Sofi ka Sansaar - 3 in Hindi Philosophy by Anarchy Short Story books and stories PDF | सोफी का संसार - भाग 3

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सोफी का संसार - भाग 3

पौराणिक कथाएँ (मिथक)
अच्छाई और बुराई की शक्तियों के बीच अनिश्चित अस्थिर सन्तुलन...

अगली सुबह सोफी के लिए कोई पत्र नहीं था। खत्म न हो रहे दिन भर वह स्कूल में सारा समय बुरी तरह बोर रही। रीसेल क्रे दौरान उसने जोआना के साथ अच्छी-भली होने की ओर विशेष ध्यान दिया। घर लौटते समय उनकी चर्चा का विषय था कि जंगल में मिट्टी सूख जाने पर वे शीघ्र ही वहाँ जाकर कैम्प लगाकर रहेंगी।

कुछ समय बाद, जो अनन्त काल जैसा लम्बा लग रहा था, वह एक बार फिर मेल-बॉक्स के सामने थी। पहले उसने वह पत्र खोला जिस पर मैक्सिको की डाक-मुहर लगी थी। यह उसके पिताजी ने भेजा था। उन्होंने लिखा था कि उन्हें घर आने की कितनी तीव्र इच्छा हो रही थी, और उन्होंने कैसे अपने चीफ ऑफिसर को शतरंज में पहली बार हराया था। इस सबके अतिरिक्त उन्होंने लगभग उन सारी किताबों को पढ़ डाला था जिन्हें वह अपने साथ शरद अवकाश के बाद जहाज पर ले आए थे।

और फिर, वहाँ था-वह ब्राउन लिफाफा जिस पर उसका नाम लिखा था। अपने स्कूल बैग और बाकी डाक को घर में पटककर, सोफी सीधे अपनी माँद की ओर दौड़ गई। लिफाफे से उसने टाइप किए पन्ने बाहर निकाले और पढ़ना शुरू किया-

संसार का पौराणिक कथा-चित्र

हैलो, सोफी! हमें बहुत कुछ करना है, इसलिए आओ बिना कोई देर किए शुरू करें।

दर्शनशास्त्र से हमारा अभिप्राय सोचने के उस नितान्त नए तरीके से है जिसका विकास ईसा से छह सौ वर्ष पूर्व यूनान में हुआ। तब तक लोगों ने अपने सभी प्रश्नों के उत्तर अपने विभिन्न धर्मों से प्राप्त किए थे। लोगों को यह धार्मिक स्पष्टीकरण पीढ़ी-दर-पीढ़ी पौराणिक कथाओं के रूप में मिलते रहे थे। एक पौराणिक कथा (मियक) देवताओं के बारे में ऐसी कहानी होती है जो यह स्पष्ट करने या समझाने का प्रयास करती है कि जीवन के वर्तमान स्वरूप का कारण क्या है।

हजारों वर्षों की अवधि में दार्शनिक प्रश्नों के मियकीय अथवा पौराणिक कथाओं रूपी स्पष्टीकरणों का सारी दुनिया में प्रचुर मात्रा में प्रसार हुआ। यूनानी दार्शनिकों ने यह सिद्ध करने का प्रयास किया कि इन मिथकीय स्पष्टीकरणों पर विश्वास नहीं किया जा सकता।

यह समझने के लिए कि प्रारम्भिक दार्शनिकों ने विचार करने के किस तरीके को अपनाया यह आवश्यक है कि पहले हम संसार के पौराणिक कथा-चित्र को समझने की चेष्टा करें। उदाहरण के लिए हम कुछ नार्डिक (नॉर्वे, स्वीडन, डेनमार्क, फिनलैंड आदि) पौराणिक कथाएँ ले सकते हैं (उलटे बॉस बरेली को ले जाने की जरूरत नहीं है)।

तुमने शायद बोर और उसके हथौड़े के विषय में सुना होगा। नॉर्वे में ईसाई धर्म के आगमन के पूर्व लोग विश्वास करते थे कि थोर दो बकरियों द्वारा खींचे जानेवाले रथ में बैठकर आकाश में भ्रमण किया करता था। जब वह मारने के लिए अपने हथौड़े को ऊपर उठाता था तो उससे बादलों में गरज होती थी और विजली कड़कती थी। नॉर्वे की भाषा में थंडर (Thunder)-Thor-don का अर्थ होता है थोर की दहाड़। स्वीडन की भाषा में थंडर (Thunder), आस्का (aska), मूल रूप आस-अका (as-aka) है जिसका अर्थ आकाश में 'देवताओं की यात्रा' है।

जब बादलों की गड़गड़ाहट होती है और बिजली कड़कती है तो वर्षा भी होती है, जो वाइकिंग के किसानों के लिए बहुत आवश्यक थी। इसलिए चोर की पूजा उपजाऊपन के देवता के रूप में होती थी।

अतः वर्षा सम्बन्धी पौराणिक कथावाला (मिथकीय) स्पष्टीकरण यह था कि योर अपना हथौड़ा घुमा रहा है। और जब बारिश होती है तो खेतों में दाना अंकुरित होता है और खुशहाली आती है।

खेत में पौधे कैसे उगते हैं और फसल कैसे तैयार होती है-यह नहीं समझा गया था। किन्तु यह स्पष्टतः किसी रूप में वर्षा से जुड़ा था। और चूँकि हर कोई विश्वास करता था कि वर्षा का कुछ लेना-देना थोर से है, अतः थोर नोर्स देवताओं में सबसे महत्त्वपूर्ण बन गया था।

थोर के महत्त्वपूर्ण होने का एक कारण और भी था, वह कारण था कि वह सारी दुनिया की व्यवस्था से जुड़ा था।"

वाइकिंग लोग मानते थे कि आबाद दुनिया एक द्वीप है जिसके लिए बाहरी खतरों की धमकी बराबर बनी रहती है। दुनिया के इस हिस्से को वे मिडगार्ड कहते थे, जिसका अर्थ होता है बीच का राज्य। मिडगार्ड के बीच में था असगार्ड, यानी देवताओं का साम्राज्य ।

मिडगार्ड के बाहर उतगार्ड्स का राज्य था, यानी धोखेबाज दैत्यों का साम्राज्य, जो दुनिया को नष्ट करने के लिए हर समय मक्कारी की चालें चलते रहते थे। इस प्रकार के बुराई के राक्षसों को प्रायः 'अराजकता की शक्तियाँ' कहकर भी जाना जाता था। न केवल नोर्स पौराणिक कथाओं में अपितु लगभग सभी राभ्यताओं में, लोगों ने पाया कि अच्छाई और बुराई की शक्तियों के बीच एक नाजुक सन्तुलन है।

राक्षसों द्वारा मिडगार्ड का विनाश करने का एक तरीका यह हो सकता था कि वे उर्वरता की देवी फ्रेजा का अपहरण कर लें। यदि उन्होंने ऐसा कर डाला तो खेतों में कुछ भी पैदा नहीं होगा और फिर औरतों के बच्चे भी नहीं होंगे। इसलिए इन राक्षसों पर नियन्त्रण रखना बहुत जरूरी था।

राक्षसों से इस युद्ध में घोर एक महत्त्वपूर्ण पात्र या। थोर का हथौड़ा वर्षा लाने के अलावा और भी बहुत कुछ कर सकता था; यह अराजकता की खतरनाक ताकतों के खिलाफ लड़ाई में सबसे महत्त्वपूर्ण हथियार था। इससे उसे लगभग असीमित शक्ति मिलती थी। उदाहरण के लिए,
थोर इसे राक्षसों पर फेंक सकता था और उन्हें कत्ल कर सकता था। और उसे इसके खो जाने का डर भी नहीं था क्योंकि यह सदा ही वापस उसी के पास आ जाता था, वूम-रेंग की तरह।

यह इस बात का एक मिथकीय स्पष्टीकरण था कि प्रकृति का सन्तुलन कैसे बनाए रखा जाता है और अच्छाई और बुराई के बीच लगातार ही संघर्ष क्यों बना रहता है। और विलकुल इसी स्पष्टीकरण को दार्शनिकों ने अस्वीकार कर दिया।

किन्तु यह सिर्फ स्पष्टीकरणों का ही प्रश्न नहीं था।

प्लेग या दुर्भिक्ष जैसी महामारी फैलने पर मनुष्य हाथ पर हाथ धरे ठाली बैठे नहीं रह सकते थे और न ही देवताओं के हस्तक्षेप की प्रतीक्षा कर सकते थे। उन्हें बुराई के विरुद्ध संघर्ष में कुछ न कुछ काम तो करना ही पड़ता था। यह उन्होंने किया विभिन्न धार्मिक संस्कार या अनुष्टान करके यानी कर्मकांड के रूप में।

नोर्स काल में सबसे महत्त्वपूर्ण घार्मिक अनुष्ठान होता था भेंट। एक देवता को भेंट चढ़ाने का परिणाम यह होता या कि आप उस देवता की शक्ति बढ़ा रहे हैं। उदाहरण के लिए, मनुष्यों को देवताओं की शक्ति बढ़ाने के लिए उन्हें भेंट चढ़ानी होती थी ताकि वे अराजकता की ताकतों पर विजय प्राप्त कर सकें। अपने उद्देश्य की पूर्ति वे देवता के लिए एक जानवर की बलि चढ़ाकर कर सकते थे। बोर को प्रायः एक बकरी की भेंट चढ़ाई जाती थी। ओडिन को दी गई भेंटें कभी-कभी नर-बलि का रूप ले लेती थीं।

नोर्डिक देशों की सर्वाधिक ख्यात पौराणिक कथा 'द ले ऑफ ब्रिम' नामक ऐडिक कविता है। यह बताती है कि एक बार जब थोर नींद से जागा तो उसने देखा कि उसका हथौड़ा गायब था। यह देखकर वह इतना क्रुद्ध हुआ कि उसकी दाढ़ी हिलने लगी और क्रोध से उसके हाथ काँपने लगे। अपने एक परम भक्त लोकी को साथ लेकर वह फ्रेजा के पास गया और उससे पूछा कि क्या वह अपने पंख लोकी को उधार दे देगी ताकि वह जोतनहैम, यानी राक्षसों के देश में जाकर यह पता लगा सके कि उन लोगों ने थोर का हथौड़ा तो नहीं चुरा लिया है।

जोतनहैम पहुँचकर लोकी राक्षसों ब्रिम के राजा से मिलता है जो निश्चय ही गर्वपूर्वक शेखी बघारता है कि उसने हाथौड़ा जमीन में इक्कीस मील नीचे छिपा दिया है। साथ ही वह यह भी कह देता है कि देवताओं को हथौड़ा तब तक नहीं मिलेगा जब तक वे फ्रेजा को उसकी दुलहन के रूप में नहीं दे देंगे।

क्या तुम इसकी तसवीर बना सकती हो, कल्पना कर सकती हो, सोफी? अचानक अच्छे देवता अपने आपको पूरी तरह बन्धक की स्थिति में पाते हैं। राक्षसों ने देवताओं के सबसे उपयोगी, स्वरक्षा के अस्त्र पर कब्जा कर लिया है। यह स्थिति कतई भी स्वीकार किए जाने योग्य नहीं है। जब तक राक्षसों के पास थोर का हथौड़ा है, तब तक उनके पास देवताओं और मानवों पर पूरा नियन्त्रण है। हथौड़े के बदले में वे फ्रेजा की माँग कर रहे हैं। किन्तु यह भी समान रूप से अस्वीकार्य है। यदि देवताओं को अपनी उर्वरता की देवी राक्षसों को देनी पड़ जाती है-देवी, जो सारे जीवन की रक्षक है-तो खेतों से हरियाली यानी वनस्पति गायब हो जाएगी और सारे देवता तथा प्राणी मर जाएँगे। यह तो एक ऐसे घातक गतिरोध की स्थिति है जिससे बाहर निकलने का रास्ता लगभग नहीं है।

पौराणिक कथा बतलाती है कि लोकी असगार्ड वापस आ जाता है और फ्रेजा से कहता है कि वह शादी का जोड़ा पहन ले क्योंकि उसे (बड़े शोक की बात है) राक्षसों के राजा से शादी करनी है। फ्रेजा को बहुत गुस्सा आता है, और वह कहती है कि यदि वह एक राक्षस से शादी करने के लिए राजी हो जाती है तो लोग कहेंगे कि वह तो बिलकुल पागल हो गई है मर्दों को हासिल करने के लिए।

तब हैमडाल नामक देवता के मन में एक विचार आता है। वह सुझाव देता है कि थोर एक दुलहन जैसी पोशाक पहन ले। सर पर बाल लगाकर और अपनी चोली में दो पत्थर लगा ले ताकि वह बिलकुल स्त्री लगे। जाहिर था, थोर इस विचार के प्रति उत्साहित नहीं हुआ, किन्तु अन्ततः वह इसे स्वीकार कर लेता है, क्योंकि यह ही वह तरीका है जिससे उसका हथौड़ा उसे वापस मिल सकता है।

इस प्रकार थोर दुलहन की पोशाक पहन लेता है और लोकी उसकी सेविका का वेश धारण कर लेती है।

यदि इसे वर्तमान शब्दावली में रखें, तो थोर और लोकी देवताओं का 'आतंक-विरोधी दस्ता' है। स्त्रियों के वस्त्रों में रूप बदलकर उनका लक्ष्य राक्षसों के गढ़ में सेंध लगाना है और थोर के हथौड़े को वापस प्राप्त करना है।

जब देवता जोतनहैम में पहुँचते हैं तो राक्षस शादी की दावत तैयार करने में लग जाते हैं। किन्तु दावत के दौरान, दुलहन- (यानी थोर)-पूरा एक बैल और आठ सामन मछलियाँ खा जाती है। वह तीन बैरल बीयर पी जाती है। इससे ग्रिम को आश्चर्य होता है। इन 'कमांडो' का सच्चा रूप लगभग पूरी तरह सामने आ जाता है। किन्तु लोकी यह स्पष्ट करके खतरे को टलवा देती है कि फ्रेजा जोतनहम आने की बड़ी उत्सुकता से प्रतीक्षा कर रही थी और इसीलिए उसने पिछले एक सप्ताह में कुछ नहीं खाया।

किन्तु जव ब्रिम चूमने के लिए दुलहन के चेहरे से घूँघट उठाता है तो वह थोर की जलती हुई आँखों को देखकर भौचक्का रह जाता है। एक बार फिर लोकी स्थिति को सँभाल लेती है, वह कहती है कि शादी के प्रति लालायित होने के कारण दुलहन एक हफ्ते से सोई ही नहीं है। इस पर ग्रिम आदेश देता है कि हथौड़े को सीधे वहाँ लाया जाए और विवाह संस्कार के समय दुलहन की गोद में रख दिया जाए।

जव थोर को हथौड़ा मिलता है तो वह अट्टहास कर उठता है। वह पहले तो हथौड़े से ब्रिम को मार डालता है, और फिर सभी राक्षसों और उनके सम्बन्धियों का खात्मा कर देता है और इस तरह इस बीभत्स बन्धक नाटक का सुखद अन्त होता है। थोर-जो देवताओं का वैटमैन या जेम्स वॉण्ड है-एक बार फिर बुराई की शक्तियों पर विजय पा लेता है।

पौराणिक कथा के विषय में इतना ही, सोफी। किन्तु इसके पीछे सच्चा अर्थ क्या है? यह कथाएँ केवल मनोरंजन के लिए नहीं बनाई गई थी। पौराणिक कथा कुछ स्पष्ट भी करना चाहती है। एक सम्भाव्य अर्थ यह हो सकता है :

जब अकाल पड़ता था तो लोग यह जानना चाहते थे कि वर्षा क्यों नहीं हुई। क्या राक्षसों ने थोर का हथौड़ा तो नहीं चुरा लिया था?

शायद ऐसी पौराणिक कथाएँ यह समझने का एक प्रयास यी कि वर्ष में मौसम कैसे बदलते हैं। जाड़ों में प्रकृति मर जाती है क्योंकि थोर का हथौड़ा जोतनहैम में है। किन्तु वसन्त ऋतु में वह इसे वापस पा जाने में सफल हो जाता है। इस प्रकार यह पौराणिक कया लोगों को मौसम परिवर्तन के बारे में कुछ स्पष्टीकरण देने का प्रयास करती थी जिसे वे समझ नहीं पा रहे थे।

किन्तु मिवक साधारण स्पष्टीकरण नहीं थे। लोग मिथकों से जुड़े धार्मिक संस्कार भी सम्पन्न करते रहते थे। हम कल्पना कर सकते हैं कि अकाल पड़ने या फसल सूख जाने की हालत में लोगों की प्रतिक्रिया क्या होती होगी; वे पौराणिक कथाओं में वर्जित घटनाओं के इर्द-गिर्द कुछ नाटक चुन लेते थे। शायद गाँव का एक आदमी एक दुलहन जैसी पोशाक पहन लेता था-स्तनों के स्थान पर पत्थर लगा लेता था-साकि राक्षसों से हथौड़ा वापस जीता जा सके। ऐसा करके, लोग बारिश लाने के लिए कुछ उद्यम कर रहे थे ताकि उनके खेतों में फसलें पैदा हो सकें।

दुनिया के दूसरे हिस्सों से ऐसे और भी अनेक उदाहरण हैं जो बतलाते हैं कि लोगों ने मौसमों से जुड़ी पौराणिक कथाओं को कैसा नाटकीय रूप दे दिया ताकि प्रकृति की प्रक्रियाओं की गति तेज की जा सके।"

अभी तक हमने नोर्स पौराणिक कथाओं की दुनिया की एक संक्षिप्त झलक देखी है। किन्तु घोर और ओडिन, फेयर और फ्रेजा, होडर और बाल्डर और कई अन्य देवताओं सम्बन्धी अनगिनत पौराणिक कथाएँ हैं। इस प्रकार के पौराणिक कथा सम्बन्धी विचार सारी दुनिया में फले-फूले, किन्तु बाद में दार्शनिकों ने आकर उनकी तोड़फोड़ करनी शुरू कर दी।

पौराणिक कथाओं की दुनिया की एक तसवीर उस समय यूनान में भी विद्यमान थी जब पहली बार वहाँ दर्शनशास्त्र विकसित हो रहा था। यूनानी देवताओं की कहानियाँ कई सदियों से पीढ़ी-दर-पीढ़ी लोगों तक पहुँचती रही थी। में यदि थोड़े से ही यूनानी देवताओं के नाम हूँ तो उनमें जियस और अपोलो, हेरा और ऐथेने, डायोनीसस और ऐस्लेपियस, हिरेक्लीज और हैफेस्टोस के नाम प्रमुख कहे जा सकते हैं।

ईसा से 700 वर्ष पूर्व, यूनान की अधिकांश पौराणिक कथाएँ होमर और हीशियड द्वारा लिखी जा चुकी थीं। इससे एक बिलकुल नई स्थिति पैदा हो गई। अब चूँकि पौराणिक कथाएँ लिखित रूप में उपलब्ध थीं, उन पर चर्चा करना सम्भव या।

प्रारम्भिक यूनानी दार्शनिकों ने होमर की पौराणिक कथाओं की आलोचना इसलिए की क्योंकि इनमें देवता नश्वर प्राणियों से बहुत मिलते-जुलते थे और वे उन्हीं की तरह अहंकारी और धोखेबाज थे। इसलिए पहली बार यह आलोचना की गई कि पौराणिक कथाएँ महज़ मानवीय विचार ही तो हैं।

इस दृष्टिकोण का प्रणेता दार्शनिक ज़ेनोफेन्स था, जो ईसा से 570 वर्ष पूर्व हुआ था। उसने कहा, मनुष्यों ने देवताओं को अपनी ही छवि के अनुरूप चनाया है। उसका मानना था कि देवता पैदा होते हैं, उनके शरीर होते हैं और हमारी तरह ही सम्प्रेषण के लिए भाषा और पहनने के लिए कपड़े भी होते हैं। इथियोपियावासियों का मानना था कि देवता काले होते हैं और उनकी नाक चपटी होती है। ब्रेशियावासी की कल्पना अनुसार देवताओं की आँखें नीली होती हैं और उनके बाल बढ़िया होते हैं। यदि बैल, घोड़े और शेर चित्र बना सकते तो वे देवताओं को वैलों, घोड़ों और शेरों की तरह ही चित्रित करते ।

इसी काल में यूनानियों ने कई शहर-राज्यों की स्थापना यूनान और यूनानी उपनिवेशों दक्षिण इटली तया एशिया माइनर में की, जहाँ शारीरिक परिश्रम दात करते थे, तथा नागरिक अपना सारा समय संस्कृति और राजनीति में लगाने के लिए स्वतन्त्र थे।

ऐसे शहरी वातावरणों में लोग पूरी तरह से विलकुल नए तरीके से सोचने लगे? मात्र अपने लिए ही सही, कोई भी नागरिक यह प्रश्न उठा सकता था कि समाज का संगठन किस प्रकार किया जाए। इस तरह विना प्राचीन पौराणिक कथाओं का आश्रय लिये नागरिक दार्शनिक प्रश्न पूछ सकते थे।

हम इस विकास कम को पौराणिक कथाओं के माध्यम से मियकीय सोचने के तरीके को त्यागकर अनुभव और तर्क पर आधारित चिन्तन के तरीके को अपनाने की प्रवृति कह सकते हैं। प्रारम्भिक यूनानी दार्शनिकों का मुख्य लक्ष्य प्राकृतिक प्रक्रियाओं की प्राकृतिक, न कि अलौकिक, व्याख्याएँ ढूँढ़ना था।

सोफी अपनी माँद से बाहर आई और बाग में इधर-उधर टहलती रही। उसने स्कूल में मिली सीख, विशेषतः कक्षा में सीखा विज्ञान, भूल जाने की कोशिश की।

यदि वह इस बाग में प्रकृति के विषय में कुछ भी जाने बिना, बड़ी हुई होती तो बसन्त ऋतु का अनुभव उसके लिए कैसा होता ?

किसी दिन अचानक बारिश क्यों होने लगती है? क्या वह इस विषय में किसी प्रकार के स्पष्टीकरण को ढूँढ़ने का कोई प्रयास करती? क्या वह कोई फन्तासी बुनती कि पहाड़ों की बर्फ कहाँ चली गई और सूरज सबेरे क्यों उगा?

हाँ, वह निश्चय ही फन्तासी बनाएंगी। उसने एक कहानी गढ़ना शुरू कर दिया। जाड़े ने सारी जमीन को अपनी बर्फीली पकड़ में इसलिए ले लिया क्योंकि शैतान मुरियत ने सुन्दर राजकुमारी सिकिता को ठंडे कारागार में बन्दी बनाकर डाल दिया है। किन्तु एक दिन सबेरे बहादुर राजकुमार ब्रेवेटो आया और उसने उसे छुड़ा लिया। मुक्त होने पर सिकिता इतनी प्रसन्न हुई कि वह घास के मैदानों में नाचने लगी और वह गाना गाने लगी जो उसने नम कारागार में बनाया था। पृथ्वी और पेड़ उससे इतने अभिभूत हुए कि सारी बर्फ आँसुओं में बदल गई। किन्तु तभी सूरज आया और उसने सारे आँसू पोंछ डाले। चिड़ियों ने सिकिता के गाने की नकल की, और जब सुन्दर राजकुमारी ने अपने सुनहरे बालों के लच्छे खोले तो उनमें से कुछ लच्छे जमीन पर गिर पड़े और वे पृथ्वी पर खेतों में लिली के फूल बन गए।

सोफी को अपनी सुन्दर कहानी पसन्द आई। यदि बदलते मौसमों का कोई अन्य स्पष्टीकरण उसे मालूम न होता, तो निश्चय ही अन्त में वह अपनी ही कहानी में विश्वास कर लेती।

उसने समझ लिया कि लोगों ने हमेशा ही प्रकृति की प्रक्रियाओं को स्पष्ट करने की आवश्यकता का अनुभव किया है। लगता था कि वे शायद ऐसे स्पष्टीकरणों के बिना रह नहीं सकते थे। और यह कि हमारे पूर्वजों ने विज्ञान नाम की प्रयोगात्मक चिन्तन-विधि के अस्तित्व से पहले ही ऐसी अनेक पौराणिक कथाएँ बना डालीं थी।