नीलिमा के पिता महल में देखने आए कि सभी लोगों ने खाना खा लिया है या नहीं। इसके लिए उन्होंने उस खाना बनाने वाले से पूछा,
"क्या सबने खाना खा लिया है?"
खाना बनाने वाले ने कहा,
"हाँ भइया, सबने खाना खा लिया है। मैंने ही रघु के साथ मिलकर सबको खाना परोस दिया था।"
फिर वह थोड़ा धीरे बोलते हुए बोला,
"भइया, आपको एक बात बताना चाहता हूँ। जब मैं खाना सबको परोस रहा था ना... उस दौरान मैंने देखा कि कोई इस महल में दौड़ रहा था! और कल रात को भी मैंने सुना, कोई बहुत तेजी से भाग रहा था।"
नीलिमा के पिता ने बात को गंभीरता से सुना, फिर बोले,
"ये सब बातें किसी और को मत बताना। तुमने मुझे बता दिया, काफी है। वरना सब तुम पर हँसेंगे... और कहेंगे कि खाना बनाते-बनाते तुम्हारा दिमाग पक गया है!"
(थोड़ी हँसी के साथ उन्होंने बात बदली)
"अच्छा छोड़ो ये सब बातें। ये जो मैं सामान लाया हूँ, इसे ऊपर कमरे में रख दो। ये आगे हमारे काम आएगा। इसमें कुछ खाने का सामान है, और कुछ ऐसा जो नीलिमा अपने घर ले जाएगी... यानी अपनी ससुराल!"
"और हाँ, मैं जा रहा हूँ ऊपर वाले कमरे में थोड़ा आराम करने। आराम करके समधी जी से मिलूँगा।"
इतना कहकर नीलिमा के पिता ऊपर चले गए। उन्होंने आराम करने के लिए अपनी पैंट उतार दी और उसकी जगह लोअर पहन लिया। कुछ ही देर में वे सो गए।
लेकिन थोड़ी देर बाद उन्हें ऐसा महसूस हुआ कि कोई उनके कान में फुसफुसा रहा है —
"आ गए बुढऊ... कब्र में जाने की बहुत जल्दी है!"
नीलिमा के पिता ने इस बात को अनसुना कर दिया और फिर सोने लगे।
लेकिन अब उन्हें सपना आया —
कोई उनके सीने पर बैठा है... बहुत भारी... इतना कि उनकी साँस अटकने लगी! साँस लेने में तकलीफ़ होने लगी, और इसी घुटन में उनकी आँख खुल गई।
जैसे ही आँखें खुलीं, उन्होंने इधर-उधर देखा — कोई नहीं था।
लेकिन… उन्हें किसी के चलने की आवाज़ सुनाई दे रही थी। बहुत साफ़... जैसे कोई धीरे-धीरे चल रहा हो।
अब डर उनके चेहरे पर दिखने लगा।
वो घबराकर जल्दी से नीचे आ गए।
उन्हें नीचे आते देख, खाना बनाने वाले ने पूछा,
"भइया, ऊपर कोई था ना?"
इस पर नीलिमा के पिता ने धीमे स्वर में कहा,
"हाँ... था। लेकिन किसी को बताना मत। वरना नीलिमा की शादी नहीं हो पाएगी। घबराहट की वजह से बाराती भी भाग जाएँगे। इसलिए चुप रहो।"
उन्होंने आगे कहा,
"सिर्फ 3 दिन की ही तो बात है। इसके बाद सब अपने-अपने घर चले जाएँगे। बस किसी तरह ये तीन दिन मैनेज कर लो। कौन सा हमें इस महल में हमेशा रहना है?"
खाना बनाने वाले ने फिर थोड़ा झल्लाते हुए पूछा,
"लेकिन भइया, आपको यहाँ शादी के कार्यक्रम करवाने के लिए किसने कहा था?"
इस पर नीलिमा के पिता ने बताया,
"मेरे दोस्त ने बताया था ये जगह।"
खाना बनाने वाले ने तुरंत बोला,
"तो फिर वो दोस्त नहीं, दुश्मन ही होगा आपका! जिसने ये जगह सजेस्ट की!"
(फिर हल्के गुस्से और डर के साथ, लेकिन हँसी की झलक लिए)
नीलिमा के पिता ने कहा,
"इन बातों को भूल जाओ... किसी को ये चीज़ एहसास नहीं होने देना, वरना मेरी बेटी की शादी नहीं हो पाएगी!"