Taam Zinda Hai - 12 in Hindi Detective stories by Neeraj Sharma books and stories PDF | टाम ज़िंदा हैं - 12

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टाम ज़िंदा हैं - 12

टाम जिंदा है।--------(12)

                      कौन कहता है तो वो मर गया और उसका इतहास मिट गया। इतहास जो किये काम हमेशा साथ चलते है। पीछा नहीं छोड़ता कभी कभी बुरा वक़्त।

जो कमाई की थी शेयर मार्किट मे डूबा चूका था... वो सब फरोति की रकमे... कुछ था आपने पास तो अब मासूमियत सा चेहरा, किराये का काम... सब छोड़ के वो दिल्ली मे आ गया था। अब वो मोहन दास था। हाँ पहले  टाम की धूम थी। कितनी हैरत अंगेज ... चपे चपे पे पुलिस जिसको ढूंढ रही थी अब कही फाइलो मे गुम हो चूका था। दो मतलब हो सकते है, एक यही कि कही मर गया। और या कही न कही है।

पर वो मोहन दास के नाम पे जिंदा था... बात अब 1980 की है। इडनटी मोहन दास.... दिल्ली के शाहबाद इलाके मे, जिसका टाम के नाम पर 20 फरोति बड़े घर से, बैंक डकैती 2, चार बलात्कार केस से बुरी तरा फसा हुआ अपराधी था।।

                        कया नहीं हो सकता है, अगर आदमी चाहे। एक गलती भी पुलिस थाने ले गयी तो चिठा बाहर आ धमकेगा।

अब पीछे चले थोड़ा सा -------

सत्य उपन्यास की कहानी है, किस किस तरा के नाग रहते है मोरियो मे। हाथ डालो तो काटे गे नहीं, बस दोस्ती डाल कर गला छलक से गया।

टाम इस किश्त मे अचनाक नहीं आया। उसका भी कारण था... अभी देखो।

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             रंजीत ने ऊगल दिया था, ज्योति का नाम... पर पुलिस उसे मरा हुआ अभी भी घोषित नहीं करती थी।

और पूछा रिमांड पर..... पूजा बोली ----" एक टाम नाम का दिल्ली मे हथेयारा है। उसे आप ही ढूंढ सकते है.... हमें उसका कोई ठिकाना नहीं मालम.... "त्रिपाठी बीच मे बोला ----" ये वही शक्श जिसने पिछले दो सालो मे बैंक डकैती की थी... तुम भी उसके गिरोह के ही हो... बताओ हम कुछ भी कर सकते है। "

"नहीं ---सर " पूजा ने एक लम्मी सिसकी लीं।

"पर आप मानेगे... शायद नहीं ----"

हम सर कसम खाते है, हमें सर बचा लो सर.... मेरी माँ बहुत बीमार है, ये रंजीत मेरा बड़ा भाई है... किसी तरा भी सर, हम आपको सब बता देंगे... सच मे सर। "----------

ओह --- अब अकड़ निकल गयी है तो सरकारी गवाह बन जाओ, हम आपको, और  हमें उन सब को पकड़वा दो... लेकिन सब का इन्कऊटर ही करेंगे। ये बात आप तक सेफ रहे गी। "

"जी बिलकुल ----"

"भवानी सिंह की जुबान है, ये कभी फिसली नहीं... "

वो कैदियो पर ख़ुशी थी..... और दोनों पता नहीं कयो काँप रहे थे।

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मोबाईल की घंटी वजी -----" हेलो, कौन महाशे बोल रहा है " पूजा तेजी से बोली।

"गिरजा जी, आप किसी तरा भी करके हमें छोड़ा दीजिये।"

"ओह तो तुम पूजा हो.... काहे फोन किया, हम को कया पड़ी तुम्हे छुड़ाने की। " गिरजा एक हफ्ता वसूली की बेहद लुचीया किस्म की औरत थी।

" तेरे से फोन कहा से आया.... ये बस युक्त से अंदर ले लिया... "

"तो पैसे कहा से आये.... ओह समझी दली हो... कोई बात नहीं अच्छी क़ीमत देकर लिया होगा।"

फोन कट कर गया।

अब चारो बाहर बैठे थे... पर पूजा को इतना गुसा आया।

उसने बस कह ही दिया..... " ये बहुत बड़ा गैंग है... दिल्ली, बम्बे, कलकते मे इसके गुर्गे है। " फिर चुप। " इस लोडिया ने आपके बेटे पर भी अकल दस कबल रख कर हाथोड़े से वार किये... जिसे आपके बेटे का सिर का अंदरला हिस्सा चकनाचूर हो गया। " फिर चुप।

त्रिपाठी एक दम से रो पड़ा। गमगीन था भवानी सिंह.....

सूर्य अस्त हो रहा था.... धीरे धीरे....

लेकिन जो क़ानून को मुठी मे रखते थे, उन गुंडों का सिन सिला अब लोकल ट्रेन की माफिक हो गया था। सब क़ानून की मुठी मे -------------

(चलदा )--------------------------------नीरज शर्मा

                       शहकोट, ज़िला जलधर

पिनकोड  :- 144702

प्ल्ज़ ये नि शुल्क मेरी सेवा मातृभूमि के नाम है। जिसने मेरे नाम को मेरी लेखनी को कोई मुकाम दिया।

सभी का धन्यवाद करता हूँ।