"विनोद साहब।"
"लेकिन उनसे तुझे क्या काम है?"
"काम है।" वह व्यक्ति तनिक चीख-सा पड़ा- "तभी तो यहां आया हूं। भला बिना काम के कौन आता है?"
"लेकिन क्या काम है? कुछ पता तो चले।"
"मेरी घरवाली ने जहर खा लिया है।"
"जहर?"
"मेरी वजह से। मैंने उसको इतना जलील कर दिया कि उसे जहर खाना पड़ा।"
"वह मर गई?"
"वह मर जाती तो क्या मैं जिंदा रहता?"
"समझ गया।" गार्ड दार्शनिक अंदाज में बोला "वह पच गई और उसने तेरे खिलाफ रिपोर्ट लिखवा दी है। इसलिए तू मारा-मारा फिर रहा है। किसी वकील ने तेरा केस नहीं लिया तो तू बैरिस्टर विनोद के पास चला आया।"
"यह बात नहीं है।" वह आदमी जैसे रो-सा पड़ा- "यह बात होती तो मुझे किसी बात की चिंता नहीं थी।"
"तो फिर क्या बात है?"
"उसने पुलिस को गलत बयान दे दिया है।" वह आदमी फूट-फूटकर रोते हुए बोला "उसने मुझे बचा लिया है। साफ-साफ बचा लिया है।"
"अच्छे खानदान की बेटियां यही करती हैं, लेकिन जब उसने तुझे बचा ही लिया है तो तुझे क्या फिक्र है, किसलिए मारा-मारा फिर रहा है?"
"मुझसे यह जलालत बर्दाश्त नहीं हो रही। अगर वह मेरे खिलाफ बयान देती, पुलिस मुझे पकड़ लेती, मुझे जेल हो जाती तो ठीक था। कम से कम मुझे मेरे किए की सजा तो मिल जाती।"
"ओह! तो तुम आत्मग्लानि महसूस कर रहे हो।"
"मैं हवालात जाना चाहता हूं।" वह आदमी चीख पड़ा- "जेल जाना चाहता हूं। अपने किए की सजा पाना चाहता हूं।"
"तो इसमें वकील साहब क्या कर सकते हैं?"
"क्या कर सकते हैं?" वह आदमी थोड़ा चीख-सा पड़ा- "अगर वकील साहब इतना मामूली-सा काम नहीं कर सकते तो शोरूम क्यों खोला है? लोगों को बेवकूफ क्यों बना रहे हैं?"
"लेकिन अगर तू हवालात ही जाना चाहता है तो...।" उसका शेष वाक्य अधूरा ही रह गया, क्योंकि तभी बंगले के अंदर से टुच्चा सिंह बाहर आया। उसने फटेहाल व्यक्ति पर नजर डाली, फिर पूछा- "कौण है ओए?"
प्रत्युत्तर में गार्ड ने उसे सबकुछ कहकर सुनाया। सुनकर टुच्चा सिंह हैरान रह गया।
"तू यहां क्यों आया है?" फिर उसने उस व्यक्ति से पूछा- "माइयवां थाणे में जा। जाकर अपनी रिपोर्ट दर्ज करवा।"
"थाने वाले नहीं करते।" वह व्यक्ति बोला- "मैं वहीं से' आया हूं। जब मैंने जिद की तो उन्होंने मुझे बहुत मारा और धक्के देकर थाने से बाहर निकाल दिया।"
"तेरी ये हालत थाणे वालों ने की है?"
"हां सरदार जी।" वह बोला "लेकिन इससे मुझे बिल्कुल जरा-सी शांति मिली है। पूरी शांति तब मिलती, जब वे मुझे नंगा करके बर्फ की सिल्ली पर लिटाते। मार-मारकर मेरी खाल उधेड़ते। मुझ पर मुकदमा दायर करते और मुझे जेल भिजवाते।"
"तू माइयवां बंदा है के ढोर है?" टुच्चा सिंह उसे खा जाने वाली नजरों से घूरते हुए बोला "लोग पुलिस, कोर्ट-कचहरी से बचते हैं और तू...।"
"मैंने कर्म ही ऐसा किया है। मुझे नहीं बचना पुलिस या कोर्ट कचहरी से। मुझे बड़े वकील साहब से मिलवाओ। मैं मुंहमांगी फीस देने को तैयार हूं। बशर्ते कि पुलिस को मेरी खाल उधेड़ने पर मजबूर कर दिया जाए। इतना स्ट्रांग केस तैयार करने पर विवश कर दिया जाए कि मुझे जेल जाना पड़े।"
"तू वाकई कैक है। बोटी (घरवाली) ने बचाया है तो उसकी कद्र नहीं कर रहा। मर, माईयवां हमें क्या है? वड्डे वकील साहब इस वक्त नहीं हैं। तू अंदर जाकर बैठ जा। वे अभी आ जाएंगे।"
वह आदमी थैले समेत अंदर आ गया। इसके बाद वह बंगले के एक तनहा कोने में जा बैठा तथा बीड़ी पीने लगा।
इसके थोड़ी देर बाद उसने अपनी जेब से मोबाइल निकाला तथा तेजी से एक नम्बर डायल करने लगा।
पागलखाने की एक नर्स तेजी से चलती हुई आई तथा रेणु के निकट जाकर खड़ी हो गई।
उसने अपनी हथेली रेणु बोली- "लो दवाई खा लो।" की ओर फैला दी और
रेणु ने उसके चेहरे की ओर देखा।
नर्स धीरे से मुस्करा दी फिर बोली- "मौका अच्छा है।
फौरन दवाई खा लो। देर न करो।"
फिर रेणु ने फौरन दवाई लेकर खा ली।"
"शाबाश।" नर्स धीरे से बोली "अब किसी बात की चिंता न करो। जो काम तुम करना चाहती हो, निःसंकोच होकर करो।"
"लेकिन ये औरतें...।" कहती कहती रेणु रुक गई तथा सामने पिलरों से बंधी औरतों की ओर देखने लगी।
"इनको बहुत जल्दी नींद आने लगेगी।" नर्स बोली- "ये सो जाएंगी। सिर्फ दस मिनट के लिए। अपना काम करने के लिए क्या तुम्हें इतना समय पर्याप्त है?"
"स्टाफ की क्या पोजीशन है?"
"संडे है। जो स्टाफ आया है, वह भी इस वक्त लंच के लिए गया है।"
"और डॉक्टर सोनेकर?"
"अपने चैम्बर में आराम कर रहा है।"
"अकेला?"
"वह अकेला कब आराम करता है?" नर्स बुरा-सा मुंह बनाकर बोली- "जब तक उसे कोई नंगी औरत हासिल न हो, उसका आराम ही नहीं होता।"
"इस वक्त किसे दबोचे है? किसी नर्स को?"
"नहीं। एक पागल को?"
"क...क...क्या?"
"हां। इस वक्त वह एक खूबसूरत पागल के साथ मजे कर रहा है। उस पागल को उसने उत्तेजना के कई कैप्सूल खिला दिए हैं। इससे उसकी मस्ती रुक नहीं रही।"
"ये औरतें कब सोएंगी?"
"सिर्फ दो मिनट बाद।" कहकर वह नर्स वहां से लौट गई। लेकिन जाने से पूर्व उसने एक कैप्सूल में छेद करके उसे जमीन पर फेंक दिया।"
न जाने क्या था उसे कैप्सल में। देखते-ही-देखते औरतें जम्हाई लेने लगीं और फिर... एक-एक कर निद्रा देवी की गोद में समा गईं।
लेकिन उस कैप्सूल का रेणु पर कोई असर दिखाई न दिया। इसका कारण शायद वही दवाई थी, जो उसे नर्स खिला गई थी।
युवतियों के सोते ही रेणु सतर्क हो गई। उसने धीरे-से ताली बजाई।
ताली बजाते ही वही नर्स वहां आ खड़ी हुई। उसने रेणु के पैरों की बेड़ियां खोल दीं।
"चाबी आसानी से मिल गई?" रेणु ने पूछा।
"कोई मुश्किल नहीं हुई।" नर्स तनिक उत्तेजित स्वर में बोली- "लेकिन दस मिनट। याद रखना।"
"याद है। चिंता न करो।" कहकर रेणु ने यूं अपने स्थान से छलांग लगाई, जैसे वहां से भाग जाने का इरादा हो।