Swargiya Vidroh - 6 in Hindi Adventure Stories by Sameer Kumar books and stories PDF | स्वर्गीय विद्रोह - 6

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स्वर्गीय विद्रोह - 6



ज्ञानदेव से अपने अतीत, अपनी वास्तविक पहचान और उस रहस्यमय 'च्यवन' के बारे में जानने के बाद, अग्निवंश के भीतर एक अप्रत्याशित ऊर्जा का संचार हुआ था. वह अब केवल एक प्रशिक्षित योद्धा नहीं था, बल्कि एक ऐसी आत्मा थी जिसने अपनी खोई हुई स्मृतियों की धुंध को चीरना शुरू कर दिया था. आर्यन का प्रतिशोध और अग्निवंश का अटूट विश्वास उसके हर नस में धधक रहा था, उसे एक अनजाने, फिर भी निश्चित मार्ग पर आगे बढ़ने के लिए प्रेरित कर रहा था. यह कोई सामान्य यात्रा नहीं थी; यह उसकी नियति का अगला, निर्णायक पड़ाव था, जहाँ उसे एक और गहन अग्निपरीक्षा से गुज़रना था—एक ऐसी परीक्षा जहाँ उसे स्वयं को माया के जाल में फँसने से बचाना था. अगली सुबह, सूर्योदय की पहली किरणें अभी विराज लोक की शांत धरती को छू भी नहीं पाई थीं, जब अग्निवंश ने अपनी महान यात्रा का आगाज़ करने का निश्चय किया. उसने भोर के पहले ही स्वयं को तैयार कर लिया, उसके कदम दृढ़ थे और उसकी निगाहों में एक नया, ज्वलंत संकल्प था.
ज्ञानदेव ने अग्निवंश को च्यवन का मार्ग समझाया था—यह कोई साधारण पगडंडी नहीं थी, न ही कोई जाना-पहचाना रास्ता. यह विराज लोक के सबसे दुर्गम, सबसे रहस्यमयी और सबसे पवित्र हिस्सों से होकर गुजरने वाला एक अदृश्य पथ था. ज्ञानदेव ने बताया था कि यह मार्ग केवल उन्हीं आत्माओं के लिए खुला है जो अपनी चेतना की गहराइयों में झाँकने, अपने भीतर के द्वंद्वों का सामना करने और ब्रह्मांडीय ऊर्जा के साथ एकाकार होने का अदम्य साहस रखती हैं. यह एक ऐसी परीक्षा थी जो योद्धा के शारीरिक बल से कहीं अधिक उसकी मानसिक दृढ़ता और आध्यात्मिक शुद्धता को परखती थी, और यह अग्निपरीक्षा ही दिव्य शक्ति तक पहुँचने की कुंजी थी.
अग्निवंश ने अपनी ज्ञानदेव द्वारा दी गई श्वेत चमकती तलवार, जो अब उसके विश्वास का प्रतीक बन चुकी थी, और कुछ अति आवश्यक वस्तुओं के साथ अपनी यात्रा शुरू की. उसके कदम स्थिर थे, हालाँकि रास्ता हर मोड़ पर अनिश्चितता से भरा था. उसकी यात्रा घने, प्राचीन जंगलों से होकर गुजरी, जहाँ वृक्षों की डालियाँ इतनी सघन थीं कि सूर्य की किरणें मुश्किल से ही ज़मीन तक पहुँच पाती थीं. पेड़ों की ऊँची-ऊँची शाखाएँ आपस में गुंथकर एक प्राकृतिक छत बनाती थीं, जिसके नीचे एक रहस्यमय अँधेरा छाया रहता था. यहाँ हवा में एक अजीब सी नमी थी और पत्तों की सरसराहट में कोई अनकही कहानी छिपी हुई थी. इन जंगलों में, उसे कभी-कभी ऐसे जीवों का सामना करना पड़ता था जो विराज लोक के अन्य हिस्सों में नहीं मिलते थे—विशाल, चमकदार आँखें वाले प्राणी, और ऐसे पक्षी जिनकी आवाज़ें इतनी मधुर थीं कि मन को मोह लेती थीं. अग्निवंश ने उनसे सीखा, उनके साथ सामंजस्य स्थापित किया, और अपनी प्रकृति-आधारित शक्तियों को और अधिक गहरा किया.
जंगलों को पार करने के बाद, उसने ऊँचे, बर्फीले पहाड़ों को लांघा, जिनकी चोटियाँ बादलों को छूती थीं. यहाँ हवा इतनी ठंडी थी कि हड्डियों तक को जमा देती थी, और हर साँस में बर्फीली चुभन महसूस होती थी. पथरीले रास्ते फिसलन भरे थे और हर कदम पर गिरने का खतरा था. लेकिन अग्निवंश ने अपनी एकाग्रता को भंग नहीं होने दिया. उसने अपनी आंतरिक अग्नि को प्रज्वलित रखा, जिसने उसे ठंड से बचाया और उसे आगे बढ़ने की शक्ति दी. उसने महसूस किया कि ये पहाड़ सिर्फ भौतिक बाधाएँ नहीं थे, बल्कि उसके संकल्प की परीक्षा ले रहे थे, उसे और अधिक मजबूत बना रहे थे.
इन पहाड़ों के बीच, उसने रहस्यमयी नदियों को भी पार किया, जिनके जल में प्राचीन मंत्रों और फुसफुसाहटों की प्रतिध्वनियाँ सुनाई देती थीं. इन नदियों का पानी क्रिस्टल-सा साफ़ था, लेकिन उनकी गहराई में अनकही कहानियाँ छिपी थीं. अग्निवंश ने इन नदियों के प्रवाह को महसूस किया, उनके साथ खुद को जोड़ा, और अपनी जल-आधारित शक्तियों को नियंत्रण में लिया. उसने पाया कि इन नदियों में से एक का प्रवाह अचानक उग्र हो गया, जैसे कोई अदृश्य शक्ति उसे रोक रही हो. अग्निवंश ने अपनी पूरी शक्ति लगाकर प्रवाह को नियंत्रित करने का प्रयास किया, लेकिन उसे लगा जैसे उसकी शक्तियाँ पर्याप्त नहीं हैं. वह थककर चूर हो गया, लेकिन उसने हार नहीं मानी. उसने नदी के किनारे बैठकर अपनी साँसों पर ध्यान केंद्रित किया, अपनी आंतरिक ऊर्जा को शांत किया, और जब उसने फिर से प्रयास किया, तो प्रवाह पहले से अधिक शांत हो गया, जिससे उसे आगे बढ़ने का रास्ता मिला.
इस पूरी यात्रा के दौरान, अग्निवंश को केवल बाहरी बाधाओं का ही नहीं, बल्कि कई आंतरिक परीक्षाओं का भी सामना करना पड़ा. ये ऐसी चुनौतियाँ थीं जो उसके शारीरिक बल से कहीं अधिक उसके मन और आत्मा को परखती थीं:
एक बार, वह एक ऐसे जंगल में भटक गया जहाँ पेड़ों से अजीबोगरीब आवाज़ें आ रही थीं, और हवा में एक भारीपन था. अचानक, उसे अपने अतीत के डरावने सपने फिर से दिखाई देने लगे – शून्य की अथाह गहराई में गिरने का अनुभव, अमरपुरी के देवों द्वारा किया गया जघन्य छल, और आर्यन की हृदय विदारक पीड़ा. ये भ्रम इतने वास्तविक थे, इतने सजीव कि अग्निवंश को लगा जैसे वह अपनी मानसिक दृढ़ता खो देगा, जैसे उसका मन इस भीषण दबाव में बिखर जाएगा. उसके भीतर का क्रोध और भय जागृत होने लगा था. लेकिन उसने ज्ञानदेव के शब्दों को याद किया, उनके शब्द उसके कानों में गूंजे: "अपनी आंतरिक शक्ति पर विश्वास करो, अग्निवंश. भ्रम केवल मन की उपज होते हैं; वे तुम्हें तब तक चोट नहीं पहुँचा सकते जब तक तुम उन्हें अनुमति न दो." उसने तुरंत अपनी आँखें बंद कीं, ध्यान केंद्रित किया और अपनी भीतर की प्रज्वलित ऊर्जा से उन मायावी भ्रमों को दूर भगाया. इस प्रक्रिया में उसे असहनीय मानसिक पीड़ा हुई, जैसे उसका मस्तिष्क फट जाएगा, लेकिन वह टिका रहा. धीरे-धीरे, भयानक दृश्य धुंधला गए, और जंगल फिर से शांत हो गया.
एक और अवसर पर, उसे एक विशाल, भयंकर तूफान का सामना करना पड़ा. आकाश काले बादलों से घिर गया था, बिजली लगातार कड़क रही थी, और गर्जना इतनी तीव्र थी कि धरती काँप रही थी. पेड़ जड़ से उखड़ रहे थे और चट्टानें खिसक रही थीं. यह प्रकृति का एक विकराल रूप था. अग्निवंश ने अपनी शक्तियों का उपयोग करके खुद को और आसपास के छोटे वन्यजीवों को बचाया. उसने तूफान की कच्ची, प्रचंड ऊर्जा को महसूस किया, उसे अपने भीतर समाहित करने की कोशिश की, और इस प्रक्रिया में उसकी स्वयं की शक्तियाँ और भी मजबूत हुईं. उसने सीखा कि प्रकृति का क्रोध भी एक शक्ति है, जिसे दबाना नहीं, बल्कि समझना और सम्मान करना चाहिए. उसने तूफान की ऊर्जा को अपने शरीर से गुजरने दिया, उसे नियंत्रित किया, और अंततः तूफान भी उसके संकल्प के सामने शांत पड़ गया, लेकिन यह उसे पूरी तरह से थका गया था.
सबसे कठिन परीक्षा एकांत का भय था. कई दिनों तक वह पूरी तरह अकेला रहा, किसी भी जीवित प्राणी से दूर, केवल अपने विचारों और ब्रह्मांड की खामोशी के साथ. इस एकांत ने उसे अपने भीतर झाँकने का मौका दिया, अपने सबसे गहरे डर और सबसे मजबूत इच्छाओं का सामना करने के लिए मजबूर किया. उसने अपने भीतर के क्रोध, अपनी पीड़ा और अपनी नियति के भारी भार को महसूस किया. इस दौरान, उसने आर्यन की आत्मा के साथ संवाद किया, उसे शांत किया, और अंततः उसे अपनी वर्तमान पहचान—अग्निवंश—के साथ एकीकृत किया. इस गहन एकांत ने उसे न केवल मजबूत बनाया, बल्कि उसे एक नई मानसिक स्पष्टता और आंतरिक शांति भी प्रदान की. उसने अपने अतीत के घावों को देखा, उन्हें स्वीकार किया, और उन्हें अपनी शक्ति का हिस्सा बनने दिया.
कई हफ्तों की कठिन और आत्म-खोज भरी यात्रा के बाद, अग्निवंश अंततः च्यवन के प्रवेश द्वार पर पहुँचा. यह कोई भव्य मंदिर या विशाल महल नहीं था, बल्कि एक विशालकाय, प्राचीन चट्टान थी, जिसके बीच में एक दरार थी. दरार से एक मंद, सुनहरी रोशनी निकल रही थी, और एक प्राचीन ऊर्जा का स्पंदन महसूस हो रहा था. यह वही स्पंदन था जिसे उसने उस रात सुना था जब रहस्यमयी आवाज़ ने उसे पुकारा था. यह एक ऐसा अनुभव था जिसने उसके रोंगटे खड़े कर दिए, लेकिन उसके भीतर कोई भय नहीं था, केवल एक तीव्र उत्सुकता थी.
जैसे ही वह दरार के करीब पहुँचा, आवाज़ फिर से उसके भीतर गूंजी, अब और भी स्पष्ट और शक्तिशाली: "तुम आ गए, अग्निवंश. तुमने परीक्षाओं को पार किया है. अब अंदर आओ, तुम्हारी नियति तुम्हारा इंतजार कर रही है." आवाज़ में कोई भय नहीं था, बल्कि एक गहरा आश्वासन था, जैसे कोई प्राचीन अभिभावक उसे पुकार रहा हो.
अग्निवंश ने बिना किसी हिचकिचाहट के दरार में प्रवेश किया. अंदर का रास्ता एक संकरी, घुमावदार सुरंग था, जो धीरे-धीरे नीचे की ओर जाती थी. सुरंग के अंदर की दीवारें चमक रही थीं, जैसे उनमें स्वयं ब्रह्मांडीय ऊर्जा समाहित हो, और यह चमक मार्ग को रोशन कर रही थी. हर कदम के साथ, उसे अपनी भीतर की शक्ति बढ़ती हुई महसूस हो रही थी, जैसे वह किसी चुंबकीय क्षेत्र में प्रवेश कर गया हो, लेकिन अभी भी वह उस दिव्य शक्ति से दूर था जिसकी वह तलाश कर रहा था.
सुरंग के अंत में, अग्निवंश एक विशाल गुफा में पहुँचा, जो एक प्राकृतिक सभागार जैसी थी. गुफा के केंद्र में, एक प्राचीन वेदी थी, जो किसी दिव्य धातु से बनी प्रतीत होती थी. उस वेदी के ऊपर, कुछ भी नहीं था, सिवाए एक खाली स्थान के जहाँ ऊर्जा का एक शक्तिशाली भंवर बन रहा था. यहीं पर वह स्वर्णिम कमल होना चाहिए था, यहीं वह दिव्य शक्ति होनी चाहिए थी. लेकिन वह खाली था.
आवाज़ फिर से गूंजी, अब गुफा के हर कोने से आती हुई महसूस हुई: "यह स्थान ही च्यवन है, अग्निवंश. यह वह द्वार है जहाँ से दिव्य शक्ति प्रकट होती है. लेकिन इसे प्राप्त करने के लिए, तुम्हें एक अंतिम परीक्षा देनी होगी—एक ऐसी परीक्षा जहाँ तुम्हें स्वयं को माया में फँसने नहीं देना है. तुम्हें अपनी ही शक्ति के भ्रम में नहीं खोना है, अन्यथा तुम अनंत शून्य में विलीन हो जाओगे."
अग्निवंश के भीतर एक गहरा सदमा लगा. स्वयं की शक्ति के भ्रम में? यह उसके लिए सबसे बड़ी चुनौती थी. उसे पता था कि देवों ने आर्यन को शून्य में विँफसाया था, और अब उसे उसी माया के जाल का सामना करना था. उसे अपने भीतर की उस शक्ति को पहचानना था जो उसे भ्रमित कर सकती थी, और उसे नियंत्रित करना था.
अचानक, गुफा की दीवारें बदलने लगीं. वे एक दर्पण जैसी सतह बन गईं, जिसमें अग्निवंश को अपने सबसे गहरे भय और सबसे बड़ी इच्छाओं के प्रतिबिम्ब दिखाई देने लगे. उसने देखा खुद को अमरपुरी का सम्राट बनते हुए, देवों को अपने पैरों तले रौंदते हुए, और अपनी असीम शक्ति से पूरे ब्रह्मांड पर राज करते हुए. ये दृश्य इतने वास्तविक थे, इतने मोहक कि उसका मन उनमें खोने लगा. उसकी शक्तियाँ अनियंत्रित होकर बढ़ने लगीं, और एक क्षण के लिए, उसे लगा जैसे वह सचमुच यह सब प्राप्त कर चुका है.
"नहीं!" अग्निवंश ने चिल्लाया. उसे ज्ञानदेव के शब्द याद आए: "सच्ची शक्ति संतुलन में निहित है." उसे याद आया कि कैसे आर्यन को शक्ति के लालच में फँसाया गया था. उसने अपनी आँखें बंद कीं, अपने भीतर के आर्यन और अग्निवंश के बीच संतुलन स्थापित करने की कोशिश की. उसने महसूस किया कि यह माया उसे अपनी असली नियति से भटका रही थी, उसे प्रतिशोध के अंधे कुएँ में धकेल रही थी.
उसने अपनी पूरी इच्छाशक्ति लगाई, अपने भीतर की शुद्धता पर ध्यान केंद्रित किया, और अपनी तलवार को कसकर पकड़ लिया. उसने चिल्लाया, "मैं आर्यन नहीं हूँ, और न ही मैं केवल प्रतिशोध हूँ! मैं अग्निवंश हूँ, और मेरा उद्देश्य संतुलन है!" जैसे ही उसने यह कहा, उसके भीतर से एक उज्ज्वल प्रकाश निकला, जिसने दर्पणों के मायावी दृश्यों को भंग कर दिया. गुफा फिर से सामान्य हो गई.
आवाज़ ने संतुष्टि से कहा, "तुम सफल हुए, अग्निवंश. तुमने माया को जीत लिया है. अब तुम उस शक्ति को प्राप्त करने के योग्य हो जिसके लिए तुम बने हो."
अग्निवंश ने महसूस किया कि उसने सिर्फ एक परीक्षा नहीं जीती थी, बल्कि स्वयं को जीता था. वह जानता था कि इस जीत के बाद ही वह पूर्ण होगा, और तभी वह अपनी असली नियति—एक अर्ध-सम्राट की क्षमता—को प्राप्त कर पाएगा. वह अब उस दिव्य शक्ति के लिए तैयार था जो उसकी प्रतीक्षा कर रही थी.