कृष्णा की लाश अभी तक बिस्तर पर ही थी। ठाकुर जमीन पर बैठा, रोता जा रहा था, और बाकी गांववाले कुछ दूर खड़े, सिर्फ कानाफूसी कर रहे थे।
"हर बार ऐसा ही होता है... शादी, सुहागरात और फिर मौत…"
"और हर बार दुल्हन वही होती है…"
"मगर कोई कुछ कहता क्यों नहीं?"
भीड़ में से कोई चुपचाप बोला — “क्योंकि जिसने कुछ कहा… उसकी अगली बारी आई।”
उधर हवेली के पीछे बने पुराने बाग़ में एक लाल जोड़ा लटकता मिला।
हवा के झोंके में वो जोड़ा इस तरह उड़ रहा था जैसे किसी की रूह उसमें समाई हो।
और नीचे ज़मीन पर... एक जोड़ी नुकीली ऊँची हील्स के निशान मिट्टी पर दर्ज थे, जो धीरे-धीरे पीछे की ओर जंगल में खो गए।
दोपहर होते-होते गांव के चौपाल में पंचायत बैठ गई।
बुजुर्गों के चेहरे गंभीर थे।
“तीन हफ्ते में चार मौतें... और सब शादी के अगले ही दिन। अब और चुप नहीं रहा जा सकता।”
पंडित शिवम कुछ कहने ही वाला था कि चौधरी श्यामलाल बोला—“सवाल ये नहीं है कि मौतें हो रही हैं... सवाल ये है कि हर शादी में दुल्हन कौन है?”
भीड़ में सन्नाटा।
"नाम रूहाना है..."
"कहां से आई, कोई नहीं जानता..."
"और जबसे आई है, तबाही साथ लाई है..."
"लेकिन ये तो शक है, सबूत क्या है?" पीछे से रवि नाम का लड़का चिल्लाया।
"सबूत वो लाशें हैं रवि!" चौधरी गरजा।
रवि चुप हो गया। वो कृष्णा का खास दोस्त था। मगर उसे अब भी यकीन नहीं हो रहा था कि किसी औरत की आंखों में ऐसी मौत छिप सकती है।
उसी वक्त…
गांव के बाहर वाली कच्ची सड़क पर एक बाइक रुकी। बाइक से उतरा एक लंबा, पतला युवक — आँखों में शहर जैसा कॉन्फिडेंस, बाल उलझे हुए लेकिन स्टाइलिश।
उसके पीछे बैग लटका था।
“ये गांव है या कब्रिस्तान?” उसने अपनी गर्दन घुमाते हुए बड़बड़ाया।
नाम उसका अदित्य था।
कृष्णा का कज़िन, जो शहर से अभी आया था।
"तुम्हें पता है न, कृष्णा मर चुका है?" ठाकुर ने दरवाज़ा खोलते ही कहा।
अदित्य की मुस्कान गायब हो गई।
“क्या... कब?”
"आज सुबह... सुहागरात के बाद... उसकी बीवी..." ठाकुर की आवाज़ फिसलती गई।
"बीवी?"
“क्या मतलब... उसने शादी कर ली थी? किससे?”
ठाकुर ने चुपचाप फोटो फ्रेम निकाला — शादी की तस्वीर।
लाल जोड़े में रूहाना।
अदित्य ने फोटो देखा। कुछ पल वो देखता रहा। फिर धीरे से बोला —
“ये लड़की… मैंने कहीं देखी है…”
“कहां?”
“शहर में... चार साल पहले… एक खबर आई थी… एक होटल में किसी की दिल निकालकर हत्या हुई थी। दुल्हन भाग गई थी… और उसका नाम भी… रूहाना ही था।”
ठाकुर के हाथ से फोटो गिर पड़ी।
उसी रात…
गांव के मंदिर में पंडित शिवम ने अकेले हवन जलाया।
घंटी नहीं बजी। कोई मंत्र नहीं पढ़ा गया।
बस अग्नि थी… और वो लाल जोड़ा… जो अब मंदिर की आखिरी सीढ़ी पर रखा था।
और कोई देख नहीं पाया… मगर अग्नि की लौ में एक पल के लिए रूहाना की मुस्कुराती आँखें झलक गई थीं।
इधर हवेली की छत पर अदित्य खड़ा था। हाथ में कृष्णा की पुरानी डायरी थी।
"रूहाना..." उसने धीरे से नाम दोहराया।
"अब मैं जानूंगा... तुम कौन हो… और क्या चाहती हो।"
जैसे ही वो मुड़ा, छत के कोने में एक लाल साड़ी की झलक पलक झपकते ही गायब हो गई।
कहानी में आगे क्या होगा जाने के लिए पढ़ते रहिए.....
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