शुभम - कहीं दीप जले कहीं दिल ( पार्ट -४६)
डॉक्टर शुभम अपनी बेटी प्रांजल की बातें मान लेता है
और डाक्टर रूपा को फोन करता है। अपने मन की बातें करता है और अपनी गलतियों के कारण माफी मांगता है।
अब आगे
डॉक्टर शुभम:-'शायद दिव्या को पता चल गया है कि तुम उसकी माँ हो और मैं उसका पिता हूँ। मैं शर्मिन्दा हूं। अपनी बेटी के सामने मेरी इज्जत नहीं रहेगी यदि जल्दी शादी नहीं करेंगे तो।यह मुझे उसकी बातचीत से महसूस हुआ कि उनको सब मालूम हो चुका होगा इसलिए शादी करने के लिए दोनों ने मुझे मना लिया है।मेरी पिछली गलतियों के लिए क्षमा करें। मुझे वह समय थोड़ा-थोड़ा याद है। क्या आप मुझसे शादी करोगी?'
रूपा:-'अच्छा हुआ जो तुम्हें याद आ गया। ख़ुशी ख़ुशी शादी के लिए राजी होने के लिए धन्यवाद। मैं अब भी तुमसे उतना ही प्यार करता हूँ जितना कॉलेज के समय में करती थी । आपको माफ़ी माँगने की ज़रूरत नहीं है। गलती हम दोनों की थी। मुझे भी आपसे माफ़ी मांगनी चाहिए। मुझे उस दिन की हालत आपको तुरंत बताना चाहिए था। आप नशे में थे लेकिन मैंने क्यूं गलती की?मुझे तुम्हें बहुत सी बातें बतानी थीं, मैंने हमारी बेटी दिव्या को इतने सालों तक दूर रखीं और उसके बारे में सच सच नहीं बताया इसलिए मुझे माफ करना। और मैं दिव्या की मां होने के बावजूद अपनी बेटी को माता का प्यार नहीं दे पाई। वैसे मेरा रवैया माता जैसा ही था लेकिन जब दिव्या मुझे बुआ कहती थी तब मुझे प्रसन्नता से ज्यादा खेद होता था। अपनी ही बेटी मुझे मम्मी की जगह बुआ बुलायें तो दिल में क्या होता है?मुझे लगता है भाभी ने दिव्या को सच सच बता दिया होगा । जो भी होता है अच्छे के लिए होता है ऐसा मैं मानती हूं।अंत में सब ठीक हो जाएगा। तुम्हें अपने आप को दोषी महसूस नहीं होना चाहिए।
मुझे अस्पताल में बहुत काम है,हम जल्दी रूबरू मिलते हैं और हम आमने-सामने बात करेंगे और जल्द ही शादी कर लेंगे। कल मेरे घर आना हो तो अस्पताल से छुट्टी ले लेना।'
खुश होकर शुभम ने कहा:- 'ठीक है.. धन्यवाद रूपा, अब मैं दिव्या को अपनी बेटी मानूंगा। तुम कहती हो कि दिव्या हमारी बेटी है तो मैं मान लूंगा। वैसे उस दिन नशें में था, क्या से क्या हो गया था पता नहीं चला। बस उसी दिन कुछ कमजोर पलों में मैं होशो-हवास खो बैठा होगा और तुम्हारे साथ जबरदस्ती की होगी। तुम मुझे चाहती हो इसलिए मना नहीं कर पाई होगी। मैं अपनी ग़लती मान लेता हूं।अब मैं कुछ ही मिनटों में घर जा रहा हूं। प्रांजल और दिव्या से बात कर देता हूं कि मैंने रूपा को शादी के लिए हां कह दिया है।'
रूपा:-' सो तो है। हमारे बच्चों को कहना होगा। उन्हींकी बदौलत हम एक हो रहे हैं। अब बार बार अपनी ग़लती के लिए माफी मत मांगना। मुझे भी शर्म आती है और उन्हीं पलों की याद आ जाती है। चलो जो हुआ था अच्छा ही हुआ होगा। कुदरत ने हमें फिर से मिलने का मौका दे दिया है, इसलिए हमें अपनी लाइफ को एन्जॉय करना चाहिए। तुम्हारी हां सुनकर मैं खुश हो गई हूं। इसी दिन का इंतजार मैं कब से कर रही हूं ।अच्छा है लेकिन शादी साधारण तरीके से होगी। मुझे केवल चार या पांच दिन की छुट्टियां मिलेंगी, इसलिए हम ज्यादा दूर घूमने नहीं जायेंगे। शादी में ज्यादा लोगों को बुलाना भी नहीं है।ओके बाय बाय शुभम। आइ लव यू,बाय।'
इतना कह कर रूपा ने फोन रख दिया।
अस्पताल में काम कम होने के कारण डॉक्टर शुभम ने सोचा कि अब उन्हें घर चले जाना चाहिए। डाक्टर शुभम के घर जाने से पहले ही प्रांजल और दिव्या ने रात का खाना बना लिया था।
कुछ ही मिनटों में जब डॉ. शुभम घर गए तो दिव्या और प्रांजल मोबाइल में खोए हुए थे।
घर में घुसते ही डॉक्टर शुभम ने कहा- 'तुम दोनों मोबाइल में खोए हो और दरवाज़ा खुला हो तो! ध्यान रखो, कोई भी बिना परमिशन के घर में आ जायेगा।'
प्रांजल:- 'पापा, मैंने आपको आते हए देख लिया था इसलिए दरवाज़ा खुला रखा था।मैं दरवाज़े की तरफ देख रही थी। डिनर तैयार हो गया है ,आपका इंतजार कर रहे हैं।'
खाना खाकर तीनों बैठे।
थोड़ी देर में...
प्रांजल:- 'पापा, क्या आपने रूपा आंटी से बात की?'
डॉक्टर शुभम:- 'हां.. मैंने शादी के लिए सहमति दे दी है।'
प्रांजल:-'ओके पापा.. शाबाश....हमें पता था, आप रूपा आंटी से बात करेंगे और अपनी सहमति देंगे। चार दिन बाद आर्य समाज में शादी तय कर देते है। उस दिन के लिए हमने पहले से इन्क्वायरी की थी।हम रूपा आंटी के घर रहेंगे।
कल हम दोनों जा रहे हैं, आपको भी हमारे साथ चलना है।दो दिन के लिए आओ, फिर तुम घर आ जाना और अस्पताल चले जाना। अस्पताल से छुट्टी ले लेना और शादी से पहले रूपा आंटी के घर आ जाना। हम आपका इंतजार करेंगे।और हां शादी के बाद थोड़ा घुम कर आना, जल्दी मत आ जाना।'
( डॉक्टर शुभम और डाक्टर रूपा की शादी में क्या रूकावट आने वाली है? डॉक्टर शुभम को कौन मदद करेगा? जानने के लिए पढ़िए मेरी धारावाहिक कहानी)
- कौशिक दवे