Mera rakshak - 14 in Hindi Fiction Stories by ekshayra books and stories PDF | मेरा रक्षक - भाग 14

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मेरा रक्षक - भाग 14

रणविजय कमरे से बाहर निकला ही था कि सामने जॉन उसे बेसब्री से इंतज़ार करता दिखा। उसकी आँखों में अजीब-सी बेचैनी थी।

"क्या हुआ, जॉन? क्या ज़रूरी बात है?" रणविजय ने सीधा सवाल किया।


जॉन कुछ पल खामोश रहा, मानो शब्द उसके गले में ही अटक गए हों।


रणविजय की आवाज़ थोड़ी सख्त हो गई, "मैं पूछ रहा हूँ जॉन, क्या हुआ?"


जॉन ने धीरे से कहा,  "Boss... वो वापस आ गया है।"


ये तीन शब्द सुनते ही रणविजय का चेहरा सफेद पड़ गया। उसे कुछ और कहने की ज़रूरत नहीं थी। वो समझ गया था किसकी बात हो रही है।


उसके दिमाग़ में पुराना अतीत, खोई हुई यादें, और सबसे बड़ा ज़ख्म घूमने लगा। उसकी साँसें तेज़ हो गईं, माथे पर पसीना छलक आया। उसके कदम लड़खड़ाने लगे थे कि जॉन ने तुरंत उसे थाम लिया।


"आप ठीक हैं बॉस?" जॉन ने चिंतित होकर पूछा।


रणविजय ने धीरे से सिर हिलाया, लेकिन उसकी आँखें अब भी उस पुराने दर्द में डूबी थीं।


जॉन उसे वापस उसके कमरे में ले गया। वहाँ थोड़ी देर दोनों खामोश बैठे रहे। फिर रणविजय ने थकी हुई आवाज़ में पूछा, "कब आया वो?"


"आज सुबह ही," जॉन ने जवाब दिया।


"क्या चाहता है अब?" रणविजय की आँखों में गुस्से और डर का अजीब सा मेल था।


"उसने खबर भिजवाई है," जॉन बोला, "जैसे पहले आपकी सबसे अनमोल चीज़ आपसे छीनी थी... वैसे ही अब फिर से कुछ लेने आया है।"


रणविजय ने आँखें बंद कर लीं। उसे समझ आ चुका था कि अगला निशाना कौन है।


वो उठा और library की ओर बढ़ गया, जहाँ उसकी टीम पहले से मौजूद थी। सबको एक इशारे में चुप करा कर उसने गंभीरता से कुछ आदेश दिए — "हमें तैयार रहना होगा। ये बार हल्की नहीं होगी।"



उधर मीरा अपने कमरे से नीचे उतरी। उसके चेहरे पर एक अलग ही सुकून था — वो सुबह कुछ खास थी उसके लिए। उसे लगा जैसे ज़िंदगी अब कुछ बेहतर हो रही है।



मिस रोज़ी ने उसे देखकर हल्के मज़ाक में कहा, "नींद तो अच्छी आई होगी मीरा, कल रात की हवा ही कुछ और थी ना?"


मीरा शर्मा गई और मुस्कुरा दी। फिर उसने पूछा, "रणविजय कहाँ हैं?"


"Library में हैं शायद," मिस रोज़ी ने कहा।


मीरा वहाँ जाने ही लगी थी, लेकिन उसे याद आया — रणविजय ने कहा था कि लाइब्रेरी में जाना मना है। इसलिए वो dining टेबल पर बैठ गई, इंतज़ार करते हुए।


कुछ ही देर में रणविजय library से बाहर आया। मीरा तुरंत उठी और उसके पास पहुँची।


"रणविजय... hospital चलें?" मीरा ने कोमलता से पूछा।


रणविजय ने एक नज़र मीरा पर डाली और बिना कुछ कहे आगे बढ़ गया।

मीरा फिर रणविजय के पास गई और बोली " शिवा का ऑपरेशन है, तुमने कहा था सुबह चलना, तो चले?"

 रणविजय ने बिना मीरा की ओर देखे बोला " रॉकी छोड़ आयेगा तुम्हें hospital."


मीरा को अजीब-सा लगा। वो फिर से उसके पीछे गई और बोली, "तुमने ही कहा था ना, तुम साथ चलोगे?"


रणविजय एकदम ठहर गया, फिर मीरा की ओर देखते हुए गुस्से में बोला, "तुम्हें दिख नहीं रहा मीरा, मैं कितना बिज़ी हूँ? Rocky तुम्हें छोड़ आएगा।"


मीरा कुछ कहने ही वाली थी कि रणविजय ने तीखे लहजे में कहा,
"और सुनो, जब शिवा ठीक हो जाए तो hospital से सीधे अपने घर चली जाना।"


मीरा की आँखों में आँसू तैरने लगे थे, लेकिन रणविजय नहीं रुका। उसने मीरा के पास आकर serious होकर कहा

"मीरा… आज के बाद न मैं तुम्हें जानता हूँ और न तुम मुझे। ये हमारी आख़िरी मुलाक़ात थी। मुझसे दूर रहो मीरा… जितना दूर हो सको।"


मीरा वहीं जड़ हो गई। उसकी आँखों से आँसू चुपचाप बहते रहे। दिल की आवाज़ चीख रही थी, पर जुबान खामोश थी। वो कुछ भी समझ नहीं पा रही थी।


जिस इंसान ने उसे सुकून दिया था, उसी ने उसे पल में तोड़ भी दिया....