Suhaagraat Mananewali Chudel - 2 in Hindi Horror Stories by ABHISHEK books and stories PDF | सुहागरात मनाने वाली चुड़ैल - 2

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सुहागरात मनाने वाली चुड़ैल - 2

अब आकाश ने सोने की कोशिश की। उसने धीरे-धीरे अपनी आँखें बंद कर लीं और खुद को चादर में लपेट लिया। कमरा पूरी तरह शांत था — केवल पंखे की धीमी आवाज़ और दीवार घड़ी की टिक-टिक उस गहराती रात में मौजूदगी का एहसास दिला रही थीं।

लेकिन तभी…

उसे अचानक महसूस हुआ कि उसके बगल में कोई आकर लेट गया है।

उसके शरीर में एक सिहरन सी दौड़ गई। डर की एक लहर पूरे बदन में फैल गई। उसने हिम्मत करके आँखें खोलने की कोशिश की, लेकिन डर ऐसा कि जैसे पलकों पर किसी ने ताले जड़ दिए हों। उसने खुद को चादर में और कसकर लपेट लिया — जैसे वो चादर किसी अनदेखी बला से सुरक्षा दे रही हो।

कुछ पल बीते...

उसे चादर में हल्का सा खिंचाव महसूस हुआ। जैसे किसी ने उसे धीरे-धीरे अपनी ओर खींचना शुरू कर दिया हो। आकाश का दिल ज़ोरों से धड़कने लगा। उसने झटके से चादर ऊपर खींच ली। चादर फिर से अपनी जगह आ गई, लेकिन डर की लहर अभी भी उसकी नसों में दौड़ रही थी।

उसने मन ही मन सोचा — नीलिमा को जगा दूं? लेकिन फिर डर के मारे रुक गया — अगर उसने भी यही महसूस किया तो? अगर वो भी डर गई तो?

उसने तय किया कि किसी को कुछ नहीं बताएगा।

वो खुद को बार-बार समझाने लगा कि ये सब उसका भ्रम है, शायद थकान की वजह से। लेकिन तभी…

उसकी पीठ पर हल्की सी खुजली हुई। जैसे ही उसने हाथ बढ़ाया, उसे साफ़ महसूस हुआ — वहाँ पहले से किसी और का हाथ था… और वो उसी की पीठ खुजला रहा था।

आकाश का पूरा शरीर पसीने से भीग गया। साँसें तेज़ हो गईं, मगर उसने खुद से कहा — "अगर मैं डर गया, तो वही शक्ति मुझे और डरा देगी… नहीं, मैं नहीं डरूंगा।"

उसने हिम्मत दिखाई और आँखें बंद कर लीं।

लेकिन रात अभी बाकी थी…

कुछ देर तक सब शांत रहा। फिर अचानक कमरे का तापमान गिरने लगा। गर्मियों की रात में ठंडी हवा का झोंका — बिना किसी खुले दरवाज़े या खिड़की के — उसके चेहरे से टकराया। वो कांप गया। आँखें खोलीं, पर सामने कुछ नहीं था।

धीरे-धीरे उसकी नजर दीवार की ओर गई… वहाँ घड़ी अब नहीं चल रही थी।

टिक-टिक की आवाज़ बंद हो चुकी थी।

आकाश उठा, बैठा, और देखा — घड़ी की सुइयाँ 3:00 AM पर अटकी थीं।

"मुहूर्त की घड़ी…" उसने सुना था, रात का वो समय जब आत्माएं सबसे ज़्यादा सक्रिय होती हैं।

उसके भीतर डर का तूफ़ान मच गया, लेकिन वो फिर भी खुद को संभाल रहा था।

वो वापस लेटा ही था कि अचानक बगल से एक फुसफुसाहट आई — "तुमने बहुत देर कर दी आने में… अब मुझे जाना नहीं है…"

ये आवाज़ न तो नीलिमा की थी, न किसी और की जिसे वो जानता हो।

आकाश का गला सूख गया। अब वो सिर्फ सोने का नाटक नहीं कर सकता था। उसने एक गहरी साँस ली और आँखें खोल दीं — लेकिन वहाँ कोई नहीं था। बगल में कोई नहीं था। फिर वो हाथ? फिर वो आवाज़?

वो सोच में डूब गया। तभी कमरे के एक कोने से खिलखिलाने की आवाज़ आई… एक औरत की… बेहद धीमी… और दर्द से भरी।

अब आकाश का डर गुस्से में बदलने लगा। उसने खुद को कहा — "अब और नहीं। जो भी है, सामने आ।"

वो उठकर कमरे में घूमने लगा। हर कोने को देखा, हर दराज़, हर अलमारी खोली। लेकिन कुछ भी नहीं।

वो फिर से अपने बिस्तर पर आया, बत्ती जलाई — और बिस्तर की चादर पर उकेरे गए गहरे निशान देखे… जैसे किसी ने अपने नाखूनों से खरोंच दिए हों।

अब सवाल ये था — क्या ये सब वाकई हो रहा था, या फिर आकाश की कल्पना थी?

लेकिन एक बात तो तय थी — जिस रात वो डर पर काबू पा गया, वही रात उसके लिए एक नए रहस्य का दरवाज़ा खोल गई।

और ये तो सिर्फ़ शुरुआत थी…


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