अब इधर नीलिमा की आँखें खुलीं। उसे ऐसा महसूस हुआ जैसे किसी ने उसके पैर पर हल्की गुदगुदी की हो। शायद इसी वजह से उसकी नींद टूट गई थी।
थोड़ी ही देर बाद, उसे किसी के चलने की आहट सुनाई दी। वो आवाज पहले धीमी थी, फिर धीरे-धीरे तेज होती गई। नीलिमा का दिल जोर-जोर से धड़कने लगा। उसने हिम्मत जुटाई और धीरे से आकाश को आवाज दी, "आकाश..." लेकिन आकाश इतनी गहरी नींद में था कि उसे कुछ सुनाई ही नहीं दिया।
नीलिमा ने अपने डर को काबू किया और धीरे से दूसरी ओर देखने लगी। उसकी नज़र दरवाज़े की ओर गई—वहाँ कोई खड़ा था।
उसने काँपती आवाज में पूछा, “कौन है?”
उधर से जवाब आया, “अरे नीलिमा, मैं आकाश हूँ।”
नीलिमा ने पहले तो ध्यान नहीं दिया, क्योंकि उसके दिमाग में तो यही चल रहा था कि आकाश तो बगल में सो रहा है। डर की वजह से उसने खुद से सवाल किए बिना ही फिर पूछा, “आकाश, आप दरवाज़े पर क्या कर रहे हैं?”
उस आवाज़ ने जवाब दिया, “मैं पानी पीने गया था।”
नीलिमा थोड़ी राहत की साँस लेते हुए बोली, “अच्छा ठीक है, आ जाओ अब लेट जाओ। सुबह बात करते हैं।”
लेकिन तभी उस गेट पर खड़ी परछाई जैसी आवाज़ ने कहा, “तुम आँखें बंद कर लो, मैं आ जाऊँगा।”
नीलिमा थोड़ी झल्लाई सी बोली, “क्या हो गया है तुम्हें, आकाश? ये कैसी बातें कर रहे हो? अब नींद में भी पजल गेम खेलने लग गए हो क्या?”
उस आत्मा ने फिर कहा, “पहले तुम आँखें बंद कर लो, फिर मैं आऊँगा…”
अब नीलिमा सोच में पड़ गई। बोली, “अच्छा ठीक है, बंद करती हूँ… वैसे भी बहुत रात हो चुकी है।”
वो जैसे ही लेटने लगी और तकिये को सही करने लगी, उसकी नज़र बिस्तर की दूसरी ओर गई—आकाश तो पहले से ही वहाँ लेटा हुआ था!
अब नीलिमा के अंदर डर की लहर दौड़ गई। उसकी सांसें रुकने सी लगीं। उसके दिल में एक ही सवाल गूंजने लगा—“तो फिर… दरवाज़े पर कौन खड़ा था?”
वो कुछ पल तक स्तब्ध रही, फिर खुद को संभालते हुए सोचा—“अगर अभी ये बात आकाश को बताई, तो वो भी फालतू में डर जाएगा… जो होगा, देखा जाएगा।”
फिर उसने किसी तरह अपने डर को सीने में दबाया, आँखें बंद कीं और भगवान का नाम लेते हुए सोने की कोशिश करने लगी।
सुबह हुई। सभी लोगों के लिए नाश्ता आया।
सभी ने चाय-नाश्ता किया। आकाश और नीलिमा ने भी चाय ली, लेकिन दोनों के मन में रात की हुई घटना ही चल रही थी।
आकाश सोच रहा था — "क्या मुझे नीलिमा को सब कुछ बता देना चाहिए?"
फिर उसके मन में एक दूसरा ख्याल आया — "अगर वह डर गई तो? क्या वह मुझसे दूर हो जाएगी?"
उधर नीलिमा के दिमाग में भी वही उथल-पुथल थी।
"क्या मैं आकाश को बता दूं कि रात मेरे साथ क्या हुआ?"
"नहीं... वह बहुत परेशान हो जाएगा।"
नाश्ते के बाद आकाश बाथरूम में नहाने चला गया। जैसे ही उसने कपड़े रखे, उसे महसूस हुआ कि किसी ने उसके कपड़ों को पीछे से खींचा है।
उसने चौंककर देखा — जहाँ उसने कपड़े रखे थे, अब वे वहाँ नहीं थे!
कपड़े किसी और कोने में पड़े थे, जैसे किसी ने जानबूझकर उन्हें वहां फेंका हो।
वह घबरा गया... लेकिन खुद को संभालते हुए, दोबारा कपड़े उठाकर नहाने लगा।
जैसे ही उसने शरीर पर साबुन लगाना शुरू किया, उसे एहसास हुआ — "कोई और भी है जो उसके साथ साबुन घिस रहा है!"
उसका दिल ज़ोर-ज़ोर से धड़कने लगा।
लेकिन वह चुप रहा — "कुछ नहीं... सब वहम है। दो-तीन दिन की ही बात है। किसी को बताऊँगा तो हँसी बन जाएगी।"
वह नहा कर चुपचाप अपने कमरे में लौट आया।
इधर, नीलिमा भी नहा कर तैयार हो गई थी और पूजा में बैठ गई। आकाश भी पूजा में आ गया। दोनों ने पूजा की।
पूजा के बाद सबने दोपहर का खाना खाया। फिर सभी अपने-अपने कमरों में आराम करने चले गए।
आकाश के माता-पिता ने खाना अपने कमरे में ही मंगवा लिया।
आकाश के पिता ने खाना शुरू किया।
साथ में एक बर्तन में कई रोटियाँ रखी थीं।
उन्होंने दो रोटियाँ अपनी थाली में रखीं और पानी लेने के लिए थोड़ा आगे बढ़े।
लेकिन जब वो लौटे, उन्होंने देखा — थाली से दोनों रोटियाँ गायब!
"शायद बिल्ली खा गई होगी," — उन्होंने मन में सोचा और दोबारा रोटियाँ रखीं।
इस बार वे खाने लगे और मोबाइल देखने लगे।
जैसे ही एक रोटी खाई और दूसरी के लिए हाथ बढ़ाया —
वो भी गायब!
अब उनके चेहरे पर हल्की सी शिकन थी, लेकिन फिर भी बोले — "लगता है मैं ही खा गया, उम्र भी तो हो चली है।"
(यह बात उन्होंने खुद से कही, लेकिन अंदर से वो थोड़ा कांप चुके थे।)
अब उन्होंने तीसरी बार दो रोटियाँ रखीं।
जैसे ही उन्होंने एक रोटी उठाई —
वो रोटी उनके हाथ से ऐसे छीनी गई, जैसे कोई बच्चा ज़िद में खिलौना छीनता है!
अब तो उनका चेहरा सफेद पड़ने लगा।
उन्होंने थाली की तरफ देखा — बची हुई रोटी भी गायब थी।
अब डर उनके चेहरे पर साफ दिखने लगा।
"अगर मैंने ये सब किसी को बताया, तो सारे बाराती भाग जाएँगे।"
"कोई कहेगा — बाबा जी झूठ बोल रहे हैं... और कोई कहेगा – बाबा जी को भूत ने भूखा मारा!"
उन्होंने चुपचाप थाली उठाई और लेटे-लेटे बुदबुदाए —
"चलो... भूखे पेट ही सो जाते हैं, कम से कम रोटियाँ तो बचेंगी!"