sister's fate in Hindi Women Focused by Dayanand Jadhav books and stories PDF | बहन की तक़दीर

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बहन की तक़दीर


"तकदीर लिखने का हक अगर बहन को होता तो दुनिया का कोई भी भाई आज उदास ना होता।" — यह पंक्ति केवल शब्द नहीं, एक बहन के दिल की पुकार है, उसकी असह helplessता की पराकाष्ठा है, जब वह अपने भाई को टूटते हुए देखती है और चाहकर भी उसके लिए कुछ कर नहीं पाती।

यह कहानी है रागिनी और उसके छोटे भाई अभय की, जिनका रिश्ता शब्दों से नहीं भावनाओं से बंधा था।

रागिनी और अभय उत्तर प्रदेश के एक छोटे से गाँव ‘छतरपुर’ में रहते थे। उनका परिवार साधारण था — पिता रामप्रसाद जी स्कूल मास्टर, माँ गृहिणी। रागिनी अभय से पाँच साल बड़ी थी और बचपन से ही अभय की माँ समान थी। माँ-बाप काम में लगे रहते और रागिनी अपने छोटे भाई को नहलाना, खाना खिलाना, पढ़ाना और फिर सुलाना — यही उसकी दिनचर्या थी।

अभय भी रागिनी से बेतहाशा प्यार करता। जब भी डरता, दौड़कर दीदी की गोद में छिप जाता। जब रागिनी स्कूल में अव्वल आती, तो अभय अपनी जेब खर्च से उसके लिए पेन्सिल, रबर लाकर देता।

समय बीतता गया। रागिनी बारहवीं पास करते ही घर के कामों में लग गई। अभय को पढ़ाने का सपना लेकर वह अपने सपनों को भूलती चली गई। उसने सिलाई सीख ली, बच्चों को ट्यूशन पढ़ाने लगी ताकि अभय को शहर में पढ़ने भेजा जा सके। उसका सपना था — उसका अभय एक दिन बड़ा आदमी बने, अफसर बने और गाँव में नाम कमाए।

अभय भी मेहनती था। पढ़ाई में तेज और स्वभाव से शांत। रागिनी के सपनों में उसका भविष्य बसता था और अभय को इस बात की पूरी समझ थी।

रागिनी की शादी की बात आई। माँ-बाप ने रिश्तेदारों के जरिए एक लड़का देखा, जो बाहर नौकरी करता था। लेकिन सच्चाई कुछ और थी। रागिनी की शादी एक नशेड़ी और बेरोज़गार युवक रवि से कर दी गई। शादी के बाद की सच्चाई ने रागिनी को तोड़ दिया। लेकिन उसने कुछ नहीं कहा। बस एक ही बात बोली – "अभय की पढ़ाई पर कोई असर नहीं पड़ना चाहिए।"

रवि शराबी था, और हर दिन रागिनी को मारता, ताने देता। लेकिन रागिनी ने कभी अपने माता-पिता को कुछ नहीं बताया। वह कहती, “मैं ठीक हूँ। बस अभय की चिंता मत करना।”

अभय शहर में रहकर पढ़ाई कर रहा था। रागिनी हर महीने उसे पैसे भेजती — ट्यूशन पढ़ा-पढ़ाकर। अभय भी जानता था कि दीदी के हालात अच्छे नहीं हैं, पर जब भी पूछता, रागिनी मुस्कुरा कर कहती – "तेरी तकदीर बनानी है, फिर मैं भी अपनी तकदीर बदल लूंगी।"

अभय ने ग्रेजुएशन में टॉप किया और फिर सरकारी नौकरी की तैयारी में जुट गया।

अचानक एक दिन पिता जी को हार्ट अटैक आया और उनकी मृत्यु हो गई। घर की सारी ज़िम्मेदारी अभय पर आ गई। वह नौकरी की तैयारी करता और साथ ही पार्ट टाइम काम भी करने लगा। रागिनी भी अपने पति से तंग आकर मायके लौट आई। माँ बीमार रहने लगीं।

रागिनी घर के काम संभालती और माँ की सेवा करती। अभय दिन-रात मेहनत करता। मगर अब उसकी आँखों में थकान, चेहरे पर चिंता और दिल में बोझ था।

एक रात जब वह छत पर लेटा था, रागिनी उसके पास आई और बोली —
“अगर तकदीर लिखने का हक मुझे होता ना, तो तुझे एक भी आंसू नहीं बहाना पड़ता। मैं तेरे लिए ऐसी ज़िंदगी लिखती जिसमें कोई तकलीफ, कोई रुकावट ना होती।”

अभय उसकी गोद में सिर रखकर चुपचाप रो पड़ा।

कई सालों की मेहनत रंग लाई। अभय का सेलेक्शन लोक सेवा आयोग में हो गया। गाँव भर में मिठाइयाँ बँटी। रागिनी की आँखों से अश्रुधारा बह निकली — यह उसकी तपस्या का फल था।

अभय ने नौकरी लगते ही सबसे पहले रागिनी को अपने साथ शहर ले जाने का फैसला किया। लेकिन रागिनी मना कर बैठी।

“मुझे अब माँ के पास रहना है। तू जा, तेरे लिए तो पूरी दुनिया इंतज़ार कर रही है।”

कुछ ही समय बाद रागिनी को कैंसर हो गया। अभय सब कुछ छोड़कर वापस गाँव आ गया। इलाज शुरू करवाया, लेकिन बहुत देर हो चुकी थी। एक दिन अस्पताल में रागिनी ने उसका हाथ पकड़कर कहा –

“तू मेरी ज़िंदगी की सबसे बड़ी पूँजी है। मैंने अपनी तकदीर खो दी, ताकि तेरी तकदीर चमक सके। और देख, तू अब सितारा बन गया है।”

अभय की आँखों से अश्रु छलक पड़े।

“अगर बहन को तकदीर लिखने का हक होता ना दीदी, तो मैं तेरे हिस्से का सारा दर्द खुद ले लेता। तुम जीती रहतीं, और मुस्कुरातीं।”

रागिनी की मृत्यु के बाद अभय ने उसकी स्मृति में गाँव में एक स्कूल की शुरुआत की — "रागिनी शिक्षा निकेतन"। गाँव की लड़कियों को मुफ्त शिक्षा और स्कॉलरशिप मिलने लगी। वह कहता —
“मेरी दीदी ने अपने सपनों की चिता पर मेरे भविष्य का दीप जलाया। आज मैं जो भी हूँ, उसी की वजह से हूँ।”

कभी-कभी किसी की कुर्बानी ही किसी और की तकदीर बनती है।

बहन अगर तकदीर लिख पाती, तो शायद कोई भी भाई उदास नहीं होता, न हारता, न टूटता। लेकिन इस कहानी की रागिनी ने तकदीर न सही, पर अपने प्रेम और त्याग से एक नई तकदीर गढ़ दी — अपने भाई के लिए।

कभी-कभी बहनों के आँचल में दुनिया की सबसे बड़ी ताक़त छिपी होती है — निस्वार्थ प्रेम की।

💐 समर्पित उन सभी बहनों को, जो भाई की ख़ुशी के लिए अपनी तकदीर मिटा देती हैं।