Khel Khel me - Jaadui - 4 in Hindi Moral Stories by Kaushik Dave books and stories PDF | खेल खेल में - जादूई - भाग 4

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खेल खेल में - जादूई - भाग 4

"खेल खेल में - जादूई"
- (पार्ट -४)

जादूई जंगल में बुढ़े बन गये शुभ को छोटी-सी स्नेहा उसे अपना पिताजी बताते हुए घर लेकर आती है।
स्नेहा अपनी माता को आवाज देती है और एक बुढ़ी औरत झोपड़ी से बाहर आती है। उसे देखकर शुभ चौंक जाता है।

शुभ बोला:-"तुम भी .. तुम भी? तुम तो वोही हो ना!"

 स्नेहा:-"देखो.. माँ पिताजी आपको पहचानते है ... आप तो कहते थे कि वो भूलक्कड है। अब वापस मत झगड़ना। मैं थक चुकी हूं। माँ तुम इस तरह से पिताजी से लड़ते रहती हो और पिताजी घर से बाहर जाते है।फिर आप नहीं जाते . उनकी हालत बिगड़ जाती है, मुझे भी पहचानने से इंकार कर दिया था।अगर आप प्यार करते हो तो झगड़ना नहीं।... मुझे अब अपने छोटे-से गणेशजी के साथ खेलना है।

 इस तरह  की बात करके  बेबी स्नेहा झोपड़ी में जाती है।

 
 ओह  यह वही युवा लड़की थी जिसमें मैं गुज़री बाजार में टकरा गया था.. .. बेबी स्नेहा .. वोही प्यारी क्यूट बच्ची है।

 शुभ:-"क्षमा करें ... मैंने भी उस वक्त जादूई किताब खरीदी थी। फिर खेल खेलते यहां आया था . यहां मेरी उम्र बढ़ती जा रही है।. मेरा नाम शुभ है। आपका नाम ... बच्ची स्नेहा? वह मुझे अपना पिताजी बुलाती है और डांटती भी है। मुझे इस जंगल से बाहर निकलना है। यह जंगल तौबा तौबा,अब मुझे खेलना नहीं है। खेलते खेलते मेरी जवानी चली गई।"

 बुढ़िया ने कहा: "हां, मैं  वही लड़की हूं। मेरा नाम शुभांगी है। स्नेहा मेरी बच्ची है । अब मुझे इस जंगल से बाहर निकलने का एक रास्ता खोजना होगा। मैंने उस जादुई पुस्तक बुढ़िया से लिया था। पढ़ते पढ़ते खेलने लगी । मेरी और मेरी बच्ची की हालत बिगड़ गई।

 शुभ:-तो यहाँ बेबी स्नेहा कैसे?  उसने मुझे क्यूं पिताजी कहा?

शुभांगी :-देखिए मैं आपको अपनी संकट की कहानी बताऊंगी।  मैं एक युवक से प्यार करती थी।  स्नेहा के जन्म से ठीक पहले युवक ने मुझे छोड़ दिया।  स्नेहा ने अपने पिताजी को नहीं देखा .. लेकिन जब उसने आपको बाजार में देखा और आप उसे देखकर मुस्कुराए .. फिर वह मुझसे कहती है कि मैं पिताजी के पास जाना चाहती हूं ।बच्चे की जिद है  उसे समझा नहीं सकते। मैंने रात में जादुई पुस्तक पढ़ना शुरू कर दिया था।  उसी समय मैंने अपनी उंगली तेरह नंबर पर रख दी .. फिर हम जंगल में आ गए जैसे कि आपके साथ हुआ।  स्नेहा गणेश जी के साथ . मेरी गोद में बैठी थी। रास्ता ढूंढते इस झोपड़ी में आ गई। आराम करने के लिए यहां ठहरे हैं।  यदि वह आपको  पिता कहती हैं, तो तदनुसार व्यवहार करें। उसके दिल को मत दुखाना।आपको देखकर उसे प्यार आ गया है। अब मैं गुस्से में नहीं रहूंगी..  ... आप बुढ़े अच्छे नहीं लगते।"

शुभ :-ठीक है ... मैं स्नेहा को अपनी बच्ची मानूंगा।इस बुढ़ापे में भी आप अच्छी दिखती हो।लेकिन हम इस बुढ़ापे से कैसे बाहर आएंगे? कोई तो उपाय खोजना पड़ेगा।

शुभांगी :- मैं चिंतित हूं .. मेरा मुंह और शरीर अब आकर्षक नहीं हैं। मैं जवानी में ही बुढ़ी हो गई। मेरे कितने अरमान थे। अब इस हालत में देखेंगे तो लोग मुझसे दूर भागेंगे। क्या हम दोनों एक साथ बाहर निकलने के लिए काम करें?
( शुभांगी और शुभ कैसे इस जादुई जंगल से बाहर निकल सकेंगे? स्नेहा का भोला पन क्या रंग लायेगा?)
- कौशिक दवे