Maayra ek Kaamuk Chudel - 1 in Hindi Horror Stories by Rakesh books and stories PDF | मायरा एक कामुक चुड़ैल - 1

The Author
Featured Books
Categories
Share

मायरा एक कामुक चुड़ैल - 1

बहुत बढ़िया। चलो इस कामुक चुड़ैल **मायरा** की कहानी को और गहराई से, विस्तार से और तीव्र भावनाओं के साथ रचते हैं—जिसमें रहस्य हो, रोमांच हो, और वो धीमा, आग की तरह बढ़ता कामुक आकर्षण जो रगों में झनझनाहट पैदा कर दे।

---

**दिल्ली, 1857।**

ब्रिटिश राज का दौर था। चांदनी चौक की गलियों में एक कोठी थी—"रईस मंज़िल"—जो किसी जमाने में एक नवाब की थी। नवाब का नाम था नवाब ताहिर अली खान। और उसकी सबसे प्यारी रखैल थी—**मायरा**।

मायरा आम औरत नहीं थी। वो हर मर्द की चाहत और हर औरत की जलन थी। उसकी आंखों में जादू था, होंठों पर मदहोशी और जिस्म पर वो लचक, जो नज़रों को कैद कर ले। कहते हैं कि नवाब ने उसके लिए पूरे लखनऊ की सबसे महंगी ज़ेवरात खरीद डाली थीं, लेकिन मायरा को चाहत दौलत की नहीं थी—उसके भीतर कुछ और ही था, गहरा... और काला।

नवाब की मौत के बाद जब अंग्रेज अफसर कोठी में रहने आए, उनमें से हर एक मायरा के मोह में फंसा... और एक-एक करके गायब होता गया। किसी ने नहीं सोचा कि मायरा **मानव नहीं थी**। वो एक पुरानी आत्मा थी, जिसे बंगाल की तंत्रविद्या से एक तांत्रिक ने बुलाया था—सदियों पहले।

मायरा एक **कामुक चुड़ैल** थी, जिसे जीवन शक्ति पाने के लिए मर्दों की इच्छा और उनकी आत्मा दोनों को चूसना होता था। वो किसी को मारती नहीं थी। वो **रातों में उन्हें खुद में डुबोती थी**, उनके रग-रग में समा जाती थी, और जब सुबह होती, वो सिर्फ एक खोल बनकर रह जाते। आत्मा मायरा की हो जाती।

---

**2025, दिल्ली।**

रईस मंज़िल अब एक वीरान हवेली है, लेकिन अफवाहें अभी भी ज़िंदा हैं। युवा लेखक **आरव वर्मा**, जिसने पैरानॉर्मल कहानियों में नाम कमाया था, एक रात वहाँ रिसर्च के लिए आता है। वो तर्कवादी था, आत्माओं पर विश्वास नहीं करता था। पर उसकी किस्मत उसे मायरा के पास ले आई।

हवेली में पहली रात...

आरव ने कैमरा ऑन किया, लेकिन एक पल के लिए उसकी आंखें खुद रुक गईं। सामने एक औरत थी—लाल साड़ी में, खुले बाल, और आंखें जैसे सीधे आत्मा में उतरती हों। "कौन हो तुम?" आरव ने फुसफुसाते हुए पूछा।

"मायरा..." उसका नाम जैसे किसी कविता की तरह उसके होंठों से फिसला।

आरव उसकी ओर खिंचता चला गया। उसकी गर्म सांसें आरव की गर्दन पर महसूस हुईं, और उसके नर्म हाथ आरव की पीठ पर फिसलने लगे। वो एक पल को समझ नहीं पाया कि वो सपना है या हकीकत।

"तुम मुझसे डरते नहीं..." मायरा ने उसकी आंखों में झांकते हुए कहा।

"डर और आकर्षण में एक महीन फर्क होता है..." आरव ने कहा, लेकिन उसका शरीर पहले ही जवाब दे चुका था।

मायरा ने उसके होठों को चूमा, धीरे, गहराई से, जैसे आत्मा को छू रही हो। उसके स्पर्श में गर्मी थी, लेकिन उस गर्मी के पीछे एक ठंडी सिहरन भी थी—जैसे मौत को चूमना।

और उसी रात, आरव ने उस चुड़ैल की बाहों में अपनी पहली रात बिताई। लेकिन सुबह... सबकुछ वैसा नहीं था।

वो बिस्तर पर था, थका, पसीने से भीगा, लेकिन ज़िंदा। वो **इकलौता इंसान** था जो मायरा की रात के बाद सुबह देख पाया था।

---

**अगली रात।**

आरव एक अजीब बेचैनी में था। पिछली रात जो हुआ, वो महज़ एक शारीरिक अनुभव नहीं था। उसने महसूस किया था कि मायरा सिर्फ एक चुड़ैल नहीं है—वो एक कशिश है, एक मोह है, एक विरह है जिसे किसी ने अब तक समझा नहीं।

उसने तय कर लिया कि वो मायरा को इस श्राप से मुक्ति दिलाएगा।

वो फिर हवेली लौटा।

दरवाज़ा खुद खुल गया।

मायरा सामने खड़ी थी, इस बार सफेद साड़ी में, बाल खुले हुए लेकिन आँखें नम।  
"तुम फिर आ गए... जानते हो, इस बार अगर मुझसे प्यार करोगे... तो मैं मर जाऊंगी।"  
उसकी आवाज़ में डर था, पर उसमें **इच्छा भी थी।**

आरव ने उसका चेहरा अपने हाथों में लिया—"तो क्या ज़िंदगी भर डरते हुए जीना सही है, मायरा? मुझे तुमसे प्यार हो गया है। चाहे जो भी हो जाए..."

उसने उसे फिर चूमा—इस बार धीमे नहीं, बल्कि जान-बूझकर, पूरी तड़प के साथ।

मायरा कांप रही थी। उसके जिस्म से ऊर्जा की लहरें निकल रही थीं। हवेली की दीवारें थरथरा उठीं। लेकिन वो खुद को नहीं रोक सकी।

उसने आरव को पलंग पर गिराया और खुद उस पर झुक गई। इस बार उसके होंठों में वो ज़हर नहीं था जो आत्मा चूस ले। इस बार वो **इंसान की तरह चाह रही थी।**

हर स्पर्श में **सदियों की भूख** थी, हर चुम्बन में **पलायन की तड़प**, और हर सिसकी में एक **रहस्य** जो टूटने वाला था।

उनकी रात गर्म थी, धीमी, और वर्जनाओं को तोड़ती हुई।

लेकिन जैसे-जैसे चरम की ओर बढ़े, मायरा के शरीर से **चमक** निकलने लगी। उसके पैर ज़मीन से ऊपर उठ गए। उसकी आँखों से आँसू बहने लगे, पर होठों पर मुस्कान थी।

"आरव... मैं जा रही हूँ... लेकिन इस बार, किसी की बाँहों में सुकून पाकर..."

आरव चौंका, उठकर उसे पकड़ना चाहा—but उसका शरीर हवा में बिखरने लगा था।  
"नहीं! मायरा!"  
"मत रो आरव... मैं जा नहीं रही... मैं अब **तुझमें जीऊंगी**।"

और मायरा की रूह एक रौशनी बनकर आरव के दिल में समा गई।

---




**रात का तीसरा पहर।**

आरव अपने कमरे में था, चादर में लिपटा, लेकिन नींद नहीं थी। उसकी सांसें तेज थीं, और अचानक...

"तू मुझे महसूस कर सकता है ना, आरव?"  
मायरा की धीमी, फुसफुसाती हुई आवाज़ उसके कानों में गूंजने लगी।

"मैं हमेशा तुझे महसूस करता हूँ..."

"तो अपनी आँखें बंद कर... और मुझे अपने ऊपर महसूस कर..."

आरव ने पलकें झपकाईं, और उसकी रगों में एक गर्म लहर दौड़ गई।  
उसके सीने पर एक हल्की-सी छुअन... जैसे किसी ने होंठ रखे हों। फिर उसकी गर्दन पर... और धीरे-धीरे नीचे।

मायरा अब एक रूह नहीं थी, **एक एहसास थी**—जो उसके पूरे शरीर को झनझना रही थी।

आरव ने करवट ली और एक सिसकी के साथ कहा, "क्या तू मेरी कल्पना है या सच में यहाँ है?"

"तेरे जिस्म में हूँ आरव... तेरे हर हिस्से को महसूस कर सकती हूँ... और तू मुझे..."

फिर उसके हाथ अपने आप ऊपर उठे, जैसे कोई अदृश्य ताक़त उन्हें चला रही हो। उसकी उंगलियों ने खुद को अपनी छाती पर पाया, फिर पेट पर, फिर और नीचे...

"मायरा..." उसने धीमे से कहा, "तू मेरी आत्मा को जगा रही है..."

"नहीं, आरव," मायरा की रूह अब धीरे-धीरे उसकी पीठ पर झुकी हुई थी, उसकी साँसें गरम हवा की तरह उसकी खाल पर फिसल रही थीं।  
"मैं **तेरी आत्मा बन चुकी हूँ**।"

उस रात, वो कोई एक आम कामुक मिलन नहीं था—वो एक ऐसा रूहानी-शारीरिक संगम था जहाँ **चुड़ैल और इंसान का मेल** हुआ। जिस्म और आत्मा के पार, उस स्तर पर, जहाँ स्पर्श की ज़रूरत नहीं—बस इच्छा ही काफ़ी है।

आरव के शरीर से रौशनी फूट रही थी। हवेली में लगे आईनों पर भाप जम रही थी। चारों तरफ़ एक मादक गंध भर गई थी, जैसे जंगली चमेली और बरसात की मिट्टी की मिली-जुली खुशबू।

सुबह जब आरव उठा, उसकी हथेलियाँ चमक रही थीं।

और उसकी आँखों में मायरा थी—नज़र नहीं आई, **लेकिन बस गई थी**।







**तो अब कहानी आगे बढ़ती है… मायरा की रूह अब आरव का हिस्सा बन चुकी है… लेकिन उसका अतीत अभी भी उस हवेली की दीवारों में कैद है।**

उस रात जब आरव नींद में था, उसे एक सपना आया… या शायद **मायरा की यादों का टुकड़ा।**

---

**सपने में – हवेली, 1893।**

मायरा तब सिर्फ 23 की थी। बेहद हसीन, बादलों जैसे बाल, और आँखों में वो कशिश जो किसी भी पुरुष को पागल कर दे।

लेकिन वो **इंसान नहीं थी**।  
वो एक **कामुक साधना** में लिप्त थी—जिसमें वो पुरुषों की कामनाओं से शक्ति खींचती थी। उनका आनंद, उनकी तृप्ति—उसी की ऊर्जा बनती थी।

उसकी पहली 'भोग-क्रिया' एक अंग्रेज अफसर से हुई थी—कर्नल विलियम हर्ट।

उसने मायरा को एक पार्टी में देखा था, उसकी पीठ पर पंखुड़ी सी साड़ी, और गर्दन में काले मोतियों की माला।

"Will you dance with me, Miss Myra?"  
उसने पूछा था, और मायरा ने बस मुस्करा कर हाथ बढ़ा दिया।

**डांस के दौरान ही मायरा ने उसके कानों में फुसफुसाया—**  
"क्या तुम मुझे पूरा महसूस करना चाहते हो... विलियम?"

रात होते-होते, हवेली के पुराने तहखाने में विलियम और मायरा के बीच एक ऐसा मिलन हुआ…  
जिसमें विलियम के होठ काँपते रहे…  
मायरा की उँगलियाँ उसकी छाती से होते हुए उसकी आत्मा तक जा पहुँचीं…  
और वो climax ऐसा था… कि **विलियम की चीख हवेली की दीवारों में कैद हो गई।**

सुबह उसका शव बिना जान के, लेकिन मुस्कुराता हुआ मिला।

---

**सपना टूटा – आरव की आंखें खुलीं।**

उसकी सांसें तेज थीं, और दिल दौड़ रहा था।

"मायरा… ये क्या था?"

"वो… मैं थी… मेरी भूख थी… लेकिन अब मैं बस तुझसे चाहती हूं। तुझे खो नहीं सकती…"

आरव ने कहा, "तो मुझे अपनी पूरी कहानी बताओ, मायरा। मैं तुम्हारे हर अंधेरे में उतरना चाहता हूँ। तुम्हारा अतीत, तुम्हारी भूख, तुम्हारा प्रेम… सबकुछ।"

मायरा कुछ क्षण चुप रही… और फिर उसके होठों पर एक रहस्यमयी मुस्कान आई—

"तो सुनो… मेरी डायरी का पहला पन्ना खुल रहा है… जहाँ मेरा पहला प्रेम, पहला मिलन… और पहला **कामुक अपराध** दर्ज है…"