फार्महाउस की शांति कुछ अलग ही थी। शहर की भागदौड़, बंद कमरों की घुटन और मशीनों की आवाज़ों से दूर… यहाँ हर सांस में सुकून था, और शायद यही सुकून Ms. Rosy के लिए ज़रूरी था। चारों ओर हरियाली, खिड़कियों से आती ताजी हवा और आसमान से छन कर आती हल्की धूप—सब कुछ जैसे किसी पुराने ज़ख्म पर मरहम की तरह था।
Ms. Rosy अब आरामदायक कुर्सी पर बैठी थीं, सफेद रेशमी शॉल में लिपटी हुईं, आँखें हल्की-सी बंद… चेहरा शांत पर थका हुआ। जॉन उनके पास बैठा था, उन्हें हल्का-हल्का पानी पिला रहा था। पास ही खड़ी थी नर्स, हर पल निगरानी में।
तभी दरवाज़े की घंटी बजी।
रणविजय अपने कमरे से निकलकर बाहर आया बालकनी में।
जॉन ने उठकर दरवाज़ा खोला। सामने मीरा खड़ी थी अपने भाई शिवा के साथ।
सादा सूट, बंधे हुए बाल, और चेहरे पर थकावट के बावजूद एक अलग-सी चमक थी। वो आई तो थी सिर्फ Ms. Rosy के लिए… लेकिन उस माहौल में कदम रखते ही उसे एक अजीब सी बेचैनी ने घेर लिया।
"आइए मीरा ," जॉन ने एक सौम्य मुस्कान के साथ कहा।
मीरा ने धीमे से सिर हिलाया और अंदर चली आई। उसके हाथ में एक छोटा बैग था—शायद कुछ दिनों के लिए ज़रूरी सामान।
Ms. Rosy ने जैसे ही उसकी आहट सुनी, उन्होंने धीरे से आँखें खोलीं। उनकी नज़र मीरा पर पड़ी… और जैसे किसी बुझती रौशनी को फिर से जलने का बहाना मिल गया हो।
"मीरा..." वो बहुत हल्के से बोलीं, पर उस आवाज़ में कितनी सारी भावनाएं थीं।
मीरा झटपट उनके पास आई, और उनके पास ज़मीन पर बैठ गई। उसने उनका हाथ थाम लिया।
"Ms. Rosy... आप कैसी हैं?" उसकी आँखें नम थीं।
"अब... बहुत बेहतर..." उन्होंने उसकी हथेली पर हाथ फेरते हुए कहा। "तुम आ गई ना, अब सब ठीक लग रहा है।"
मीरा को समझ नहीं आ रहा था कि वो क्या बोले। उसने बस उनकी गोद में अपना सिर रख दिया।
Ms. Rosy की उंगलियाँ मीरा के बालों में चलने लगीं... जैसे कोई माँ अपने बच्चे को बहला रही हो। उनके होंठों पर शांति थी, और आँखों से बहता एक शांत आँसू… शायद राहत का।
इस दृश्य को कोई और भी देख रहा था। ऊपर की बालकनी से, पर्दे की ओट में खड़ा रणविजय सब देख रहा था।
वो बिना आवाज़ किए देख रहा था… बस देख रहा था।
उसकी आँखें गीली थीं, पर चेहरा शांत था। मीरा को यूँ Ms. Rosy के पास देखना... मानो उसकी अधूरी दुनिया का एक टुकड़ा फिर से जुड़ गया हो। वो जानता था, मीरा उससे नफ़रत करती है, लेकिन Ms. Rosy के लिए वो आई है, यही बहुत था।
उसने खुद को पीछे लिया, पर्दे के पीछे छिप गया… पर दिल वहीं रुक गया था, मीरा के पास।
नीचे, Ms. Rosy बोल रही थीं, "तुम जानती हो ना मीरा, तुम मेरी बेटी जैसी हो... और बाबा..."
मीरा ने धीमे से सिर झुकाया। "मैं जानती हूँ Ms. Rosy… और आप मेरी माँ जैसी हैं।"
इस बार दोनों ने एक-दूसरे का हाथ और कस कर पकड़ लिया।
मीरा को ये नहीं पता था कि ऊपर कोई खड़ा है, जो उनकी ये मुलाकात देख रहा है। और शायद ये जानकर उसका दिल चुपचाप राहत की साँस ले रहा है।