एथेंस
भग्नावशेषों में से कई ऊँची इमारतें खड़ी हो गई हैं...
उस दिन शाम से जरा पहले सोफी की माँ अपने एक मित्र के घर मिलने गई। जैसे ही वह घर से बाहर गई सोफी अपने कमरे से नीचे आई और बाग में अपने अड्डे पर चली गई। वहाँ उसे बड़े कुकी टिन के बराबर में एक मोटा पैकेट मिला। सोफी ने इसे फाड़ा और खोल लिया। यह एक वीडियो कैसेट था।
वह वापस घर की ओर दौड़ गई। एक वीडियो टेप। दार्शनिक को यह कैसे पता लगा कि उनके पास वी.सी.आर. (वीडियो कैसेट रिकॉर्डर) है। और कैसेट में था क्या?
सोफी ने कैसेट को रिकॉर्डर में रख दिया। टी.वी. के परदे पर एक फैला हुआ शहर दिखाई दिया। जैसे ही कैमरा ऐक्रोपॉलिस पर जूम किया सोफी ने पहचान लिया कि शहर एथेंस होना चाहिए। उसने प्राचीन भग्नावशेषों की तसवीरें देखी थीं।
यह एक सजीव चित्र खींचा गया था। गरमी के कपड़ों में सैलानी, कन्धे से कैमरे लटकाए हुए भग्नावशेषों की ओर बड़ी संख्या में आ रहे थे। उनमें से एक ऐसा लगा मानो वह एक नोटिस बोर्ड लिये हुए हो। यह फिर दुबारा दिखा। क्या नोटिस बोर्ड यह नहीं कह रहा था-'हिल्डे'?
एक या दो मिनट बाद एक अधेड़ आयु के व्यक्ति को नजदीक से दिखलाया गया था। वह कद में छोटा था, ढंग से कटी हुई उसकी काली दाढ़ी थी, और वह नीली टोपी पहने हुए था। उसने कैमरे में अन्दर देखते हुए कहा 'एथेंस में आपका स्वागत है, सोफी। जैसा तुमने सम्भवतः अनुमान लगाया होगा, मैं ऐल्बर्टो नॉक्स हूँ। यदि नहीं, तो मैं दुहराए देता हूँ कि एक बड़ा खरगोश विश्व की जादुई टोपी से अभी भी बाहर निकाला जा रहा है।
'हम ऐक्रोपॉलिस पर खड़े हैं। इस शब्द का अर्थ है 'सिटाडेल'-या और भी सटीक, 'पहाड़ी पर शहर'। लोग यहाँ पाषाण युग से रहते रहे हैं। स्वाभाविक है, इसका मुख्य कारण वह स्थान है जहाँ यह बसा है। पठार उठा हुआ होने के कारण आक्रमणकारियों से रक्षा करना आसान था। ऐक्रोपॉलिस से नीचे देखने पर भूमध्य सागर के श्रेष्ठतम बन्दरगाह का बेहतरीन नजारा नजर आता था। जैसे ही शुरुआती एथेंस पठार के नीचे
समतल मैदान में विकसित होने लगा, तैसे ही ऐक्रोपॉलिस का उपयोग एक छोटे किले और पवित्र मन्दिर के रूप में किया जाने लगा... पाँचवीं शताब्दी ई.पू. के पहले अर्धभाग में फारसियों के साथ एक भयंकर युद्ध हुआ था और 480 में फारस के राजा जरजेज ने एथेंस को लूटा और ऐक्रोपॉलिस की सारी लकड़ी की बनी बिल्डिंगों को जला दिया। एक वर्ष बाद फारसियों को हरा दिया गया और वहाँ से एथेंस के स्वर्ण युग की शुरुआत होती है। ऐक्रोपॉलिस को दुबारा बनाया गया-इस बार और भी भव्य, अभिमानी शानोशौकत से और अब यह शुद्धतः एक पवित्र मन्दिर की तरह उभरा।
'यही वह समय था जब सुकरात गलियों, सड़कों और चौराहों से होता हुआ एथेंसवासियों से बात करता निकलता था। इस प्रकार उसने ऐक्रोपॉलिस के पुनर्जन्म को देखा होगा और इन सभी शानदार भवनों को, जिन्हें हम अपने चारों ओर देखते हैं, बनते हुए देखा होगा। और यह भवन-स्थल क्या दृश्य रहा होगा। मेरे पीछे तुम देख सकती हो सबसे बड़ा मन्दिर, पार्थे नॉन जिसका अर्थ है 'कुमारी का स्थान'। यह एथेने के सम्मान में बनाया गया था, जो एथेंसवासियों की संरक्षिका देवी थी। बड़े स्फटिक ढाँचे में एक भी सीधी रेखा नहीं है; सारी चारों साइडें थोड़ा घुमाव देकर बनाई गई हैं जिससे कि सारा भवन थोड़ा हलका लगे। अपने अत्यन्त विशाल आयामों के बावजूद यह हलके होने का प्रभाव छोड़ता है। दूसरे शब्दों में यह एक दृष्टि-भ्रम प्रस्तुत करता है। स्तम्भ थोड़े अन्दर की ओर झुके हुए हैं और यदि उन्हें मन्दिर के ऊपर की ओर इशारा करने दिया जाए तो वे 1500 मीटर ऊँचा पिरामिड बना देंगे। मन्दिर में एथेने की 12 मीटर ऊँची प्रतिमा के अतिरिक्त और कुछ नहीं है। श्वेत स्फटिक, जो उन दिनों चटकते रंगों में पेंट किया जाता था, यहाँ से से 16 किलोमीटर दूर एक पर्वत से यहाँ लाया गया था।'
सोफी दिल थामकर बैठी रही और देखती रही। क्या वास्तव में यह ही दार्शनिक था जो उससे बात कर रहा था? उसने उसकी रेखाकृति ही केवल एक बार देखी थी और उस समय भी अँधेरे में ही। क्या यह वही आदमी था जो अब, यानी इस समय, एथेंस में ऐक्रोपॉलिस पर खड़ा था।
वह मन्दिर की लम्बाई के रुख चलने लगा और कैमरा उसके पीछे-पीछे चल रहा था। वह चलता-चलता टैरेस के किनारे तक पहुँचा और उसने चारों ओर फैले भूदृश्य की ओर इशारा किया। कैमरे ने अपना फोकस एक पुराने थिएटर पर किया, जो ऐक्रोपॉलिस के पठार के ठीक नीचे था।
'यहाँ तुम पुराना डायोनीसस थिएटर देख सकती हो,' नीली टोपी पहने आदमी बोलता गया। 'ये यूरोप में सबसे पुराने थिएटरों में से है। सुकरात के समय में इसी स्थान पर एस्काइलस, सोफोक्लीज और यूरीपिडीज की महान दुखान्तिकाओं का मंचन होता था। मैंने पहले एक अभागे राजा ऐडीपस के विषय में बतलाया था। उसके विषय में सोफोक्लीज द्वारा लिखित दुखान्तिका का पहला मंचन यहीं हुआ था। किन्तु वे यहाँ
सुखान्तिकाओं का मंचन भी करते थे। सुखान्तिकाओं का सर्वाधिक ख्यात लेखक ऐरिस्टोफेन्स था, जिसने एक घृणापूर्ण सुखान्तिका सुकरात पर भी बनाई थी जिसमें उसने सुकरात को एथेंस का मूर्ख जोकर दिखाया था। इसके ठीक पीछे तुम एक पत्थर की दीवार देख सकती हो जिसका प्रयोग अभिनेता पृष्ठभूमि की तरह करते थे। इसे 'स्कीन' 'Skene' कहते हैं और यही हमारे 'सीन' 'Scene' शब्द का मूल है। चलते-चलते, मैं यह और बतला दूँ कि शब्द 'थिएटर' 'Theater' एक पुराने यूनानी शब्द से आता है जिसका अर्थ है 'देखना' 'To see' । किन्तु हमें वापस दार्शनिकों की ओर मुड़ना चाहिए, सोफी! हम पार्थेनॉन के चारों तरफ घूमते हुए नीचे गेटवे से होकर गुजर रहे हैं...।'
छोटा आदमी मन्दिर के चारों ओर घूमकर फिर अपने दाईं ओर के छोटे मन्दिरों के पास से गुजरा। फिर उसने ऊँचे-ऊँचे विशाल स्तम्भों के बीच कुछ पैड़ियों से नीचे उतरना शुरू किया। जब वह ऐक्रोपॉलिस के बिलकुल नीचे पहुँच गया तो वह एक छोटी पहाड़ी पर चढ़ा और उसने एथेंस की ओर इशारा किया 'जिस पहाड़ी पर हम खड़े हैं वह एरिआ पेगोस कहलाती है। यही वह स्थान था जहाँ से एथेंस का उच्च न्यायालय हत्या के मुकदमों में अपने फैसले सुनाता था। कई सौ वर्षों बाद, सेंट पाल, देवदूत, यहाँ खड़ा हुआ था और एथेंसवासियों को यीशु तथा ईसाई धर्म का उपदेश किया था। उसने क्या कहा था, इस पर हम बाद में आएँगे। बाईं ओर नीचे तुम एथेंस के पुराने नगर चौराहे, अगोरा के शेषांश देख सकती हो। हेफेस्टॉस, लुहारों और धातुकारों के देवता के बड़े मन्दिर के अपवाद के साथ ही साथ स्फटिक के कुछ ब्लॉक्स भी अभी तक सँजोकर रखे गए हैं। आइए और नीचे चलते हैं...'
अगले ही क्षण वह प्राचीन भग्नावशेषों के बीच प्रकट हुआ। बहुत ऊपर, आकाश के नीचे-सोफी के स्क्रीन के बिलकुल ऊपर-ऐक्रोपॉलिस पर बना विशाल एथेने मन्दिर टॉवर सरीखा ऊपर की ओर जाता प्रतीत होता था। दर्शनशास्त्र का रहस्यमय अध्यापक स्फटिक के एक ब्लॉक पर बैठ गया। उसने कैमरे में देखा और कहा 'हम एथेंस के पुराने अगोरा में बैठे हैं। एक अफसोसनाक नजारा, क्या तुम्हें ऐसा नहीं लगता? मेरा मतलब है, आज ! किन्तु एक समय था जब इसके चारों ओर होते थे भव्य मन्दिर, न्यायालय, अदालतें और दूसरे सार्वजनिक दफ्तर, दुकानें, संगीतगृह, और एक बड़ा जिम्नेजियम भवन। यह सब इस चौराहे के चारों ओर स्थित थे, चौराहा उस समय एक बड़ा, खुला स्थान था... सारी यूरोपीय सभ्यता की नींव इस छोटे से स्थान पर रखी गई थी।
'शब्द जैसे राजनीति और प्रजातन्त्र, अर्थव्यवस्था और इतिहास, जीव-विज्ञान एवं भौतिकशास्त्र, गणित और तर्क, धर्मशास्त्र और दर्शनशास्त्र, नैतिकता और मनोविज्ञान, सिद्धान्त और पद्धति, विचार और प्रणाली-इन सबका उद्भव उस छोटी-सी जनसंख्या के उस समय में हुआ जिसका रोजमर्रा जीवन इस चौराहे के चारों ओर घूमता था। यही वह जगह है जहाँ लोगों से मिलने में सुकरात ने अपना इतना सारा समय लगाया। यहाँ उसने जैतून के तेल का एक जार ले जाते हुए एक गुलाम का गिरहबान पकड़ लिया होगा और उस बदनसीब आदमी से दर्शनशास्त्र का एक सवाल किया होगा, क्योंकि सुकरात यह मानता था कि एक गुलाम में भी ऊँचे स्तर के आदमी के समान ही कॉमनसेंस होती है। हो सकता है वह यहाँ के किसी नागरिक के साथ बड़ी गरमागरम बहस में उलझा हो-या अपने युवा शिष्य अफलातून के साथ सभ्य चर्चा में व्यस्त रहा हो। इस सबके विषय में सोचना असाधारण है। हम सभी सुकराती या अफलातूनी दर्शनशास्त्र की बात करते हैं किन्तु वास्तव में अफलातून या सुकरात होना एक बिलकुल ही अलग मामला है।'
सोफी निश्चय ही यह मानती थी कि ऐसे सोचना वास्तव में असाधारण है। किन्तु वह इस सबको, इस तरीके को भी उतना ही असाधारण मान रही थी कि उसका दार्शनिक अचानक एक वीडियो पर उससे बात कर रहा था, वीडियो जिसे बाग में उसके छिपने के अड्डे पर एक रहस्यमय कुत्ता लाया था।
दार्शनिक उस स्फटिक के ब्लॉक से उठा जिस पर वह बैठा था और धीरे से बोला :
'मेरा इरादा वास्तव में इसे वहीं छोड़ देने का था, सोफी! मैं चाहता था कि तुम ऐक्रोपॉलिस देखो और एथेंस में पुराने अगोरा के शेषांश देखो। किन्तु मैं निश्चितता से यह नहीं कह सकता कि तुम यह पकड़ पाई हो कि यहाँ की यह सब चीजें एक समय कितनी शानदार रही होंगी...इसलिए मुझे थोड़ा और आगे जाने का लालच हो रहा है। निश्चय ही यह थोड़ा-सा गलत है... किन्तु मैं इस बात पर भरोसा कर सकता हूँ कि यह बात तुम्हारे और मेरे बीच तक ही रहेगी। ठीक है, एक हलकी सी झलक ही काफी होगी...'
वह और कुछ नहीं बोला, किन्तु वहाँ काफी देर तक खड़ा रहा और ध्यानपूर्वक कैमरे में देखता रहा। जब वह वहाँ खड़ा था, तो कई ऊँची इमारतें भग्नावशेषों के ऊपर उभरीं। लगता था जैसे जादू हो, सारे पुराने भवन वहाँ एक बार फिर आ खड़े हो गए थे। आकाशीय रेखा के ऊपर सोफी अभी भी ऐक्रोपॉलिस देख सकती थी, किन्तु अब वह और नीचे चौराहे पर सारे भवन बिलकुल एकदम नए लग रहे थे। वे सोने से ढके और तेज चमचमाते रंगों में पेंट किए गए थे। खुशनुमा कपड़े पहने लोग चौराहे पर आराम से चहल-कदमी कर रहे थे। कोई तलवार लिये चल रहा था, कोई अपने सर पर मर्तबान रखे जा रहा था, और उनमें से एक की बगल में पैपीरस (पुराने कागज) का एक पुलिन्दा था।
तव सोफी ने अपने दर्शनशास्त्र के अध्यापक को पहचान लिया। वह अभी भी नीली टोपी पहने हुआ था, किन्तु अब उसने उसी तरह का पीला अँगरखा, उसी स्टाइल में पहन रखा था जैसे और दूसरों ने पहन रखा था। वह सोफी की तरफ बढ़ा, कैमरे में देखा और कहा :
'यह बढ़िया है, अब हम प्राचीन काल के एथेंस में हैं, सोफी! मैं चाहता था कि तुम स्वयं यहाँ आतीं, समझी न! हम 402 ई.पू. वर्ष में हैं, सुकरात के मरने से बस तीन साल पहले। मुझे आशा है तुम्हें मेरा यह विशिष्ट भ्रमण पसन्द आया होगा, क्योंकि वीडियो कैमरा किराए पर लेना बड़ा कठिन था...।'
सोफी को तो जैसे चक्कर आने लगे। यह अजीब आदमी अचानक आज से 2400 वर्ष पहले के एथेंस में कैसे पहुँच गया? उस जमाने में तो वीडियो होते नहीं थे... तो क्या यह एक मूवी थी?
किन्तु सारे स्फटिक भवन तो बिलकुल सच्चे लगते थे। यदि उन्होंने एक फिल्म के लिए ही एथेंस के सारे पुराने चौराहे और ऐक्रोपॉलिस को दुबारा बनाया तो भी यह सेट बनाने में दुनिया भर का पैसा लगा होगा। खैर, जो भी हो, सोफी को एथेंस के विषय में पढ़ाने के लिए यह एक बहुत ही बड़ी रकम है।
नीली टोपी पहने आदमी ने फिर एक बार सोफी की ओर देखा ।
'क्या तुम उन दो आदमियों को देख रही हो जो वहाँ खम्भों के बीच खड़े हैं?'
सोफी ने एक गुचला-मुचला अँगरखा पहने एक अच्छी उम्रवाले आदमी को देखा। उसकी उलझी-पुलझी दाढ़ी थी, दबी हुई नाक, बाहर निकली हुई आँखें और सुन्दर गोल गाल। उसके बराबर में एक सुन्दर नौजवान खड़ा था।
'ये सुकरात है, और उसका युवा शिष्य अफलातून। तुम स्वयं उनसे मिलने जा रही हो।'
दार्शनिक चलकर उन दो आदमियों तक पहुँचा, अपनी टोपी उतारी, और कुछ कहा जिसे सोफी समझ नहीं पाई। यह यूनानी भाषा में हो सकता है। फिर उसने कैमरे में देखा और कहा, 'मैंने उनसे कहा है कि तुम नॉर्वे की एक लड़की हो, जो उनसे मिलने की बहुत इच्छुक है। अब अफलातून तुम्हारे विचारने के लिए तुम्हें कुछ प्रश्न देगा। किन्तु हमें यह काम जल्दी निबटा लेना चाहिए, इसके पहले कि पहरेदारों को हमारा पता चल जाए।'
जैसे ही उस नौजवान ने आगे पैर बढ़ाया और कैमरे में देखा, सोफी को लगा कि खून बड़ी तेजी से उसकी कनपटियों में चोट मार रहा है।
'एथेंस में तुम्हारा स्वागत है, सोफी,' उसने एक मृदुल स्वर में कहा। वह एक एक्सेंट में बोल रहा था। 'मेरा नाम अफलातून है और मैं तुम्हें चार काम बतलाता हूँ। सबसे पहले तुम्हें यह सोचना है कि बिलकुल एक जैसी बीस कुकी एक बेकर कैसे बना सकता है। फिर तुम पूछ सकती हो स्वयं अपने से कि सारे घोड़े एक जैसे क्यों हैं? इसके बाद तुम्हें यह फैसला करना है कि क्या एक आदमी में अमर आत्मा होती है। और अन्त में तुम्हें यह बताना है कि क्या स्त्री और पुरुष समान रूप से समझदार होते हैं। ईश्वर तुम्हें सौभाग्यवान बनाएँ।'
उसके बाद टी.वी. पर तसवीर गायब हो गई। सोफी ने टेप को वापस आगे और पीछे घुमाया किन्तु उसमें जो कुछ था वह उसे देख चुकी थी।
सोफी ने इन मसलों पर अच्छी और पूरी तरह से सोचने का प्रयास किया। किन्तु जैसे ही उसने एक विचार को सोचा कि तुरन्त दूसरा उसके दिमाग में, पहले को पूरी तरह सोच लेने से पहले, चला आया और दिमाग में भीड़ कर दी।
उसने शुरू में ही यह जान लिया था कि उसका दर्शनशास्त्र का अध्यापक सनकी था। किन्तु जब उसने पढ़ाने के ऐसे तरीके प्रयोग करने शुरू कर दिए, जो प्रकृति के सारे नियमों की अवहेलना करते थे, तो सोफी का विचार बना कि वह कुछ अधिक ही आगे जा रहा है।
क्या उसने वास्तव में टी.वी. पर सुकरात और अफलातून को देखा था? निश्चय ही नहीं, वह असम्भव था। किन्तु यह निश्चय ही कार्टून नहीं था।
सोफी ने वीडियो रिकॉर्डर से कैसेट निकाला और ऊपर अपने कमरे में दौड़ गई।
उसने इसे अलमारी पर सबसे ऊपर लेगो ब्लॉक्स के पास ही रख दिया। फिर वह बिस्तर में लुढ़क गई, थक कर चूर और सो गई।
कुछ घंटों बाद उसकी माँ कमरे में आई। उसने धीरे से सोफी को हिलाया और कहा, 'क्या बात है, सोफी?'
'मम्मम्'
'तुम सारे कपड़े पहने हुए ही सो गईं।'
सोफी ने नींद में ही पलक खोली और डाँपा ली।
'मैं एथेंस होकर आई हूँ' वह बुदबुदाई। बस वह इतना ही कह पाई, उसने करवट ली और फिर सो गई।