानी निकालते हुए बोला, नौकरानी मुड़ी पर फिर वो रूक कर वैभव से बोली 

" अच्छा साहब आपको कुछ बताना था। वो मुझे लगता है कुछ दिनों से मेम साहब ठीक से खाना नही खा रही है। शायद इसलिए उन्हें चक्कर आया और वो गिर गई। आप ध्यान रखना उनका " 

नौकरानी ये सब बताकर वहा से चली गई। वैभव को समझ आ गया कि झगड़े के कारण वैशाली गुस्से में खाना नहीं खा रही थी। 
" ये लड़की भी ना... मेरा गुस्सा खाने पर निकालने की क्या जरूरत थी। " ये कहता वो अपना सर पकड़ लेता है।

वैभव रात का खाना लेकर कमरे में पहोंचा वैशाली लेटी हुई थी।
" वैसू चलो खाना खालो फिर तुम्हें दवाई लेनी है। " वैभव ने खाना टेबल पर रखते हुए कहा 

" मेरा मन नहीं है मैं बाद में खा लूंगी..." वैशाली फिके शब्दों में बोली

" नहीं तुम्हारा कोई बहाना नहीं सुनूंगा मैं, मुझे सब पता चल गया है। तुमने मेरा गुस्सा खाने पर उतारा हां, इसलिए तुम्हारा ये हाल हुआ है। ( फिर बड़े प्यार से उसे उठाते हुए) अच्छा चलो, उठो आज मैं अपनी वैशू को अपने हाथों से खाना खिलाऊंगा... " 
वैभव सहारा देकर उसे बैठा देता है और पास बैठ उसे अपने हाथों से सुप पिलाने लगा... हर चम्मच को वो पहले फुक मारकर ठंडा करता फिर वैशाली को पिलाता, ये सब देखकर तो जैसे वैशू के आंखों से आसूं बहने लगे...

"" ना ली थी कभी तेरी बोलती आंखों ने भी
मेरे इश्क की इम्तहान इस तरह....
जितनी तेरी खामोशी ने हमपर सितम ढाया है
एक पल को यूं लगा जैसे हमने तुझे खोकर फिर से पाया है....! ""
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कहानी जारी है.......

[ ज़िन्दगी में भी कई बार ऐसा ही होता है ना, जो चीज हमारे पास होती है। या जो आसानी से मिल जाए उसकी कद्र नहीं करते हम पर जब उसे खो देने का एहसास हो जाए तब ही उसका महत्व हमें पता चलता है। ]

कहानी अच्छी लगे तो समीक्षा के साथ रेटिंग जरूर दे।