"ये चौथी लाश है इस महीने की..."
पुराने कुएं के पास खड़े ठाकुर राजवीर की आँखों में डर साफ़ झलक रहा था। गांव वाले इकट्ठा थे—हर चेहरा सहमा हुआ, जैसे अब किसी को बोलने की हिम्मत न हो।
"शादी के दिन मन्नू कितना खुश था... और अब देखो..." बूढ़ा नत्थू अपने आंसू पोछता चला गया।
“उसके सीने से दिल ही निकाल लिया किसी ने…” डॉक्टर राधा ने थूक निगला। “शरीर में एक खरोंच तक नहीं, बस दिल गायब…”
गांव के बीचोबीच जैसे मौत का बाज़ार लग गया था। चाय की दुकान बंद, मंदिर में घंटियां नहीं बज रहीं, और औरतें दोपहर होते ही दरवाज़े बंद कर लेतीं।
रात के नौ बजे, पूरे गांव में अजीब सन्नाटा पसर चुका था। तभी बंसी के खेत के किनारे से एक बग्घी गुज़री—काली, चमचमाती हुई। और उसके भीतर बैठी थी **वो**—जिसे इस गांव में लोग अब बस "मौत की दुल्हन" कहते थे।
नाम उसका रूहाना था।
लंबे खुले बाल, आँखों में काजल की गहराई और होंठों पर एक मुस्कुराहट जो डर से ज़्यादा मोहब्बत जैसी लगती थी… लेकिन जिसने भी उससे मोहब्बत की, अगली सुबह उसका दिल नहीं होता।
रूहाना अब ठाकुर के घर के सामने खड़ी थी।
"आज किसकी शादी है?" उसने पायल खनकाई।
ठाकुर ने कांपते हाथों से नाम बताया — “कृष्णा… मेरा भतीजा है…”
“कृष्णा…” रूहाना ने नाम दोहराया जैसे किसी खिलौने का नाम जान लिया हो।
"तो आज उसकी आखिरी रात है..."
ठाकुर कुछ कह पाता, उससे पहले ही कृष्णा बाहर निकल आया।
बीस साल का लड़का, भोला सा चेहरा, आँखों में चंचलता—जैसे अभी भी यकीन नहीं कि उसकी शादी हो रही है।
“आप... आप ही हैं मेरी दुल्हन?”
रूहाना मुस्कराई, और हल्के से उसके गाल पर हाथ रखा—“क्या मैं वैसी नहीं लगती?”
कृष्णा मुस्कुराया, “आप तो... जादू जैसी हैं।”
“जादू नहीं कृष्णा... ज़हर हूं। मगर मीठा।”
शादी की रस्में जल्दी-जल्दी पूरी कर दी गईं, पंडित ने एक बार भी आंख नहीं उठाई। गांव वाले दूर खड़े रहे—जैसे सबको पता हो, सुबह क्या होने वाला है।
रूहाना और कृष्णा को ठाकुर हवेली के अंदर बने नए कमरे में भेज दिया गया। पूरा गांव जाग रहा था, मगर कोई पास जाने की हिम्मत नहीं कर रहा था।
कमरे में रूहाना ने घूंघट हटा दिया।
“तुम घबरा तो नहीं रहे?” उसने मुस्कराते हुए पूछा।
कृष्णा हँस पड़ा, “आप जैसी बीवी मिली है, अब मौत से क्या डरूंगा!”
रूहाना थोड़ी देर चुप रही।
फिर धीरे से उसकी कमीज़ की बटन खोलने लगी,
“प्यार में जो मौत मिले... वो सबसे हसीन होती है।”
“मतलब?”
“मतलब ये कि आज तुम्हें वो प्यार मिलेगा, जो किसी ने नहीं दिया… और फिर…”
रूहाना ने धीरे से उसके होंठों पर किस किया।
कृष्णा उसकी बाहों में खो गया… आँखें बंद… और फिर…
कृष्णा रूहाना के ऊपर आया, और धीरे-धीरे उसके कपड़े उससे अलग कर दिए और उसके पुरे शरीर पर किस करने लगा, रूहाना मदहोश भरी आवाज़ में बोली," अब बस मुझे अपना बना लो"
एक तेज़ चीख कमरे से गूंज उठी।
सुबह... हवेली के बाहर भीड़ थी। ठाकुर रो रहा था।
कमरे का दरवाज़ा खुला था—और बिस्तर पर पड़ा था कृष्णा का शरीर।
चेहरा शांत था, मगर उसका सीना खाली था। दिल... गायब।
रूहाना?
कमरे में नहीं थी।
बिस्तर पर हल्की सी गुलाब की खुशबू बाकी थी, और तकिए पर एक लाल लिपस्टिक का निशान।
“एक और चला गया…” किसी ने फुसफुसाया।
अब पूरे गांव को यकीन हो गया था।
हर शादी, हर सुहागरात… मौत बन चुकी थी।