**सलामी – एक मार्मिक कहानी**
गाँव का नाम था **गुलाबपुर**। वहाँ के सबसे बुजुर्ग व्यक्ति **बाबू हरिहरनाथ** थे, जो कभी तहसीलदार रह चुके थे। अब उनकी उम्र 75 के पार हो चली थी, और घर में उनकी बहू **सुमित्रा**, पोता **अमर**, और पोती **गुड़िया** के अलावा कोई नहीं था। उनका बेटा **राजेश** फौज में कैप्टन था और सीमा पर देश की रक्षा कर रहा था।
हरिहरनाथ जी के घर की हालत अब वैसी नहीं थी जैसी कभी उनकी नौकरी के समय हुआ करती थी। घर की दीवारों पर सीलन आ गई थी, खपरैल की छत जगह-जगह से चूने लगी थी, और आँगन में कभी फूलों से महकने वाला बाग़ अब सूना पड़ा रहता। उनके लिए सबसे बड़ा सहारा थी उनकी बहू सुमित्रा, जो बिना शिकायत अपना हर कर्तव्य निभा रही थी।
(संध्या का समय था, जब हरिहरनाथ जी चौपाल से लौटकर घर आए। बहू सुमित्रा आँगन में बैठी थी।)
**हरिहरनाथ जी** – बहू, अमर कहाँ है?
**सुमित्रा** (हल्की मुस्कान के साथ) – बाबूजी, खेत की ओर गया है, कह रहा था, हल चलाना सीखूँगा।
**हरिहरनाथ जी** (गंभीर होते हुए) – ठीक है, मगर उसे समझाओ कि पढ़ाई पर भी ध्यान दे। राजेश की चिट्ठी आई क्या?
**सुमित्रा** (आँखों में हल्का दर्द झलकता हुआ) – जी बाबूजी, आज ही आई है। लिखा है कि जल्दी ही घर आएगा।
**हरिहरनाथ जी** – अच्छा! यह तो बड़ी खुशी की बात है।
लेकिन सुमित्रा के चेहरे पर चिंता की लकीरें थीं। उसे समझ नहीं आ रहा था कि वो बाबूजी को बताए या नहीं कि राजेश की चिट्ठी में लिखा था – “देश के हालात ठीक नहीं हैं, युद्ध के आसार हैं, मैं घर लौटने का वादा तो कर रहा हूँ, लेकिन वक़्त का भरोसा नहीं।”
(अगले दिन गाँव के बुजुर्ग चौपाल पर बैठे थे। कुछ लोग अख़बार पढ़ रहे थे, कुछ आपस में देश की परिस्थितियों पर चर्चा कर रहे थे।)
**गंगाराम काका** – भाई, अख़बार में लिखा है कि सरहद पर हालात ख़राब हैं, कहीं फिर से जंग न छिड़ जाए।
**रामसुमेर बाबू** – अरे हाँ, मैंने भी सुना है कि दुश्मन सेना हमारी सीमा में घुसने की फ़िराक़ में है।
हरिहरनाथ जी, जो अब तक चुपचाप बैठे थे, अचानक बोल पड़े –
**हरिहरनाथ जी** – हमें अपने सैनिकों पर भरोसा रखना चाहिए। मेरा बेटा भी तो वहीं तैनात है। वो आएगा, उसने चिट्ठी में लिखा है।
लेकिन उनकी आवाज़ में छिपी असुरक्षा को वहाँ बैठे सभी लोगों ने महसूस किया।
(कुछ दिन बाद गाँव में हलचल मच गई। डाकिया तेज़ी से हरिहरनाथ जी के घर की ओर बढ़ रहा था।)
**डाकिया** – सुमित्रा बहू... यह सरकारी चिट्ठी आई है।
सुमित्रा ने काँपते हाथों से चिट्ठी खोली। पढ़ते ही उसके पैरों तले ज़मीन खिसक गई। राजेश अब इस दुनिया में नहीं था। वह सीमा पर लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हो गया था।
सुमित्रा की आँखों से आँसू बह निकले। उसका कंठ सूख गया। वह तुरंत हरिहरनाथ जी के पास पहुँची और काँपती आवाज़ में बोली –
**सुमित्रा** – बाबूजी... राजेश... राजेश अब नहीं रहा।
हरिहरनाथ जी के शरीर में जैसे कोई कंपन दौड़ गई। आँखों में नमी उतर आई, लेकिन वो ज़मीन पर बैठते हुए बोले –
**हरिहरनाथ जी** – मेरा बेटा अमर हो गया बहू... उसने देश के लिए जान दी है... हमें गर्व होना चाहिए।
(गाँव के सभी लोग इकट्ठा हो गए थे। सैनिकों ने राजेश के पार्थिव शरीर को तिरंगे में लपेटकर घर तक पहुँचाया। चारों ओर मातम छाया हुआ था।)
अमर अपने पिता को देखकर फूट-फूटकर रो पड़ा –
**अमर** – बाबा, आप हमें छोड़कर क्यों चले गए?
हरिहरनाथ जी ने अमर को अपने सीने से लगा लिया और बोले –
**हरिहरनाथ जी** – बेटा, रोते नहीं, बल्कि गर्व करो कि तुम एक शहीद के बेटे हो। तुम्हारे बाबा ने अपनी मातृभूमि के लिए जान दी है।
गाँव के हर व्यक्ति की आँखें नम थीं, लेकिन सबकी छाती गर्व से चौड़ी हो गई थी।
(राजकीय सम्मान के साथ राजेश का अंतिम संस्कार किया गया।)
सैनिकों ने जब राजेश को सलामी दी, तो हरिहरनाथ जी ने खुद को सँभालते हुए कहा –
**हरिहरनाथ जी** – यह सलामी मेरे बेटे को ही नहीं, हर उस माँ के लाल को दी जा रही है, जिसने देश के लिए खुद को कुर्बान कर दिया।
गाँव के लोग उनकी बात सुनकर सिसकने लगे। सुमित्रा, जिसने कभी नहीं सोचा था कि वह राजेश के बिना जी पाएगी, अब अपने बच्चों के लिए एक नई ताकत बन गई थी।
अंत में अमर ने अपने बाबा की तरह फौज में जाने का प्रण लिया, और हरिहरनाथ जी ने गर्व से उसके सिर पर हाथ रखते हुए कहा –
**हरिहरनाथ जी** – यह देश मेरे बेटे को खो चुका है, लेकिन अब इसे मेरा पोता मिलेगा।
(समाप्त)