Amanush - Last Part in Hindi Detective stories by Saroj Verma books and stories PDF | अमानुष-एक मर्डर मिस्ट्री - (अन्तिम भाग)

Featured Books
  • નિતુ - પ્રકરણ 64

    નિતુ : ૬૪(નવીન)નિતુ મનોમન સહજ ખુશ હતી, કારણ કે તેનો એક ડર ઓછ...

  • સંઘર્ષ - પ્રકરણ 20

    સિંહાસન સિરીઝ સિદ્ધાર્થ છાયા Disclaimer: સિંહાસન સિરીઝની તમા...

  • પિતા

    માઁ આપણને જન્મ આપે છે,આપણુ જતન કરે છે,પરિવાર નું ધ્યાન રાખે...

  • રહસ્ય,રહસ્ય અને રહસ્ય

    આપણને હંમેશા રહસ્ય ગમતું હોય છે કારણકે તેમાં એવું તત્વ હોય છ...

  • હાસ્યના લાભ

    હાસ્યના લાભ- રાકેશ ઠક્કર હાસ્યના લાભ જ લાભ છે. તેનાથી ક્યારે...

Categories
Share

अमानुष-एक मर्डर मिस्ट्री - (अन्तिम भाग)

रघुवीर को डिटेक्टिव करन ने खोजा था,उसे अन्दाजा था कि रघुवीर कहाँ जा सकता है,उसने पुलिस के साथ मिलकर उसे खोज लिया,फिर डिटेक्टिव करन पुलिस के साथ रघुवीर को लेकर पुलिस स्टेशन पहुँचा, इसके बाद रघुवीर को इन्सपेक्टर धरमवीर और सिंघानिया के सामने लाया गया और फिर दोनों से एकसाथ पूछताछ शुरू की गई,इन्सपेक्टर धरमवीर ने रघुवीर से पूछा....
"तो बताओ तुम सतरुपा को क्यों मारना चाह रहे थे",
"क्योंकि वो सिंघानिया साहब को धोखा दे रही थी और मुझे धोखेबाज लोगों से बहुत नफरत है",रघुवीर बोला...
"मैं तेरे बारें में सब जानता हूँ,मैं तेरे गाँव भी गया था,मुझे पता है कि तू ही मास्टर जी का खून करके यहाँ भाग आया था",इन्सपेक्टर धरमवीर बोले...
"हाँ! मैंने ही मास्टर जी का खून किया था और मैथिली...जिसे मैं प्यार करता था,उसे मैंने ही मारा था", रघुवीर बोला...
"कैंसे मारा तूने उन दोनों को",इन्सपेक्टर धरमवीर ने पूछा...
"मास्टर जी का तो मैंने गला घोंट दिया था,मैथिली और उसके आशिक के मैंने टुकड़े टुकड़े करके उन्हें आग में भूनकर खा लिया था",रघुवीर बोला....
"तू इन्सानों को कैंसे खा सकता है,तू इन्सान नहीं हैवान है",इन्सपेक्टर धरमवीर बोले...
"मुझे मास्टर जी ने अपने घर से क्यों निकाला,मैं तो सिर्फ़ मैथिली से प्यार करता था,कोई इतना बड़ा अपराध नहीं कर दिया था मैंने ,जो मास्टर जी ने पूरे गाँव के सामने मुझे जलील करके अपने घर से निकाल दिया,मैथिली ने मेरा प्यार ठुकरा कर ठीक नहीं किया,उसे उसकी सजा तो मिलनी ही चाहिए थी",रघुवीर बोला...
"तो तूने इतनी सी बात के लिए तींनों को इतनी बेहरमी से मार दिया",इन्सपेक्टर धरमवीर बोले....
तब रघुवीर बोला...
हाँ! जब मास्टर जी ने मुझे अपने घर से निकाल दिया तो मेरे पास रहने का कोई ठिकाना नहीं था,इसलिए मैं नदी किनारे श्मशानघाट के पास बरगद के पेड़ के नीचे रहने लगा,एक दिन और एक रात तो मैंने केवल नदी का पानी पीकर बिता थी,लेकिन फिर उस रात मैं भूख से बिलबिला रहा था,उस दिन अमावस की रात थी और चारों ओर केवल अँधेरा ही अँधेरा था,तब मैंने श्मशानघाट की ओर देखा कि कोई चिता जल रही थी और उसके चारों ओर कुछ लोग बैठे थे,पहले तो मैं बहुत डर गया,लेकिन फिर हिम्मत करके मैं उन सभी के पास पहुँचा,देखा तो वे सभी अघोरी थे और उस चिता से भुना हुआ माँस निकालकर खा रहे थे.....
उन अघोरियों ने मुझे देखा तो मुझसे पूछा कि तुम्हें भूख लगी है,तब मैंने कहा हाँ! मैं दो दिनों से भूखा हूँ और फिर उन्होंने मुझे भी वो भुना हुआ माँस खाने को दिया,पहले पहल तो वो मुझे अच्छा नहीं लगा,मुझे उबकाई आई लेकिन फिर भूखा होने के कारण मैंने वो माँस खा लिया,अब रोज का वही सिलसिला हो गया और मेरा उन अघोरियों के संग उठना बैठना हो गया,मैं रोजाना उनके साथ इन्सानों का माँस खाने लगा,मैं नरभक्षी हो गया था,मुझे जब भी इन्सानों का माँस खाने को नहीं मिलता तो मैं पागल सा होने लगता था....
और उस रात मैं जब बरगद के पेड़ के नीचे लेटा था तो मैथिली अपने प्रेमी के साथ नदी के पास आई,वो दोनों नाव से कहीं भागने वाले थे,मैंने उसके पास जाकर पूछा....
"मैथिली! तुम यहाँ क्या कर रही हो"?
तब वो मुझसे बोली...
"पुरानी सभी बातों को भूलकर मुझे माँफ कर दो रघुवीर! मैंने तुम्हारे साथ ठीक नहीं किया,मैं इससे प्यार करती हूँ और मैं इसके साथ ये गाँव छोड़कर हमेशा के लिए जा कहीं रही हूँ"
"मैं तुमसे नाराज नहीं हूँ मैथिली! मैं तो तुम्हारी मदद करना चाहता हूँ,चलो मैं तुम्हें नदी पार नाव से ले चलता हूँ"मैंने उससे कहा...
और मेरी बात सुनकर वो मेरे साथ जाने के लिए मान गई,तब मैंने उससे कहा कि मैं अपना झोला लेकर आता हूँ,फिर साथ में चलते हैं,मैं झोला लेकर उसके पास लौटा और उस झोले में बड़ा सा चाकू था, पीछे से मैंने उसे उस सुनसान नदी के घाट पर वो चाकू घोंपकर निकाल लिया,वो पलटी तो फिर से उसके पेट में भी मैंने वो चाकू घोंप दिया,वो धरती पर गिरकर तड़पने लगी, उसे देखकर उसके प्रेमी ने वहाँ से भागने की कोशिश की तो मैंने उसके सिर पर वहीं पड़े पत्थर से जोर का वार किया,वो धरती पर गिर पड़ा, फिर मैंने उसके सिर पर उस पत्थर से तब तक वार किया,जब तक कि वो मर ना गया,इसके बाद मैं दोनों की लाशों को घसीटकर श्मशान ले गया,उनके छोटे छोटे टुकड़े किए और उस माँस को चिता की आग में भूनकर उन अघोरियों के साथ बैठकर मैंने बहुत मज़े से खाया,फिर उसके बाद मैं मास्टर जी के घर आया और उनका गला दबाकर हमेशा के लिए उस गाँव से भाग आया....
ये कहकर रघुवीर चुप हो गया तो इन्सपेक्टर धरमवीर ने उससे पूछा...
"तूने छुट्टन को क्यों मारा?"
"क्योंकि उसे मेरा राज पता हो गया था और वो उसके लिए मुझसे हमेशा मोटी रकम वसूलने लगा था, इसलिए एक रात मैंने उसके साथ दारु पार्टी की और उसकी शराब में जहर मिलाकर उसे पिला दिया फिर वो मर गया तो उसकी लाश को मैं रेलवे फाटक के पास फेंककर चला आया",रघुवीर बोला...
"तू इस कमीने से कब मिला?",इन्सपेक्टर धरमवीर ने रघुवीर से पूछा....
तब रघुवीर बोला...
मैं जब गाँव से यहाँ आया था तो भूखा प्यासा सड़क के किनारे बैठा था,सिंघानिया साहब ने मुझे देखा तो बोले कि मेरा एक काम करेगा,मैं तुझे उस काम के मुँहमाँगे दाम दूँगा,मैं काम करने को मान गया,उन्होंने मुझसे जिज्ञासा को मारने को कहा,लेकिन मैंने भी उनके सामने एक शर्त रखी कि मैं उसे मारने के बाद उसका माँस खाऊँगा क्योंकि अगर मैंने इन्सान का माँस और कुछ दिन नहीं खाया तो मैं पागल सा हो जाऊँगा और वे इस बात के लिए मान गए और तब से ये सिलसिला चल पड़ा,वे लड़कियाँ लाकर अपने फार्महाउस में रख देते और मैं उन्हें मारकर उनकी बोटियाँ करता फिर सिंघानिया साहब फार्महाउस आकर उस माँस को पकाते और मैं मज़े से खाता और उस पके हुए माँस को फार्महाउस के फ्रिज में स्टोर करके भी रख लेता था और जब भी मेरा मन करता तो मैं उसे गरम करके खा लेता था....
रघुवीर की बात सुनकर इन्सपेक्टर धरमवीर का खून खौल उठा और उन्होंने सिंघानिया से पूछा....
"और तूने देविका को कैंसे मारा?",
"मैंने नहीं उसे भी रघुवीर ने ही मारा था और उसी ने उसकी बोटियाँ बोटियाँ भी की थी,बस मैंने सिंह साहब की पार्टी में उसकी बिरयानी बनाई थी",सिंघानिया बोला...
"और उन लोगों की खाल और हड्डियों का क्या करते थे तुम लोग"?,इन्सपेक्टर धरमवीर ने पूछा....
"उन्हें जला देते थे और जलाने पर जो भी नहीं जलता था बच जाता था तो उसे बड़े से ग्राइन्डर में पीसकर झील में बहा आते थे",सिंघानिया बोला....
"मतलब कोई भी सुबूत नहीं छोड़े तुम लोगों ने",इन्सपेक्टर धरमवीर ने पूछा...
"एक सुबूत बचा है",रघुवीर बोला...
"वो क्या"?,इन्सपेक्टर साहब ने पूछा...
"हम लोगों ने जितने भी लोगों को मारा है तो मैथिली और उसके प्रेमी के अलावा बाकी सबकी आँखें हमने सम्भालकर रखीं हैं,वो आपको फार्महाउस के फ्रीजर में मिल जाऐगी,उन्हें अलग अलग डिब्बियों में हम लोगों ने प्रीजर्व करके रखा है और हर डिब्बी में उन सभी का नाम लिखा है जिनकी वे आँखें हैं",रघुवीर बोला...
"और शिशिर को कैंसे मारा तुम लोगों ने",डेटेक्टिव करन ने पूछा...
"उसे भी वैसे ही मारा जैसे सबको मारा था",रघुवीर बोला....
"और देविका की कार झील में कैंसे पहुँची",डिटेक्टिव करन ने पूछा...
तब सिंघानिया बोला....
"वो तो रोहन का काम था,वो देविका को खतम करना चाहता था क्योंकि रोहन के कहने पर ही देविका ने मुझसे शादी की थी,हमलोग देविका की कार को उस झील के किनारे छोड़ आए थे और उसमें देविका के पुतले को कार की सीट पर औंधा लिटा दिया था जिससे उसका चेहरा नहीं दिख रहा था और उसकी पीठ पर एक नकली चाकू घुसाकर अगल बगल नकली खून लगा दिया,जिससे वो पुतला देविका की लाश नजर आ रहा था,फिर देविका के फोन से मैंने रोहन को मेसेज किया कि मैं यहाँ झील के पास हूँ तुम जल्दी से यहाँ आ जाओ,रोहन वहाँ पहुँचा तो तब वहाँ अँधेरा था,उसने जब देविका को मरा हुआ देखा तो वो बहुत डर गया और उसने उस कार को झील में धकेल दिया, हम दोनों वहीं छुपकर ये सब देख रहे थे,जब रोहन वहाँ से चला गया तो फिर रघुवीर झील में कूदकर उस पुतले को बाहर निकाल लाया,क्योंकि रघुवीर को बहुत अच्छी तरह से तैरना आता था,इसलिए रोहन को हमेशा ये लगता रहा कि देविका का कातिल वो है...."
उन दोनों का बयान रिकार्ड करने के बाद इन्सपेक्टर धरमवीर ने कोन्स्टेबल से कहा....
" इतना शातिर दिमाग,ले जाओ इन दोनों दरिन्दों को यहाँ से,मुझे अब इन दोनों की शकल से नफरत हो गई है,ये मानुष नहीं अमानुष हैं"
इस तरह से रघुवीर और दिव्यजीत पकड़े गए,उन्होंने इन्सानियत को शर्मसार करके रख दिया था,फिर फार्महाउस के फ्रीजर में रखी उन सभी कत्ल हो चुके लोगों की आँखों का डी.एन.ए .टेस्ट करवाया गया और उन आँखों को उनके घरवालों के हवाले कर दिया गया,इतनी हैवानियत जो भी सुनता तो अपने कानों पर हाथ रख लेता,रघुवीर और दिव्यजीत मनुष्य के नाम पर कलंक थे,वे मानुष नहीं अमानुष थे...
फिर दोनों पर केस चला और दोनों को फाँसी की सजा सुनाई गई,रोहन को भी देविका की कार को झील में ढ़केलने के लिए एक साल की सजा हुई और फिर करन ने सतरुपा के संग शादी कर ली और उसे बार डान्सर के काम से मुक्ति मिल गई....

समाप्त...
सरोज वर्मा....