Rangin Kahaani - 2 in Hindi Short Stories by Gadriya Boy books and stories PDF | रंगीन कहानी - भाग 2

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रंगीन कहानी - भाग 2

**"इंतज़ार की दास्तान"**  
*(एक प्रेम कहानी)*  
उत्तर प्रदेश के छोटे से गाँव **धनपुर** में एक शांत और सुरम्य माहौल था। सुबह की ठंडी हवा, खेतों में लहराती फसलें और आम के पेड़ों से गिरते पत्तों की सरसराहट यहाँ की पहचान थी। इसी गाँव में रहता था **अमर**, एक सीधा-सादा लेकिन स्वभाव से जिद्दी लड़का। वह बचपन से ही गाँव के स्कूल में पढ़ा था और अब कॉलेज की पढ़ाई के लिए पास के शहर **मथुरा** जाता था।  

अमर के पिता किसान थे और माँ गृहिणी। घर की आर्थिक स्थिति बहुत अच्छी नहीं थी, लेकिन फिर भी अमर के माता-पिता ने उसकी पढ़ाई में कोई कमी नहीं आने दी। गाँव के कई लड़के पढ़ाई अधूरी छोड़कर खेती करने लगते थे, लेकिन अमर को कुछ अलग करना था—वह **इंजीनियर** बनना चाहता था।  

कॉलेज के पहले दिन, जब अमर अपनी पुरानी साइकिल से पहुँचा, तब उसकी नज़र कॉलेज की सबसे **खूबसूरत लड़की** पर पड़ी—**संगीता**। वह शहर से आई थी, ऊँची सोच और बड़े सपनों वाली लड़की थी। वह गाँवों के बारे में ज़्यादा नहीं जानती थी, लेकिन उसकी आँखों में एक अलग चमक थी।  

पहली ही क्लास में संगीता ने अमर से एक सवाल किया—  

**संगीता:** "क्या तुम यहाँ के हो?"  

**अमर (संकोच से):** "हाँ, मैं धनपुर गाँव से हूँ। तुम?"  

**संगीता (मुस्कुराकर):** "मैं मथुरा से हूँ। गाँव की ज़िंदगी कैसी होती है?"  

**अमर:** "शहर से बहुत अलग… वहाँ की हवा भी अलग होती है।"  

धीरे-धीरे दोनों में दोस्ती हो गई। अमर पढ़ाई में बहुत अच्छा था, और संगीता को भी उसकी मेहनत बहुत पसंद आने लगी। दोनों एक-दूसरे के बहुत अच्छे दोस्त बन गए, लेकिन अमर के दिल में कहीं **मोहब्बत की एक हल्की सी लहर** उठने लगी थी 

समय बीतता गया और कॉलेज का दूसरा साल आ गया। अमर और संगीता की दोस्ती और गहरी हो चुकी थी। वे साथ में पढ़ते, घंटों बातें करते, और कभी-कभी कॉलेज की कैंटीन में चाय भी पीते।  

एक दिन, बारिश हो रही थी। दोनों कॉलेज की लाइब्रेरी में थे। खिड़की के पास बैठकर अमर ने हिम्मत जुटाई और संगीता से पूछा—  

**अमर:** "अगर मैं कहूँ कि… मैं तुम्हें पसंद करता हूँ, तो?"  

संगीता कुछ देर चुप रही, फिर हल्का सा मुस्कुराई—  

**संगीता:** "अमर, तुम बहुत अच्छे हो… लेकिन मैं प्यार में यकीन नहीं करती। मुझे अपने करियर पर ध्यान देना है।"  

अमर को झटका लगा, लेकिन उसने खुद को संभाल लिया।  

**अमर (धीमी आवाज़ में):** "कोई बात नहीं… दोस्त तो रह सकते हैं, ना?"  

**संगीता (मुस्कुराकर):** "हमेशा।"  

पर अमर के दिल में जो **चोट लगी थी, वह दिखाई नहीं दी।**  

#### **अध्याय 3: दूरियाँ**  

कॉलेज का आखिरी साल आ गया। अमर और संगीता अब भी अच्छे दोस्त थे, लेकिन अमर अंदर ही अंदर खुद को बदलने लगा था। उसने अपनी भावनाओं को दबा दिया और पूरी तरह पढ़ाई में लग गया।  

एक दिन, अचानक अमर को एक खबर मिली—**संगीता की शादी तय हो गई थी।**  

यह सुनते ही उसके पैरों तले ज़मीन खिसक गई।  

उसने हिम्मत करके संगीता से मिलने का फैसला किया। वह उसे कॉलेज के गार्डन में मिला—  

**अमर:** "तुम सच में शादी कर रही हो?"  

**संगीता (धीमी आवाज़ में):** "हाँ… घरवालों की मर्ज़ी है।"  

**अमर (आँखों में दर्द लिए):** "क्या तुम खुश हो?"  

संगीता कुछ नहीं बोली। उसकी आँखें नम थीं।  

**अमर:** "अगर तुम चाहो तो मैं तुम्हारे लिए कुछ भी कर सकता हूँ। बस एक बार कह दो कि तुम्हें भी मुझसे प्यार है।"  

संगीता ने अपनी आँखों से बहते आँसू पोंछे और धीरे से कहा—  

**संगीता:** "अमर, प्यार हर किसी की किस्मत में नहीं होता…"  

अमर बिना कुछ कहे वहाँ से चला गया। उस दिन उसने फैसला कर लिया कि वह अब **संगीता को भुलाकर अपने सपनों को पूरा करेगा।**  

अमर ने अपनी पढ़ाई पूरी की और इंजीनियर बन गया। उसकी मेहनत रंग लाई और उसे **दिल्ली की एक बड़ी कंपनी में नौकरी मिल गई।** लेकिन उसकी ज़िंदगी से खुशी कहीं खो गई थी। वह अक्सर संगीता को याद करता, पर अब उसके पास सिर्फ उसकी यादें थीं।  

कई साल बीत गए। एक दिन, जब अमर अपने गाँव लौटा, तो उसे पता चला कि **संगीता की शादी नहीं हुई थी।**  

उसका रिश्ता टूट गया था, और अब वह **गाँव में एक स्कूल में पढ़ा रही थी।**  

अमर बिना देर किए उससे मिलने गया। संगीता उसे देखकर चौंक गई—  

**संगीता:** "अमर… तुम यहाँ?"  

**अमर (हल्की मुस्कान के साथ):** "हाँ, और तुम?"  

**संगीता (आँखें झुकाकर):** "मैंने कभी नहीं सोचा था कि तुमसे फिर मुलाकात होगी।"  

अमर ने गहरी साँस ली और कहा—  

**अमर:** "क्या अब भी तुम्हें प्यार में यकीन नहीं?"  

संगीता की आँखों में आँसू आ गए। उसने धीरे से कहा—  

**संगीता:** "शायद प्यार किस्मत से मिलता है… और हमारी किस्मत ने हमें फिर मिला दिया।"  

इस बार अमर ने संगीता का हाथ थाम लिया। **इस बार कोई दूर नहीं हुआ।**  
गाँव के मंदिर में अमर और संगीता ने साथ फेरे लिए। गाँववालों ने इस प्रेम कहानी को सलाम किया। अमर को आखिरकार उसकी मोहब्बत मिल गई, और संगीता को भी एहसास हुआ कि **सच्चा प्यार इंतज़ार करता है, लेकिन कभी हार नहीं मानता।**  

**"कभी-कभी मोहब्बत को मुकम्मल होने में वक़्त लगता है, लेकिन अगर प्यार सच्चा हो, तो वह अपनी मंज़िल खुद तलाश लेता है।"**  

*(समाप्त)*