Swargiya Vidroh - 3 in Hindi Adventure Stories by Sameer Kumar books and stories PDF | स्वर्गीय विद्रोह - 3

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स्वर्गीय विद्रोह - 3

 - "अग्निवंश का प्रशिक्षण: शक्ति का संतुलन"
(आवाज़: पहले से थोड़ी अधिक दृढ़ और आशावान, लेकिन फिर भी नियति की गहराई लिए हुए)
विराज लोक के शांत वातावरण में, ज्ञानदेव के आश्रम में अग्निवंश का प्रशिक्षण शुरू हुआ. यह प्रशिक्षण केवल शारीरिक कौशल का नहीं, बल्कि मानसिक और आध्यात्मिक अनुशासन का भी था. ज्ञानदेव ने अग्निवंश को सिखाया कि सच्ची शक्ति विनाश में नहीं, बल्कि संतुलन में निहित है.
शक्ति का आंतरिक स्रोत
ज्ञानदेव ने अग्निवंश को ध्यान की गहराइयों में उतरना सिखाया, जहाँ वह अपनी आंतरिक ऊर्जा और ब्रह्मांडीय शक्तियों के साथ जुड़ सके. शुरुआत में, अग्निवंश को अपनी अनियंत्रित शक्तियों को शांत करना मुश्किल लगा. कभी उसकी आँखें अनियंत्रित रूप से चमक उठतीं, तो कभी उसके आसपास की हवा में असामान्य स्पंदन महसूस होता. ज्ञानदेव ने उसे धैर्य से समझाया कि ये उसकी पहचान का हिस्सा हैं, और उसे इनसे डरना नहीं, बल्कि इन्हें समझना है.
ज्ञानदेव ने अग्निवंश को यह भी बताया कि उसकी शक्तियाँ उसके पिछले जीवन से जुड़ी हुई हैं, हालाँकि उन्होंने आर्यन के बारे में सीधा उल्लेख नहीं किया. उन्होंने संकेत दिया कि कुछ महान आत्माएँ, जब वे अपने पूर्व उद्देश्य को पूरा नहीं कर पातीं, तो एक नए शरीर में पुनर्जन्म लेती हैं, अपनी पूर्व शक्तियों और ज्ञान को अवचेतन रूप से साथ लेकर. अग्निवंश को यह सुनकर अजीब लगा, लेकिन उसने ज्ञानदेव के शब्दों पर विश्वास किया.
प्रकृति के साथ सामंजस्य
प्रशिक्षण का एक महत्वपूर्ण हिस्सा प्रकृति के साथ सामंजस्य स्थापित करना था. ज्ञानदेव ने अग्निवंश को सिखाया कि विराज लोक की हर चीज़ में एक जीवंत ऊर्जा है, और उसे उस ऊर्जा को महसूस करना और उसके साथ काम करना सीखना होगा. अग्निवंश ने पेड़ों से ऊर्जा खींचना, नदियों के प्रवाह को नियंत्रित करना, और यहाँ तक कि छोटे जीवों के साथ संवाद करना सीखा.
एक बार, जब अग्निवंश एक झरने के पास ध्यान कर रहा था, तो अचानक पानी का बहाव तेज़ हो गया, जिससे उसे खतरा महसूस हुआ. घबराकर, उसकी शक्तियों ने अनियंत्रित रूप से काम करना शुरू कर दिया और झरने का पानी और भी उग्र हो गया. ज्ञानदेव ने उसे शांत किया और समझाया, "पुत्र, प्रकृति तुम्हारी दुश्मन नहीं है. तुम्हें उसकी शक्ति को दबाना नहीं, बल्कि उसके साथ मिलकर बहना सीखना होगा." अग्निवंश ने इस सीख को समझा और धीरे-धीरे उसने प्रकृति के साथ गहरा संबंध स्थापित कर लिया.
ज्ञानदेव का सफेद कमल और प्राचीन भविष्यवाणियाँ
ज्ञानदेव अक्सर अपने सफेद कमल को स्पर्श करते थे, जो शांति और ज्ञान का प्रतीक था. उन्होंने अग्निवंश को कई प्राचीन भविष्यवाणियों के बारे में बताया, जिनमें से एक ऐसी आत्मा के पुनर्जन्म की बात करती थी जो ब्रह्मांडीय संतुलन को बहाल करने और देवलोक के छल को उजागर करने के लिए प्रकट होगी. अग्निवंश को यह सुनकर उत्सुकता हुई, लेकिन उसे यह नहीं पता था कि यह भविष्यवाणी उसी के लिए थी.
ज्ञानदेव ने यह भी बताया कि देवलोक, एक समय में ब्रह्मांड का संरक्षक, अब भ्रष्टाचार और सत्ता के लालच से ग्रस्त हो गया है. उन्होंने अमरपुरी के कुछ गुप्त रहस्यों और आर्यन के साथ हुए छल के बारे में अप्रत्यक्ष रूप से संकेत दिया, जिससे अग्निवंश के मन में एक अज्ञात असंतोष पैदा हुआ. उसे लगा जैसे कुछ अधूरा है, कुछ ऐसा जो उसे पता होना चाहिए, लेकिन जिसे वह याद नहीं कर पा रहा है.
उभरता हुआ योद्धा
जैसे-जैसे साल बीतते गए, अग्निवंश एक असाधारण योद्धा और ज्ञानी बन गया. उसकी शक्तियाँ अब उसके नियंत्रण में थीं, और वह उन्हें सटीकता और विवेक के साथ उपयोग करना सीख गया था. उसकी आँखों में पहले की मासूमियत की जगह एक गहरी समझ और संकल्प आ गया था. वह अब केवल एक बच्चा नहीं था, बल्कि एक उभरता हुआ योद्धा था, जो अपने अतीत के रहस्यों और अपनी नियति के भार को अपने कंधों पर महसूस कर रहा था.
ज्ञानदेव ने मुस्कुराते हुए अग्निवंश को देखा, यह जानते हुए कि उनका शिष्य अब अपने अगले कदम के लिए तैयार है. उन्होंने उसे एक प्राचीन तलवार दी, जो शुद्ध ब्रह्मांडीय ऊर्जा से बनी थी, और कहा, "अग्निवंश, यह तलवार तुम्हारी शक्ति का प्रतीक है, लेकिन याद रखना, तुम्हारा सच्चा हथियार तुम्हारा ज्ञान और तुम्हारा हृदय है."
अग्निवंश ने तलवार स्वीकार की, उसकी आँखों में एक नई चमक थी. वह जानता था कि अब समय आ गया है कि वह विराज लोक की सीमाओं से परे जाए और अपनी सच्ची पहचान को खोजे, उस प्रतिशोध की ज्वाला को प्रज्वलित करे जो उसके भीतर सुलग रही थी, और ब्रह्मांडीय संतुलन को बहाल करे.
(आवाज़: अधिक दृढ़ और आशावान होती है, आगे आने वाली यात्रा और संघर्ष का संकेत देती हुई समाप्त होती है)