3. पहली मुलाकात
"मीरा, तुम आज late कैसे हो सकती हो? तुम्हें पता था ना आज donation के लिए कोई आने वाला है।" मेरी दोस्त रोज़ी ने आंखें दिखा के मुझसे कहा।
अरे हां, ये दिन मैं कैसे भूल सकती हूं। हमारे अनाथालय के स्टाफ में सभी मुझसे और रोज़ी से उम्रदराज हैं। हर साल जब donation देने ये आदमी आता है तो मुझे और रोज़ी को बाहर आने से मना कर दिया जाता है। पर पिछली बार उसने स्टाफ के रजिस्टर में देखा कि स्टाफ से 2 लोग नहीं आते। तो उसने डायरेक्टर से बोल दिया था इस बार उसे पूरा स्टाफ चाहिए।
"आ गए क्या वो, मैं ज्यादा late हो गई क्या?"
"हां, आ गए। अभी डायरेक्टर के ऑफिस में हैं। और एक बात कहूं, मैं भी अभी ही आई हूं।" ये बोलकर रोज़ी हंसने लगी।
"मीरा, ये गुलाब तुम उनके कोट में लगा देना। आज बच्चों और स्टाफ का फोटो खींचा जाएगा।"
अभी उनके आने में time था तो मीरा और रोज़ी बच्चों के साथ खेलने लगे।
"मीरा, वो आ गए। जाओ उनका स्वागत करो।"
जैसे ही मीरा पीछे मुड़ी, उसने एक ऐसा चेहरा देखा जिसे वो शायद पूरी ज़िंदगी नहीं भूल पाएगी और वो चेहरा था रणविजय सिंह राठौर का। पर मीरा को कहां पता था वो ही माफिया रणविजय सिंह राठौर है।कद काठी ऐसी जैसे कोई film का hero सामने आ गया हो। 6ft. लंबा एक लड़का, काला कोट पहने, परफेक्ट toned upper body. हाथ मैं घड़ी। आँखें इतनी गहरी की कोई भी डूब जाए। आँखें...... ये आँखें जो सिर्फ मीरा पर टिकी थी। तभी एक आवाज़ ने मीरा का ध्यान रणविजय से हटाया।
" जाओ मीरा। राठौर सर इंतजार कर रहे हैं।"
मीरा के कदम रणविजय की तरफ बढ़ रहे थे, और शायद रणविजय की धड़कनें भी।
"सर, आपका स्वागत है माया देवी अनाथालय में।"
जैसे ही मीरा रणविजय के पास गई रणविजय को कुछ अलग ही महसूस हुआ जो अभी तक किसी भी लड़की के पास आने पर महसूस नहीं हुआ था। ऐसा नहीं था कि रणविजय पहले कभी किसी लड़की के नज़दीक नहीं गया हो, उसे जो लड़की पसंद आती वो उसे कैसे भी हासिल कर लेता था। पर मीरा के पास आने से वो कुछ अलग ही महसूस कर रहा था। उसकी धड़कनें पहली बार किसी लड़की के पास आने से बढ़ रहीं थीं।
मीरा, रणविजय का स्वागत कर वापस अपनी जगह पर आ गई । उसने पास में खड़ी रोज़ी की तरफ देखा , रोज़ी कुछ परेशान सी लग रही थी।
"क्या हुआ रोज़ी ? कोई परेशानी वाली बात?"
"मीरा, ये रणविजय सिंह राठौर है। माफिया रणविजय सिंह राठौर"
मीरा ने सिर्फ रणविजय के बारे में सुना था पर कभी उसे देखा नहीं था । पर रोज़ी ने अखबार में रणविजय की तस्वीर को कई बार देखा था। जैसे है मीरा तो पता चला ये माफिया है, वो थोड़ा डर गई। उसे ये सब लड़ाई झगड़े, खून - खराबा पसंद नहीं था।
थोड़ी देर में सारा कार्यक्रम ख़त्म हुआ और रणविजय जाने लगा। जाते हुए उसने एक आख़िरी बार मीरा की तरफ नज़र की, पर उसे मीरा थोड़ी सहमी सी लग रही थी। मीरा को ऐसे देखकर उसका दिल भी कुछ अच्छा महसूस नहीं कर रहा था। उसे समझ नहीं आ रहा था ये क्या हो रहा है उसे?
जब रणविजय चला गया तो डायरेक्टर ने सारे स्टाफ को office में बुलाया।
"आज आप सभी के लिए एक खुशी की बात है। राठौड़ सर ये देकर गए हैं।" (कुछ लिफाफे हमारी और बढ़ाते हुए डायरेक्टर सर बोले)
सबको लिफाफे दिए गए। रोज़ी से रहा नहीं गया तो उसने वहीं अपना लिफाफा खोल लिया। 50000 rs.
मीरा को रुपए देखकर थोड़ी राहत मिली, उसके लिफाफे में भी 50000 rs. होंगे यही सोचकर मीरा ने लिफाफ खोलकर नहीं देखा।
रूपए देखकर मीरा को डायरेक्टर से रुपयों के लिए बात करना याद आया।
जब सारा स्टाफ office से बाहर चला गया तब मीरा ने कहा
"सर, मुझे आपसे कुछ बात करनी थी।"
"हां, बोलो मीरा क्या बात है? तुम परेशान लग रही हो।"
"सर मुझे अभी कुछ रुपयों की बहुत जरूरत है। अगर आप दे देते तो मैं जल्द से जल्द आपको वापस कर देती।"
"मीरा तुम जानती हो ना, हमें बहुत कम ही donation मिलता है। उसमें सब आप सबकी सैलेरी, बच्चों की देखभाल पर खर्च हो जाते हैं। Sorry मीरा, मैं तुम्हारी कोई मदद नहीं कर पाऊंगा।"
मीरा जानती थी कि अनाथालय को donation बहुत मिलता है पर डायरेक्टर रख लेता है वो रुपए। वो शिकायत करे भी तो किससे?
मीरा घर आ गई, और अब उसको बस ये ही चिंता सता रही थी कि वो रुपए कहां से लाएगी। उसने बैग से लिफाफा निकाला, लिफाफा खोलते ही मीरा की आँखें खुली की खुली रह गई..........