"कुछ कहानियाँ मुकम्मल नहीं होतीं, मगर फिर भी ख़ास होती हैं... दिल के किसी कोने में हमेशा ज़िंदा रहने के लिए।"जूही जब पहली बार अपने छोटे शहर से निकलकर इस बड़े शहर में आई, तो उसके मन में बस एक ही बात थी—"मुझे सिर्फ़ अपने करियर पर फोकस करना है।" कंपनी ने उसे एक अपार्टमेंट दिया था, जिसे उसे अपनी सहकर्मी के साथ शेयर करना था।नई जगह, नया माहौल... पहले कुछ दिन तो उसे अजनबी से लगे, लेकिन धीरे-धीरे ज़िंदगी एक रूटीन में सेट होने लगी। उसी अपार्टमेंट के सामने वाले फ्लैट में चार लड़के रहते थे, जो MBA कर रहे थे। उनके ग्रुप में एक नाम सबसे अलग था—अभि।अभि हमेशा जूही को देखकर हल्की मुस्कान देता। कभी-कभी दोनों के बीच कैजुअल बातें भी हो जातीं—"Hi," "Hello," "कैसी हो?"—बस इतनी ही बातचीत। जूही के लिए इससे ज़्यादा आगे बढ़ना कोई मायने नहीं रखता था।उसे मॉडर्न, अमीर और स्मार्ट लड़कों पर बिल्कुल भरोसा नहीं था। उसने हमेशा अपनी माँ से यही सुना था—"अपनी बिरादरी में ही शादी करनी चाहिए, वरना लोग ताने देंगे..." यही सोच उसके दिल और दिमाग में बैठ गई थी। शायद इसीलिए, वो कभी अभि के करीब जाने की कोशिश नहीं करती। जब भी अभि उसे कॉफ़ी पर बुलाने की कोशिश करता, वो हल्की मुस्कान के साथ कोई न कोई बहाना बना लेती।लेकिन फिर भी, जूही को ये अच्छा लगता था कि कोई बिना किसी उम्मीद के उसका ख्याल रखता था।वक़्त बीतता गया...MBA पूरी होते ही अभि अपने शहर वापस चला गया। उस दिन, जाते-जाते उसने हल्की मुस्कान के साथ कहा,"जूही, ये नंबर याद रखना... और कभी हो सके तो कॉल कर लेना।"जूही मुस्कुरा दी, जैसे ये बस एक मज़ाक हो। उसने हल्के से सिर हिलाया और दूसरी तरफ़ देखने लगी।कुछ दिन तक वो नंबर याद रहा, फिर धीरे-धीरे धुंधला पड़ गया।कई साल बाद...जूही अब अपने करियर में बहुत आगे बढ़ चुकी थी। उसने अपनी मेहनत से अच्छी पहचान बनाई थी। फिर एक दिन, काम के सिलसिले में उसे अभि के शहर जाना पड़ा।वो होटल पहुंची, मीटिंग खत्म हुई, और शाम को थोड़ा वक्त मिला तो सोचा कि किसी पुराने दोस्त से मिल लिया जाए।लेकिन क़िस्मत के खेल अजीब होते हैं...वो एक कैफे में बैठी थी, जब अचानक उसने एक जाना-पहचाना चेहरा देखा।अभि...अब वो पहले से भी ज्यादा स्मार्ट और कॉन्फिडेंट लग रहा था। पर इस बार उसके चेहरे पर वो पुरानी शरारत नहीं थी, वो बेचैनी नहीं थी...जूही को उसने देखा, हल्का मुस्कुराया, और फिर बिल्कुल अजनबी की तरह आगे बढ़ गया।जूही ने भी उसे नहीं रोका।कुछ एहसास, बस एहसास ही रह जाते हैं...उस रात, दोनों ने अपने-अपने इंस्टाग्राम और फेसबुक खोले। दोनों ही एक-दूसरे की प्रोफाइल पर गए और फ्रेंड रिक्वेस्ट भेजने का ऑप्शन देखा...लेकिन कोई भी "Send Request" का बटन नहीं दबा सका।जूही फ़ोन रखकर लेटी, और न जाने क्यों, वो पुराना नंबर याद करने की कोशिश करने लगी...पर वो याद नहीं आया।शायद, कुछ चीज़ें जानबूझकर भूली जाती हैं, और कुछ चीज़ें क़िस्मत हमें भूलने पर मजबूर कर देती हैं।उसने एक लंबी सांस ली, फोन बंद किया, और आँखें मूँद लीं...क्योंकि कुछ अधूरे अफसाने, मुकम्मल कहानियों से ज़्यादा ख़ूबसूरत होते हैं।