स्वर्गीय विद्रोह: एपिसोड 1 - अमरपुरी का अभिशाप
अनंत लोकों के परे, जहाँ प्रकाश की नदियाँ बहती थीं और नक्षत्र परम देवों की आज्ञा का पालन करते थे, वहाँ बसा था अमरपुरी. एक ऐसा स्थान जहाँ देव समान प्राणी, स्वर्गीय आत्माएँ और तेजस्वी जीव रहते थे. स्वर्ण-मंडित महल, चमकते हुए उद्यान, और अनंत सुख की कहानियाँ... यही अमरपुरी की पहचान थी. कहा जाता था कि यहाँ केवल पवित्रता और न्याय का वास है, कि यहाँ के शासकों का नियम निष्पक्ष और सर्वोपरि है. पर हर चमकती चीज़ सोना नहीं होती, और हर दिव्य चेहरा सच्चाई नहीं दर्शाता. इस दिव्य आवरण के पीछे छिपा था एक गहरा अहंकार, एक ऐसा अभिमान जो मानता था कि वह ही ब्रह्मांड का केंद्र है, और उसके नियमों को चुनौती देने वाला कोई नहीं.
सर्वोच्च देव अधिराज: आर्यन! तुम्हारी यह धृष्टता अब असहनीय हो रही है! तुमने फिर से हमारे देव-संहिता पर प्रश्नचिह्न लगाया है, उन नियमों पर जो सदियों से इस अमरपुरी की नींव रहे हैं! क्या तुम भूल गए हो कि तुम स्वयं हमारी कृपा से ही इस दिव्य लोक में हो?
आर्यन: हे अधिराज! मैं भूला नहीं हूँ. मैं जानता हूँ कि आपकी कृपा से ही मैं यहाँ हूँ, पर यह भी जानता हूँ कि यह कृपा केवल उन्हीं पर बरसती है जो आपके बनाए गए नियमों का पालन करते हैं, भले ही वे नियम कितने भी क्रूर क्यों न हों. मैंने उन लोकों को खंडहर होते देखा है, उन आत्माओं को बिलखते देखा है जिन पर आपने अपनी आँखें मूँद लीं, सिर्फ़ इसलिए क्योंकि वे आपकी शक्ति को चुनौती देने का साहस करते थे.
प्रधान देव विराट: दुस्साहसी! यह अमरपुरी है, आर्यन! यहाँ हम अपनी मर्जी से शासन करते हैं! हमारी कृपा ही उनका भाग्य है, और हमारा क्रोध उनका दंड. तुम कौन होते हो हमें यह बताने वाले कि हमारा कर्तव्य क्या है और क्या नहीं? क्या तुम्हें नहीं दिखता कि हमारा शासन ही इस ब्रह्मांड में व्यवस्था बनाए रखता है?
आर्यन: व्यवस्था? क्या उस अनगिनत लोकों का विनाश व्यवस्था है? क्या उन निर्दोषों का उत्पीड़न व्यवस्था है जो आपके भव्य महलों से कोसों दूर, भूख और भय में जीते हैं? आपने उनसे उनके संसाधन छीन लिए, उनकी स्वतंत्रता छीन ली, और अब आप इसे 'व्यवस्था' कहते हैं? मैंने स्वयं अपनी आँखों से देखा है – एक बालक को, जो सिर्फ़ अपने लोक के लिए न्याय मांग रहा था, आपके सैनिकों ने रौंद डाला! वह चीख मेरे कानों में अब भी गूँजती है!
देव शक्तिमान: यह विद्रोह है! तुम अमरपुरी के नियमों को चुनौती दे रहे हो! तुम परम देवों की सर्वोच्चता पर सवाल उठा रहे हो! तुम्हें अपनी सीमाएँ नहीं दिखतीं, आर्यन!
आर्यन: मेरी सीमाएँ? मेरी सीमाएँ वहाँ खत्म होती हैं जहाँ अन्याय शुरू होता है! यदि न्याय की बात करना विद्रोह है, तो मैं विद्रोही हूँ! यदि असहायों के लिए खड़ा होना अपराध है, तो मैं अपराधी हूँ! पर मैं उस आकाश से भी कहूँगा, कि तुम्हारा यह न्याय सिर्फ़ एक भ्रम है, और तुम्हारी यह अमरपुरी एक अभिशाप! यह स्वर्ण-जड़ित पिंजरा है जो हमारी आत्माओं को भी कैद कर रहा है, और मैं इस कैद से मुक्त होना चाहता हूँ!
आर्यन की आवाज़ में इतनी सच्चाई और दृढ़ता थी कि अमरपुरी के स्तंभ भी काँप उठे. परम देवों का अहंकार अब क्रोध में बदल चुका था. वे जानते थे कि आर्यन सही कह रहा है, और यही बात उन्हें सबसे ज़्यादा डराती थी. उसे जीवित रहने देना, उनके सिंहासन के लिए खतरा था. परम देवों का अभिमान उनसे अब बदला चाहता था.
एक के बाद एक, अमरपुरी के सबसे शक्तिशाली परम देव उस अकेले योद्धा पर टूट पड़े. सर्वोच्च देव अधिराज की वज्रशक्ति, प्रधान देव विराट का जलप्रलय, देव शक्तिमान की ज्वाला और अन्य देवों के अस्त्र-शस्त्र... सभी एक साथ उस पर प्रहार कर रहे थे. आर्यन ने हर वार का सामना किया, हर प्रहार को रोका. उसकी शक्ति अद्वितीय थी, एक ऐसी शक्ति जो स्वयं अमरपुरी से मिली थी, पर संख्या और परम देवों का संयुक्त अहंकार उसे भारी पड़ रहा था. उसके शरीर पर घाव होते जा रहे थे, पर उसकी आँखों में हार नहीं, बल्कि एक अटल विश्वास था. वह जानता था कि उसका अंत निकट है, पर यह भी जानता था कि उसकी बात व्यर्थ नहीं जाएगी.
आर्यन: तुम मुझे मार सकते हो... मेरे शरीर को खंडित कर सकते हो... पर मेरे विचारों को नहीं! यह बीज... न्याय का बीज... यह विद्रोह... एक दिन... अंकुरित होगा! और तब... तब तुम्हारी यह झूठी अमरपुरी... ढह जाएगी!
और फिर... एक भयानक सन्नाटा छा गया. अमरपुरी ने अपने ही पुत्र को, अपनी ही एक सुंदर रचना को, निर्ममता से मार डाला. उसकी आत्मा को विखंडित कर दिया गया, ताकि वह कभी लौट न सके, ताकि उसके विचार कभी पनप न सकें. परम देवों ने सोचा कि उन्होंने अपने खतरे को हमेशा के लिए मिटा दिया है. उन्होंने अपने सिंहासन को सुरक्षित कर लिया था, या ऐसा उन्हें लगा. लेकिन नियति के खेल बड़े निराले होते हैं. कभी-कभी अंत ही एक नई शुरुआत होती है. और कभी-कभी, सबसे बड़ी हार ही सबसे बड़ी जीत का मार्ग प्रशस्त करती है.
उस अनंत शून्य में, आर्यन की विखंडित आत्मा के कुछ अंश बिखर गए. वे परम देव नहीं जानते थे कि उनका क्रोध ही आर्यन की मुक्ति बनेगा, और उसकी आत्मा को एक ऐसे लोक में पहुँचाएगा जहाँ उसकी आवाज़ को दबाया नहीं जा सकेगा. बहुत दूर, एक अंजान दुनिया में – विराज लोक में – एक नया जीवन साँस ले रहा था. एक ऐसा जीवन, जो अपनी पिछली ज़िंदगी की कड़वी यादों के साथ जन्मा था. एक ऐसा जीवन, जिसके कण-कण में अमरपुरी के प्रति एक गहरी घृणा और बदला लेने की ज्वाला धधक रही थी. एक ऐसा जीवन, जिसका एक ही लक्ष्य था... सबसे शक्तिशाली योद्धा बनकर... अमरपुरी को उसकी औकात दिखाना.