Bajarang Batteesee-samiksha v chhand 4 in Hindi Spiritual Stories by Ram Bharose Mishra books and stories PDF | बजरंग बत्तीसी – समीक्षा व छंद - 3

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बजरंग बत्तीसी – समीक्षा व छंद - 3

बजरंग बत्तीसी – समीक्षा व छंद 3

बजरंग बत्तीसी के रचनाकार हैं महंत जानकी दास जी । “वह काव्य शक्ति में भी सिद्ध थे। उनकी अन्य काव्य कृतियां हैं जैसे राम रसायन, काव्य सुधाकर,ऋतु तरंग,विरह दिवाकर, रस कौमुदी, सुमति पच्चीसी, सुयश कदम और बजरंग बत्तीसी आदि । यह रसिक बिहारी तथा रसिकेश उपनाम से काव्य रचना करते थे।“( प्रस्तावना प्रश्ठ एक) बजरंग बत्तीसी में अधिकतर कवित्त छंदों का प्रयोग है। एक दो स्थानों पर सिंहावलोकन छंद भी आए हैं। सिंहालोकन छंद का उदाहरण देखिए -

गारि दे गुरुर नूर झारि दे जु गर्विन को सहित सहाय रिपु मंडली उजारि दे ।

जारि  दे सुधाम धाम द्रोहिन को झारि मारि ,दम्भी दीह दुष्टन को मूल ते उपारि दे ।

पारि दे विपत्ति बेगि बैरिन के झुंडन पै चुगल चबाईन को  बाँधि के  विडारि दे।

डारि दे मद धन को पाँय तर मेरे वीर रसिक बिहारी कल कीरति  बगारि दे 

अद्भुत बात है 'बगारि दे' पर यह छन्द  समाप्त हुआ है और आरंभ भी  गारि दे से हुआ है  इस तरह यह जलेबी की तरह एक दूसरे में गुथा हुआ है । सिंहावलोकन छंद  के बारे में कहा जाता है कि अगली पंक्ति शुरू होने पर अगली पंक्ति का पहला शब्द पिछली पंक्ति के आखिरी शब्द को दुहराता है। इस छंद  में यह भली भांति देखा जा सकता है। इस बजरंग बत्तीसी का साहित्यिक महत्व भी महत्वपूर्ण है। इसके अंतिम दो छंद संस्कृत के श्लोक हैं ,जो प्रकट करते हैं कि इस कृति के रचयिता को संस्कृत छंद शास्त्र का ज्ञान था।

 संपादक प्रस्तोता और अर्थ करता भावार्थ लिखने वाले मदन मोहन वैद्य  जी चिरगांव के रहने वाले हैं। जिनका हनुमत साधना प्रकाशन के नाम से इस पुस्तक का प्रकाशन भी हुआ है। मदन मोहन वैद्य  जी ने सदा हनुमान जी की उपासना की, साधना की और भक्तों के निमित्त बजरंग बत्तीसी छपाई, जिसका मुद्रण व्यय गीतांजलि ट्रेडर्स झांसी ने उठाया था। इसका उदारता पूर्वक  प्रथम पृष्ठ पर संपादक महोदय ने आभार भी व्यक्त किया है। इस ग्रंथ के कुछ छन्द अपने इस टिप्पणी के समर्थन में मैं प्रस्तुत कर रहा हूं-

 

(१७)

तू ही राम सीता के सकल काज कीने सदा, 'रसिक बिहारी' दिस हेर कृपा कोर लूँ।

 तू ही सब ठोर में सहाय करी दीनन की, रहो बलवान नित भक्तन की ओर तूं॥

 तेरो ही जू एक अवलम्ब बलवन्त मोहि, वेगहि घनेरे सुख साज काज जोर तूं।

 केसरी किशोर रणरोर बरजोर वीर, बन्दी छोर विरद् विसार भो कठोर  तूं ।।१७।।

 

भावार्थ आपने ही श्री राम और सीताजी के सम्पूर्ण कार्य सदैव किये हैं, इस रसिक बिहारी' को और भी कृपा दृष्टि की कोर से निहारिये। आपने ही दीनों की सब स्थानों पर सहायता की है और हे बलवान ! आप हरदम भक्तों की ओर रहे हैं। हे बलवन्त! मुझे एक आप का ही अबलम्बन रहा है। इस लिये आप मेरे लिये सम्पूर्ण सुख-साज के कार्य संचित कर दीजिये। हे केशरी किशोर ! आप युद्ध के घमासान में वीर बलवान रहे हैं, बन्धनों से मुक्त कराने वाले आप, आपना विरद भूलकर कैसे कठोर हो गये हैं? ।। १७।।

(१८)

मारि डार बैरिन, विदार डार दुष्टन कों, फारि हार फन्दन और मूढ़न को बारि डार।

 झारि डार झपटि के झपाट झुण्डन खल कों, 'रशिक बिहारी' के अराति को उपारि डार ॥

गारि डार गरविन  के गर्व को उजारि डार, डार जोमिन की जोम को बिगारि डार।

 जो पै हनुमान वीर साचों बलवान तो पै, शत्रु को लँगूर में लपेटि कै पछारि डार ॥

 

भावार्थ-आप बैरियों को मार डालिये, दुष्टों को विदीर्ण कर दीजिये, फन्दों को फाड़ दीजिये और मूढ़ों को नष्ट कर दीजिये। दुष्टों के समूह को आक्रमण करके झट-पट समेट कर बाहर कर दीजिये और 'रसिक बिहारी' के अराति को उखाड़ कर फेंक दीजिये। अभिमानियों के अभिमान को उजाड़ कर कुचल दीजिये और घमण्डियों के घमण्ड को बिगाड़ कर जला दीजिये। हे हनुमान जी। यदि आप सच्चे वीर बलवान हैं तो शत्रुओं को अपने लॉगूल में लपेट कर पछाड़ दीजिये ।। १८ ।।

(१९)

खाय ले खखेट वीर दीह बल दुष्टन को, बेरिनहि लंगूर  में लपेटि के पटकि दे।

मुण्ड फोरि ग्रीव झकझोरि के मरोरि मुख, हृदय विधोरि सब अंगहि झटकि दे॥

सहित सहाय रिपु मण्डली नसाय बेगि, गर्विन को गर्व काल फाँस में फटकि दे।

 'रसिक बिहारी' की पैज पालि दे कपीस ईश, मेरे दावादारि को विदारि कै हटकि दे ॥१९।।

 

भावार्थ- हे वीर! दुष्टों के दीर्घ दल को दबाकर खा लीजिये और बैरियों को अपने लॉगूल में लपेट कर पटक दीजिये। उन शत्रुओं के सिर तोड़कर, गर्दनें झकझोड़कर हृदयों को छिन्न-भिन्न करके उनके सब अंगों को झटक दीजिये। शत्रु-मण्डलियों को उन के सहायकों सहित, शीघ्र नष्ट करके, अभिमानियों के गर्व को काल के फॉस में फटक दीजिये। हे कपीशों के ईश ! 'रसिक बिहारी' की प्रतिज्ञा का पालन कर दीजिये और मेरे शत्रुओं को, विदीर्ण करके हटक दीजिये ।। १९ ।।

(२०)

बैरिन को खाय ले करेजा काटि दांतन तें, दलिडार लातन तें देह दुष्टन की।

तुच्छन को पटकि लपेटि पुच्छ गुच्छ माहिं, पकरि मरोर डारि जीभ चुगलन की।

पंजन ते भंजि डार वेगि अभिमानिन को, रोखते जराउ प्रबलाई दुर्दिन की।

 कुग्रह कुजोग आधि व्याथि सब मर्दिडार, आन हनुमान तो करें राम औ लखन की ॥२०।।

 

भावार्थ-शत्रुओं के कलेजोको लीजिये और दुष्टों की देहों को अपने पैरो से कुचल - डालिये। तुच्छों को अपनी पूँछ के गुच्छे में लपेट कर पटक दीजिये और चुगलखोरों की जीभों को पकड़कर मरोड़ डालिये। अभिमानियों को शीघ्रता से अपने पंजों से मॉन डालिये और मेरे दुर्दिनों की प्रबलता को अपने क्रोध से जला दीजिये। मेरे कुग्रह, कुयोग एवं आधि-व्याधियों सब मर्दित कर दीजिये, हे हनुमान जी ! आप को श्रीराम जी तथा श्री लक्ष्मण जी की आन है।॥ २०॥

 

 

(२१)

पकरि विथोरि डार बैरिन के झुण्डन को, फोरि डार खोपरी अंग झकझोरि डार।

तोरि डार ग्रीवा गहि रसना मरोरि डार, हाड़न हलोरि डार कर पद झोरि डार ॥

 उदर विलोरि डार उर को अरोरि डार, कोरि डार कंठ कटि दंतन दरोरि डार।

 नैन श्रोन नासि कान छोरि डार सत्रुन की, जोम को धंधोरि डार गहि मुख मोरि डार ॥२१

 

 

भावार्थ- आप बैरियों के समूह को पकड़ कर छिन्न-भिन्न कर दीजिये, उनका खोपड़ियाँ फोड़ दीजिये, अंगों को झक-झोर दीजिये। उनकी गर्दनों को तोड़ दीजिये, जीभों को पकड़ कर मरोड़ डालिये, उनकी अस्थियों को हिला दीजिये और उनकी हाथ-पैरों को दबोच कर पृथक-पृथक कर दीजिये। उनके उदरों का विलोड़न कर दीजिये, हृदयों को मसल दीजिये, उनके कण्ठ छील डालिये, उन की कटि दाँतों से उधेड़ दीजिये। शत्रुओं के नयन, कान, नासिकायें अपने स्थान से पृथक कर दीजिये, अभिमानियों को ज्वाला में जला दीजिये और उनके मुखों को मोड़ दीजिये ।।२१

 

(२२)

वारिद दबाय के पठाय दे पतालि पेलि, दोख दुख दूर करि संकट को काटि दे।

दुर्दिन दपेटि के चपेटि डार चिन्ता सब, राहु गुरु चन्द्र ग्रह बाधा तिहि हाटि दे॥

 'रसिक बिहारी' दिशि हेर कृपा कोर वीर, बेगि भूरि वित्त पूरि सोक सिंधु पाटि दे।

 उछत उदार धीर अँजनी कुमार वीर, बैरिन की मंडली संमूल ते उपाटि दे ॥

 

(२२)

 

भावार्थ- मेरे दारिद्र को दबाकर, पाताल में धक्का देकर भेज दीजिये, दोष-दुख दूर कर दीजिये और संकटों को काट दीजिये। दुर्दिनों को घुड़क दीजिये, सम्पूर्ण चिन्ताओं को चपेट डालिये और राहु, गुरू, चन्द्र, आदि ग्रह-बाधाओं को हटा दीजिये। हे वीर! 'रसिक बिहारी' की ओर कृपा-कोर से देखिये और शीघ्र ही उसे अत्याधिक वित्त से परिपूर्ण कर के, उसके शोक-समुद्र को पाट दीजिये। हे वीर अंजनी कुमार ! आप बहुत प्रचण्ड, उदार तथा धैर्यवान हैं, मेरे बैरियों की सम्पूर्ण मण्डली को जड़ से उखाड़ दीजिये ।। २२ ।।

 

(२३)

बन्ध जीभ निंदक प्रमादी और चबाइन की, बन्ध डीठ मूठ , भूत-प्रेत, रोग बन्ध बन्ध ।

बन्द दोख परकृत जन्त्र मंत्र - तंत्र बन्ध, भानु भौम मन्द आदि कुग्रह सुबंध बंध ॥

 बंध बुद्धि दुष्टन की, वाक्य बंद गति बन्ध, दल खल झुण्डन के कर पद बंध बंध।

 बंध विष दाढ़ नख श्रंग अस्त्र शस्त्र सवै, बेगि बजरंग कुरु चराचर बन्ध बन्ध।।

भावार्थ- आप निंदक, प्रमादी, चबाइयों की जीभों को बाँध दीजिये; कुदृष्टि, मूठ, भूत, प्रेत, रोग आदि बाँध दीजिये, बाँध दीजिये। बन्धन, दोषों, दूसरों द्वारा किये गये तन्त्र-मन्त्र को बाँध दीजिये; सूर्य, मंगल आदि मंद कुग्रहों को भली-भाँति बाँध दीजिये, बाँध दीजिये। दुष्टों की बुद्धि का बन्धन कीजिये, उनके वाक्य बाँधिये, उनकी गति बाँधियेः दुष्ट दलों के झुण्डों के हाथ-पैर बाँध दीजिये, बाँध दीजिये। विषैली दाढ़ों नाखूनों, सींगों, अस्त्र, शस्त्रों आदि सब को बाँध दीजिये; हे बजरंग। शीघ्र ही जड़-चैतन्य का बन्धन कीजिये, बन्धन कीजिये ।। २३ ।।

 

(२४)

बंध बंध अनल अकास जल थल बंध जोगिनी मसान जक्ष गन्धर्व बन्ध बन्ध।

 बंध बंध साकिनी-डाकिनी औ पिशाचनी को, बंध वीर दानवस्तु ब्र‌ह्मदेव बंध बंध ॥

 बंध बंध काल और कराल बैरि बन्ध बन्ध, बीह दुख, दारिद जु दुर्दिन को बंध बंध।

बंध बंध सकल सकल खल झुण्डन को, बेणि हनुमन्त कुरु दुष्ट बल बन्ध बन्ध ॥२४।।

 

भावार्थ- बाँधिये, बाँधिये, अग्नि-आकाश-जल-थल को बाँधिये; योगिनी, मसान, यक्ष, गन्धर्व को बाँधिये। साकिनी, डाकिनी और पिशाचनियों को बाँधिये, बाँधिये; हे वीर! बाँधिये दानवों औ ब्रह्मदेवों को बाँधिये, बाँधिये। बाँधिये, बाँधिये, काल को और भयानक बैरियों को बाँधिये, बाँधिये; दीर्घ दुखों, दारिद्र और दुर्दिनों को बाँधिये बाँधिये। सम्पूर्ण समर्थ खल समूहों को बाँध दीजिये, बाँध दीजिये; हे हनुमन्त! आप शीघ्र दुष्टों के बल को बन्धन में कीजिये, बन्धन में कीजिये ।। २४॥