Suhaagraat Mananewali Chudel - 1 in Hindi Horror Stories by ABHISHEK books and stories PDF | सुहागरात मनाने वाली चुड़ैल - 1

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सुहागरात मनाने वाली चुड़ैल - 1

शादी की रौनक के बाद, आकाश और नीलिमा को एक बेहद खास जगह पर ठहराया गया—एक पुरानी, भव्य और रहस्यमयी हवेली में। ये हवेली शहर की हलचल से दूर, एक सुनसान पहाड़ी इलाके में स्थित थी। चारों ओर घना जंगल, और हवेली तक पहुँचने वाला रास्ता जैसे बरसों से किसी के कदमों का इंतज़ार कर रहा हो।

हवेली को देखकर पहली नज़र में हर कोई मंत्रमुग्ध हो गया। ऊँची-ऊँची दीवारें, लकड़ी के विशाल दरवाज़े, और खिड़कियों पर जालीदार पर्दे—सब कुछ किसी पुराने समय की कहानी जैसा लग रहा था। लेकिन जैसे-जैसे शाम की परछाइयाँ गहराने लगीं, हवेली की भव्यता के पीछे छुपा डरावना सच भी सामने आने लगा।

दीवारों पर टंगी पुरानी पेंटिंग्स में कुछ अजीब था। उन चेहरों की आँखें… हाँ, आँखें… जैसे किसी को लगातार घूर रही हों। ऐसा लगता जैसे वो बस पलट कर देख लें, तो पेंटिंग्स के अंदर के लोग हँस देंगे – एक ऐसी हँसी जो इंसानी नहीं हो सकती।

हॉल में रखा एक पुराना पियानो खुद में किसी कहानी को छुपाए बैठा था। धूल से ढँका, लेकिन जैसे किसी ने हाल ही में उस पर उँगलियाँ चलाई हों। छत से लटकता झूमर धीरे-धीरे हिल रहा था… जबकि हवेली के अंदर कोई हवा नहीं थी।

हर कमरा किसी पुराने ज़माने की भव्यता का प्रतीक था – रेशमी परदे, भारी पलंग, और फर्श पर बिछे महंगे कालीन। लेकिन इन सबके बीच एक सन्नाटा था, जो कानों में धीरे-धीरे उतरता जाता। और वो सीढ़ियाँ… ऊपर की ओर जाती हुईं, जैसे किसी रहस्य की ओर बुला रही हों।

हवेली की सबसे अजीब बात थी उसकी हवा – वहाँ की ठंडी, भारी और बोझिल हवा, जिसमें नमी नहीं… कोई पुराना दर्द घुला हुआ महसूस होता। ऐसा लगता जैसे हवेली की दीवारें कुछ कहना चाहती हैं… लेकिन ज़ुबान नहीं खोलतीं।

और सबसे आखिर में – हवेली के पिछले हिस्से में एक बंद दरवाज़ा था। जंग खाई ज़ंजीरों से बंद। दरवाज़े पर faded अक्षरों में कुछ लिखा था… लेकिन कोई उसे ठीक से पढ़ नहीं पाया। जो भी उसे पढ़ने की कोशिश करता… उसकी आँखों में डर की एक अजीब सी परछाईं उतर आती।

यह हवेली केवल एक इमारत नहीं थी… यह एक रहस्य थी। एक ऐसा रहस्य, जिसे जितना जानो… उतना खोते चले जाओ।

शादी की थकावट के बाद जब सारी बारात गहरी नींद में सो रही थी, तभी आधी रात को आकाश की नींद प्यास के कारण टूट गई। कमरे में पानी नहीं था, इसलिए वह धीरे से बिस्तर से उठा और चारों ओर पानी ढूंढने लगा। कहीं कोई सुराही या बोतल नहीं मिली, तो वह सीढ़ियों से नीचे उतरने लगा।

नीचे पहुंचते ही उसने देखा कि एक कोने में रखा मिट्टी का घड़ा चमक रहा था, मानो चांदनी उसमें समा गई हो। उसने जल्दी से लोटा उठाया, घड़े से पानी भरा और वापस ऊपर जाने लगा। जैसे ही वह आधी सीढ़ियों तक पहुंचा, उसकी नजर फिर उसी घड़े पर पड़ी... लेकिन इस बार घड़े में पानी बहुत कम था।

"अरे! ये कैसे हो गया?" उसने खुद से कहा। "मैंने तो घड़ा पूरा भरा था... क्या मैं नींद में ही कुछ भूल गया?"

थोड़ा उलझा हुआ, वो फिर नीचे आया। पर अब घड़ा वहीं नहीं था।

"क्या...? ये घड़ा यहाँ से... वहाँ कैसे गया?" वो चौंक गया। अब घड़ा पहले से कुछ कदम दूर एक दीवार के पास रखा था।

"लगता है मैं अब भी अधनींद में हूं," खुद को समझाते हुए उसने फिर से पानी भरा, एक लंबा घूंट लिया और ऊपर चला गया। बिस्तर पर लेटते ही आँखें बंद हो गईं।

...लेकिन नींद ज़्यादा देर तक नहीं टिकी।

एक ज़ोरदार थप्पड़ की आवाज़ और जलन से उसकी आंख खुल गई।

"नीलिमा!" वो घबरा गया, "ये क्या कर रही हो? तुमने थप्पड़ क्यों मारा?"

नीलिमा करवट बदलते हुए बुदबुदाई, "क्या...? मैंने तो कुछ नहीं किया... हो सकता है नींद में हाथ लग गया हो... सॉरी, आकाश... अब सो जाओ, सुबह बात करेंगे।"

पर आकाश की आंखों से नींद गायब हो चुकी थी। उसके कानों में जैसे कोई धीमी हँसी की आवाज़ गूंज रही थी… कोई और भी था वहाँ… शायद बहुत पास… बहुत ही पास…