Roushan Raahe - 1 in Hindi Moral Stories by Lokesh Dangi books and stories PDF | रौशन राहें - भाग 1

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रौशन राहें - भाग 1

भाग 1: एक नए सफर की शुरुआत

गाँव की सड़कों पर धूल उड़ रही थी, और सूरज की गर्मी पूरे गाँव पर अपने कड़े हाथों से शासन कर रही थी। हिम्मतगढ़, एक छोटा सा गाँव, जहाँ खेतों की हरियाली और घरों की छतों पर बिखरी मिट्टी के ढेर ही जीवन की पहचान थे। गाँव के लोग एक ही दिनचर्या में व्यस्त रहते थे, सुबह से शाम तक काम करते, और फिर अपने घरों में लौटकर आराम करते। हर घर की अपनी कहानी थी, अपनी छोटी-छोटी खुशियाँ और दुख थे। पर काव्या की कहानी कुछ अलग थी।

काव्या एक ऐसी लड़की थी, जिसका दिल बड़े सपनों से भरा हुआ था। वह जानती थी कि गाँव की धरती पर पैरों के निशान छोड़ने के लिए उसे बहुत कुछ करना होगा। लेकिन फिर भी वह अपने सपनों से कभी समझौता नहीं करती थी। उसका सपना था—शहर की विश्वविद्यालय में पढ़ाई करना, और अपने गाँव के लिए कुछ ऐसा करना, जिससे उसका नाम रोशन हो सके।

"काव्या, तुम ये क्या सोच रही हो?" उसकी माँ शारदा ने उसे देखा, जो आंगन में बैठकर किताबों में खोई हुई थी।

"कुछ नहीं, माँ। बस यह सोच रही थी कि कभी मैं भी वहाँ पहुँच सकूँगी, जहाँ मैं अपने सपनों को साकार कर सकूँ," काव्या ने किताब बंद करते हुए कहा।

शारदा की आँखों में एक चुप्प सी टीस थी, जो उनके दिल की गहराइयों से निकलकर बाहर आ गई थी। वह जानती थीं कि उनके गाँव में लड़कियों के लिए सपने देखना और उन्हें पूरा करना मुश्किल था। लेकिन शारदा चाहकर भी अपनी बेटी के सपनों को तोड़ नहीं पाई।

"काव्या, तुम जानती हो ना कि इस गाँव में लड़कियों के लिए शिक्षा का कोई मतलब नहीं होता। हमें अपना घर संभालना होता है।" शारदा की आवाज़ में ममता और चिंता का मिश्रण था।

लेकिन काव्या का मन हर दिन और भी दृढ़ होता जा रहा था। उसके भीतर एक अग्नि जल रही थी, जो उसे यह यकीन दिला रही थी कि वह इस अंधेरे से बाहर निकल सकती है।

वह अगले दिन शहर जाने का निर्णय ले चुकी थी, और इस बार वह अपने सपनों के पीछे दौड़ेगी।

गाँव के स्कूल में पढ़ाई को लेकर बहुत ही सीमित अवसर थे। जो कुछ था, वह भी केवल लड़कों के लिए था। काव्या जानती थी कि उसके लिए संघर्ष की राह कठिन होने वाली थी, लेकिन उसने ठान लिया था कि वह हार नहीं मानेगी।

"माँ, मैं शहर जाना चाहती हूँ, और वहां जाकर पढ़ाई करना चाहती हूँ," काव्या ने एक दिन साहसिक शब्दों में कहा।

"शहर!" शारदा की आँखों में हड़बड़ी सी आ गई। "तुम जानती हो कि हमारे पास इतने पैसे नहीं हैं, और यहाँ के लोग भी ऐसा नहीं समझेंगे।"

"मैं जानती हूँ माँ, लेकिन मुझे यकीन है कि मैं वहाँ पढ़ाई करने में सफल हो सकती हूँ। मुझे और किसी से नहीं, बस आपसे सपोर्ट चाहिए।"

शारदा ने चुपचाप काव्या को देखा। उसकी आँखों में कई सवाल थे, लेकिन फिर भी वह चुप रही। वह जानती थी कि काव्या की इच्छाशक्ति बहुत मजबूत है।

राज, काव्या का बचपन का दोस्त, जो गाँव के ही एक छोटे से घर में रहता था, हमेशा काव्या के सपनों को लेकर चिंतित रहता था। वह काव्या से हमेशा कहता था, "तुम्हें यह सब छोड़कर घर में रहना चाहिए, तुम्हारा स्थान यहीं है।" लेकिन काव्या को वह हमेशा साहस देता था, और कभी-कभी उसकी आँखों में एक खास भाव भी दिखता था, जिसे वह कभी व्यक्त नहीं करता था।

काव्या का दिल राज के शब्दों को लेकर हलका सा दुखी हो जाता था, लेकिन उसने कभी इस बात को अहमियत नहीं दी। उसकी नजरें केवल अपने सपनों पर थीं।

एक दिन काव्या ने शहर जाने का फैसला किया। अगले दिन वह गाँव के बस स्टैंड पर खड़ी थी, और उसकी आँखों में एक अलग ही चमक थी। यह चमक उसकी उम्मीदों की, उसकी मेहनत की, और अपने सपनों को पूरा करने की इच्छा की थी।

"काव्या, तुम शहर में क्या करोगी? तुम नहीं जानती कि वहाँ कितना मुश्किल है।" राज ने उसकी पीठ थपथपाई।

"मैं जानती हूँ राज, लेकिन मुझे यह करना ही होगा। मैं हार नहीं मान सकती," काव्या ने उसे मुस्कराते हुए कहा और बस में चढ़ गई।

वह बस धीरे-धीरे गाँव से बाहर निकल रही थी, और काव्या की आँखों में एक नया सपना था। यह सपना था—शहर में शिक्षा पाने का, समाज की रूढ़िवादिता को तोड़ने का, और उन लड़कियों के लिए एक मिसाल बनने का, जो कभी अपने सपनों को पूरा करने की हिम्मत नहीं जुटा पातीं।

काव्या का सफर शुरू हो चुका था, और उसका दिल हर पल यह महसूस कर रहा था कि वह अपने सपनों के करीब पहुँचने वाली है।

यह कहानी सिर्फ काव्या की नहीं, बल्कि हर उस लड़की की है, जो अपनी मुश्किलों और बाधाओं के बावजूद अपनी मंजिल तक पहुँचने की कोशिश करती है।

(जारी...)