हरिसिंह हरीश की कविताएं व समीक्षा
मेरा खत न मिलने पर 2
हरि सिंह हरीश एक कर्मठ कवि थे। अपनी हैसियतों के भीतर लिखने वाले। अपने शब्दकोश के भीतर लिखने वाले और विषय के दायरे में भी लगभग सीमित रहने वाले। उनका मुख्य विषय था प्रेम और प्रेम। जब विषय रखेंगे तो प्रेमिका भी आएगी। प्रेमिका की याद भी आएगी। मिलन भी आएगा और मिलन के क्षणों की हरकतें भी याद आएंगे। प्रेमिका से उलझना भी याद आएगी। उनके द्वारा कविता और उपन्यास लिखने का काम पूजा की तरह किया जाता था। सुबह 6:00 बजे जाग जाते और लिखना शुरू कर देते। उन्होंने 39 उपन्यास लिखे। उनके पास 10000 गीत हैं। उनके लिखे 25000 मुक्तक हैं। उनकी लगभग 15000 गजल हैं। अगर गीत शास्त्र या ग़ज़ल के आलोचना शास्त्र से इन रचनाओं का आकलन करें तो शायद इनमें से कम ही खरे उतरेंगे ।लेकिन मनमौजी कवि थे । एक कस्बे का कवि। इसका देखने का दायरा , अनुभव करने का दायरा कस्बे के कवि की तरह ही था। न उंन्का देश के किसी व्यक्ति से कंपटीशन था, न देश के किसी बड़े संस्थान से किताब छापने की लालसा। पत्रिका भी बड़ी नहीं चाहते थे वे। छोटे-मोटे पत्र पत्रिकाओं में छप लेते थे और कवि गोष्ठी में सुन लेते थे। उनके प्रकासन उनकी शुरुआत ‘कली भवरे और कांटे’ उपन्यास से हुई जो उनका 40 व उपन्यास था। पर इसके बाद के 39 उपन्यास अब प्रकाशित ही रह गए। उन्होंने ‘मन के गीत नमन के अक्षर” के नाम से एक व्यक्ति गीत संग्रह भी प्रकाशित कराया था। इसके बाद फिर प्रोफेसर पर शुक्ला (परशुराम शुक्ल) की प्रेरणा मिली । डॉक्टर हरिहर गोस्वामी द्वारा दिया गया आशीर्वाद सहयोग और शहर के बहुत तेरे लोगों की अप्रिशिएसन से उन्होंने अपने अन्य किताबों का प्रकाशन शुरू किया। दतिया काव्य धारा 3 का उन्होंने संपादन किया और अपनी लगभग एक दर्जन किताबें उन्होंने विभिन्न संग्रह में शामिल की और छपाई। उनके एक रचना संग्रह पर यह टिप्पणी और टिप्पणी के साक्ष्य में उनकी रचनाएं प्रस्तुत हैं -
(११)
दर्द में डूबा हुआ हूं, ग़म के धारे पी रहा । यह खुशी क्या कम है बोला, सीना उभारे पी रहा ?
आज तक ऐसा किसी ने जाम पाया ही नहीं । जो मेरा होने लगे वह नाम आया ही नहीं ।
गिरके उठता, उठके गिरता, बेसहारे पी रहा । यह खुशी क्या कम है बोला, सीना उभारे पी रहा ?
तौर मेरी ज़िन्दगी का इस तरह बदला है ये। देखले ग़र कोई मुझको, तो कहे पगला है ये।
सागरों में डूब कर रंगी किनारे पी रहा । यह खुशी क्या कम है बोलो, सीना उभारे पी रहा ?
खूब तालीमें मिली हैं, मुझको दुनिया से यहां । जल्म की हद हो गई है, वाह रे ! अंधे जहां ।
(१२)
मैं दर्द पी रहा है दुनिया के गम खाता अपने प्यारों के। आंखों में आँसू छलक रहे, यह अहसां हम पर वारों के ।
दुनिया में अपना न कोई, हाँ, सभी आज बेगाने हैं। सभी हमारे हालातों से, अब देखो अनजाने हैं।
चुभने लगे हैं फूल हमें अब जैसे साथी हों ये खारों के। आंखों में आंसू छलक रहे, यह अहसां हम पर यारों के।
सब दिल के सपने टूट गए हम रोते तभी अकेले में। यह दुनिया तो छोड़ गई है, दुःख के घरे झमेले में।
डूब रहा हूँ आकर देखो, मैं नज़दीक किनारों के । आंखों में आंसू छलक रहे, यह अहसां हम पर वारों के।
लो, पहनी अपने हाथों से यह दर्दो की जंजीर कड़ी । लो, मेरी जान मसलने को यह दुनिया देखो यहां खड़ी ।
जो आंखों से आंसू बहते, यह मोती हम नाकारों के । आंखों में आंसू छलक रहे, यह अहसां हम पर यारों के।
मैं इसका कैसे जिक्र करूं, जो तूने यह उपकार किये ? एक अकिंचन पर जो कुर्बा, अपने कर के हार किये ।
मैं बोझों तले दबा बैठा, हूँ तेरे इन उपकारों के । आंखों में आंसू छलक रहे, यह अहसां हम पर यारों के।
हां, मेरी इस तनहाई को, जो तूने आकर दूर किया । मैं प्यासा था जिस चाहत का, उससे ही भरपूर किया ।
सांसों में सरगम गूंज रहा, है शोर मधुर झन्कारों के । आंखों में आंसू छलक रहे, यह अहसां हम पर यारों के ।
१३)
ये हैं झूठे लोग जहां में, ये हैं झूठे लोग रे। नहीं है इनको इस दुनिया में, प्रेम-प्रीत का रोग रे ।
मतलब परस्त नीयत है इनकी, समड़ादार हैं ज्यादा । ये झूठी कसमें खाते हैं, ये झूठे करते वादा ।
इनसे मिलना-जुलना होता, केवल एक संयोग रे। नहीं है इनको इस दुनिया में, प्रेम-प्रीत का रोग है।
जिसका चेहरा इनको भाता, उस पर डालें डोरे । मन के बिल्कुल काले हैं, ये तन के कितने गोरे ।
साफ बदल जाते हैं वे तो, मन का कर उपयोग रे । नहीं है इनको इस दुनिया में, प्रेम-प्रीत का रोग रे ।
नाम बड़े औ' दर्शन छोटे, ये इनकी परिभाषा । नाम किसी का राधा-सीता, और किसी का आशा ।
जीवन में दे जाते हैं, ये मिलकर हमें वियोग रे । नहीं है इनको इस दुनिया में, प्रेम-प्रीत का रोग रे ।
पति को कहते हैं परमेश्वर, पर यह सच्ची बात नहीं । प्यार किसी से करते रहते, क्या यह इनकी घात नहीं ?
नफ़रत की स्वाही से लिखते, चाहत की ये जोग रे । नहीं है इनको इस दुनिया में, प्रेम-प्रीत का रोग रे।
पहले तन के पास रहे, ये फिर तन से होते दूर । झूठ बताते फिरते सबको, नासमझी का खूब रचे हैं,
नहीं है इनको इस दुनिया में, हम हैं अब मज़बूर। जीवन में ये ढोंग रे। प्रेम-प्रीत का रोग रे ।
(१४)
चिड़ी, पाती, पत्र, खतों का आना जाना बन्द । तुमने साथी तोड़ दिया है चाहत का अनुकन्य ।
चैने कितने पत्र लिखें हैं, पर तेरे पत्र न आए। मेरे गीत पड़े अनगाये, पर तूने गीत न गाए ।
सिसक रहे हैं पड़े पड़े, ये मेरे सारे छन्द । तोड़ दिया है तुमने साथी, चाहत का अनुबन्ध ।
तेरे छायाचित्र हमारे पास रखे हैं सारे । देखभाल करता रहता हूं, हैं इतने ये प्यारे ।
तस्वीरों को देख-देखकर आता है आनन्द । तोड़ दिया है तुमने साथी, चाहत का अनुबन्ध ।
तूने मेरे ख़त लिखने पर, रोक लगादी भारी । पत्र नहीं लिखता हूं तब ही, हूं तेरा आभारी ।
तूने लगा दिया है साथी, यह अब तो प्रतिवन्ध । तोड़ दिया है तुमने साथी चाहत का अनुवन्ध ।
लगता तेरा प्यार आजकल नफ़रत के घर ठहरा । लगा दिया है तभी किसी ने तुम पर इतना पहरा ।
तेरी साँसों की पत्रों में आती अब न गन्ध । तोड़ दिया है तुमने साथी, चाहत का अनुबन्ध ।
मेरा रोना-धोना तुमको रास बहुत आया है। बदले का यह अच्छा-खासा दाव तुम्हें भाया है।
मुझे रुलाने में तुमको तो आता बहु-आनन्द । तोड़ दिया है तुमने साथी, चाहत का अनुबन्ध ।
डालो मुझ पर जितना चाहो जुल्म सितम तुम आज । मेरी सहनशीलता का तुम करलो अब अंदाज ।
तुम्हें मिलेगी इस चाहत में, अब भी वहीं सुगन्ध । तोड़ दिया है तुमने साथी, चाहत का अनुबन्ध ।
प्यार-मुहब्बत तुम क्या जानो, नफ़रत करने वाले । जुल्य-सितम से ख़ौफ न खाते, चाहत करने वाले ।
अपने सभी इरादे करलो हमको देख बुलन्द । तोड़ दिया है तुमने साथी चाहत का अनुबन्ध ।
खूब प्यार का डोंग रचाया, बनकर सीता, राधा । तोड़ दिया है इक झटके से तुमने अपना वादा ।
मुझे मिटाने का तुमने तो कर ही लिया प्रबन्ध । तोड़ दिया है तुमने साथी चाहत का अनुबन्ध ।
कवि 'हरीश' के पत्र फाड़कर, फेंक दिए हैं तुमने । यह भी सुना किसी के मुखसे, जला दिये हैं तुमने ।
आज समझ में आया हमको तेरा ये सब फन्द । तोड़ दिया है तुमने साथी, चाहत का अनुबन्ध ।
(१५)
अपना कोई नहीं दुनिया में, हम बेगाने हैं। हमें देखकर लोग समझते, हम दीवाने हैं।
जिसने चाहा हमसे खेला, जब चाहा तब छोड़ दिया । हमें समझकर एक खिलौना, खेल-खेलकर तोड़ दिया।
भूले बिसरे इस दुनिया में, हम अफसाने हैं। हमें देखकर लोग समझते, हम दीवाने हैं।
हम नादान समझ न पाये, समझदार की बातें । आज समझ में आया अपने, थी वो उसकी घातें ।
होठों तक जो पहुंच न पाये, हम वहीं तराने हैं। हमें देखकर लोग समझते, हम दीवाने हैं।
इक देवी को चाहा हमने, औं' हृदय से प्यार किया । साथ जियेंगे, साथ मरेंगे, यह हमने इकरार किया ।
हाथों से छूटे औ' टूटे, हम वो हमें देखकर लोग समझते, हम पैमाने हैं। दीवाने हैं।
16
हर पल तुम्हीं याद आते हो, जाने क्यों इतना भाते हो ? तुम बिन मैं तो तड़प रहा हूं, लेकिन तुम नगमे गाते हो ।
बीत गई सदियां अनगिनतीं, लेकिन तुम न मिले आजतक । मुझसे मिलने को तो तेरे, बने नहीं सिलसिले आजतक ।
मेरे हाथों आते-आते हरदम ही छूटे जाते हो । तुम बिन मैं तो तड़प रहा हूं, लेकिन तुम नगमे गाते हो ।
तुमने जो-जो कहा मिलन में, हमने वही मंत्र सा माना । वही जया जीवन भर हमने, लेकिन तुमने यह न जाना ।
मेरी समझ न आए कुछ भी, जाने कैसे समझाते हो ? तुम बिन मैं तो तड़प रहा हूं, लेकिन तुम नगमे गाते हो ।
अच्छा होता एक बार ही, मन की व्यथा हमें बतलाते । हम तुमसे कुछ भी न कहते, तुम चाहे कुछ भी कहजाते ।
लेकिन तुम तो छलिया बनकर, हरपल हमें छले जाते हो । तुम बिन मैं तो तड़प रहा हूं, लेकिन तुम नगमे गाते हो ।
आज सोचता उन लम्हों को, मैंने सच समझा क्यों इतना ? कितना भोला बना रहा मैं, तुझे भला समझा जो अपना ।
मैं तेरा मनमीत नहीं हूं, मुझे आज क्यों बतलाते हो ? तुम बिन मैं तो तड़प रहा हूं, लेकिन तुम नगमे गाते हो ।
(१७)
तेरी-मेरी खत्म कहानी, अब आगे रस्ता न कोई । यही देखकर इस दुनिया में, साथ-साथ चलता न कोई ।
इक-इक शब्द खून से लिखकर, हमने इसको पूर्ण किया है। खुद को होम कर दिया लेकिन, इसे मगर संपूर्ण किया है।
मेरे जैसा प्रेम दीवाना, तुम्हें मिला सस्ता न कोई । तेरी मेरी खत्म कहानी, अब आगे रस्ता न कोई ।
मैं भोला था, मैं सीधा था, तुमने प्रेम-जाल में फांसा । आज मुझे दुत्कार रही हो, ऐसा मुझे दिया है झांसा ।
भोला था फंस गया इसी से, वर्ना यूं फसता न कोई । तेरी-मेरी खत्म कहानी, अब आगे रस्ता न कोई ।
सब कुछ लुटा दिया है तुम पर, अब तो मैं बन गया भिखारी । तुमने हाल किया यह मेरा, मैं तो हुआ बहुत आभारी ।
यही देखकर मेरे ऊपर, व्यंग्य-वाण कसता न कोई । तेरी-मेरी खत्म कहानी, अब आगे रस्ता न कोई ।
तुम जबसे भा गये हृदय को, और नहीं कोई भी भाता । मेरे जैसा तुम्हीं बताओ, और कोई क्या तुम्हें दिखाता ?
तुम नस-नस में रसी हो जबसे, तब से अब रसता न कोई । तेरी-मेरी खत्म कहानी, अब आगे रस्ता न कोई ।
तुम तो मेरे मन के अन्दर, बिन बोले ही आकर बैठे । हम नादान समझ न पाये, तुमसे तनिक नहीं हम ऐंठे ।
बिन पूछे धस गये हृदय में, ऐसे भला धसता न कोई । तेरी-मेरी खत्म कहानी, अब आगे रस्ता न कोई ।
१८)
तेरे बिना ये सूना सूना आंगन लगता है । मैंने सारी दुनिया देखी तू न दिखता है।
इस दुनिया में तुम्हीं नहीं तो दुनिया कैसी है ? फिर तो सचमुच दुनिया सारी मरघट जैसी है,
तेरी यादों के वर्पण को मन ये सकता है। मैंने सारी दुनिया देखी तू न दिखता है ।
तेरे दम पर जीता था. पर त ही रूठ गया। मेरा तन-मन जीवन सारा तू तो लूट गया ।
तू मुझको अब नहीं दिखेगा, ऐसा लगता है। मैंने सारी दुनिया देखी तू न दिखता है।
तेरे बिन अब नहीं जियूंगा, मुझको भान हुआ । इसका मुझको आज प्रियतमे पूरा ज्ञान हुआ ।
मैंने सच्ची बात बता दी, तू क्या कहता है ? मैंने सारी दुनिया देखी, तू न दिखता है।
भूल हो गई मुझसे जो तुम्हें इतना प्यार किया । साथ जियेंगे, साथ मरेंगे, यह इकरार किया ।
लगता है तू इस वादे से, मैंने सारी दुनिया देखी, आज मुकरता है । तू न दिखता है ।
तेरी बातें भूल न पाया, इसीलिए तो बनी हुई है, यह मेरी मजबूरी । तुमसे इतनी दूरी ।
जाने क्यों तेरी सूरत पर, दिल ये मरता है ? मैंने सारी दुनिया देखी, तू न दिखता है ।
चार दिनों का साथ रहा है, तेरा और मेरा । खुशियों ने मुख मोड़ लिया, अब ग़म ने आ घेरा।
तुझको खोकर जीना मुश्किल, ऐसा लगता है। मैंने सारी दुनिया देखी, तू न दिखता है।
माना पर्वत ऊंचे होते, गहरे होते हैं। लेकिन पंथी इन्हें देख न साहस खोते हैं।
तुमको मेरी बाद न आए ऐसा लगता है। मैंने सारी दुनिया देखी, तू न दिखता है।
रूप तुम्हारा बसा हृदय में, फिर कैसे में भूलें ? तेरी यादों की छाया को, क्यों न में छूर्तुं ।
मुझे प्रियतमे ! तेरा मिलना अच्छा लगता है। मैंने सारी दुनिया देखी, तू न दिखता है।
(१९)
कब तक तेरे चित्र बनाऊं, खून हृदय का लगा-लगाकर । मैं देखो बेजान हुआ हूं, लहू हृदय का बहा-बहाकर ।
तेरा हाथ पकड़ कर मैंने, जग से नाता तोड़ दिया था। तेरा जबसे साथ किया, तो सबको हमने छोड़ दिया था।
मैं कितना बेजान हुआ हूं, दुःख से अपने नहा नहाकर । कब तक तेरे चित्र बनाऊं, खून हृदय का लगा लगाकर ।
तू बदली तो ऐसी बदली, जैसे तुझसे मेल नहीं था । प्यार-मुहब्बत करना देखो, इस दुनिया में खेल नहीं था।
मंज़िल पर हम पहुंच न पाये, पग अपने यूं बढ़ा-बढ़ाकर । कब तक तेरे चित्र बनाऊं, खून हृदय का लगा लगाकर ।
तुमसे दूरी बढ़ी है इतनी, जितनी अब मैं नाप न पाऊं । तुम्ही बताओ जरा प्रियतमे । अब मैं कैसे तुम तक आऊं ?
जब कैसे मैं बात बताऊं, इस दूरी से सुना-सुनाकर ? कब तक तेरे चित्र बनाऊं, खून हृदय का लगा लगाकर ।
पत्र तलक न डाला तुमने, तुम ऐसी पाषाण हो गई । सांस-सांस में समा चुकी थी, फिर क्यों यूं तुम प्राण हो गई ?
तुम हंसती हो वहां प्रिवतमे। मुझको इतना रुला-रुलाकर । कब तक तेरी चित्र बनाऊं, खून हृदय का लगा लगाकर ।
२०)
तुम्हारे मिलन की प्रतीक्षा करूंगा । सपथ है तुम्हारी न आहें भरूंगा ।
मेरी ज़िन्दगी की तुम्हीं हो कहानी । तुम्हीं दिल के गुलशन की हो रात रानी।
तुम्हीं से सदा अपना दामन भरूंगा । सपथ है तुम्हारी न आहें भरूंगा ।
कोई दौर आये मेरी ज़िन्दगी में । मैं गाता रहूंगा मधुर बाँसुरी में ।
कभी कोई तुमसे गिला न करूंगा । सपथ है तुम्हारी न आहें भरूंगा ।
मेरी ज़िन्दगी में तुम्हीं तुम बसी हो । मैं सच कह रहा हूं, तुम्हीं तुम रसी हो ।
तेरा हाथ-हाथों में लेकर रहूंगा । सपथ है तुम्हारी न आहें भरूंगा ।
नहीं गैर तुम हो, नहीं मैं पराया । मेरा दिल तुम्हीं में ये रहता समाया ।
तुम्हें देखकर मैं तो हंसता रहूंगा । सपथ है तुम्हारी न आहें भरूंगा ।
मेरी सांस जब तक ये चलती रहेगी । तुम्हारे मिलन को मचलती रहेगी ।
तुम्हें दूर दिल से कभी न करूंगा । सपथ है तुम्हारी न आहें भरूंगा ।
(२१)
तुम्हें पाकर हंसे थे हम, तुम्हें खो करके रोते हैं। बहाकर अएक आंखों से कि हम दापन भिंगोते हैं।
भला हो ज़िन्दगी तेरा, हमारे दिल से खेली तू, हमें इस हाल पर छोड़ा । हमारा दिल मसल तोड़ा ।
हंसीं ये आंख के मोती कि हम रो-रो पिरोते हैं। बहाकर अष्एक आंखों से कि हम दामन भिंगोते हैं।
चही अंजाम है शायद हमारे दिल लगाने का । तुम्हारे पास आने का, तुम्हें अपना बनाने का ।
तुम्हारी वाद के दिल में कि हम दीपक संजोते हैं। बहाकर अश्क आंखों से कि हम दामन भिंगोते हैं।
तड़पते रहते हैं हरदम, यही है ज़िन्दगी अपनी । तुम्हें खुशहाल रखने को अजी देदी खुशी अपनी ।
तुम्हारा नाम ले-लेकर कि हम रातों को सोते हैं। बहाकर अनक आंखों से कि हम दामन भिंगोते हैं।
कसम खाकर के बैठे हैं, तुम्हें पाकर रहेंगे हम । बना करके तुम्हें दुल्हन, यहां लाकर रहेंगे हम ।
तुम्हें पाने की खातिर ही कि दिल का चैन खोते हैं। बहाकर अड्क आंखों से कि हम दामन भिंगोते हैं।
तुम्हें मालूम तो होले, हमारे हाल कैसे हैं ? गुजरते जा रहे हैं जो हमारे साल कैसे हैं?
तुम्हारे दर्दी-ग़म के बोझ को हंस-हंस के होते हैं। बहाकर अनक आंखों से कि हम दामन भिगोते हैं।
२२)
तुम्हारे खा पड़ा करता, यही बस काम करता हूँ। हाता रखता हूं हरदम, नहीं आराम करता हूँ।
तुम्हारा प्यार इनमें है, यही बस देखता रहता । कहो कैसी वहां पर हो, यही बस पूछता रहता ?
जरा ख़ुद को इसी कारण अरे । बदनाम करता हूँ। तड़पता रहता हूं हरदम, नहीं आराम करता हूं।
तुम्हारा नाम सीधा तक नहीं लिखता हूं पाती में । लिखा है खून से ही नाम तेरा अपनी छाती में ।
तुम्हारा नाम ले-लेकर सुबह से शाम करता हूं। तड़पता रहता हूं हरदम, नहीं आराम करता हूं।
यही बस सोचता रहता, बड़ी भोली थी तुम पहले । बसाया था तुम्हें दिल में, बड़ी प्यारी थी तुम पहले ।
इसी से ज़िन्दगी सारी, तड़पता रहता हूं हरदम, तुम्हारे नाम करता हूं। नहीं आराम करता हूं ।
नहीं कहना हमें अपना, ज़माना जान ले लेगा । तुम्हारी जान के संग-संग तेरा ईमान ले लेगा ।
रहो खुशहाल दुनिया में, तड़पता रहता हूं. हरदम, तुम्हें सलाम करता हूं। नहीं आराम करता हूं ।
तुम्हें खुशियां मुबारक हों, हमें ग़म से मुहब्बत है। तुम्हें हमसे नहीं है पर हमें तुमसे मुहब्बत है ।
मुहब्बत करने वालों को, नहीं बदनाम करता हूं। तड़पता रहता हूं हरदम, नहीं आराम करता हूं ।
(२३)
ख़त लिख रहा हूं तुमको, देना जवाब तुम । ख़त आयेगा जो तेरा, लेना जवाब तुम ।
हम याद करते रहते, अक्सर ही रात को । कई बार सोचते हैं हम तेरी बात को ।
तुम किस तरह से होजी, देना जवाब तुम ? ख़त आयेगा जो तेरा, लेना जवाब तुम ।
सदियां गुजर गईं हैं, ख़त आया तक नहीं । हमने तो इसलिए ही, मुस्कुराया तक नहीं ।
क्यों ख़त नहीं देते हो, देना जवाब तुम ? ख़त आयेगा जो तेरा, लेना जवाब तुम ।
शादी रचाई तुमने, हमको खबर न दी । हर ओर भेजी चिट्ठी, हमको इधर न दी ।
कैसी रही है शादी, देना जवाब तुम ? ख़त आयेगा जो तेरा, लेना जवाब तुम ।
हम भी बतादें अपनी सारी व्यथा-कहानी । बरबाद हमने करदी, तेरे लिए जवानी ।
तेरी है क्या कहानी, देना जवाब तुम ? ख़त आयेगा जो तेरा, लेना जवाब तुम ।
२३)
जात लिख रहा हूं तुमको, देना छत आयेगा जो तेरा, लेना जवाब तुम ।
हाथ बाद करते रहते, अक्सर ही रात को ।कई बार सोचते हैं हम तेरी बात को ।
हुए किस तरह से होजी, देना जवाब तुम ? खत आयेगा जो तेरा, लेना जवाब तुम ।
सदियां गुजर गईं हैं, ख़त आया तक नहीं । हमने तो इसलिए ही, मुस्कुराया तक नहीं ।
क्यों खत नहीं देते हो, देना जवाब तुम ? खत आयेगा जो तेरा, लेना जवाब तुम ।
सादी रवाई तुमने, हमको खबर न दी । हा और भेजी चिट्ठी, हमको इधर न दी ।
कैसी रही है शादी, देना जवाब तुम ? व्रत आयेगा जो तेरा, लेना जवाब तुम ।
हस भी बतादें अपनी सारी व्यथा-कहानी । बरबाद हमने करदी, तेरे लिए जवानी ।
क्या कहानी देना जवाब तुम ? खत आयेगा जो तेरा लेना जवाब तुम ।
२४)
ज़िन्दगी गर दर्द है, तो दर्द का हम क्या करें ? कोई हमको ये बतादे, हम जियें या कि परें ।
तुमने दे दी ये हमें सौगात जो कि दर्द की । मेरे मन में आती रहती बात अब तो दर्द की ।
दर्द चाहे जितना देदो, हम नहीं इससे डरें । कोई हमको ये बतादे, हम जियें या कि मरें ।
दर्द के ही गीत लिखकर मैं सुनाता जाऊंगा । दर्द को ही हर कहीं मैं गुनगुनाता जाऊंगा ।
दर्द के ही जाम अब तो देखिये पीने भरें । कोई हमको ये बतादे, हम जियें या कि मरें ।
दर्द को ही लेके इक दिन देखिये सो जायेंगे । इस जहां से देखियेगा हम जुदा हो जायेंगे ।
दर्द के ही फूल अब तो आंखों से मेरे झरें । कोई हमको ये बतादे, हम जियें या कि मरें ।
दर्द देने वाले अब तू शुक्रिया कर ले कुबूल । दर्द के ही दिल-जिगर में दे दिये जो तूने फूल ।
अब दर्द मेरी ज़िन्दगी, फिर दूर इसको क्यों करें ? कोई हमको ये बतादे, हम जियें या कि मरें ।
दर्द पीके हमने अपनी ज़िन्दगी को जी लिया । तेरी ख़ातिर दर्द में ही हर खुशी को जी लिया ।
और क्या तेरी है मंशा, यह बता वह हम करें ? कोई हमको ये बतादे, हम जियें या कि मरें ।
२५)
मतलब परस्त हैं ये, मिलने से फिर क्या होगा ? चाहत में इनकी बोलो, हंसने से फिर क्या होगा ?
चेहरे कई हैं इनके, किस-किस को भांप लोगे ? मिलना नहीं है कुछ भी, क्या इनसे मांग लोगे ?
जायेगी बात खाली, कहने से फिर क्या होगा ? चाहत में इनकी बोलो, हंसने से फिर क्या होगा ?
चेहरे से ये हंसीं हैं, पर दिल के हैं स्याह काले । हारोगे दिल की बाज़ी, इनके खेल हैं निराले ।
चालें ग़लत पड़ेंगीं, चलने से फिर क्या होगा ? चाहत में इनकी बोलो, हंसने से फिर क्या होगा ?
वादे हैं इनके झूठे, कसमें हैं जानलेवा । ले-लेंगे जान इक दिन, पकड़ेंगे जब गरेबां ।
आंसू बहा-बहाकर, मरने से फिर क्या होगा ? चाहत में इनकी बोलो, हंसने से फिर क्या होगा ?
ये बावफा नहीं हैं, इनसे वफा फिर कैसी ? धोखा ही देंगे आखिर, इनकी ख़ता फिर कैसी ?
यूं होश में आकर के, आने से फिर क्या होगा ? चाहत में इनकी बोलो, हंसने से फिर क्या होगा ?
२६)
न ख़त मिला तुम्हारा, नं तेरी खबर मिली । सदियां गुज़र गई हैं, न तेरी नज़र मिली ।
कई जन्म ले चुका हूँ, तुझे पाने के लिए मैं। डोली सजाये बैठा, तुझे लाने के लिए मैं ।
न हंसती कहीं दिखी तू, न चश्ये-तर मिली । सदियां गुज़र गई हैं, न तेरी नज़र मिली ।
वादे धूला दिये हैं, कसमें भुला दी तूने । चाहत की सारी अपनी रसमें भुला दी तूने ।
न वीराने में मिली तू, न अपने घर मिली । सदियां गुज़र गई हैं, न तेरी नज़र मिली ।
गलियां हजार कूचे छाने हैं तुझको पाने । मिलने के तुमसे यारा, ढूंढे कई बहाने ।
न तू इधर मिली, न तू उधर मिली । सदियां गुज़र गईं हैं, न तेरी नज़र मिली ।
ढूंढा शहर-शहर में, तुझे गांव-गांव देखा । कभी धूप में तलाशा, कभी छांव-छांव देखा ।
इत्तफाक से कहीं तू न हमको गुज़र मिली । सदियां गुज़र गई हैं, न तेरी नज़र मिली ।
आखिर हताश होकर, मरघट में बस गया हूं। तेरी चाहतों में देखो, मैं कैसा फंस गया हूं ?
न तू जीते इथर मिली, न मरके उधर मिली । सदियों गुज़र गई हैं, न तेरी नज़र मिली ।
(२७)
जो सच बोल न पाया, वो क्या भला करेगा ? किसी रोज देखिये यह ज़लज़ला करेगा ।
इनसे भलाई होगी अब यह यकीं नहीं है । इनका किया हुआ तो दुनिया में कुछ नहीं है।
अब हर कहीं इन्हीं का चर्चा चला करेगा । किसी रोज देखिये यह ज़लज़ला करेगा ।
चेहरा है चांद जैसा, लेकिन हृदय है काला । हम सच ही कह रहे हैं, अपना है देखा भाला।
जिना इन्हीं का अब तो सबको खला करेगा। किसी रोज देखिये यह ज़लज़ला करेगा ।
इनकी कथायें सुनकर कोई न खुश रहेगा । यह बेवफा है यारों जिक्रा यही रहेगा ।
इनका ख़्याल करके हर दिल जला करेगा । किसी रोज देखिये यह ज़लज़ला करेगा ।
वे मासूम लगते हैं, पर मासूम ये नहीं हैं। जैसा समझ रहे हो वैसे भी ये नहीं हैं।
इन्हें जो भी कहेगा अपना वो दिल मला करेगा। किसी रोज देखिये यह ज़लज़ला करेगा ।
हाँ इनके तमाम क़िस्से अफसाने बन गए हैं। इनकी चाहतों के अनगिन दीवाने बन गए हैं।
तुम ही नहीं अकेले, हर दिल गिला करेगा । किसी रोज देखिये यह ज़लज़ला करेगा ।
इनसे न दिल लगाना, इनसे न प्यार करना । इनकी किसी वफा का न एतबार करना ।
यह चुप खड़े रहेंगे, तेरा दिल जला करेगा । किसी रोज देखिये यह ज़लज़ला करेगा ।
(२८)
तू चांद है फलक का, मैं धूल हूं जीं की। तुझ में हजार गुन हैं, मुझमें इन्तहां कमीं की ।
फिर मेलजोल कैसा, तू ही ज़रा बतादे ? यह माजरा है कैसा, पर्दा ज़रा उठादे ?
तू आसमां पे रहता, मेरी ज़िन्दगी जमीं की । तुझ में हजार गुन हैं, मुझमें इन्तहां कीं की ।
तुझे सब निहारते हैं, मुझे देखता न कोई । क्या दूरी है तुझ में तू देवता कहाता,
मुझ में यह लेखता न कोई ? मेरी शक्ल आदमी की । तुझ में हजार गुन हैं, मुझ में इन्तहां कमीं की ।
तुझ में दाग न कोई, मुझ में हैं दाग़ कितने ? तू मखमली है गुड़िया, मुझ में ताग कितने ?
मैं हूं दहकता शोला, तू बूंद शबनमी की । तुझ में हजार गुन हैं, मुझ में इन्तहां कीं की ।
हर रंग है निराला, तेरा जहां ने हसरत । हर आदमी को तेरी, बस चाहिए मुहब्बत ।
दुनिया तेरी चहेती, कोई शाख न हमीं की । तुझ में हजार गुन हैं, मुझ में इन्तहां कमीं की ।
फिर मुकाबिला क्या मेरा-तेरा हंसी नज़ारा । तू है सभी का अपना, मैं हूं यहां नाकारा ।
चाहत मिली न मुझको, संसार में किसी की । तुझ में हजार गुन हैं, मुझ में इन्तहां कमीं की ।
(२९)
कितना दर्द दिया है तुमने, जिसे पीते-पीते उमर गई ? लोग शायद मरने पर जानें, इसकी अब तो सुधर गई ।
दिन, महीने और सालें बीतीं, लेकिन तू मिलने न आई । अब तो यही मेरा मन कहता, तू निकली कितनी हरजाई ?
खुशियों की वह घड़ी सुहानी, जाने कब की गुजर गई । लोग शायद मरने पर जानें, इसकी अब तो सुधर गई ।
वो कसमें तेरी सारी झूठीं, वो झूठे तेरे सारे वादे । केवल धोखा थे वो हमको, सोचे तेरे सभी इरादे ।
मैं संभल न पाया धोखा खाकर, लेकिन तू तो संवर गई। लोग शायद यरने पर जानें, इसकी अब तो सुधर गई ।
परिणीता जबसे तू हो ली, मुझे गिराकर ग़म दलदल में, तबसे कितनी बदल गई ? तबसे कितनी सभल गई ।
मुझे छोड़कर बीच भंवर में, तू साफ किनारे उतर गई । लोग शायद मरने पर जानें, इसकी अब तो सुधर गई ।तेरा रूप सलोना, मोहक, नहीं अभी तक भूला हूं। तेरी चाहत के झूले में नहीं सदियों से झूला हूं।
तू घर पर मेरे न आई, मेरी कितनी खबर गई । लोग शायद मरने पर जानें, इसकी अब तो सुधर गई ।
चिट्ठी-पाती नहीं डालती, नहीं डालने कहती है । मेरी सेहत के बारे में नहीं कभी अब कहती है ।
घड़ी विदाई की आ पहुंची, मिलने की अब सहर गई । लोग शायद मरने पर जानें, इसकी अब तो सुधर गई।
३०)
काश । मेरे तुम अपने होते, तो हम तनहा कभी नही। हंसते रहते इस दुनिया में, तो हम ऐसे कभी न रोते ।
तेरी सूरत इन आंखों ने सदियों से न देखी यारा । तूने भी तो मेरे दिल की दूरी कधी न लेखी यारा ।
काश ! तेरा आना हो जाता तो मुंह रो-रो कभी न बोते। हंसते रहते इस दुनिया में, तो हम ऐसे कभी न रोते ।
सिर्फ तेरी अभिलाषा में ही, मैंने कोई आस न बांधी । चलती रही बिरह की उर में, मेरे देखो हरदम आंधी ।
तू हंसती गर संग में मेरे, तो हम ग़म ये कभी न होते । हंसते रहते इस दुनिया में, तो हम ऐसे कभी न रोते ।
खुशियों का गुलशन लहराता, कली-फूल संग हंसती होती । शबनम पात-पात से मिलकर, सुख की निंदिया सोती होती।
अपने अश्क़ों को दामन पर, देखो ऐसे कभी न बोते । हंसते रहते इस दुनिया में, तो हम ऐसे कभी न रोते ।
तेरा साथ हुआ था जिस दिन, वह घड़ी सुहानी कैसे कहदूं ? तू औरों की है परिणीता, फिर अपनी रानी कैसे कहदू ?
गर तुझसे जो मिलन न होता, तो यह आंसू नहीं पिरोते । हंसते रहते इस दुनिया में, तो हम ऐसे कभी न रोते ।
भूल हो गई मुझसे देखो, प्यार तुम्हें जो यूं कर डाला । अपने तन में, अपने मन में, ग़म का ये सागर भर डाला ।
अपनी इन हंसती आंखों में गम का काजल नहीं अंजोते । हंसते रहते इस दुनिया में, तो हम ऐसे कभी न रोते ।