जादुई टोपी
अच्छा दार्शनिक होने के लिए हमें चाहिए सिर्फ विस्मित होने की क्षमता...
सोफी को पक्का विश्वास था कि गुमनाम पत्र-लेखक उसे फिर पत्र लिखेगा। उसने फैसला किया कि इन पत्रों के विषय में वह फिलहाल किसी से कुछ नहीं कहेगी।
स्कूल में अध्यापकों द्वारा पढ़ाए जा रहे विषयों पर अपना ध्यान केन्द्रित करने में उसे काफी कठिनाई आई। उसे लगा जैसे वे केवल फालतू विषयों पर ही बात कर रहे थे। आखिर वह इस बारे में बात क्यों नहीं करते कि मानव होना क्या है-या कि दुनिया क्या है और कैसे अस्तित्व में आई?
उसने पहली बार यह महसूस करना शुरू किया कि स्कूल में ही नहीं बल्कि सभी अन्य जगहों पर भी लोगों का मन छोटी-छोटी हल्की-फुल्की चीजों की चर्चा करने में ही रमता है। बड़ी-बड़ी भारी महत्त्वपूर्ण समस्याएँ भी हैं जिनका समाधान किया जाना आवश्यक है।
क्या किसी के पास इन प्रश्नों के उत्तर थे? सोफी ने महसूस किया कि विषम क्रियाओं को याद करने की तुलना में इन पर विचार करना कहीं अधिक महत्त्वपूर्ण था।
अन्तिम क्लास के बाद जैसे ही घंटी बजी, वह स्कूल से इतनी तेजी से बाहर आई कि जोआना को उसके साथ-साथ चलने के लिए दौड़ना पड़ा।
थोड़ी देर बाद जोआना ने पूछा, 'क्या आज शाम तुम ताश खेलना पसन्द करोगी?'
सोफी ने अपने कन्धे उचका दिए।
'अब ताश के खेलों में मेरी कोई रुचि नहीं रही है।'
जोआना को इस पर आश्चर्य हुआ।
'ठीक है, ताश में रुचि नहीं है तो चलो, बैडमिंटन खेलते हैं।'
सोफी ने फुटपाथ टकटकी लगाकर देखा और ऊपर अपनी सहेली की ओर नज़र उठाई।
'नहीं, अब मुझे नहीं लगता कि मेरी बैडमिंटन में भी कोई रुचि है।'
'मजाक मत करो।'
सोफी जोआना की वाणी में कड़वाहट का स्पर्श भाँप गई।
'क्या तुम मुझे बताओगी कि वह क्या है जो अचानक इतना महत्त्वपूर्ण हो गया है?'
सोफी ने सिर्फ अपना सर हिला दिया, 'यह... यह एक रहस्य है।'
'कहीं तुम्हें किसी से प्यार तो नहीं हो गया है?' दोनों लड़कियाँ थोड़ी देर बिना कुछ कहे, साथ-साथ चलती रहीं। जब वे फुटबॉल मैदान के पास पहुँचीं, तो जोआना ने कहा, 'मैं इस मैदान से होकर जाऊँगी।'
मैदान के पार! यह जोआना के लिए सबसे छोटा रास्ता था, किन्तु वह इस रास्ते से तभी जाती थी जब किसी मेहमान के लिए उसे जल्दी घर पहुँचना हो या दाँतों के डॉक्टर के साथ उसका अपॉइंटमेंट होता।
सोफी को पछतावा हुआ कि उसने जोआना के साथ सही बर्ताव नहीं किया। लेकिन इसके सिवाय वह कह भी क्या सकती थी? यह कि वह अचानक इस खोज में डूब गई थी कि वह स्वयं कौन है? और दुनिया कैसे बनी, और इसीलिए अब उसके पास बैडमिंटन खेलने के लिए समय नहीं था? क्या जोआना यह सब समझ सकती थी?
सबसे मार्मिक, सजीव और जरूरी, और एक अर्थ में, सर्वाधिक स्वाभाविक प्रश्नों पर गम्भीर होना इतना कठिन क्यों था?
मेल-बॉक्स खोलते समय, उसने अपने हृदय को तेज-तेज धड़कते पाया। पहले तो उसे बैंक का एक पत्र और अपनी माँ के लिए कई बड़े ब्राउन लिफाफे दिखे। धत् तेरे की! वह तो उत्सुकता से प्रतीक्षा कर रही थी कि अज्ञात पत्र भेजनेवाले से उसे एक पत्र और मिलेगा।
जैसे ही उसने गेट बन्द किया, तो बड़े लिफाफों में से एक पर उसे अपना नाम दिखा। जैसे ही इसे पलटा, तो पीछे लिखा देखा 'दर्शनशास्त्र का कोर्स, ध्यान से संभालें।'
सोफी बजरी बिछे रास्ते पर दौड़ती गई और अपना स्कूल बैग पैड़ियों पर ही फेंक दिया। दूसरे पत्रों को पायदान के नीचे सरका कर वह दौड़ती हुई बाग में पीछे जाकर अपने गुप्त स्थान की शरण लेने चल दी। इतना बड़ा पत्र खोलने के लिए यही एकमात्र ठीक जगह थी।
शेरेकन उसके पीछे-पीछे दौड़ती चली आई किन्तु अब तक सोफी उसके इस व्यवहार की आदी हो चुकी थी। वह निश्चिन्त थी कि बिल्ली कभी भी उसका रहस्य किसी को भी नहीं बता पाएगी।
लिफाफे के अन्दर टाइप किए हुए तीन पृष्ठ थे जिन्हें एक क्लिप से जोड़ा गया था। सोफी ने पढ़ना शुरू किया।
दर्शनशास्त्र क्या है?
प्रिय सोफी,
अनेक लोगों के अपने-अपने शौक होते हैं। कुछ लोग पुराने सिक्के या विदेशी डाक-टिकट इकट्ठा करते हैं, तो कुछ सुई से कशीदाकारी करते हैं। और कुछ ऐसे हैं जो अपना खाली समय किसी ख़ास खेल में लगाते हैं।
बहुत से लोग पढ़ने का आनन्द लेते हैं। किन्तु पढ़ने की रुचियों में अनेक भिन्नताएँ हैं। कुछ लोग केवल समाचार-पत्र या कॉमिक्स पढ़ते हैं, कुछ उपन्यास पढ़ते हैं, जबकि कई अन्य लोग खगोल विज्ञान, वन्य जीवन या तकनीकी आविष्कारों के बारें में पुस्तकें पसन्द करते हैं।
यदि मेरी रुचि घोड़ों या बहुमूल्य पत्थरों में है तो मैं यह अपेक्षा नहीं कर सकता कि दूसरे लोग भी इन रुचियों के प्रति मेरी ही तरह उत्साहित होंगे। यदि मैं टी.वी. पर खेलों के सारे कार्यक्रमों को बड़ी प्रसन्नता से देखता हूँ तो मुझे यह सच्चाई भी स्वीकार कर लेनी चाहिए कि कुछ लोगों के लिए यह बोरियत भरे भी होंगे।
क्या कुछ ऐसा नहीं है जिसमें हम सबकी रुचि हो? क्या ऐसा कुछ भी नहीं है जिससे हर किसी का सरोकार हो-इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि वे कौन लोग हैं और दुनिया में कहाँ रहते हैं? हाँ, प्रिय सोफी, कुछ ऐसे प्रश्न हैं जिनमें निश्चय ही प्रत्येक की रुचि होनी चाहिए। निश्चित रूप से उन्हीं प्रश्नों के बारे में यह कोर्स है।
जीवन में सबसे महत्त्वपूर्ण क्या है? यदि हम यह प्रश्न किसी ऐसे व्यक्ति से पूछें जो भुखमरी का शिकार हो, तो उत्तर होगा भोजन। यदि यही प्रश्न किसी ठंड से मरनेवाले व्यक्ति से किया जाए तो उत्तर होगा, गरमाहट। यदि हम यही प्रश्न किसी ऐसे आदमी से करें जो अकेला, अलग-थलग, नितान्त एकाकी है, तो सम्भवतः उत्तर होगा लोगों की संगत और उनका साथ।
किन्तु ऐसी आधारभूत जरूरतें पूरी हो जाने के बाद भी क्या कुछ और भी है जिसे सब पाना चाहें, जिसकी सबको जरूरत है? दार्शनिक सोचते हैं कि ऐसा उनका विश्वास है कि आदमी केवल रोटी से जिन्दा नहीं रह सकता। ठीक है, भोजन सबको चाहिए। और सभी को प्यार और देखभाल भी। किन्तु कुछ और भी है, इस सबसे अलग, जिसकी हम सभी को जरूरत है, और वह है यह पता लगाना कि हम कौन हैं और यहाँ क्यों मौजूद हैं?
हम यहाँ क्यों हैं? इस प्रश्न में रुचि लेना डाक टिकट इकट्ठे करने में रुचि लेने जैसा नहीं है। जो लोग ऐसे प्रश्न पूछते हैं वे सभी एक ऐसी चर्चा में भाग ले रहे हैं जो इस ग्रह पर उस समय से चली आ रही है जब से मनुष्य यहाँ रह रहा है। यह ब्रह्मांड, यह पृथ्वी और जीवन अस्तित्व में कैसे आए? यह प्रश्न इस प्रश्न से भी बड़ा और अधिक महत्त्वपूर्ण है कि पिछले ओलिम्पिक्स में सबसे ज्यादा स्वर्ण पदक किसने जीते ? दर्शनशास्त्र की ओर बढ़ने या पहुँचने का सबसे बढ़िया रास्ता है कुछ दार्शनिक प्रश्नों को पूष्ठना।
दुनिया कैसे बनी ? जो घटित होता है, क्या उसके पीछे कोई इच्छा या अर्थ है? क्या मृत्यु के बाद जीवन है? हम इन प्रश्नों के उत्तर कैसे दे सकते हैं? और सबसे महत्त्वपूर्ण कि हमें अपना जीवन कैसे जीना चाहिए? लोग इन प्रश्नों को युगों-युगों से पूछते आए हैं। दुनिया में ऐसी कोई संस्कृति नहीं जिसमें इन प्रश्नों को कभी न कभी न उठाया गया हो कि आदमी क्या है, दुनिया कहाँ से आई।
पूछने के लिए मूल रूप से बहुत अधिक प्रश्न दार्शनिक नहीं हैं। सर्वाधिक महत्त्व के कुछ प्रश्न हम पहले ही पूछ चुके हैं। किन्तु इतिहास हमें इनमें से प्रत्येक प्रश्न के अलग ढंग से भिन्न-भिन्न उत्तर प्रदान करता है। अतः उत्तर ढूँढ़ने और पाने की अपेक्षा दार्शनिक प्रश्नों को पूछना कहीं अधिक आसान है।
आज भी हर व्यक्ति को इन्हीं प्रश्नों के अपने निजी उत्तर खोजने हैं। क्या ईश्वर का अस्तित्व है? मृत्यु के बाद जीवन है? आप इन प्रश्नों के उत्तर विश्व-ज्ञानकोश में देखकर नहीं पा सकते। और न ही विश्व-ज्ञानकोश हमें यह बतला सकता है कि हमें अपना जीवन कैसे जीना चाहिए। यह जान कर कि अन्य लोगों ने अपने विश्वास कैसे विकसित किए हैं, हमें सहायता मिलती है। अपने जीवन-दर्शन की रचना कर पाने में।
दार्शनिकों द्वारा सत्य की खोज किसी जासूसी कहानी जैसी है। कुछ लोग सोचते हैं कि एंडरसन हत्यारा था, कई अन्य सोचते हैं कि हत्यारा नीलसन या जेनसन या। पुलिस कभी-कभी किसी वास्तविक जुर्म की पहेली को सुलझा लेती है। किन्तु यह भी सम्भव है कि वह कभी इसकी जड़ तक पहुँच ही न पाए, यद्यपि कहीं न कहीं समाधान मौजूद होता है। इस तरह यद्यपि किसी प्रश्न का उत्तर देना कठिन हो, फिर भी उसका एक और केवल एक सही उत्तर हो सकता है। मृत्यु के बाद या तो किसी प्रकार का अस्तित्व है-या नहीं है।
युगों पुरानी अनेक पहेलियों को विज्ञान ने सुलझा दिया है। एक समय था जब चाँद का अँधेरा हिस्सा रहस्य में छिपा हुआ था। यह कोई उस तरह की समस्या नहीं थी जिराका समाधान चर्चा से निकल सके या उसे एक आदमी की कल्पना पर ही छोड़ दिया जाए। किन्तु आज हमें सही-सही मालूम है कि चाँद का अँधेरा हिस्सा कैसा दिखता है और अब कोई भी 'विश्वास नहीं कर सकता' कि चाँद में आदमी रहते हैं या यह कि चाँद कच्चे पनीर का बना हुआ है।
दो हजार से अधिक वर्ष पूर्व एक यूनानी दार्शनिक हुआ था। उसका विश्वास या कि दर्शनशास्त्र का स्रोत मनुष्य की विस्मय करने की क्षमता में है। मनुष्य ने सोचा कि जीवित रहना ऐसा अद्भुत अनुभव है कि उससे दार्शनिक प्रश्न अपने आप उभरने लगते हैं।
यह एक जादुई करिश्मा देखने की तरह है। हम समझ नहीं पाते कि यह कैसे होता है या किया जाता है। इसलिए हम पूछते हैं-कोई जादूगर दो सफेद रेशमी रुमालों को जिन्दा खरगोश में कैसे बदल देता है?
अनेक लोग दुनिया का अनुभव उसी अविश्वसनीयता से करते हैं जैसे तब करते हैं जब एक जादूगर टोपी को खाली दिखलाकर फिर उसी में से अचानक एक खरगोश निकालकर दिखला देता है।
खरगोश के मामले में तो हम जानते हैं कि जादूगर ने हमारे साथ कोई चाल खेली है। हम जानना यह चाहते हैं कि आखिर उसने इसे किया कैसे? किन्तु जब दुनिया की बात आती है, तो मामला थोड़ा भिन्न होता है। हम जानते हैं कि दुनिया हाथ की सफाई का खेल या धोखा नहीं है क्योंकि हम यहाँ दुनिया के अन्दर मौजूद हैं, हम इसका एक अंग हैं। वास्तव में, हम वह सफेद खरगोश हैं जिसे जादूगर द्वारा टोपी से बाहर निकाला जाता है। हमारे और सफेद खरगोश के बीच इतना अन्तर है कि खरगोश को मालूम नहीं होता कि वह एक जादुई खेल में भाग ले रहा है जबकि हम महसूस करते हैं कि हम किसी गहन रहस्य का अंग हैं और यह जानना चाहते हैं कि यह सब कैसे हो रहा है।
पुनश्च : जहाँ तक सफेद जरगोश की बात है बेहतर यह होगा कि उसकी तुलना पूरे विश्व से की जाए। विश्व में हमारी स्थिति उन सूक्ष्म कीटाणुओं की तरह हैं जो खरगोश के चिकने रोएँदार बालों में गहरे नीचे रहते हैं। किन्तु दार्शनिक लोग सदैव ही फर के बारीक रेशों के ऊपर चढ़कर जादूगर की आँखों में गहरे झाँकने की कोशिश करते रहे हैं और कर रहे हैं।
सोफी, क्या तुम अभी भी यहीं हो? शेष आगे...
सोफी थककर चूर हो चुकी थी। अभी भी यहीं हो? उसे यह भी ध्यान नहीं रहा कि वह लगातार उस पत्र को पढ़ती गई थी, एक पल भी श्वास लेने के लिए रुके बिना। आखिर यह पत्र कौन लाया था? यह वह आदमी नहीं हो सकता जिसने हिल्डे मोलर नैग के लिए जन्मदिनवाला कार्ड भेजा था क्योंकि उस कार्ड पर डाक-टिकट और डाक की मुहर दोनों थे। ब्राउन लिफाफा मेल-बॉक्स में बिलकुल उसी तरह डाला गया था जैसे पहले के दो सफेद लिफाफे ।
सोफी ने घड़ी की ओर देखा। पौने तीन बजे थे। उसकी माँ तो अगले दो घंटे से भी अधिक समय तक काम से घर पहुँचनेवाली नहीं थी।
सोफी रेंग कर बाग में लौट आई और मेल-बॉक्स की ओर दौड़ पड़ी। शायद उसमें कोई और पत्र हो।
उसे अपने नाम वाला एक और ब्राउन लिफाफा मिला। इस बार उसने इधर-उधर देखा किन्तु वहाँ कोई भी दिखलाई नहीं दिया। सोफी दौड़ती हुई जंगल के छोर तक जा पहुँची और रास्ते पर दूर तक नजर डाली।
वहाँ कोई नहीं था। अचानक उसे ऐसा लगा कि जंगल में कहीं एक टहनी टूटी हो। किन्तु वह पूरे विश्वास के साथ कुछ नहीं कह सकती थी और यूँ भी किसी ऐसे के पीछे दौड़ना बेकार था जो भाग जाने पर उतारू था।
सोफी घर में चली आई। फिर जल्दी-जल्दी सीढ़ियाँ चढ़कर अपने कमरे में गई और बिस्किट्स वाला वह डिब्बा निकाल लिया जिसमें सुन्दर-सुन्दर नग रखे थे। उसने उन्हें फर्श पर डाल दिया और दोनों बड़े लिफाफों को टिन में रख दिया। फिर, टिन को दोनों हाथों से मजबूती से पकड़े हुए, बाग में दौड़ गई। बाहर जाने से पहले उसने शेरेकन के लिए कुछ खाना रख दिया।
'किट्टी, किट्टी, किट्टी ।'
अपने गुप्त स्थान पर एक बार फिर पहुँचकर उसने दूसरा ब्राउन लिफाफा खोला और उसमें से टाइप किए हुए नए पृष्ठ निकाल लिये और पढ़ने लगी।
एक विचित्र प्राणी
हैलो अगेन, जैसे कि तुम देख सकती हो दर्शनशास्त्र का यह छोटा कोर्स आसान किस्तों में आएगा। कुछ और प्रारम्भिक टिप्पणियाँ यह हैं:
मैंने पहले भी कहा कि अच्छा दार्शनिक होने के लिए जिस एकमात्र चीज की जरूरत है वह है विस्मित होने की क्षमता। यदि मैंने नहीं कहा, तो मैं इसे फिर से कहता हूँ अच्छा दार्शनिक होने के लिए हमारे पास होनी चाहिए सिर्फ विस्मित होने की क्षमता।
शिशुओं में यह क्षमता होती है। इसमें आश्चर्य की कोई बात नहीं है। कुछ महीने गर्भमें रहने के बाद, वे रपटते हुए एक विलकुल नए ययार्थ-जगत में बाहर आ जाते हैं। पर जैसे जैसे वे बड़े होते हैं उनमें विस्मय की यह क्षमता क्षीण होने लगती है। ऐसा क्यों होता है? क्या तुम जानती हो?
अगर कोई शिशु पैदा होते ही बातचीत कर सकता तो संभवतया हमें बता सकता कि यह किस अद्भुत दुनिया में आ गया है। उसकी तरह हम भी अपने इर्द-गिर्द विस्मय से देखते।
जैसे वह धीरे-धीरे शब्द प्राप्त करता है, बच्चा सिर उठाकर देखता है और हर बार कुत्ता देखने पर कहता है 'बाउ-चाऊ'। वह अपने वाकर में उछलता-कूदता है, अपनी बाँहें लहराता है : 'बाउ-वाऊ! बाउ-वाऊ!' हम जो उम्र में बड़े और अधिक बुद्धिमान हैं, बच्चे के उत्साह से कुछ परेशान हो जाते हैं। 'ठीक है, ठीक है, यह एक बाउ-वाऊ हैं,' हम कहते हैं। 'अब कृपया शान्त हो जाओ।' हम मुग्ध नहीं होते। हमने पहले भी कुत्ता देखा है।
थोड़ा और बड़ा होने पर वह अब कुत्ते के पास से गुजरता है तो अब उत्तेजित नहीं होता। पर इससे पहले वह शायद सैकड़ों बार 'बाउ-वाऊ' के आश्चर्य मिश्रित आनन्द को दोहरा चुका होता है। यही बात हाथी या एक हिप्पोपोटेमस के बारे में भी होती है किन्तु बच्चे के ठीक से बोलना सीखने से बहुत पहले और दार्शनिक रूप से सोचना सीखने से बहुत पहले-दुनिया उसके लिए मात्र एक आदत बन गई होती है।
यदि तुम मुझसे पूछो, तो मैं कहूँगा-यह एक बड़ी दुखद स्थिति है।
मेरी चिन्ता यही है प्रिय सोफी, तुम बड़ी होकर उन लोगों जैसी न बन जाओ जो दुनिया को, जैसी यह है, वैसी ही स्वीकार करके चलते हैं। अतः इसे सुनिश्चित करने के लिए हम विचारों के विषय में कुछ प्रयोग करेंगे और उसके बाद ही इस कोर्स में आगे चलेंगे।
तुम सोचोगी मैं तो एक असाधारण प्राणी हूँ। हाँ, मैं एक रहस्यमय प्राणी हूँ।
तुम्हें लगता है मानो तुम एक वशीकरण नींद से जागी हो। मैं कौन हूँ, तुम पूछती हो। तुम जानती हो कि तुम इस ब्रह्मांड में एक ग्रह पर इधर-उधर भटक रही हो। किन्तु यह ब्रह्मांड है क्या?
यदि तुम स्वयं को इस तरह खोज निकालो तो, समझ लो मंगलग्रह वासी जैसे रहस्यमय प्राणी को खोज लोगी। तुम न केवल बाह्म अन्तरिक्ष के एक प्राणी को देख पाओगी, तुम्हें अपने अन्दर गहरे कहीं यह अनुभव होगा कि तुम स्वयं भी एक असाधारण प्राणी हो!
मेरी बात समझ में आई न सोफी? अच्छा आओ हम विचार का दूसरा प्रयोग करते हैं। वैसे ऐसा कभी नहीं होगा कि तुम किसी दूसरे ग्रह के प्राणी से मिलो ! हमें तो यह भी नहीं मालूम कि अन्य ग्रहों पर जीवन है भी या नहीं। किन्तु शायद किसी दिन तुम्हारा स्वयं से सामना हो जाए। एक दिन अचानक तुम ठिठक जाओ और स्वयं को पूरी तरह एक नई रोशनी में देखो। एक दिन जंगल में चलते हुए। यह भी हो सकता है तुम्हारे साथ ।
किन्तु एक दिन सवेरे, मम्मी, पापा और दो या तीन साल का छोटा टॉमस रसोई में बैठे नाश्ता कर रहे हैं। थोड़ी देर बाद मम्मी उठकर सिंक की तरफ जाती है और पापा हाँ, पापा-ऊपर उड़ने लगते हैं और छत के नीचे हवा में तैरते हैं जबकि छोटा टॉमस उन्हें देख रहा है। सोचो, तब टॉपस ने क्या कहा होगा? शायद वह अपने पापा की ओर इशारा करके कहता है : 'पापा उड़ रहे हैं।' टॉमस निश्चय ही इस दृश्य से आश्चर्यचकित होगा, लेकिन वह तो प्रायः चकित हो जाता है। पापा हर रोज इतनी अजीव-अजीब चीजें करते हैं कि नाश्ते की मेज पर थोड़ी-सी उड़ान में उनको कोई अन्तर नहीं पड़ता। हर दिन पापा एक अजीव मशीन द्वारा दाढ़ी बनाते हैं, कभी-कभी वह छत पर चढ़ जाते हैं और टी.वी. एरियल को घुमाते हैं-या वह गाड़ी का बोनेट खोल, अपना सिर उसमें धँसा देते हैं और जब सिर बाहर निकालते हैं तो मुँह पर कालिख लगी होती है।
अब मम्मी की बारी है। वह टॉमस की सुनकर एकदम तेजी से मुड़ती है। तुम सोचो, पापा को रसोई की मेज के ऊपर तैरते देखकर उनकी प्रतिक्रिया क्या होगी?
मुरब्बे का मर्तबान उसके हाथ से छूट जाता है और वह डरकर चीखती हैं। पापा के अपनी कुर्सी पर वापस आ जाने पर सम्भवतः उन्हें डॉक्टरी देखभाल की जरूरत पड़े। (उन्हें अब तक बेहतर टेवल मैनर्स सीख लेने चाहिए थे) तुम सोचो, टॉमस और उसकी माँ की प्रतिक्रिया अलग-अलग क्यों है?
इस सबका कुछ सम्बन्ध आदत से है। (इस पर ध्यान दो) मम्मी ने यही सीखा है कि लोग उड़ नहीं सकते जबकि टॉमस को अभी यह जानना है। वह अभी यह नहीं जानता कि आप दुनिया में क्या कर सकते हैं और क्या नहीं कर सकते।
किन्तु सोफी, दुनिया की बात करें? क्या खयाल है तुम्हारा, क्या दुनिया वह सब कर सकती है जो वह कर रही है? दुनिया भी तो अन्तरिक्ष में तैर रही है।
दुख की बात तो यही है कि हम जैसे-जैसे बड़े होते हैं, न केवल गुरुत्वाकर्षण की शक्ति के ही आदी होते जाते हैं अपितु बहुत थोड़े समय में ही दुनिया हमारे लिए एक आदत बन जाती है। ऐसा लगता है कि बड़े होने की लालसा में हम दुनिया के प्रति आश्चर्य करने की क्षमता खो देते जाते हैं। और ऐसा होने के दौरान हम महत्त्वपूर्ण, मूलभूत केन्द्रीय क्षमता खो बैठते हैं-'ऐसी क्षमता जिसे दार्शनिक पुनः स्थापित करने का प्रयास करते हैं। कहीं हमारे अन्दर कोई चीज हमें बतलाती रहती है कि जीवन एक बहुत बड़ा रहस्य है। इसका हमने एक समय अनुभव किया था, यह उस समय की बात है जब हमने अभी विचार करना तक नहीं सीखा था।
मैं इसे और संक्षेप में कहता हूँ: यद्यपि दार्शनिक प्रश्नों से हम सभी का सरोकार है, किन्तु इससे हम सब दार्शनिक नहीं बन जाते। अनेक कारण से अधिकांश लोग रोजमर्रा के जीवन में इतना उलझ जाते हैं कि संसार के प्रति उनका विस्मयकारी भाव पृष्ठभूमि में खो जाता है। (वे रेंगते हुए खरगोश के मुलायम फर में गहरे अन्दर तक उतर जाते हैं, वहाँ आराम से खो जाते हैं, और, फिर सारा जीवन वहीं बने रहते हैं) जैसे-जैसे वे बड़े होते जाते हैं आश्चर्यचकित होने की उनकी क्षमता घटती प्रतीत होती है। ऐसा क्यों होता है? क्या तुम इसका कारण जानती हो?
कल्पना करो तुम एक दिन जंगल में घूमने निकलती हो। अचानक तुम्हें अपने सामने एक अन्तरिक्ष यान दिखलाई देता है। एक छोटा-सा मंगलग्रह वासी उस अन्तरिक्ष यान से बाहर आता है और तुम्हारे सामने खड़ा हो जाता है। अब वह तुम्हें देख रहा है...
उस स्थिति में तुम्हारे मन में क्या विचार आएँगे? कोई बात नहीं, इसे भूल जाओ, यह महत्त्वपूर्ण नहीं है। किन्तु क्या तुमने कभी इस तथ्य पर विचार किया है कि तुम स्वयं एक मंगलग्रह बासी हो ?
बच्चों के लिए यह दुनिया और इसकी हर चीज नई है, कुछ ऐसी जो आश्चर्य को जन्म देती है। वयस्कों के साथ ऐसा नहीं है। अधिकांश वयस्क लोग इस दुनिया को जैसी है वैसी ही स्वीकार करके सन्तुष्ट हो जाते हैं।
लेकिन निसंदेह दार्शनिक इसके उल्लेखनीय अपवाद हैं। दार्शनिक कभी भी दुनिया का बिलकुल आदी नहीं होता। उसे दुनिया कुछ अनुचित चौंकानेवाली, एक पहेली जैसी दिखती है। इस प्रकार दार्शनिकों और बच्चों में एक महत्त्वपूर्ण समान क्षमता है। तुम चाहो तो कह सकती हो कि एक दार्शनिक जीवन भर एक नन्हें बच्चे जैसा जिज्ञासु बना रहता है।
सोफी इसलिए अब तुम्हें स्वयं तय करना है। क्या तुम ऐसी बच्ची हो जो अभी तक दुनिया से ऊवी नहीं है? या तुम एक ऐसी दार्शनिक हो जो प्रण कर चुकी है कि वह कभी ऐसी नहीं बनेगी?
यदि तुम अपना सिर झटक दो, और अपने आपको वच्ची और दार्शनिक दोनों में से कोई भी न मानो तो इसका मतलब यह हुआ कि तुम दुनिया की इतनी आदी हो चुकी हो कि अब यह तुम्हें आश्चर्य चकित नहीं करती। सावधान! तुम खतरे में हो। और यही कारण है कि तुम्हें दर्शनशास्त्र का यह कोर्स प्राप्त हो रहा है। दुनिया के किसी भी दूसरे लोगों की तरह में तुम्हें कभी भी जिज्ञासाहीन, उदासीन नहीं बनने दूंगा। मैं चाहता हूँ कि तुम्हारा जिज्ञासु मन सदैव सक्रिय रहे।
इसकी कोई फीस नहीं लगेगी इसलिए यदि तुम इसे पूरा नहीं करती तो तुम्हें कोई पैसा वापस भी नहीं मिलेगा। फिर भी किसी भी समय यदि तुम इस कोर्स को छोड़ना चाहो तो तुम ऐसा करने के लिए स्वतन्त्र हो। उस सूरत में तुम्हें मेरे लिए एक सन्देश मेल-बॉक्स में छोड़ना होगा। एक जीवित मेढक से काम हो जाएगा। कोई हरी चीज रहे तो ठीक, नहीं तो डाकिया डर जाएगा।
सार रूप में कहूँ: एक जादूई टोपी से एक सफेद खरगोश बाहर निकाला जाता है। चूँकि यह बहुत बड़ा खरगोश है, इसलिए जादू के करतब को दिखाने में अरवों वर्ष लग गए हैं। सभी नश्वर प्राणी खरगोश के बालों के बिलकुल किनारों पर पैदा होते हैं जहाँ वे ऐसी स्थिति में होते हैं कि जादू के करतब की असम्भवता पर आश्चर्य कर सकते हैं। किन्तु जैसे ही उनकी उम्र बढ़ती जाती है वे फर के अन्दर गहरे जाने में लग जाते हैं। और अन्दर पहुँचकर वे वहीं बने रहते हैं। वे वहाँ इतने आराम में होते हैं कि धीरे-धीरे वापस बाहर आने की जोखिम कभी नहीं उठाते। केवल दार्शनिक ही भाषा और अस्तित्व के बाहरी छोरों की चरम सीमा पर पहुँचने के जोखिम भरे अभियान पर निकलते हैं। उनमें से कुछ रास्ते में गिर पड़ते हैं, किन्तु कुछ दुस्साहसपूर्वक इस अभियान में डटे रहते हैं और उन लोगों पर चिल्लाते रहते हैं, जो आराम की कोमल नींद में गहरे पड़े हुए हैं, जिन्होंने स्वयं को जायकेदार भोजन और पेय पदार्थों से टोंस लिया है।
'देवियो और सज्जनो,' दार्शनिक चिल्लाकर कहते हैं, 'हम अन्तरिक्ष में तैर रहे हैं।' किन्तु नीचे रहनेवालों में से कोई भी उनकी परवाह नहीं करता।
चरम आराम की स्थिति में नीचे पाताल की गहराई में रहनेवाले लोग चिढ़कर कहते हैं कि 'कैसे परेशानी पैदा करनेवाले लोग हैं ये?' कृपया मक्खन इधर सरका दीजिए ? आज हमारे शेयरों के भाव कितना ऊपर चढ़े? आज टमाटरों का भाव क्या है? क्या आपने सुना है कि राजकुमारी डायना फिर माँ वननेवाली हैं?
उस दिन तीसरे पहर जब सोफी की माँ घर लौटी तो सोफी किसी गहरे मानसिक आघात की स्थिति में थी। उसने रहस्यमय दार्शनिक के पत्रों वाला डिब्बा गुप्त स्थान पर सुरक्षित छिपा दिया था। सोफी ने अपना होमवर्क शुरू करने की कोशिश की किन्तु वह बैठी-बैठी केवल वही सोचती रही कि उसने पढ़ा क्या था।
इतनी जोर से उसने पहले कभी नहीं सोचा था। अब वह बच्ची नहीं रह गई थी-किन्तु वह अभी इतनी बड़ी भी नहीं हुई थी। सोफी ने महसूस किया कि उसने खरगोश की आरामदेह फर के अन्दर जाना पहले ही शुरू कर दिया था, बिलकुल वही खरगोश जो विश्व की जादुई टोपी से बाहर निकाला गया था। किन्तु दार्शनिक ने उसे रोक दिया था। उसने-क्या यह कोई स्त्री थी-सोफी की गरदन को पीछे से पकड़ लिया था और उसे ऊपर उठाकर फर के छोर पर लाकर छोड़ दिया था जहाँ यह बच्ची के रूप में खेला करती थी। और वहाँ से एक बार वह फिर दुनिया देख रही थी मानो बिलकुल पहली बार देख रही हो।
इसमें कोई सन्देह नहीं कि दार्शनिक ने उसे बचा लिया था। अज्ञात पत्र लेखक ने उसे दैनिक जीवन की छोटी-छोटी निरर्थक हल्की-फुल्की बातों से बचा दिया था।
जब पाँच बजे मम्मी घर आई, तो सोफी ने उसे खींच कर लिविंग रूम की आरामकुर्सी में धकेल दिया।
'मम्मी, क्या तुम ऐसा नहीं सोचती कि जीवित होना कितना आश्चर्यजनक है!' उसने शुरुआत की।
सोफी की बात सुनकर माँ एकदम चौंक गई कि एकाएक उसने कोई उत्तर नहीं दिया। रोज जब वह घर आती थी तो सोफी प्रायः होमवर्क कर रही होती थी।
'हाँ मुझे भी कभी-कभी ऐसा लगता है।' माँ ने कहा।
'कभी-कभी? हाँ, किन्तु क्या तुम यह नहीं सोचती कि दुनिया का इस तरह बने रहना कितना अद्भुत है।'
'अच्छा, सोफी, इस तरह बोलना बन्द करो।'
'क्यों? शायद तुम यह सोचती हो कि दुनिया विलकुल सामान्य है?'
'क्यों, क्या यह नहीं है?'
सोफी ने महसूस किया कि दार्शनिक सही था। बड़े होने पर लोग यह मान लेते हैं कि दुनिया सदा से ऐसी ही थी और फिर अपने नीरस अस्तित्व के वशीकरण में ऐसे सो जाते हैं जैसे लोरी गाकर सुला दिए गए हों।
'तुम दुनिया की इतनी आदी हो गई हो कि अब तुम्हें कुछ भी आश्चर्य चकित नहीं करता।'
'तुम यह सब क्या बोल रही हो?'
'मैं कह रही हूँ कि तुम सब चीजों की बेहद आदी हो गई हो।' दूसरे शब्दों में 'एकदम मन्द ।'
'तुम्हारा मेरे साथ इस तरह बात करना मुझे पसन्द नहीं।'
'ठीक है। मैं इसे दूसरी तरह से कहती हूँ। तुमने अपने आपको उस सफेद खरगोश की फर में बहुत गहराई में लाकर रख दिया है, जिसे इस समय भी विश्व की जादुई टोपी से बाहर निकाला जा रहा है। और एक मिनट में तुम आलू उबलने रख दोगी उसके बाद तुम अखबार पढ़ोगी, और फिर आधे घंटे की नींद के बाद तुम टी.वी. पर खबरें देखने लगोगी।'
उसकी माँ के चेहरे पर चिन्ता का भाव उभर आया। वह वाकई रसोई में गई और आलू उबलने रख दिए। कुछ देर बाद वह लिविंग रूम में आ गई और इस बार माँ थी जिसने सोफी को आरामकुर्सी में धकेल दिया।
'देखो कुछ है जिसके बारे में मुझे तुमसे आवश्यक बात करनी है।' माँ ने शुरू किया। माँ की आवाज से सोफी समझ गई कि यह कोई गम्भीर मामला था।
'तुमने कोई नशीली दवा बगैरह तो नहीं ली है, ली है बेटी ?'
सोफी का मन हँसने को हुआ किन्तु फिर वह समझ गई कि इस समय यह सवाल क्यों उठाया जा रहा था।
'तुम्हारा दिमाग फिर गया है क्या?' सोफी ने कहा। 'नशीली दवा तो तुम्हें और भी मन्द कर देती है।'
इसके बाद उस शाम नशीली दवाओं या सफेद खरगोशों की कोई चर्चा नहीं हुई।