Roushan Raahe - 3 in Hindi Moral Stories by Lokesh Dangi books and stories PDF | रौशन राहें - भाग 3

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रौशन राहें - भाग 3

भाग 3: संघर्ष की शुरुआत

काव्या का जीवन अब धीरे-धीरे एक नई दिशा में मोड़ ले रहा था। शहर में पहली बार कदम रखते ही जो अजनबियत महसूस हो रही थी, अब उसमें थोड़ा आराम आ गया था। लेकिन यह आराम सिर्फ बाहरी था। उसके भीतर का संघर्ष अब भी उतना ही तीव्र था।

जैसे ही काव्या ने अपनी पढ़ाई में ध्यान लगाना शुरू किया, उसने महसूस किया कि विश्वविद्यालय में सफलता के लिए केवल पढ़ाई ही नहीं, बल्कि आत्मविश्वास, सामाजिक संपर्क और त्वरित निर्णय लेने की क्षमता भी जरूरी थी। हर दिन उसे यह सीखने को मिल रहा था कि यहाँ की दुनिया गाँव से बिल्कुल अलग थी, और इस दुनिया में टिकने के लिए उसे खुद को हर दिन बदलना होगा।

पहले महीने में काव्या ने कई नई चीजें सीखी। विश्वविद्यालय के विभिन्न विभागों में जाने का मौका मिला, अलग-अलग विषयों पर लेक्चर सुनने का अवसर मिला, और सबसे महत्वपूर्ण—उसने अपने दोस्तों के साथ संबंध बनाना शुरू किया। लेकिन एक बात जो उसे सबसे ज्यादा महसूस हो रही थी, वह थी यहाँ की प्रतिस्पर्धा।

काव्या को कभी यह नहीं समझ में आया था कि एक ही कक्षा में सभी छात्र एक-दूसरे से इस कदर मुकाबला कर रहे थे। कुछ छात्र हमेशा अपनी परियोजनाओं में सबसे अच्छा प्रदर्शन करते, तो कुछ प्रोजेक्ट्स के बाद टॉप स्कोर प्राप्त करने के लिए अपने पूरे दिन-रात की मेहनत को झोंक देते। काव्या ने यह सब देखा, लेकिन उसे हमेशा यह सवाल खड़ा होता—क्या यही असली सफलता का मतलब है?

एक दिन, काव्या ने अपने एक सहपाठी, रोहन से पूछा, जो हमेशा कक्षा में अव्‍ल विद्यार्थी रहता था, "तुम हमेशा इतना अच्छा कैसे करते हो? तुम्हें तो कभी थकान नहीं होती?"

रोहन हंसते हुए बोला, "यह सब आत्मविश्वास और कड़ी मेहनत का परिणाम है। अगर तुम हर दिन खुद को चुनौती दोगी, तो किसी भी समस्या का समाधान पा लोगी।"

काव्या को रोहन की बातों में कुछ समझ आया, लेकिन फिर भी उसे यह महसूस हुआ कि शिक्षा और सफलता के रास्ते में कुछ चीजें ऐसी होती हैं जिन्हें हर किसी को अकेले ही पार करना पड़ता है। उसे खुद को और अपनी ताकत को जानने की जरूरत थी।

नई दोस्ती और चुनौतियाँ

एक दिन, जब काव्या लाइब्रेरी में बैठकर पढ़ाई कर रही थी, उसकी मुलाकात अमृता से हुई। अमृता एक और नई छात्रा थी, जो काव्या की तरह ही गाँव से आई थी। उसकी आँखों में वही संघर्ष था, जो काव्या के अंदर था। दोनों एक-दूसरे से थोड़ी देर के लिए बेज़ार हो गईं, लेकिन फिर काव्या ने अमृता से बात करने का प्रयास किया।

"तुम कहाँ से आई हो?" काव्या ने धीरे से पूछा।

"मैं भी हिम्मतगढ़ से आई हूँ," अमृता ने मुस्कराते हुए कहा।

काव्या को यह सुनकर खुशी हुई। अमृता के साथ बात करने से उसे यह महसूस हुआ कि वह अकेली नहीं है। यहाँ पर भी किसी और की तरह उसे भी अपने सपनों के लिए संघर्ष करना था। दोनों की दोस्ती जल्द ही गहरी हो गई। अमृता ने काव्या को कई टिप्स दिए कि कैसे पढ़ाई के साथ-साथ यहाँ के माहौल में तालमेल बैठाया जा सकता है।

"काव्या, अगर तुम कभी भी रुकने का सोचना, तो याद रखना कि हर संघर्ष तुम्हें ताकत देगा। तुम जहाँ से आई हो, वह जगह तुम्हें कभी नहीं भूलने देगी। तुम अगर अब हार मान जाओ, तो क्या वह तुम्हारे गाँव के लोगों को सही संदेश देगा?" अमृता ने काव्या से कहा।

अमृता की यह बात काव्या के दिल में गूंज उठी। काव्या ने ठान लिया कि वह किसी भी परिस्थिति में हार नहीं मानेगी।

लेकिन संघर्ष सिर्फ काव्या और अमृता का नहीं था। पूरे विश्वविद्यालय में लड़कियों और लड़कों के बीच एक अजीब सी प्रतिस्पर्धा थी। हर किसी को अपने आत्मसम्मान की रक्षा करने के लिए कड़ी मेहनत करनी पड़ रही थी। कभी-कभी तो काव्या को लगता था कि सफलता पाने के लिए उसे दूसरों से कहीं ज्यादा मेहनत करनी होगी, क्योंकि वह एक लड़की थी, और इस विश्वविद्यालय में यह बात कभी न कभी किसी न किसी रूप में सामने आ ही जाती थी।

एक अजनबी से मुलाकात

एक दिन, जब काव्या और अमृता लाइब्रेरी में बैठकर पढ़ाई कर रही थीं, काव्या की नजरें एक युवक पर पड़ीं, जो एक कोने में बैठा हुआ था। वह युवक किताबों में खोया हुआ था, लेकिन उसकी आँखों में एक अलग ही चमक थी। काव्या ने उसे कभी पहले नहीं देखा था।

अचानक वह युवक काव्या के पास आया और बोला, "तुम्हारी आँखों में कुछ अलग सा है। तुम बहुत दूर तक जा सकती हो।"

काव्या ने उसे आश्चर्य से देखा और पूछा, "आप कौन हैं?"

"मेरा नाम सुमित है। मैं भी यहाँ के छात्रा हूँ," वह युवक मुस्कराते हुए बोला।

सुमित का आत्मविश्वास काव्या को थोड़ा चौंका गया। उसने कभी किसी से ऐसी बात नहीं सुनी थी।

"क्या आप मुझे मदद कर सकते हैं?" काव्या ने संकोच करते हुए पूछा।

सुमित ने हंसते हुए कहा, "अगर तुम चाहो तो मैं तुम्हारी मदद कर सकता हूँ। तुम्हारे अंदर बहुत ताकत है, तुम्हें बस उसे पहचानने की जरूरत है।"

काव्या ने सुमित से कुछ बातें साझा कीं, और वह उसे थोड़ा सा मार्गदर्शन देने लगा। सुमित का नजरिया और उसकी बातें काव्या को प्रेरित करने लगीं।

अब काव्या को यह समझ में आ रहा था कि संघर्ष सिर्फ किताबों में नहीं, बल्कि असल ज़िंदगी में भी होता है। यह यात्रा आसान नहीं थी, लेकिन यदि वह अपनी मेहनत और सही मार्गदर्शन के साथ आगे बढ़ती रही, तो उसे अपनी मंजिल जरूर मिलेगी।

(जारी...)