Khel Khel me - Jaadui - 6 last part in Hindi Moral Stories by Kaushik Dave books and stories PDF | खेल खेल में - जादूई - भाग 6 (अंतिम भाग)

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खेल खेल में - जादूई - भाग 6 (अंतिम भाग)

"खेल खेल में - जादूई"( पार्ट -६)

जादूगरनी को शुभ पसंद आता है और अपने साथ शुभ को ले जाती है।


यह देखकर शुभांगी दुखी हो गई।
शुभांगी जादूगरनी की मंशा जान गई।
उसे लगा कि शुभ को छुड़ाने के लिए जान की बाजी लगाने पड़ेगी।
 स्नेहा .:-" मम्मी .. इसमें क्या .. तुम दुखी मत होना। मैं जानती हूं कि आप पिताजी से प्यार करते हो।पिताजी को छुड़ाने  के लिए जाना होगा। मैं मदद करूंगी। मेरे गणेश जी मेरे साथ है। मुझे गणेशजी पर भरोसा है। मम्मी जब मुझे भूख लगती तब आप कहती हैं बस दो मिनट मे मेगी बनाकर लाती हूं। बस दो मिनट मे आ जाउंगी।

 स्नेहा गणेश जी को लेने झोपड़ी में जाती है।  
दो मिनट में स्नेहा गणेश जी को लेकर आती है।  उसके हाथ में एक छोटा सा चप्पा है।

 स्नेहा-"चलो गणेशजी की प्रार्थना करते हैं। मेरे पास छोटा-सा खंजर है यानी छोटा-सा त्रिशूल है,जो गणेश जी के हाथ में होता है। .. मैंने उस पर गणेश का चिन्ह देखा है। इसके जरिए हम सौ नंबर पर पहुंच जाएंगे और जादूगरनी का खेल ख़त्म हो जाएगा।

 शुभांगी स्नेहा को साथ लेती है और जादूगरनी की गुफा की तरफ जाती है।

 कुछ ही मिनटों में गुफा में पहुंच जाती है। 
 शुभ को कैद देखा।

 शुबांगी:-"मैं अब आ गई हूं, शुभ को छोड़ दें।"

 जादूगरनी हंसती है।

 "अब मैं इसको युवा  बनाऊंगी और उससे शादी करूंगी। मैं आपका बलिदान दूंगी।  इस बच्ची को जंगल में छोड़ दूंगी।"

ऐसा बोलकर जादूगरनी जोर से हंसती है।

यह सुनकर शुभांगी घबरा जाती है।

 यह सुनकर, स्नेहा मन में गणेशजी की प्रार्थना करती है।

 फिर वह गुस्से में कहती है:-" जादूगरनी,मेरे पिताजी को छोड़ दें.. मैं मेरी माँ को   छूना मत।"


 हाँ..हा .. वह उस जादूगरनी पर हंसती है .. 

बच्ची, तुम अपने खिलौनों के साथ खेलो। मेरे साथ लड़ना आसान नहीं है। यह मेरा जंगल है।

 स्नेहा अपने पास से छोटा-सा खंजर निकालतीं है।

स्नेहा मन में गणेश जी को याद करती है।

 जय गणेश बोलकर स्नेहा खंजर को जादूगरनी की तरफ़ फेंकती है।

गणेश जी की कृपा से छोटा-सा खंजर बड़ा होता जाता है और गोल गोल घुमता हुआ जादूगरनी की नजदीक जाता है।
 
खंजर जादूगरनी की छाती में घुस जाता है।

जोर से चिल्लाती  है और मृत्यु हो जाती है।

जादूगरनी की मृत्यु के साथ सब जादू खत्म हो जाता है।

 जादू खत्म होते ही शुभ अपने घर पहुंच जाता है।

 शुभांगी और स्नेहा भी अपने घर पर गणेशजी के साथ पहुंच जाते हैं।

 शुभ घर आकर देखता है तो इस दौरान एक सप्ताह बीत चुका था।
 ...
एक सप्ताह में बहुत कुछ बदल गया है। शुभ को ऐसा लगा।

 शुभांगी और मेरी स्नेहा कहाँ गये होंगे? मेरी तरह अपने घर पहुंच गए हैं कि नहीं?

 अगले दिन रविवार है। 
 
शुभ को वो जादुई किताब रखना नहीं चाहता इसलिए उसने जादूई किताब साथ में ली और गुजरी बाजार में पहुंच गया।

गुज़री बाजार में शुभ ने शुभांगी और स्नेहा को देखा।
स्नेहा शुभ के को देखकर मुस्कुराती है।

शुभ और शुभांगी बुढ़िया को खोजने लगे, जिसके पास से जादूई किताब ली थी।

 लेकिन उनको बुढ़िया दिखाई नहीं दी।
वहीं जगह पर एक दूसरा आदमी किताबें लेकर बैठा था।

शुभ ने उस आदमी को बुढ़िया के बारे में पूछा।

वह आदमी कहता है कि वह बुढ़िया कल रात ही मर गई थी। आसपास के लोग कहते थे कि वह बुढ़िया जादू जानती थी इसलिए जादूई किताबें बेचतीं थी।

वह बुढ़िया एक सप्ताह तक दिखाई नहीं दी थी।
 
 रात में उसकी छाती में एक बड़ा खंजर लगा हुआ था। खंजर पर छोटे हाथी की तस्वीर थी। 
 हर कोई कहते थे कि जादू की वजह से ही उसकी जान चली गई थी।

 स्नेहा इस पर हंसी।

 शुभ और शुभांगी ने अपनी किताब कूड़ेदान में डाल दी।

 स्नेहा:-"पिताजी, मैंने आप दोनों को जीत दिलाई है .. मैं दूध पोहा नहीं हूं। किसी का भी आकलन कम मत समझना।

 यह सुनकर, शुभ की आँखें गीली हो गईं।

शुभ ने खूबसूरत शुभांगी की तरफ़ देखा।

 आंखों ही आँखों से पूछा .. क्या करना है?

 स्नेहा ने यह देखा और कहा: "सब कुछ माँ से पूछोगे? यदि आप एक पिता बनना चाहते हैं, तो मेरे उंगली को पकड़ो और मुझे रिवरफ्रंट ले लो। यदि आप नहीं बनना चाहते हैं, तो भी मैं आपके साथ रहूंगी ।मैं माँ को मना लूंगी।ऐसी जादूई किताब मत पढ़ना। अच्छी किताबें मिलती है इसलिए कृपया अच्छी किताबें पढ़िए। मैं कितनी छोटी हूं फिर भी समझदार हूं।

  बेबी स्नेहा ने एक हाथ में अपनी मां की उंगली पकड़ी और दूसरे हाथ में शुभ की उंगली पकड़ी।
 ...
 बेबी स्नेहा हंसकर बोली... अब दोनों एक-दूसरे की तरफ हंसों। और हां अब झगड़ना मत और प्यार से रहना पड़ेगा।

 तीनों रिवरफ्रंट की ओर बढ़े ...
( आप को यह कहानी कैसी लगी? कृपया समीक्षा कर बताये)
 - कौशिक दवे