intekaam, bhag- 15 in Hindi Love Stories by Mamta Meena books and stories PDF | इंतेक़ाम - भाग 15

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इंतेक़ाम - भाग 15

तब रोमी और निशा की तू तू मैं मैं सुनकर निशा की सास भी कमरे से बाहर आ गई और निशा से गुस्से में बोली तुम्हारी इतनी हिम्मत जो मेरी बहू के सामने अपनी जवान चला रही हो तुम्हारी जबान खींच लूंगी,,,,,,

यह कहकर उसने निशा के बाल पकड़ लिए तब रोमी गुस्से में बोली इन्होंने मेरे ऊपर हाथ उठाया इसका बदला तो मैं लेकर रहूंगी,,,,,

यह कहकर जैसे ही उसने निशा के थप्पड़ देने के लिए अपना हाथ उठाया अचानक विजय ने आकर उसका हाथ पकड़ लिया और गुस्से में बोला क्या कर रही हो रोमी तुम निशा पर हाथ कैसे उठा सकती हो और मां तुमने निशा के बाल क्यों पकड़ रखे हैं छोड़ो उन्हें,,,, 

तब रोमी बोली डार्लिंग इसने मेरे ऊपर हाथ उठाया है मुझे तमाचा मारा है इसका बदला तो मैं लेकर रहूंगी,,,,,
यह कहकर वह फिर निशा को मारने के लिए आगे बढ़ी लेकिन विजय ने उसे पकड़ लिया,

तब विजय की मां बोली बेटा इसे डायन ने तो हमारा रहना मुश्किल कर दिया है और आज तो इसने रोमी पर भी हाथ उठा दिया अभी यह इस घर में नहीं रहेगी कहो बेटा इसे की है अब इस घर को छोड़कर चली जाए,,,,,,,

विजय कुछ बोलता उससे पहले ही निशा गुस्से में बोल उठी यह क्या बोलेगा मैं खुद ही अब इस घर में नहीं रहना चाहती, बहुत हुआ बहुत बर्दाश्त कर लिया मैंने मैंने अपने बच्चों के खातिर इस घर में रहना स्वीकार किया था, तुम सब के अत्याचार सहन किए तुम सब ने जैसा चाहा वैसा मेरे साथ व्यवहार किया लेकिन मैं चुप रही अपने बच्चों के खातिर लेकिन आज इस चुड़ैल ने मेरे बच्चों के ऊपर हाथ उठाने की कोशिश की है अब तो मैं ही इस घर में नहीं रहूंगी,,,,,,

निशा के सब्र का बांध अब टूट चुका था और अब उसके दिमाग में एक तूफान उठा रहा था,,,,

तब विजय बोला लेकिन निशा तुम,,,,

तब निशा गुस्से में बोली आप तो रहने दीजिए आप क्या बोलेंगे आप तो खुद ही अपनी नजरों में इतने गिरे हुए हैं कि आप चाहकर भी अपनी नजरों में नहीं उठ सकते, अरे शर्म आती है मुझे तुम्हें अपना पति कहते हुए कि तुम इतने नीच और घटिया इंसान हो जो सिर्फ रुपयों से प्यार करता है जिसने रुपयों के लिए अपने बीवी और बच्चों की तरफ एक बार भी नहीं देखा शर्म आती है कि मैंने तुम जैसे घटिया इंसान से प्यार किया था तुम्हारा तो जमीर ना जाने कब का मर चुका है मुझे तो कल अपने बच्चों को यह बताते हुए भी शर्म आएगी कि तुम जैसा नीच और घटिया इंसान उनका पिता है और तुम कुछ कहने का हक तो उसी वक्त  खो चुके थे जब तुमने मेरी मांग का सिंदूर किसी और की मांग में भरा था,,,,,,

निशा की बात सुनकर विजय ने कोई जवाब नहीं दिया लेकिन विजय की मां बोली खबरदार जो अब एक लफ्ज़ और निकाला तो मैं तुम्हारी जबान खींच लूंगी,,,,,

यह सुनकर निशा गुस्से में बोली आज तक आपने सिर्फ मेरी सहनशक्ति देखी है मेरा गुस्सा नहीं तुम सबको लगता है ना कि मैं तुम सबके चुपचाप अत्याचार बर्दाश्त करती रहूंगी और कुछ नहीं बोलूंगी तो मैंने चुपचाप तुम सब के अत्याचार बर्दाश्त किए लेकिन अब नहीं अब मैं अपने बच्चों के ऊपर किसी भी तरह का जुर्म बर्दाश्त नहीं करूंगी और हां क्या कहा आपने कि मेरी जबान खींच लोगी अगर हिम्मत है तो एक बार फिर मेरे ऊपर हाथ उठाकर बताओ आज मैं भूल जाऊंगी की तुम मेरी कौन लगती हो एक सास का हक तो तुम पहले ही खो चुकी हो आज तक मैं चुप रही तो सिर्फ अपने पापा द्वारा दिए गए संस्कारों की वजह से लेकिन अब नहीं अब मैं ईट का जवाब पत्थर से देना भी जानती हूं और हां तुम क्या इस घर से मुझे निकालोगि मैं खुद ही यह  घर छोड़ कर चली जाऊंगी निशा गुस्से में बोली,,,,,,