Ishq Baprwah Nahi Tere... - 6 in Hindi Love Stories by Santoshi 'katha' books and stories PDF | इश्क बेपरवाह नहीं तेरा... - 6

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इश्क बेपरवाह नहीं तेरा... - 6

शाम का वक्त…


वैभव हॉस्पिटल से निकल ही आकर सीधे अपनी कार में बैठ गया। वो अपने हाथ में पकड़े फाइल को देखे जा रहा था। उसके हाथ में वैशाली की मेडिकल रिपोर्ट थी। जिसपर उसका नाम भी लिखा था। 

अभी अभी डॉक्टर ने उसे जो कुछ भी बताया उसे जानने के बाद वैभव बिल्कुल खामोश हो गया था। उसके चेहरे पर परेशानी और चिन्ता साफ दिख रही थी।

“ ये… ये सब कैसे हो सकता है। वो भी इस वक्त… मैं कैसे मैनेज करूंगा ये सब, वैशू! पता नहीं वो इस बात को जानकर कैसे रिएक्ट करेंगी। “ 

वैभव एक बार परेशानी में अपने बालों में हाथ फिरा दूसरे हाथ में पकड़े रिपोर्ट को पास की सीट पर रख सीट बेल्ट लगाते हुए कार स्टार्ट कर आगे बढ़ जाता है। 

इधर दुसरी तरफ शाम गहराने लगी थी। आसमां थोड़े सांवले बादल, कुछ तारों की झिलमिलाती रौशनी के साथ चांद के आने का इन्तजार कर रहा था। 

वैसे चांद का इन्तजार तो आज हर सुहाग महिला कर रही थी। आज करवाचौथ जो है। वैशाली ने भी आज की रात को खास बनाने की सारी तैयारियां कर रखी थी। 
पुरा छट सुन्दर लाइटों, दियों और फुलों की रंगोली से सजा हुआ था। पास एक सुंदर सा टेबल भी सजा था पुजा के बाद डिनर के लिए 
और वो भी आज एक नई नवेली दुल्हन की तरह ही सज-धज कर अपने पिया के आने का इन्तजार कर रही थी। 

आज वो बहोत खुश लग रही थी। सासू मां की दि हुई उस लाल बनारसी साड़ी के साथ, अपनी शादी वाले झूमके, कंगन के साथ लाल कांच की चूड़ियां, चेहरे पर हल्का मेकअप, माथे पर छोटी सी बिंदी के साथ मांग में सजा पिया के नाम का लाल सिंदूर…
मानों आज उसकी शादी के बाद पहली करवाचौथ हो, 
हां अगर जिन्दगी में प्यार बरकरार हो तो चाहें कितना भी वक्त गुजर जाए 

त्योहारों और रिश्तों में मिठी की महक हमेशा बनी ही रहती है जो उसे हमेशा ताजा रखती है। और अभी तो वैशाली और वैभव का रिश्ता कुछ दो साल ही पुराना है। 
और बिकते हुए कुछ दिनों ने उनके प्यार और रिश्ते में जो ताजगी लाई है। ये सब उसी का नतीजा था।

खैर! वैशाली पुरी तरह से सज धज कर छट पर खड़ी अपनी सासू मां से विडियो कॉल पर बात कर रही थी। अपनी की सारी तैयारियां दिखा रही थी।

वो वैशाली को ऐसे देख बहोत खुश थी। पर इस दौरान वैशाली की आंखें बार बार छत के दरवाजे की तरफ जा रही थी। उसे इन्तजार था वैभव का, जो शायद चांद के साथ ही आने वाला था।


“ ये वैभव भी ना कहा था आज शाम को कहीं मत जाइएगा। अरे रिपोर्ट कल भी तो आ सकती थी ना, एक रात में क्या ही बदल जाता। पर नहीं… “

वैशाली फोन डिस्कनेक्ट करते ही छत के दरवाजे को घुरती हुई बुदबुदाई और एक नज़र आसमां को देख उसमें चांद ढुंढ ने लगी। और कुछ ही पलों में उसका चेहरा खिल गया। एक बादल के टुकड़े से झांकता चांद मानों उसको ही ताक रहा हो…

“ अरे वाह चांद तो आ गया। पर… “ 

अगले ही पल उसका चेहरा कुछ उतरने लगा, पर तभी उसके कानों में एक आवाज गुंजी।

“ पर वर छोड़ो माइ लव, इधर देखो तुम्हारा ये चांद भी तुम्हारे सामने है। “ 

वैसू झट से पलट कर देखने लगी। सामने उससे कुछ दूर वैभव खड़ा था। पीले रंग का चिकनकारी से बना बुंदों वाला कुर्ता और सफ़ेद पजामा पहने पुरी तरह पुजा के लिए रेडी।

उसे देखते ही वैशाली तो खिल ही गई। चेहरा फुलों सी मुस्कान से भरा ही था की अचानक उसने मुंह सिकोड़ लिया और हाथों को आपस में बांध वैभव की तरफ पीठ कर नाराज़ बच्चे की तरह खड़ी हो गई। 

वैशाली को वैभव से इस तरह रूठना बहोत अच्छा लगता था। वो चाहती थी वैभव हर बार उसे प्यार से मनाए, उसे गले लगाएं। तो वैभव भी इस बात से अनजान नहीं था। 

“ अरे अब क्या हुआ देखो मैं टाइम पर हूं। तुम्हारा चांद भी तो अभी अभी आया ना! “ वैभव वैशाली को मनाते हुए बोला

“ उस चांद की छोड़ो, अपनी बात करो कहा था ना आज कहीं मत जाना फिर क्यों गए तुम! “ 
वैशाली बनावटी नाराजगी दिखा रही थी। वैभव उसके एक बाह को पकड़ उसे अपनी तरफ कर लेता है। और उसे अपनी प्यार भरी नजरों से उपर से नीचे तक देखने लगा। 

“ अरे यार अगर तुम ऐसे तैयार होके नाराजगी दिखाओगी तो मेरा क्या होगा। पहले ही तुम इतनी खुबसूरत लग रही हो उस पर नाराज़ होकर और भी हॉट लगने लगती हो… मुझे तो लग रहा है जैसे हमारी चार दिन पहले ही शादी हुई है और अभी हमारा हनीमून पिरेड चल रहा है। “ 

ये सब कहते हुए वैभव का चेहरा धीरे धीरे वैशाली के चेहरे की तरफ झुके जा रहा था। जिसपर वैशाली शरमा कर झट से वैभव के सीने में छुप गई।

“ वैभव तुम भी ना, अभी हमें पुजा करना है। और तुम कैसी बातें कर रहे हो…“ 

वैभव उसे अपनी दोनों हाथों से घेरे हुए था। दोनों का चेहरा प्यार और मुस्कुराहट से जगमगा रहा था। दोनों की आंखें एक दूसरे को महसूस कर सुकून में बंद थी। 


वैशाली सर पर पल्लू करते हुए, पास में डिनर के लिए सजाए टेबल पर रखी अपनी पुजा की थाली उठाती है। और सामने आसमां में चमकते उस खुबसूरत से दुधिया चांद को देख उसकी पुजा करने लगती है। 
उसके पास ही वैभव भी खड़ा था, उसकी आंखें तो बस अपने चांद पर टिकी थी। 
वैशाली को खुश देख उसे उसकी मेडिकल रिपोर्ट याद आ रही थी। 
के तभी वैशाली उसकी तरफ मुड़कर उसे छन्नी के उस बारीक पर्दे से देखने लगी। 

“ क्या हुआ मुझे ऐसे क्यूं देख रहे हो पतिदेव! “ वैशाली ने हल्के से छेड़ते हुए कहा, वैभव मुस्कुरा दिया।

“ क्यों, तुम अपने चांद को देखो मैं तो बस अपने चांद देखूंगा। “ 
वैभव भी थोड़ा इतरा कर बोला और दोनों मुस्करा दिए। 
वैशाली वैभव को टिका लगा उसकी आरती करती है। और फिर झूक कर उसके पैर छुने लगी। 
पर तभी वैभव ने उसे रोक दिया।

“ वैसू यार मैंने कितनी बार कहा हैं ये सब मत किया करो… “ 

“ क्यों? ये मेरा हक हैं और रित भी, तो तुम मुझे ऐसे रोक नहीं सकते। “ 
वैशाली फिर एक बार झुकने लगी पर तभी वैभव ने उसे अपने गले लगा लिया। 

“ तुम्हारी जगह हमेशा मेरे दिल में है समझी! “ वैशाली मुस्कुराते हुए भी कुछ इमोशनल सी हो गई। वैभव ने धीरे से उसके माथे को चूम लिया। 


तभी उनके इस प्यारे से मोमेंट में रूकाट की तरह वैभव का फोन बजने लगा, उसने फोन एक नज़र देखा और डिस्कनेक्ट कर टेबल पर रख दिया। 

वैभव क्लश लेकर वैशाली को पानी पिलाने ही वाला था कि फिर एक बार उसका फोन बजने लगा। वैशाली फोन पर फ़्लैश हो रहे नाम को देखती है। 

माया… माया का नाम पढ़ते ही वो कुछ सिरियस हो गई। माया वैभव की सेकेट्री हुआ करती थी।

“ वैभव ये माया तुम्हें क्यों कॉल कर रही है? “ 

“ पता नहीं, तुम उसे छोड़ो चलो पानी पियो और जल्दी से खाना खाओ। “ 

वैभव ने कहा तो वैशाली हल्के से मुस्कुराई। पर फिर एक बार फोन बजने लगा। उसने फोन पर नजर गढ़ाते हुए कहा 

“ वैभव पहले फोन उठा लो हो सकता है कुछ काम हो उसे फिर हम साथ में खाना खाते हैं। “ 

वैभव फोन लेकर कुछ कदम दूर रेलिंग के पास आ गया। वैशाली बस वैसे ही खड़ी वैभव की पीठ देखे जा रही थी। 

“ क्या? ये क्या बोल रही हो तुम माया… पर ये सब अचानक कैसे? “ वैभव की आवाज हैरान लग रही थी। वो बात करते हुए पलटकर वैशाली को देखने लगा।

वैशाली को कुछ समझ नहीं आ रहा था। वो जैसे ही एक कदम वैभव की तरफ बड़ी के अचानक उसके सामने सब धुंधला होने लगा और वो वैभव का नाम ले अपने सर को पकड़ लेती है। उसका सर घुमने लगा था। 

“ वैशाली! “ 

वैभव ने अचानक ही ये कहा और लड़खड़ाती हुई वैशाली को अपनी बाहों में सभाल लिया। 
उसने संभाल कर उसे वहीं टेबल के पास की कुर्सी पर बिठा दिया। और जल्दी से थाली में रखे लोटे से उसे दो घुट पानी पिला दिया।

“ वैशू! ठीक हो ना तुम, क्या हुआ? “ वैभव की आवाज हड़बड़ाई हुई थी। वैशाली अपना सर उसके सीने पर टिका देती है। 

“ उहूऊ! वैभव… आम सॉरी मैंने तुम्हें बताया नहीं पर… पर पता नहीं क्यों कुछ मुझे कभी कभी चक्कर आ जाता है। मन बहोत अजीब होने लगता है। मुझे लगा ऐसे ही दवाइयों की वजह से होगा पर, पर पता नहीं मुझे क्या हो गया है। “ 

वैशाली की आवाज बहोत धीमी और सुस्त सी लग रही थी। वैभव उसके बालों को सहलाते हुए धीरे से बोला 

“ मुझे पता है तुम्हें क्या हुआ है। “ वैशाली सर उठा उसे देखने लगी। वैभव ने सर झुका कर उसके माथे को चूम लिया। 

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