Mera Rakshak - 20 in Hindi Fiction Stories by ekshayra books and stories PDF | मेरा रक्षक - भाग 20

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मेरा रक्षक - भाग 20

जॉन ने रणविजय की ओर देखा, उसकी आंखों में कुछ सवाल थे, पर चेहरे पर वही वफादार चिंता। वो जानता था कि वक्त कम है और फैसले तेज़ लेने होंगे। उसने फौरन अपना फोन निकाला और मीरा का नंबर डायल किया।

"हैलो मीरा, मैं जॉन बोल रहा हूँ..."

फोन की दूसरी ओर कुछ सेकंड की खामोशी रही, फिर मीरा ने बिना एक शब्द कहे फोन काट दिया।

रणविजय वहीं पास खड़ा था। उसने सब कुछ देखा। वो जानता था मीरा अब उससे नफरत करती है, और इसलिए उससे जुड़े किसी भी इंसान से बात करना भी नहीं चाहती। जॉन ने फिर कोशिश की।

इस बार उसने जल्दी-जल्दी, एक ही सांस में बोल दिया, "मीरा... मिस रोज़ी बहुत बीमार हैं..."

फोन की लाइन इस बार कटी नहीं। मीरा कुछ पल चुप रही, फिर धीमे से बोली, "क्या हुआ उन्हें?"

मीरा की आवाज़ सुनते ही रणविजय के दिल में कुछ पिघलने लगा। जिस आग में वो पिछले कुछ हफ्तों से जल रहा था, वो अचानक से ठंडी पड़ने लगी।

जॉन ने फौरन कहा, "डॉक्टर ने कहा है कि अब ज्यादा समय नहीं है। और... और मिस रोज़ी आपसे मिलना चाहती हैं... आखिरी बार।"

फोन के उस पार फिर से खामोशी छा गई।

रणविजय की धड़कनें तेज़ हो गईं। वो चाहता था कि मीरा बोले... कुछ भी बोले... सिर्फ ये न कहे कि वो नहीं आ सकती।

कुछ देर बाद मीरा की आवाज़ आई, "मैं घर आ रही हूँ, मिस रोज़ी से मिलने।"

रणविजय ने पास रखी टेबल के कोने को कस कर पकड़ लिया। उसके हाथ कांपने लगे थे। सांसें जैसे थम सी गई थीं। मीरा आने वाली थी...

पर तभी जॉन ने जल्दी से कहा, "नहीं, घर नहीं। हम मिस रोज़ी को लेकर फार्महाउस जा रहे हैं।

वहां की खुली और ताज़ी हवा में कुछ दिन रहेंगी वो। शहर के शोर और खतरे से दूर। आपको लेने रॉकी आ रहा है कुछ देर में।

आप प्लीज़ अपना सामान पैक कर लीजिए। पता नहीं कितने दिन लगेंगे।"

मीरा ने कुछ नहीं कहा, बस चुपचाप फोन काट दिया।

जॉन ने चैन की सांस ली। वो जानता था कि ये आसान नहीं था। मीरा की आंखों में दर्द था, पर उसके दिल में अब भी मिस रोज़ी के लिए ममता बाकी थी।

जॉन ने फौरन रॉकी को फोन किया, "तुम अभी मीरा को लेने निकलो। उन्हें सीधे फार्महाउस लेकर आना है। कोई भी सवाल ना करना और रास्ते में किसी को शक ना हो।"

उधर, रणविजय धीरे-धीरे अपने कमरे की ओर चला गया। उसकी चाल भारी थी, जैसे हर कदम पर कोई बोझ था। उसने खुद को शीशे में देखा। चेहरे पर थकान, आंखों के नीचे गहरे साए और दिल में मीरा की हल्की सी उम्मीद की चिंगारी।

फार्महाउस की तैयारियां शुरू हो चुकी थीं।

रणविजय ने खुद मिस रोज़ी को कार में बैठाया, जॉन उनके पास बैठा। साथ में दो सुरक्षा गार्ड और एक नर्स भी थीं। रास्ता लंबा था लेकिन जरूरी। इस वक्त शहर से दूर ले जाना ही सही था, क्योंकि रणविजय नहीं चाहता था कि मीरा किसी खतरे में पड़े।

गाड़ी जैसे ही फार्महाउस की ओर बढ़ी, रणविजय ने खिड़की से बाहर देखा।

हर पेड़, हर इमारत, हर मोड़ उसे मीरा की याद दिला रहा था। वो सोच रहा था, क्या मीरा अब भी उसकी आंखों में वो प्यार देख पाएगी? या सिर्फ वो गुनाह जो उसने कभी किए थे?

जॉन उसकी बेचैनी समझ रहा था। उसने धीरे से कहा, "बॉस... मीरा आ जायेंगीं। लेकिन क्या आप खुद को संभाल पाएंगे जब वो आपके सामने होंगीं?"

रणविजय चुप रहा। उसके पास कोई जवाब नहीं था।

फार्महाउस दूर था, लेकिन वहां की हवा में उम्मीद बाकी थी। शायद, कुछ टूटे हुए रिश्तों की मरम्मत वहीं हो सके। शायद, कुछ अधूरी बातें वहां पूरी हो सकें। और शायद, रणविजय को एक और मौका मिल सके खुद को साबित करने का, और मीरा को वापस पाने का।