Anokha Vivah - 27 in Hindi Love Stories by Gauri books and stories PDF | अनोखा विवाह - 27

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अनोखा विवाह - 27

पिछले पार्ट में आपने पढ़ा कि अनिकेत, सुहानी को ऑफिस जाने के लिए जैसे तैसे मना ही लेता है पर सुहानी का मन नहीं होता, सुहानी अनिकेत से कुछ कहना चाहती है अपने मन की बात, देखते हैं कि सुहानी जो कभी बोलती भी नहीं है ठीक उसके मन में उसके विचारों में आखिर है क्या.....

अब आगे......

अनिकेत, सुहानी को बालकनी में लेकर आ गया था सुहानी के पैर में अभी भी हल्का दर्द था तो वो नीचे जमीन पर बैठ जाती है पर अनिकेत उससे वहीं लगे झूले पर बैठने को कहता है पर सुहानी को जमीन पर ज्यादा अच्छा लग रहा था इसीलिए वो वहीं जमीन पर लेट जाती है और आसमान की तरफ देखकर भारी मन से कहना शुरू करती है ," ये तारे सारे हमको पुकारे कहते हैं आजाओ आजाओ ना 
चांद बना के तुमको रखेंगे हम प्यार हां प्यार हां प्यार करेंगे
जो तुम रूठोगी तुमको मनाएंगे हम रोज मिलने तेरे पास आएंगे

ये तारे सारे हमको निहारे कहते हैं आजाओ आजाओ ना " 

अनिकेत, सुहानी के मन की भावनाएं समझ गया था पर फिर भी वो उससे पूछता है ," ये क्या हैं सुहानी इसका क्या मतलब है ? सुहानी रोते हुए धीरे से जवाब देती है ," हमें यहां अच्छा नहीं लगता , हम वहां जाना चाहते हैं"  आखिरी वाली बात सुहानी आसमान की तरफ एक उंगली करके इशारे से बताती है ,,,,,,पता है दीदी कहती हैं कि जो मर जाते हैं वो तारे बन जाते हैं पर हमें तो चांद बनना है दीदी हमसे बात नहीं करेगी तो फिर हमें मनाएगा कौन इसीलिए हमें वहां जाना है  " , इतना कहते कहते सुहानी रूक जाती है उसे याद आता है कि अनिकेत ने मना किया है दीदी का नाम लेने के लिए, तो वो जल्दी से उठकर बैठ जाती है और डरते हुए कहती है ," हम अब नहीं लेंगे नाम आपको पसन्द नहीं है " अनिकेत सुहानी की बात पर ध्यान नहीं देता उसके मन में सुहानी के मन की बातें बार बार घूम रही थीं , अनिकेत सुहानी से," चलो अच्छा अब सो जाओ चलकर सुबह उठना भी है ना जल्दी वैसे भी बहुत टाइम हो गया है" अनिकेत अपने फोन की तरफ देखते हुए बोलता है " अनिकेत, सुहानी का हाथ पकड़ बालकनी से अन्दर कमरे में लेकर आता है  और सुहानी को बेड की एक साइड लेटाकर खुद बेड की दूसरी साइड लेट जाता है पर उसे नींद नहीं आ रही थी एक तो सुहानी की सिसकियां और उसका अभी तक रोना उसे डिस्टर्ब कर रहा था , अनिकेत मन में सोच रहा था कि जो लड़की कभी बोलती नहीं है उसके मन में कितने ज्यादा भाव हैं कैसे इतना सब कुछ सहा होगा इसने वो सुहानी के लिए बहुत ज्यादा परेशान हो गया था उसे समझ नहीं आ रहा था कि वो क्या करे , क्यों कि अभी वो सुहानी से कनेक्ट नहीं हो पाया था सुहानी उसकी वाइफ है इसलिए वो उसे प्रोटेक्ट कर रहा था और कैसे उसको सम्हालना है ये भी समझना मुश्किल था क्योंकि अभी वो भी छोटा ही था , यही सब सोचते हुए वो सो गया और सुहानी भी रोते रोते सो गई 

अगली सुबह 

दोनों को आज ऑफिस जाना था और सात बजे तक वो दोनों सो रहे थे तभी अनिकेत की नींद खुल जाती है और वो फोन को अपने हाथों से ही ढूंढ कर अपनी आंखों के सामने करता है जैसे ही वो लॉक की को प्रेस करता है टाइम देखकर उसके होश उड़ जाते हैं आज पहला दिन था और पहले ही दिन वो इतना लेट था 

अनिकेत फोन को अपने एक साइड रख सुहानी को थोड़ा तेज आवाज देता है," सुहानी उठो आज ऑफिस जाना है आज पहला दिन है और हम आज ही लेट हैं अनिकेत सुहानी को एक दो आवाजें और देता है पर जब सुहानी इतनी आवाजों के बाद भी नहीं उठती तो वो उसे कन्धे से धीरे से पकड़ कर हिलाता है जिससे सुहानी तुरन्त उठकर बैठ जाती है वो अचानक उठकर सीधा वाशरूम में जाने लगती है अनिकेत उसको इस तरह उठते देखकर टोकता है," अरे , अरे ये क्या कर रही हो अब जब इतना लेट हो गया है तो अब आराम से तैयार हो जल्दी करने की कोई जरूरत नहीं है " इतना कह वो भी बेड से उठकर रूम से बाहर चला जाता है और सुहानी वाशरुम में चली जाती है 

डाइनिंग टेबल पर 9 बजे 

सभी डाइनिंग टेबल पर अपनी अपनी जगह बैठे थे सुहानी भी अनिकेत के पास आकर बैठने वाली होती है तभी सावित्री जी उसे टोकते हुए कहती हैं ," रूको !  तुम मेरे साथ रसोईघर में चलो कल तो तुम्हें अपने घर जाना था तो मैंने कुछ नहीं कहा पर आज तो तुमको कहीं जाना नहीं है तो चलो मेरे साथ और रसोई घर में हाथ बंटाओ " सुहानी उठकर जाने वाली होती है तब तक अनिकेत उसका हाथ पकड़ रोक लेता है और सावित्री जी की तरफ देखकर कहता है ," मां आज से मैं ऑफिस जा रहा हूं और सुहानी भी मेरे साथ जाएगी ",,,,,,,,, सावित्री जी खुशी से चहकती हूई कहती हैं," क्या बेटा तुम आज से ऑफिस जा रहे हो ये तो खुशी की बात है मैं अभी कुछ मीठा बनवाती हूं " फिर मुंह बनाकर कहती हैं " लेकिन ये बाताओ बहू को क्यों ले जाना है अभी चार दिन हुए नहीं हैं इनको बहू बनकर घर आए और तुम ऑफिस ले जाने की बात कर रहे हो देखो ! घर की बहू घर में ही शोभा बढ़ाती है उसे ऑफिस ले जाने की कोई जरूरत नहीं है चलो बहू हमारे साथ रसोईघर में " सावित्री जी अभी कह ही रही होती हैं कि अनिकेत बीच में ही थोड़ा सख्त लहजे में मां को समझाते हुए बोलता है ," मां ये क्या कह रही हैं आप सुहानी बहू है  घर की गाय नहीं कि वो ऑफिस नहीं जा सकती और वैसे भी मैंने पहले ही कहा था दादू से कि शादी के बाद सुहानी के लिए सारे फैसले मैं खुद करूंगा आप लोग बस वहां टोक सकते हैं जब घर की इज्जत की बात हो ,,,,,,सावित्री जी अनिकेत के मुंह से इतना सुन उसकी बात बीच में काटते हुए हाथ को माथे पर पीटते हुए  तुरन्त बोलती हैं ," तो क्या आपको ऐसा लगता है कि आप घर की बहू को चार दिन बाद ऑफिस ले जाएगे और घर की इज्जत भी नहीं जाएगी ! ,,,,,, डाइनिंग टेबल पर बैठे हुए सभी लोग बस उन दोनों की बातें चुपचाप सुन रहे थे तभी अखण्ड प्रताप मानसी और मिली को देखते हुए कहते हैं ," बच्चों एक काम करिए आज से आप लोगों का कॉलेज जाना बन्द आपके लिए टीचर घर पर ही पढ़ाने आएंगे मुझे यही सही लगता है , क्यों सावित्री बहू सही कह रहे हैं ना हम ?  घर की बेटियां भी घर में ही शोभा बढ़ाएं तो अच्छा होगा कल को किसी के घर की बहू बनेगी तो घर पर ही तो‌ शोभा बढाएगी मैं तो कहता हूं पढ़ने की ही क्या जरूरत है कोई काम तो आने वाली नहीं है पढ़ाई " 

अखण्ड प्रताप की ये बात सुनकर सभी आश्चर्यचकित होकर उन्हें देखते रह जाते हैं...........क्या आप लोगों को मेरा आग्रह दिखाई नहीं देता , मतलब मैं आश्चर्यचकित हो जाती हूं जब 800 लोग रीड करते हैं लेकिन समीक्षा या फिर फॉलोअर एक भी नहीं, मुझे प्लीज इसकी वजह बताएं , अगर पसंद नहीं आ रही है कहानी तो बताएं, मैं अपना टाइम क्यों वेस्ट करूं 🙏

क्या सावित्री जी सुहानी को ऑफिस जाने के लिए हां करेगी? क्या अनिकेत अपनी पत्नी के लिए स्टैंड ले पाएगा? और क्यों अखण्ड प्रताप ने घर की बेटियों की पढ़ाई रूकवाने की बात कही ,,,,देखते हैं नेक्स्ट पार्ट में

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