स्टूडियो की बड़ी शीशेदार खिड़कियों से छनती हल्की रोशनी, दीवारों पर टंगे गोल्डन रिकॉर्ड्स, और दीवार के उस पार वेटिंग रूम का हलचल भरा माहौल —
यही थी "MS Harmony Records" — शहर का सबसे नामी स्टूडियो, हर नए सिंगर का सपना।
मारिया घबराई सी वेटिंग रूम के एक कोने में बैठी थी। हाथ में रखा वॉटर बॉटल तक हौले-हौले भींच रही थी।
भीतर से उसे बार-बार मीर का चेहरा याद आ रहा था, पर होश इतना था कि यहाँ उसे सिर्फ अपने गाने पर फोकस करना है।
अचानक उसका नाम पुकारा गया।
"मारिया खान, स्टूडियो बी में आइए।"
साँस रोक कर, दिल थाम कर वो उठी और स्टूडियो बी की तरफ बढ़ गई।
दरवाज़ा हल्के से खोला, और सामने उसे एक सधा हुआ, सख्त लेकिन करीने से मुस्कुराता चेहरा दिखा —
मीर सुल्तान, इस स्टूडियो का सबसे चर्चित वोकल कोच।
मारिया की धड़कन एक पल को थम गई।
लेकिन उसने चेहरा बिल्कुल सपाट रखा, मानो पहली बार देख रही हो।
मीर ने भी वैसा ही किया — उसकी आँखों में न कोई पहचान थी, न कोई इशारा।
सिर्फ पेशेवर सी गंभीरता थी।
स्टूडियो बी की दरवाज़ा हल्के से चरमराई थी।
मारिया ने धड़कते दिल से अंदर कदम रखा।
कमरे में हल्की पीली रौशनी थी, और एक सुकून भरी खामोशी।
सामने साउंड डेस्क पर समीर — उर्फ़ सेम — कुछ बटन घुमा रहा था।
लेकिन उसकी आँखें शरारती थीं, जैसे उसे कुछ पता हो... और फिर मीर ने एक हल्का सा सिर का इशारा किया।
समीर मुस्कुराते हुए खड़ा हुआ और बुदबुदाया,
"ओके, मैं बाहर हूँ, सर।"
दरवाज़ा बंद होते ही रूम में बस दो धड़कनें रह गईं — मीर और मारिया की।
मारिया ने खुद को सख्त कर लिया था।
उसके होंठ भींचे हुए थे, नजरें झुकी थीं, मगर उसकी पूरी मौजूदगी बगावत कर रही थी —
उस झूठ के खिलाफ जो उसे सुनाया नहीं गया, बस जिया गया था।
मीर धीमे कदमों से उसकी तरफ बढ़ा,
उसकी आँखों में कोई सफाई नहीं थी, बस एक गहरा दर्द और इंतज़ार।
जैसे ही वो पास आया, मारिया ने अनजाने में एक कदम पीछे ले लिया।
उसके हाथ काँप रहे थे, पर उसकी आँखों में जो गुस्सा था, वो बिल्कुल ठहरा हुआ था।
"क्यों किया आप ने ये सब?"
मारिया की आवाज़ टूटी हुई थी, लेकिन सख्त।
मीर एक पल को रुका, फिर बहुत नरम लहजे में बोला,
"मैंने कुछ भी गलत नहीं किया... बस सच बताने का मौका नहीं मिला।"
"तो क्या तुम मुझसे खेल रहे थे?"
उसकी आवाज़ में दर्द की धार थी।
मीर का चेहरा एक पल के लिए तना, उसकी मुट्ठियाँ भींच गईं, फिर उसने खुद को काबू में रखते हुए कहा,
"खेलता तो तुम्हें अपने दिल की सबसे पाक जगह में जगह न देता, मारिया..."
मारिया की आँखें छलकने को थी, मगर उसने पलकें नहीं झपकाई।
उसने खुद को टटोला, अपने डर, अपने गुस्से और अपने दिल के बीच फंसी खड़ी रही।
मीर ने धीरे से हाथ बढ़ाया,
मगर बिना छुए — जैसे उसकी इजाज़त माँग रहा हो।
"मुझे सज़ा दो अगर चाहो... नफरत करो... लेकिन एक बार देख लो मेरी आँखों में, और खुद तय कर लो... झूठ कहाँ था।"
उसकी आवाज़ इतनी टूटी हुई थी कि जैसे मीर खुद अपनी ही अदालत में गुनहगार खड़ा हो।
मारिया ने हल्के से सिर झुकाया।
कुछ पल वैसे ही ठहरे — साँसे भी थमी थीं, वक्त भी।
फिर उसने बहुत धीरे से सिर उठाया —
और पहली बार बिना कुछ कहे, उसकी आँखों में झाँका।
मीर की आँखें — जहाँ न कोई दिखावा था, न कोई छल — बस बेइंतिहा मोहब्बत थी।
मारिया के कदम डगमगाए, वो एक पल को खुद से हार गई।
पर तभी उसने खुद को समेटा, हल्के से फुसफुसाई,
"मुझे सोचने का वक़्त चाहिए..."
मीर ने सिर झुकाते हुए एक कदम पीछे ले लिया।
उसके चेहरे पर एक थकी हुई मुस्कान थी,
जैसे वो जानता हो — मोहब्बत अगर सच्ची हो, तो इंतजार भी इबादत बन जाता है।
मारिया ने भारी कदमों से स्टूडियो बी का दरवाज़ा खोला।
ठंडी हवा का झोंका उसे छूता चला गया — जैसे खुदा ने भी उसके दिल के बोझ को महसूस कर लिया हो।
उसकी आँखों में एक समंदर था, पर उसने पलकों की मजबूत चादर ओढ़ रखी थी।
स्टूडियो के गलियारे सुनसान थे,
केवल दूर किसी कोने से धीमे धीमे कोई बीट्स बजती आ रही थीं —
जैसे शहर भी अब थक चुका था।
जब मारिया बाहर निकली, तो अचानक टप-टप बूँदें उसके चेहरे पर गिरीं।
बारिश... धीमी, मगर गहरी।
जैसे आसमान भी अपनी मोहब्बत की दास्ताँ रो रहा हो।
उसने कोई छतरी नहीं खोली, कोई बचाव नहीं किया।
बस यूँ ही भीगी चली जा रही थी —
कदम कभी तेज, कभी थमे हुए,
जैसे अपने ही ख्यालों में उलझी कोई रूह।
पीछे स्टूडियो के एक गहरे कोने में, मीर खड़ा था —
बिलकुल खामोश, भीगता हुआ।
उसकी आँखों में मोहब्बत थी, बेमोल।
हाथों में कस कर अपनी चेन पकड़े हुए,
जिसमें एक छोटा सा लॉकेट था —
और उस लॉकेट के अंदर थी एक तस्वीर...
मारिया की।
वो बस उसे जाते हुए देख रहा था।
कोई आवाज़ नहीं दी, कोई पुकार नहीं लगाई।
क्योंकि वो जानता था —
"जो मोहब्बत मजबूरी से न बंधे, वही सच्ची होती है।"
बारिश की बूँदें उनके बीच के फासलों को धोती जा रही थीं।
फिर भी दोनों के दिलों के बीच एक अनकहा धागा खिंचा था —
कमजोर नहीं, बेहद मजबूत।
मारिया ने एक पल के लिए रुक कर सिर घुमाया।
उसे लगा जैसे कोई उसे देख रहा हो...
लेकिन वहां कुछ नहीं था, सिर्फ बारिश में डूबा हुआ खाली रास्ता।
उसने एक लंबी साँस ली, आँखें बंद कीं,
और फिर अपने रास्ते बढ़ गई।
पीछे मीर ने हल्के से मुस्कुराते हुए फुसफुसाया,
"मैं यहीं हूँ, मारिया... जहाँ तुम छोड़ गई थी मुझे।"
बारिश ने उसके शब्दों को भीगते हुए अपने साथ बहा लिया,
जैसे इश्क़ खुद वादा कर रहा हो —
वो लौटेगी... एक दिन।
रात का दूसरा पहर...
बारिश अब भी रुकने का नाम नहीं ले रही थी।
मारिया घर पहुँच चुकी थी, लेकिन उसका दिल वहीं कहीं पीछे छूट गया था — उस स्टूडियो के गलियारे में... उस भीगी सड़क पर... और शायद मीर की आँखों में।
छोटे उसकी गोद में सो रहा था।
नानी आहिस्ता से कमरे का दरवाजा बंद कर गईं थीं, उसे अकेला छोड़ते हुए — शायद समझ गई थीं कि कुछ बातें इंसान को खुद से करनी होती हैं।
मारिया खिड़की के पास जा बैठी।
बारिश की बूँदें खिड़की के शीशों पर बजती रहीं — एक बेकल धुन में, जैसे कोई अनसुना गीत हो।
उसने चुपके से अपने बैग से वो शीट निकाली,
जिस पर म्यूजिक स्टूडियो का ऑफर लेटर था —
जिसे देखकर कुछ दिन पहले वो पागलों की तरह खुश हुई थी।
अब वही कागज़ उसे बस एक भारी एहसास दे रहा था।
"तू आता है सीने में..."
उसने हल्के से फुसफुसाया... जैसे मीर अब भी उसकी आवाज़ में छुपा हो।
उधर मीर...
वो स्टूडियो के एक अँधेरे कमरे में बैठा था।
मेज पर एक सिगरेट जलती बुझती रही।
हाथ में वही लॉकेट वाली चेन थी —
जिसे वो हर बार तब पकड़ता जब दिल का सब्र जवाब देने लगता।
मीर ने लॉकेट खोला,
अंदर मारिया की हँसती हुई तस्वीर थी।
उसके होठों पर एक टूटी मुस्कान आई।
सिगरेट का धुआँ उसके इर्दगिर्द एक धुंध सी बना रहा था —
जैसे उसका दर्द भी अब कोई तस्वीर बनाना चाहता हो।
फिर वो बहुत धीमी आवाज़ में बुदबुदाया —
"एक दिन, मारिया... एक दिन तुम खुद चलकर आओगी।
उस दिन, मैं तुम्हें इन बाहों से आज़ाद नहीं करूँगा।"
उसकी आवाज़ में मोहब्बत भी थी, जुनून भी...
एक वादा भी था, और एक दर्द भी।
फिर उसने सिगरेट बुझा दी,
चेन को सीने से लगाया,
और ठंडी रात में खामोशी से खिड़की के बाहर बारिश गिरती हुई देखता रहा —
उसकी मोहब्बत भी अब बारिश जैसी हो गई थी...
बरसती थी मगर चुपचाप।
---
सुबह...
बारिश के बाद की हल्की ठंडी हवा कमरे में भर गई थी।
मारिया की आँखों में नींद कम थी, सोचें ज़्यादा।
वो नाश्ते के लिए नीचे आ रही थी जब नानी ने उसे पुकारा,
"बेटा, कोई तुमसे मिलने आया है।"
मारिया का दिल एक पल को तेज धड़का —
"मीर?"
उसने खुद से पूछा,
फिर खुद को झटकते हुए नीचे आई।
लेकिन सामने... एक नया चेहरा था —
स्टूडियो से आया हुआ एक मैनेजर,
जो एक नया कॉन्ट्रैक्ट लेकर आया था।
उस कॉन्ट्रैक्ट के नीचे एक नाम चमक रहा था —
"M. Sultan"
मारिया की उंगलियाँ काँपीं।
"ये मीर...?"
उसने मन ही मन सोचा।
लेकिन होंठों पर बस एक मासूम सी मुस्कान आई —
क्योंकि अब उसकी कहानी सिर्फ उसकी नहीं रही थी...
अब इसमें मीर भी शामिल था।
चाहे ज़ाहिर हो या छुपा।
अगला दिन...
सुबह की धूप हल्की-हल्की खिड़की के पर्दों से झाँक रही थी।
मारिया तैयार होकर स्टूडियो के लिए निकली —
दिल में एक अजीब सी घबराहट थी,
जैसे आज कुछ नया, कुछ अनजाना होने वाला हो।
स्टूडियो की बड़ी सी लॉबी, उसकी दीवारों पर लगे मशहूर एल्बम्स के पोस्टर,
हर चीज़ जैसे उसे कह रही थी —
"आज तुम्हारी भी कहानी शुरू हो सकती है।"
वो वेटिंग एरिया में पहुँची ही थी कि पीछे से एक जानी-पहचानी आवाज़ आई —
"तुम वक़्त पर आना भी जानती हो?"
मारिया ने मुड़कर देखा — मीर खड़ा था।
आँखों में वही चिरपरिचित मुस्कुराहट,
जो कभी उसे सुकून देती थी... और आज थोड़ी खलिश भी दे रही थी।
मारिया ने होंठ भींचते हुए कहा —
"आपसे तो समय की उम्मीद नहीं थी। आप तो छुपकर हर जगह होते हैं।"
मीर के चेहरे पर हल्की सी शरारती हँसी तैर गई।
वो करीब आकर फुसफुसाया —
"तुम्हें नज़र में रखने के लिए वक़्त निकालना पड़ता है, जान।😊"
मारिया का चेहरा हल्का गुलाबी हो गया।
उसने झुँझलाकर मुँह फेर लिया —
लेकिन दिल की धड़कनों ने तो जैसे दौड़ लगानी शुरू कर दी थी।
"चलिए, काम पे आते हैं, मिस मारिया,"
मीर ने मजाकिया अंदाज़ में कहा और उसे स्टूडियो बी की तरफ ले चला।
स्टूडियो बी...
अंदर हल्की सी नीली रौशनी थी,
माइक्स सजे थे, और शीशे के पार सेम (समीर) कंट्रोल रूम में बैठा था।
मीर ने मुस्कुराते हुए गिटार उठाया,
और एक मीठी धुन छेड़ दी —
नर्म सुरों में बंधी धड़कनों की कहानी।
"आज हम एक छोटा सा टेस्ट करेंगे,"
मीर ने कहा।
"गाओ वो गाना, जो तुम्हारे दिल के सबसे करीब हो।"
मारिया ने आँखें बंद कीं...
एक गहरी साँस ली,
और धीमे से सुर उठाया —
"तू आता है सीने में... जब जब साँसे भरती हूँ..."
मीर ने धीरे से उसकी ओर देखा।
उसके चेहरे पर बस एक मासूम सी मोहब्बत बसी थी —
जैसे इस आवाज़ को बस अपनी हथेलियों में समेट लेना चाहता हो।
गाते गाते, मारिया ने जब आँखें खोलीं,
तो मीर की आँखों में एक अनकही दुआ चमक रही थी।
उसने चुपचाप कहा —
"तुम्हारी आवाज़ में घर है, मारिया...
जहाँ लौटने का दिल करता है।"
मारिया एक पल को ठिठकी —
नज़रे झुका लीं —
दिल ने धड़क कर उसकी बात का जवाब दिया,
मगर जुबान खामोश रही।
थोड़ी देर बाद...
रिकॉर्डिंग खत्म हुई,
तो मीर ने उसे पास बुलाया।
"कुछ कहना चाहता हूँ,"
उसने गहरी आवाज़ में कहा।
मारिया ने सवालिया नज़रों से देखा।
मीर झुका... उसके बेहद करीब आकर फुसफुसाया —
"तुम्हें चिढ़ाना, तुम्हें देखना, तुम्हारी हर खुशी में छुप जाना...
ये सब आदत नहीं रही अब, मारिया।
ये जरूरत बन गई है।"
मारिया ने घबरा कर एक कदम पीछे लिया —
दिल की दीवारें काँपने लगीं।
मगर तभी सेम आ गया, और वो पल वहीं थम गया।
रात...
मारिया अपनी डायरी खोलकर बैठी थी।
उसने लिखा —
"कभी-कभी कोई अजनबी दिल की दीवारों पर अपना नाम लिख जाता है,
और हमें खबर तक नहीं होती..."