शहरों से दूर, एक छोटा सा शहर...
उस शहर की एक संकरी सी गली में एक पुराना-सा, दो मंज़िला मकान खड़ा था। बाहर से देखने पर कुछ ख़ास नहीं, मगर अंदर की दीवारों में बहुत सी कहानियाँ दबी हुई थीं।
सुबह का वक़्त था। किचन से धीमी आवाज़ में किसी पुराने रोमांटिक गाने की धुन सुनाई दे रही थी—मारिया की आवाज़ में।
“तू ही ये मुझको बता दे... चाहूँ मैं या ना...
अपने तू दिल का पता दे... चाहूँ मैं या ना...”
संगीत जैसे पूरे घर में बह रहा था, लेकिन तभी एक मज़ाकिया झुंझलाहट भरी आवाज़ आई—
"अरे मारिया बिटिया, गाना ही गाती रहेगी या हमारी चाय भी लाएगी?"
डाइनिंग टेबल पर बैठी नानी ने किचन की तरफ आवाज़ लगाई।
"आ गई नानी... गरमा-गरम चाय और आलू के पराठे!"
मारिया की आवाज़ में वही पुरानी मिठास थी, लेकिन आंखों के पीछे एक थकावट भी छिपी थी।
एक हाथ में चाय की ट्रे, दूसरे में पराठों की प्लेट लेकर वो कमरे में आई।
उसने नानी के सामने कप और थाली रखी, फिर अपने छोटे भाई के सामने भी।
"दीदी, आप भी बैठो ना..."
पांच साल के छोटे ने मासूमियत से कहा, उसकी तोतली ज़ुबान सुनकर मारिया के चेहरे पर थोड़ी सी मुस्कान आ गई।
नानी ने अचानक थाली की तरफ देखा, फिर सवाल किया—
"बिटिया, तुम्हारा पराठा कहाँ है?"
मारिया एक पल को चुप हो गई। अंदर से बहुत कुछ कहना चाहती थी, मगर आवाज़ हलक तक आते-आते रुक गई।
उसके दिमाग में वो सुबह घूम गई जब उसने अलमारी खोली थी—आटे का डिब्बा लगभग खाली था, आलू थोड़े बहुत बचे थे। वही सब बचाकर उसने ये नाश्ता बनाया था... लेकिन तीन लोगों में सिर्फ दो लोगों का हिस्सा बन सकता था।
"कैसे बताऊ नानी को...? पहले ही तो दवाओं का खर्चा, छोटे की स्कूल की फीस..."
उसका मन भर आया, लेकिन चेहरा शांत रखा।
"कुछ नहीं नानी... मैं आजकल डाइटिंग पर हूं। इसलिए अपने लिए कुछ नहीं बनाया। आप खाइए ना।"
उसने जबरदस्ती मुस्कुरा कर बात को टाल दिया, मगर उसकी आंखों में वो भूख थी, जो सिर्फ पेट की नहीं, हालात से लड़ने की थी।
शाम के वक़्त..
ओह गॉड... पता नहीं मेरी किस्मत किस कलम से लिखी है... आपने..!
भीगे बालों से पानी की कुछ बूंदें मारिया की पलकों पर टिकी थीं। हाथ में टपकता छाता लिए, वो भारी सांसों के साथ एक आलीशान हॉल के दरवाज़े पर खड़ी थी।
अंदर जैसे कोई और ही दुनिया थी—चमकते झूमर, महंगे लिबासों में सजे लोग और हर कोने में महकते इत्र की खुशबू।
पर माहौल में एक बेचैनी थी…
जैसे सब कुछ खूबसूरत होते हुए भी अधूरा था।
"क्या बोरिंग पार्टी है यार!"
एक मेहमान के मुंह से निकले ये शब्द मारिया के कानों तक पहुंचे।
उसने सिर हल्का सा झुकाया… हौले से मुस्कुरा दी, जैसे खुद से कहा हो—
"तू आई है अब, थोड़ा सुर आएगा इस शोर में..."
तभी एक वेटर उसके पास आया,
"आप आ गईं मिस मारिया… मिसेज़ मलिक बहुत गुस्से में हैं। शायद आपकी पगार में से पैसे भी कटवा दें..."
वो बात हँसी में कह रहा था,
पर मारिया का चेहरा एक पल को सूख गया।
"किराया… छोटे की स्कूल फीस… नानी की दवाइयां…"
उसके दिल में जैसे एक लहर सी उठी,
"ये गाना… सिर्फ पेशा नहीं, मेरी साँसों की रसद है।"
वो तेज़ क़दमों से ऊपर की ओर बढ़ी। मिसेज़ मलिक को ढूंढते हुए एक कमरे के दरवाज़े पर पहुँची।
दरवाज़ा आधा खुला था…
उसने हल्के से आवाज़ दी,
"मिसेज़ मलिक...? आप अंदर हैं?"
कोई जवाब नहीं आया।
हिचकते हुए दरवाज़े को धक्का दिया।
कमरा अंधेरे में डूबा था।
और फिर…
झटका।
लाइट चली गई।
अगले ही पल... वो किसी की बाहों में थी।
उसका दिल ज़ोर से धड़कने लगा। सांसें जैसे रुक गई हों।
किसी मज़बूत सीना ने उसे थाम रखा था। वो पल… कुछ सेकेंड के थे, लेकिन जैसे एक उम्र बीत गई उसमें।
"कक... कौन है?"
उसकी आवाज़ थरथराई।
शख्स कुछ नहीं बोला…
पर उसकी साँसे मारिया की गर्दन पर महसूस हो रही थीं।
गहरी… धीमी… और कहीं ना कहीं—पैचानने जैसी।
जैसे ये पहली बार नहीं…
एक सिहरन सी दौड़ी उसके बदन में।
वो एक झटके में दूर हुई… और अंधेरे में भागती हुई कमरे से बाहर निकली।
जैसे ही बाहर आई—
"ये है हमारी क्लासिक समस्या..."
मिसेज़ मलिक की आवाज़ एक चाबुक की तरह गूंजी।
"ऐसे लोग सिर्फ पैसों के लिए आते हैं… इनसे उम्मीद करना बेवकूफ़ी है। प्रोफेशनलिज़्म नाम की चीज़ तो होती ही नहीं इन लोगों में…"
उनका ताना हवा को भी चीरता चला गया।
मारिया रुकी। गहरी सांस ली।
फिर धीमे से उनकी तरफ मुड़ी… और कहा:
"माफ़ कीजिए, मैं ग़लत वक़्त पर सही जगह आ गई।
लेकिन आप शायद ग़लत इंसान से तमीज़ की उम्मीद कर रही हैं।
मैं यहाँ गाना गाने आती हूँ… ताने सुनने नहीं।
और हाँ, मेरे जैसे लोग सिर्फ पैसों के लिए काम करते हैं—क्योंकि हमें पैसों की ज़रूरत होती है।
आप जैसे लोगों को बस शो चाहिए… हमें जीना है।"
हॉल एक बार फिर ख़ामोश था।
और कहीं, एक कोने में… अंधेरे में खड़ा वो शख्स, अब भी उसे देख रहा था।
उसकी आंखों में पहली बार कोई बात चमकी थी…
"तो ये है वो आवाज़…"
उसने खुद से कहा।
गाना खत्म होते ही स्टेज की हल्की सी रोशनी फिर से पूरे हॉल में फैलने लगी। मारिया का दिल अभी भी उस गाने में खोया हुआ था, जैसे उसकी आवाज़ ने पूरे हॉल को एक नए दुनिया में घुमा दिया हो। उसने माइक रखा और स्टेज से धीरे-धीरे नीचे उतरी, जैसे अपने भीतर की भावनाओं को समेटने का वक्त पा रही हो।
कुछ पल सन्नाटा था, लेकिन फिर धीरे-धीरे माहौल फिर से सामान्य होने लगा। उसी वक्त, एक वेटर उसके पास आया। उसके हाथ में एक गुलाब था—सख़्त लाल रंग का, जो हल्की सी ओस में नहाया हुआ था। गुलाब की पंखुड़ियां नाजुक थीं, लेकिन उस पर जो सुगंध थी, वह जैसे किसी गहरे एहसास की कहानियाँ बयां कर रही थी।
वेटर ने गुलाब को मारिया की ओर बढ़ाया और बोला,
"मिस मारिया, यह आपके लिए है।"
मारिया ने गुलाब को देखा, और फिर धीरे से उस पर अपनी नज़रें डालते हुए पूछा,
"किसने भेजा?"
उसकी आवाज़ में जिज्ञासा और थोड़ा सा सवाल था, लेकिन फिर भी, गहरे में कुछ छुपा था—जैसे उस गुलाब के पीछे एक रहस्य हो।
वेटर ने सिर झुकाया और सिर्फ इतना कहा,
"यह आपके लिए है, मिस मारिया।"
मारिया ने गुलाब को उठाया और उसे अपनी आँखों के सामने घुमाया। एक ठंडी सी सांस ली और फिर अपनी आंखें बंद कर लीं। उसके दिल में कुछ था—कुछ ऐसा जो उसने महसूस किया, लेकिन उसे पहचान नहीं पाई। गुलाब के पंखुड़ी में कुछ था, जो उसे एक असामान्य तरह की शांति दे रहा था।
"कौन हो तुम?"
उसने धीरे से खुद से पूछा, उसकी आँखें गहरी हो गईं। वह गुलाब न सिर्फ एक तोहफा था, बल्कि एक अनकहा एहसास था, जो उसके भीतर धीरे-धीरे समा रहा था।
उसने गुलाब को अपनी हथेली में कसकर थाम लिया। फिर वह धीरे-धीरे खिड़की के पास चली गई और बाहर देखने लगी, जैसे किसी अनदेखे सवाल का जवाब ढूंढ रही हो। गुलाब के पत्तों के बीच, उसकी सोच भी जैसे एक गहरे रहस्य में खो गई थी।
"कुछ नहीं, ये बस एक फूल है।"
मारिया ने धीरे से कहा और फिर उसे अपनी टेबल पर रखा।
इस वक्त, गुलाब की पंखुड़ियां जैसे एक ख़ामोश जवाब देतीं, कि कभी-कभी, सबसे बड़ा सवाल वह होता है जो शब्दों से बाहर हो। और यह गुलाब, वही खामोशी और रहस्य था जो उसकी पूरी दुनिया में था—अनजान
हॉल में हलचल बढ़ रही थी, लेकिन मारिया को इन सब से कोई फर्क नहीं पड़ा था। वह खिड़की से बाहर देख रही थी, गुलाब को अपने हाथों में थामे हुए, जैसे वो उन अनकहे सवालों का हल ढूंढ रही हो। अचानक, हंसी की तेज आवाजें और कुछ खर्राटों की तरह की आवाजें उसके कानों में पड़ीं। वह मुड़ी तो देखा, दो आदमी नशे में धुत, हंसी उड़ा रहे थे और उसकी तरफ बढ़ते हुए कुछ बत्तमीजी कर रहे थे।
"क्या यार, इतना स्टाइल... लगती तो बड़ी फ़ेमस हो, थोड़ा कुछ और कर लो!"
"हाह! क्या गाती हो? बिना किसी वजह के इतनी स्टाइलिश बनी हो!"
उनकी बातें धीरे-धीरे बढ़ने लगीं, और मारिया के चेहरे पर बेचैनी झलकने लगी। यह बत्तमीजी बढ़ते हुए अब उसके लिए परेशानी का कारण बन रही थी। उसकी आँखों में गुस्सा था, पर उसके पास कोई जवाब नहीं था, बस एक तड़प थी, जो इस स्थिति से बाहर निकलने की।
इतने में एक शख्स, जो बिल्कुल शांत और आत्मविश्वास से भरा हुआ लग रहा था, अचानक सामने आया। वह बिल्कुल सीधा और तेज़ कदमों से दोनों की तरफ बढ़ा। उसकी शख्सियत में कुछ था— एक आकर्षण, एक ताकत जो उसकी हर हरकत में महसूस होती थी।
उस शख्स ने बिना एक शब्द कहे, दोनों नशे में धुत आदमियों के कॉलर को पकड़ लिया और उन्हें एक जोरदार मुक्का मारा। दोनों लड़के पूरी तरह से चौंक गए और ज़मीन पर गिर पड़े। वो शख्स उन्हें और एक बार धक्का देते हुए बत्तमीजी की पूरी हिम्मत निकाल चुका था। दोनों लड़के घबराकर वहां से भाग गए, जैसे अपनी नाकामी से कतराए हों।
मारिया पूरी तरह से चौंकी हुई थी। उसे कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि क्या हुआ। यह शख्स कौन था जिसने बिना किसी रुकावट के उनकी ज़िंदगी में घुसकर यह सब बदल दिया था?
"आई एम मीर....!" मीर ने धीरे से कदम बढ़ाए और एक कदम और मारिया के पास आया। उसकी नज़रें गहरी थीं, और उसकी आवाज़ में एक अनकहा सवाल था।
"आप ठीक हैं?"
मारिया की आँखें पल भर के लिए उस शख्स को देख रही थीं, जैसे वह समझने की कोशिश कर रही हो कि वह शख्स क्यों उसे इतना महत्वपूर्ण महसूस हो रहा था। उसकी आवाज़ में कोई खास बात थी, जो उसे अजीब सी तसल्ली दे रही थी।
उसने हल्की सी मुस्कान के साथ कहा, "जी... हां, ठीक हूँ।"
मीर ने एक पल और उसकी ओर देखा, जैसे उसके भीतर कुछ और कहने का मन हो, लेकिन फिर वो कुछ नहीं बोला। शायद वो जानता था कि कभी-कभी शब्दों से ज्यादा कुछ कहने की जरूरत नहीं होती।
मारिया ने फिर एक गहरी सांस ली, और उसके चेहरे पर हल्का सा तनाव दिखा। कुछ पल के लिए वह खड़ी रही, लेकिन फिर उसने तय किया कि उसे अब वहाँ से निकलना चाहिए।
"शुक्रिया," मारिया ने धीरे से कहा और बिना एक शब्द और कहे, धीरे-धीरे कदम बढ़ा लिए। उसकी आँखों में उस शख्स की छवि जैसे एक सवाल के रूप में बसी हुई थी। वह बिना किसी और रुकावट के, धीरे-धीरे हॉल से बाहर निकल गई।
मीर ने एक पल और उसे देखा, लेकिन फिर उसने बिना कोई जवाब दिए, अपनी आँखें वापस वहां से हटा लीं। उसका चेहरा एक अजनबी से ज्यादा कुछ नहीं कह रहा था, जैसे वह अब भी अपनी पहचान और अपनी कहानी छुपाए हुए हो।
मारिया चली गई, लेकिन उस शख्स—मीर—का सवाल, उसका खामोश जवाब और उसकी अनकही कहानी अब तक उसके दिल में कहीं न कहीं गूंज रही थी।
रात के करीब ढाई बजे थे।
हॉल अब लगभग खाली हो चुका था, स्टाफ अपना सामान समेट रहा था। मारिया थकी हुई, लेकिन अंदर से गुस्से से भरी, सीढ़ियाँ चढ़ती हुई मिसेज़ मलिक के कमरे की तरफ गई।
दरवाज़ा अधखुला था, उसने नॉक किया।
"मिसेज़ मलिक?"
कोई जवाब नहीं।
मारिया ने हिम्मत करके दरवाज़ा खोला और अंदर चली गई।
मिसेज़ मलिक वाइन ग्लास हाथ में लिए, आराम से बैठी थीं, कागज़ों में कुछ देखती हुई।
"अब क्या है?" उन्होंने बिना देखे कहा।
"मैम, जो पेमेंट आपने दी है वो कम है।" मारिया की आवाज़ सधी हुई थी।
"कम है?" मिसेज़ मलिक ने आंखें उठाईं और व्यंग्य से हँसी,
"अरे कम तो तेरा टैलेंट है, लड़की!"
"मैंने पूरी ईमानदारी से काम किया है। और मुझे पूरे पैसे चाहिए।"
मिसेज़ मलिक उठीं, टेबल पर लिफाफा फेंका,
"ले... और निकल यहाँ से!"
मारिया ने लिफाफा खोला, पैसे गिने... और झटके से सिर उठाया,
"ये पूरे नहीं हैं!"
"तो? तू क्या करेगी?" मिसेज़ मलिक पास आईं और उंगली दिखाते हुए बोलीं,
"ज़्यादा मुँह मत चलाना, वरना गार्ड को बुला लूँगी!"
"आप मुँह चलाने वाली औरत नहीं, लोगों का शोषण करने वाली हो!"
मारिया का सब्र टूट चुका था।
मिसेज़ मलिक ने झटके से लिफाफा वापस खींचा,
"तेरे जैसे सौ आते हैं रोज़! पैसे चाहिए? फिर से गाओ, फिर से नाचो!"
मारिया ने लिफाफा पकड़ा, दोनों के हाथों में खींचतान हो गई।
"छोड़िए!"
"ये मेरे पैसे हैं!"
अचानक मिसेज़ मलिक का हाथ मारिया के कंधे से टकराया।
"Don't act smart, stupid girl!"
"तू जैसी दो कौड़ी की औरतें सिर्फ पैसा चूसना जानती हैं!"
अब मारिया पीछे नहीं हटी।
उसने लिफाफा ज़ोर से खींचा, और मिसेज़ मलिक का हाथ झटका देकर हटाया।
"मेरी मजबूरी मत समझो! मैं हक के लिए लड़ी हूँ, और हर बार लड़ूँगी!"
मिसेज़ मलिक चिल्लाईं,
"Get out! Before I throw you out myself!"
मारिया ने दरवाज़ा खोला, और पलट कर एक आखिरी बार कहा,
"एक दिन ये पार्टी, ये चमक, ये दिखावा सब छूट जाएगा... लेकिन आपकी जैसी सोच नहीं बदली तो अकेली रह जाएंगी आप!"
वो बाहर निकल गई।
कमरे के अंदर बस वाइन के गिलास की खनक और मिसेज़ मलिक का उबलता चेहरा रह गया।