Changes in life in Hindi Motivational Stories by Dayanand Jadhav books and stories PDF | जीवन में बदलाव

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जीवन में बदलाव

शहर के एक भीड़भाड़ वाले इलाके में, एक छोटी-सी खोली में अर्जुन नाम का युवक रहता था. उसका जीवन साधारण था—न कोई बड़ा सपना, न कोई बड़ी जिम्मेदारी. लेकिन उसके भीतर एक बेचैनी थी, एक सवाल जो हर रात उसे सोने नहीं देता था—"मैं आखिर चाहता क्या हूँ?" अर्जुन ने बी.कॉम किया था, फिर एक प्राइवेट कंपनी में क्लर्क की नौकरी पकड़ ली थी. ज़िंदगी चल रही थी, मगर किसी और की तरह, किसी और के लिए.अर्जुन की जिंदगी में काव्या नाम की एक लड़की थी. कॉलेज के दिनों से दोनों साथ थे. शुरुआत दोस्ती से हुई, फिर प्यार में बदल गई. काव्या महत्वाकांक्षी थी, बड़े सपने थे उसके. एम.बी.ए. करके वह एक मल्टीनेशनल कंपनी में चली गई, और अर्जुन वहीं क्लर्क बनकर रह गया. काव्या चाहती थी कि अर्जुन भी उसके साथ चले, नई ज़िंदगी शुरू करे, बड़े सपने देखे, उड़ान भरे.मगर अर्जुन को उड़ना आता ही नहीं था. उसे डर लगता था—नौकरी छोड़ने से, असफलता से, बदलाव से. और धीरे-धीरे उनके बीच की खामोशी बढ़ती गई. एक दिन काव्या ने साफ कहा, "मैं तुम्हें प्यार करती हूँ, अर्जुन. लेकिन इस रिश्ते में अब साँस घुट रही है. मैं अपनी ज़िंदगी किसी ऐसे इंसान के साथ नहीं बिता सकती जो सिर्फ जी रहा है, बिना किसी मकसद के."उस दिन अर्जुन बहुत देर तक चुप बैठा रहा. काव्या चली गई, हमेशा के लिए. पहली बार उसे खुद से नफरत हुई. लेकिन फिर एक सवाल उठा—क्या सचमुच वह काव्या के बिना नहीं जी सकता? क्या उसकी ज़िंदगी की डोर किसी और के हाथ में है?अर्जुन ने पहली बार आईने में खुद को देखा और कहा, "अगर कुछ बदलना है तो शुरुआत मुझसे ही होगी."अगले ही दिन उसने अपने ऑफिस में इस्तीफा दे दिया. सब हैरान थे—एक स्थिर नौकरी, नियमित वेतन, सब छोड़कर वह क्या करेगा? पर अर्जुन अब डरना नहीं चाहता था. उसने एक पुरानी डायरी निकाली, जिसमें उसने कॉलेज के दिनों में अपने शौक लिखे थे—लेखन, ट्रेवलिंग, लोककला में रुचि. अब वह इन्हीं रुचियों को जीना चाहता था.उसने गाँव-गाँव घूमना शुरू किया. लोक कलाकारों से मिला, उनकी कहानियाँ सुनीं, उनके संघर्ष देखे. उसने महसूस किया कि असली प्रेरणा तो उन्हीं लोगों में है जो हर दिन सूरज की तरह उगते हैं, बिना किसी अपेक्षा के. अर्जुन ने इन अनुभवों को ब्लॉग में लिखना शुरू किया. उसका लेखन सरल था, पर सच्चा. धीरे-धीरे लोग उसके शब्दों से जुड़ने लगे.कुछ महीनों में अर्जुन का ब्लॉग चर्चित हो गया. एक लोककलाकार पर लिखे गए उसके लेख को पढ़कर एक प्रसिद्ध पब्लिशिंग हाउस ने उससे संपर्क किया और उसे एक किताब लिखने का प्रस्ताव दिया. अर्जुन को विश्वास नहीं हो रहा था कि कभी जो उसके लिए एक शौक था, आज वह उसका रास्ता बन चुका था.किताब लिखते वक्त अर्जुन ने खुद को एक बार फिर परखा. उसने उस खालीपन को महसूस किया, जो काव्या के जाने से आया था. लेकिन अब वह खालीपन उसे डराता नहीं था. वह जानता था कि वह अकेला है, मगर अधूरा नहीं. उसे एहसास हुआ कि जिंदा रहने के लिए अपने सिवा किसी और का होना जरूरी नहीं.एक साल बाद उसकी किताब "अनकही यात्राएँ" प्रकाशित हुई. उसमें छोटे गाँवों के कलाकारों की कहानियाँ थीं, उनकी आशाएँ, उनके सपने. किताब को जबरदस्त प्रतिक्रिया मिली. अर्जुन अब एक प्रेरणादायक वक्ता बन चुका था. कई कॉलेजों में उसे बुलाया जाने लगा, जहाँ वह युवाओं को यही बताता—"अपने भीतर झाँको, जवाब वहीं मिलेगा."एक दिन, एक कॉन्फरेंस के बाद एक महिला उसके पास आई. वह काव्या थी. अब वह भी सफल थी, मगर उसकी आँखों में एक सवाल था—"कैसे कर लिया तुमने यह सब?" अर्जुन मुस्कराया और कहा, "जब तुम गईं, तब मुझे लगा था कि अब कुछ नहीं बचा. लेकिन तभी खुद से मिलना शुरू किया. मैंने जाना कि जीना सिर्फ किसी और के साथ नहीं होता, खुद के साथ भी होता है."काव्या की आँखों में नमी थी, मगर वह मुस्करा रही थी. "मुझे तुम पर गर्व है," उसने कहा और चुपचाप चली गई. अर्जुन वहीं खड़ा रहा, शांत और संतुलित.अब वह किसी और का नहीं रहा था. अब वह खुद का था.हर शाम, अर्जुन अपनी छत पर बैठता, आसमान को देखता और खुद से एक ही बात कहता, "जीवन तब तक अधूरा रहता है जब तक हम अपनी पहचान किसी और की उपस्थिति से जोड़ते हैं. लेकिन जैसे ही हम खुद को स्वीकार करते हैं, जीवन अपने आप पूरी कहानी बन जाता है."अर्जुन की कहानी उन लाखों लोगों के लिए थी जो अपनी ज़िंदगी किसी और की छाया में जीते हैं. उसने यह साबित किया कि अगर हिम्मत हो तो अकेले चलने की राह भी रोशन हो सकती है. और उस रोशनी में कोई और नहीं, खुद हम होते हैं.कहानी सिर्फ इस बात की नहीं है कि अर्जुन सफल हुआ, बल्कि इस बात की है कि उसने खुद को स्वीकार किया, खुद से प्यार करना सीखा, और यही सबसे बड़ा प्रेरणास्रोत बना. उसने उन सभी से मुक्ति पाई, जिनके साथ वह जीना चाहता था, मगर जो उसके जीवन के लिए जरूरी नहीं थे.क्योंकि सच्चाई यही है—"जिंदा रहने के लिए अपने सिवा किसी और का होना बिल्कुल जरूरी नहीं. आदमी जिनके साथ जीना चाहता है, उनके बगैर भी जी सकता है."