"विस्मृत अतीत की पुकार"
(आवाज़: अब और अधिक दृढ़, उसमें एक चेतावनी और आने वाले संघर्ष का संकल्प है. नियति अब अपने पंख फैला चुकी है.)
विराज लोक में, ज्ञानदेव के आश्रम में सूर्य की सुनहरी किरणें एक शांत सुबह का संकेत दे रही थीं. अग्निवंश, अब एक युवा व्यक्ति, जिसकी मांसपेशियां कठोर और आँखें गहरी थीं, अपनी दैनिक साधना में लीन था. उसके चारों ओर ऊर्जा का एक सूक्ष्म आभामंडल था, जो उसके भीतर की अपार शक्ति का प्रमाण था. पिछले कई वर्षों में, ज्ञानदेव के मार्गदर्शन में, वह न केवल एक असाधारण योद्धा बन चुका था, बल्कि उसने प्रकृति के साथ एक ऐसा गहरा संबंध भी स्थापित कर लिया था जो बिरले ही देखने को मिलता था.
अग्निवंश की प्रगति: एक नायक का उदय
ज्ञानदेव का मौन मूल्यांकन: ज्ञानदेव, एक पेड़ के नीचे बैठे, अपनी आँखों में गर्व और थोड़ी चिंता लिए अग्निवंश को देख रहे थे. अग्निवंश ने 'दक्ष' का शुरुआती स्तर बहुत पहले ही पार कर लिया था. उसकी गति, उसकी सटीकता, और उसकी ब्रह्मांडीय ऊर्जा को नियंत्रित करने की क्षमता अद्वितीय थी. उसने आसानी से 'महादक्ष' की श्रेणी को भी पार कर लिया था, जहाँ उसे छोटे अभियानों का नेतृत्व करना था और दक्ष योद्धाओं को प्रशिक्षित करना था.
कई बार, ज्ञानदेव ने उसे ऐसे कार्य दिए थे जो उसकी उम्र से कहीं अधिक थे. उसने बिना किसी हिचकिचाहट के उन्हें पूरा किया था, चाहे वह विराज लोक की सीमाओं पर गश्त लगाना हो, जंगली जीवों के असंतुलन को शांत करना हो, या छोटे समुदायों के बीच शांति स्थापित करनी हो. उसकी बुद्धिमत्ता और दूरदर्शिता ने उसे एक 'नायक' के रूप में स्थापित कर दिया था – वह अब केवल एक कुशल योद्धा नहीं, बल्कि एक सच्चा नेता था, जिसकी सलाह का सम्मान किया जाता था और जिसके मार्गदर्शन पर लोग विश्वास करते थे.
"पुत्र अग्निवंश," ज्ञानदेव ने एक दिन साधना समाप्त होने के बाद कहा, "तुम्हारी प्रगति ने मुझे विस्मित कर दिया है. तुम अब विराज लोक के कुछ सबसे योग्य नायकों में से एक हो."
अग्निवंश ने विनम्रता से सिर झुकाया. "यह सब आपके मार्गदर्शन के कारण है, गुरुदेव."
ज्ञानदेव ने मुस्कुराते हुए कहा, "नहीं, अग्निवंश. कुछ आत्माएँ ऐसी होती हैं, जिनमें सीखने की इतनी तीव्र प्यास होती है कि वे स्वयं ही प्रकाश की ओर खिंची चली आती हैं. तुम उनमें से एक हो." उन्होंने आगे कहा, "तुम्हारी शक्तियाँ अब उस स्तर पर हैं, जहाँ तुम अपनी इंद्रियों को और भी अधिक तीक्ष्ण कर सकते हो. तुम्हें ब्रह्मांड की सूक्ष्म ध्वनियाँ सुननी होंगी, उन प्रतिध्वनियों को पहचानना होगा जो दूर अतीत से आती हैं."
विस्मृत अतीत की प्रतिध्वनियाँ
ज्ञानदेव के शब्दों ने अग्निवंश के भीतर एक अजीब सी हलचल पैदा कर दी. अक्सर, उसे अजीब से सपने आते थे—एक विशालकाय शून्य, एक असीमित ऊर्जा का प्रवाह, और एक भयानक दर्द. इन सपनों में एक चेहरा भी होता था, धुंधला और अस्पष्ट, लेकिन जिसमें एक अथाह पीड़ा छिपी थी. वह जब भी उन सपनों के बारे में सोचने की कोशिश करता, उसके सिर में एक तेज दर्द होता, जैसे कोई अदृश्य अवरोध उसे सच्चाई तक पहुँचने से रोक रहा हो.
एक रात, जब अग्निवंश ध्यान में गहरा उतरा हुआ था, उसे एक शक्तिशाली ऊर्जा का स्पंदन महसूस हुआ. यह स्पंदन विराज लोक से बहुत दूर, अमरपुरी की दिशा से आ रहा था. यह कोई साधारण ऊर्जा नहीं थी; इसमें शक्ति का अहंकार, सत्ता की भूख और एक छिपी हुई क्रूरता थी. उसके भीतर कुछ जागा, एक तीव्र असंतोष, एक अनजाना क्रोध. उसे लगा जैसे उसके भीतर कोई पुरानी ज्वाला फिर से सुलग रही है.
उसी क्षण, उसके दिमाग में कुछ चित्र कौंधे – अमरपुरी की भव्य सभा, चमकीले वस्त्रों में देवगण, और फिर शून्य की अथाह गहराई में गिरता हुआ एक शरीर. दर्दनाक चीख, जो उसकी अपनी लग रही थी, उसके कानों में गूंजी. वह छटपटा कर उठा, पसीने से लथपथ.
ज्ञानदेव तुरंत उसके पास आए. "क्या हुआ, पुत्र?"
अग्निवंश ने हाँफते हुए कहा, "गुरुदेव, मैंने... मैंने कुछ देखा. कुछ ऐसा जो मेरे लिए नया नहीं था, लेकिन मुझे याद नहीं आ रहा."
ज्ञानदेव ने उसकी आँखों में देखा, एक गहरी समझ से भरी हुई. "तुम्हारे भीतर आर्यन की आत्मा है, अग्निवंश. वह देवों द्वारा छल का शिकार हुआ था और उसकी शक्तियाँ शून्य में विलीन कर दी गई थीं. लेकिन नियति को कुछ और ही मंजूर था. तुम्हारी आत्मा ने एक नया शरीर पाया, अपने अतीत के घावों और प्रतिशोध की अग्नि को समेटे हुए."
अग्निवंश अवाक रह गया. "आर्यन? देवों का छल?" उसके मन में एक साथ कई सवाल उठ रहे थे, लेकिन जवाब नहीं थे.
सत्य की ओर पहला कदम
ज्ञानदेव ने अग्निवंश को अपनी पुरानी कहानी सुनाई. उन्होंने बताया कि कैसे वह कभी अमरपुरी के एक सम्मानित सदस्य थे, लेकिन उन्होंने अमरपुरी के बढ़ते हुए अहंकार और भ्रष्टाचार को देख लिया था. उन्होंने देवों के आर्यन के साथ किए गए छल का भी खुलासा किया, कैसे उन्होंने उसे शून्य की शक्ति को आत्मसात करने पर मजबूर किया, यह जानते हुए कि यह उसके लिए विनाशकारी होगा.
"देवगण सोचते हैं कि आर्यन नष्ट हो गया है," ज्ञानदेव ने कहा, "लेकिन वे यह नहीं जानते कि तुम उसकी राख से निकली हुई ज्वाला हो. तुम वही हो, जो ब्रह्मांडीय संतुलन को बहाल करने और अमरपुरी के छल को उजागर करने के लिए आया है."
अग्निवंश के भीतर का क्रोध अब एक स्पष्ट दिशा ले रहा था. उसे अपने जीवन का उद्देश्य मिल गया था. उसके मन में उठने वाले अज्ञात असंतोष और उन भयानक सपनों का अर्थ अब स्पष्ट हो गया था. वह आर्यन था, और उसे अपने अतीत का प्रतिशोध लेना था, लेकिन साथ ही ब्रह्मांडीय संतुलन को भी बहाल करना था.
"तो मेरी नियति क्या है, गुरुदेव?" अग्निवंश ने पूछा, उसकी आवाज़ में अब एक दृढ़ता थी.
ज्ञानदेव ने अग्निवंश के कंधे पर हाथ रखा. "तुम्हारी नियति बहुत बड़ी है, अग्निवंश. तुम सिर्फ एक योद्धा नहीं हो, तुम एक सेतु हो, जो अतीत और भविष्य को जोड़ेगा. अब समय आ गया है कि तुम उस सत्य का सामना करो जो तुम्हें पुकार रहा है."
उन्होंने आगे कहा, "तुम्हें उस प्राचीन युद्ध में देवों के साथ हुए छल का बदला लेना होगा. तुम्हें उस दिव्य शक्ति को खोजना होगा, जो तुम्हारी शक्तियों को पूर्णता प्रदान करेगी और तुम्हें अमरपुरी का सामना करने में सक्षम बनाएगी. यह शक्ति विराज लोक के ही कुछ सबसे पवित्र और छिपे हुए स्थानों में से एक में निहित है, जिसे केवल एक शुद्ध हृदय वाला योद्धा ही प्राप्त कर सकता है."
अगले कदम की तैयारी
अग्निवंश ने ज्ञानदेव के शब्दों को हृदय से ग्रहण किया. उसे पता था कि उसका रास्ता आसान नहीं होगा, लेकिन उसके भीतर अब एक अटूट संकल्प था. उसने अपने नए उद्देश्य के साथ अपनी शक्तियों को और अधिक केंद्रित करना शुरू कर दिया. उसने अपनी इंद्रियों को और तीक्ष्ण किया, ताकि वह अमरपुरी से आ रहे ऊर्जा स्पंदनों को अधिक स्पष्ट रूप से महसूस कर सके.
ज्ञानदेव ने अग्निवंश को कुछ और प्राचीन ग्रंथ दिए, जिनमें ब्रह्मांडीय शक्तियों, अमरपुरी के रहस्यों, और उस दिव्य शक्ति के बारे में जानकारी थी. उन्होंने उसे चेतावनी दी कि अमरपुरी की दुनिया छलों और मायाजाल से भरी है, और उसे अत्यंत सावधानी से आगे बढ़ना होगा.
"गुरुदेव," अग्निवंश ने एक शाम कहा, "क्या मैं आपकी श्रेणी में आता हूँ?"
ज्ञानदेव ने मुस्कुराते हुए कहा, "अग्निवंश, तुमने नायक के पद को पार कर लिया है. तुम्हारी रणनीतिक समझ और नेतृत्व क्षमता तुम्हें सेनापति के करीब लाती है. यदि तुम मेरे मार्गदर्शन में रहे होते, तो शायद तुम 'अर्ध-भूपति' के पद तक भी पहुँच जाते. लेकिन तुम्हारी नियति तुम्हें अब विराज लोक से परे एक अलग रास्ते पर ले जा रही है, जहाँ तुम्हारी अपनी श्रेणी बनेगी."
अग्निवंश ने अपने कमर से लगी हुई ज्ञानदेव द्वारा दी गई तलवार को छुआ, जो अब उसके हाथ में एक विस्तार सी लगती थी. उसके भीतर आर्यन का प्रतिशोध और अग्निवंश का संकल्प दोनों एक साथ जल रहे थे. वह जानता था कि अब समय आ गया है कि वह अपने अतीत का सामना करे, और ब्रह्मांडीय संतुलन को बहाल करने के लिए अपनी नियति को पूरा करे.