Amanush - 21 in Hindi Detective stories by Saroj Verma books and stories PDF | अमानुष-एक मर्डर मिस्ट्री - भाग(२१)

Featured Books
  • નિતુ - પ્રકરણ 64

    નિતુ : ૬૪(નવીન)નિતુ મનોમન સહજ ખુશ હતી, કારણ કે તેનો એક ડર ઓછ...

  • સંઘર્ષ - પ્રકરણ 20

    સિંહાસન સિરીઝ સિદ્ધાર્થ છાયા Disclaimer: સિંહાસન સિરીઝની તમા...

  • પિતા

    માઁ આપણને જન્મ આપે છે,આપણુ જતન કરે છે,પરિવાર નું ધ્યાન રાખે...

  • રહસ્ય,રહસ્ય અને રહસ્ય

    આપણને હંમેશા રહસ્ય ગમતું હોય છે કારણકે તેમાં એવું તત્વ હોય છ...

  • હાસ્યના લાભ

    હાસ્યના લાભ- રાકેશ ઠક્કર હાસ્યના લાભ જ લાભ છે. તેનાથી ક્યારે...

Categories
Share

अमानुष-एक मर्डर मिस्ट्री - भाग(२१)

फार्महाउस की बात सुनकर सतरुपा बहुत डर चुकी थी,लेकिन फिर भी उसने हिम्मत करके दिव्यजीत सिंघानिया से पूछा...
"लेकिन फार्महाउस में जाकर हम करेगें क्या"?
"रोमांस और क्या"दिव्यजीत बोला....
"ये कैंसी बातें कर रहे हैं आप",सतरुपा बोली....
"मैं तुम्हारा पति हूँ और मुझे तुमसे ऐसी ही बातें करनी चाहिए",सिंघानिया मुस्कुराते हुए बोली....
फिर दिव्यजीत देविका बनी सतरुपा से यूँ ही बातें करता रहा, कुछ ही देर में दोनों फार्महाउस पहुँच गए,इसके बाद दिव्यजीत सिंघानिया सतरुपा को फार्महाउस के अन्दर ले गया,फार्महाउस सच में बहुत ही खूबसूरत था,वहाँ की साज सज्जा देखने लायक थी,लकड़ी का आलीशान फर्नीचर उसकी खूबसूरती को और भी बढ़ा रहा था,हर जगह तरह तरह के फल और फूल के पेड़ पौधे लगे थे,सतरुपा ने जब वहाँ अमरख (स्टारफ्रूट) का पेड़ देखा तो वो उसे देखकर बोली...
"अच्छा! तो ऐसा होता है,अमरख(स्टारफ्रूट) का पेड़"
"हाँ! यहाँ तुम्हें और भी बहुत तरह के फलों के पेड़ मिल जाऐगें,जिनके बारें में शायद तुमने कभी सोचा भी नहीं होगा", दिव्यजीत सिंघानिया बोला...
"हाँ! मैं बाद में सारे पेड़ देखूँगी,लेकिन पहले थोड़ा आराम करना चाहती हूँ" देविका बनी सतरुपा बोली....
"तुम पहले यहाँ कई बार आ चुकी हो,लेकिन शायद तुम्हें याद नहीं है",दिव्यजीत बोला....
"जी! शायद आप ठीक कह रहे हैं,मुझे सच में कुछ भी याद नहीं है",देविका बनी सतरुपा बोली...
"तो कैंसा लगा फार्महाउस",दिव्यजीत ने पूछा...
"अच्छा है",देविका बनी सतरुपा बोली...
"अच्छा! चलो पहले तुम आराम कर लो,फिर मैं तुम्हें यहाँ का किचन गार्डन दिखाऊँगा,मेरे सभी होटल्स के रेस्टोरेन्ट्स के लिए सारी सब्जियांँ और फल यहीं से जाते हैं ",दिव्यजीत सिंघानिया बोला....
"ठीक है! मैं थोड़ा आराम कर लूँ फिर बाद में आपके साथ किचन गार्डेन देखने चलूँगीं ", देविका बनी सतरुपा बोली...
"ठीक है तो तुम यहीं हाँल में आराम करो,मैं तब तक कुछ ताजे नींबू तोड़कर लाता हूँ,जब तुम उन नींबुओं की शिकंजी पिओगी तो एकदम तरोताज़ा हो उठोगी",दिव्यजीत सिंघानिया बोला...
इसके बाद दिव्यजीत सिंघानिया नींबू तोड़ने चला गया और देविका बनी सतरुपा हाँल में लगे झूले पर लेटकर आराम करने लगी,कुछ ही देर में दिव्यजीत सिंघानिया नींबू तोड़कर लौटा और उसने देविका से कहा....
"मैं बस अभी शिकंजी बनाकर लाता हूँ",
और फिर दिव्यजीत देविका के लिए शिकंजी बनाकर लाया,शिकंजी वाकई बहुत अच्छी थी,इसलिए देविका एक की जगह दो गिलास शिकंजी पी गई,उसने दिव्यजीत से शिकंजी पीने को कहा तो वो बोला कि मैं तो रोजाना ही शिकंजी बनाकर पीता रहता हूँ,मैं अभी शिकंजी नहीं पिऊँगा,मेरा मन नहीं है,फिर शिकंजी पीने के बाद ना जाने देविका बनी सतरुपा को क्या हुआ,उसकी आँखें झपकने लगी और वो बोली...
"मुझे तो नींद आ रही है"
"तो तुम सो जाओ,तब तक मैं फार्म हाउस के कुछ काम निपटा लेता हूँ,कुछ पौधे खराब हो रहे हैं,उनकी देखभाल कर देता हूँ",दिव्यजीत सिंघानिया बोला...
फिर क्या था,देविका सो गई और जब उसकी आँख खुली तो उसे केवल अँधेरा ही अँधेरा नजर आया और जब उसने कुछ बोलने की कोशिश की तो वो कुछ बोल नहीं पा रही थी क्योंकि उसके मुँह पर टेप चिपका हुआ था और जब उसने अपने हाथ पैर हिलाने की कोशिश की तो वो अपने हाथ पैर भी नहीं हिला पा रही थी क्योंकि उसके हाथ पैर तो रस्सियों से बँधे हुए थे, अब उसे पूरा पूरा अंदेशा हो चुका था कि अब वो बुरी तरह से फंँस चुकी है....
और तभी अँधेरे में किसी ने मोबाइल फोन की रोशनी की,रोशनी देखकर सतरूपा के मन में एक उम्मीद जाग उठी, लेकिन दूसरे ही पल वो नाउम्मीद हो उठी क्योंकि वो दिव्यजीत सिंघानिया था,फिर दिव्यजीत ने उस कमरे की सभी लाइट्स जलाईं,उजाला होने पर सतरुपा ने चारों ओर अपनी नज़र दौड़ाई तो वो कमरा उसे कोई स्टोररूम जैसा लगा,क्योंकि वहाँ जगह जगह पर पुराना सामान फैला पड़ा था और वो एक कुर्सी पर बैठी थी,उसके मुँह पर टेप और उसके हाथ पैर रस्सियों के सहारे कुर्सी से बँधे थे....
फिर दिव्यजीत सिंघानिया उसके पास आकर बोला....
"अब कैंसा लग रहा है देवू डार्लिंग! मैंने तुम्हारी शिकंजी में नींद की गोलियाँ मिलाई थीं"
इसके बाद दिव्यजीत सिंघानिया ने सतरूपा के पास आकर उसके मुँह का टेप निकाला तब सतरुपा ने दिव्यजीत से पूछा....
"ये आप क्या कर रहे हैं,आपने मुझे ऐसे क्यों बाँध रखा है"?
"तुम तो बहुत भोली निकली देवू डार्लिंग! कुछ समझती ही नहीं",दिव्यजीत सिंघानिया बोला....
"जी! मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा कि आप क्या कहना चाहते हैं",देविका बनी सतरूपा बोली....
"ओह...तो तुम्हें समझ नहीं आ रहा कि मैं क्या कहना चाहता हूँ,ठीक है तो मैं तुम्हें कुछ दिखाता हूँ,उसे देखकर तुम सब समझ जाओगी",
और फिर ऐसा कहकर दिव्यजीत ने अपना मोबाइल फोन अपनी पोकेट से निकाला और कोई वीडियो सतरुपा को दिखाने लगा,जिसे देखकर सतरुपा की आँखें खुली की खुली रह गईं और तब दिव्यजीत ने देविका बनी सतरूपा से पूछा...
"इस वीडियो में तुम ही हो ना! क्या कर रही हो तुम मेरे स्टडी रुम में"
"जी! कुछ नहीं,मैं तो बस अपने पढ़ने के लिए कोई किताब ढूढ़ रही थी "देविका बनी सतरुपा बोली...
"झूठ मत बोलो",दिव्यजीत दहाड़ा...
"मैं झूठ नहीं कह रही",सतरुपा डरते हुए बोली...
"तुम झूठ ही कह रही हो,सच तो ये है कि मेरे स्टडी रुम में तुम माइक्रोफोन छुपाने गई थी",दिव्यजीत बोला...
"भला! मैं आपके कमरे में माइक्रोफोन क्यों छुपाऊँगीं",सतरुपा बोली...
"मेरे स्टडी रुम में कैमरा लगा है,उसमें सब रिकार्ड हो चुका है,इसलिए तुम मुझसे झूठ बोलने की कोशिश मत करना",दिव्यजीत बोला....
"वो माइक्रोफोन नहीं था,मैंने आपसे कहा ना कि मैं पढ़ने के लिए कोई किताब ढूढ़ रही थी", देविका बनी सतरुपा बोली....
"तुम झूठ कह रही हो और मुझे ये भी मालूम है कि तुम देविका नहीं हो",दिव्यजीत सिंघानिया बोला...
"लगता है आपको कोई गलतफहमी हो गई है,मैं देविका ही हूँ ",देविका बनी सतरुपा बोली....
"तुम देविका नहीं हो सकती क्योंकि उसे तो मैंने अपने इन्हीं हाथों से मार दिया था",दिव्यजीत बोला...
"आपने देविका को मार दिया था,लेकिन क्यों?",सतरुपा ने पूछा...
"क्योंकि मैंने उसे अपने यार शिशिर के साथ आपत्तिजनक स्थिति में देख लिया था,फिर उसने मुझसे झूठ कहा कि वो बच्चा मेरा है,जबकि वो बच्चा शिशिर का था,उसकी बेवफाई का उसे वही ईनाम मिला जो उसे मिलना चाहिए था",दिव्यजीत बोला....
"ओह...तो आपने उसे कैंसे मारा",सतरुपा ने पूछा....
"जब तुम्हें मारा जाएगा तो तुम्हें अपनेआप पता चल जाऐगा कि वो कैंसे मरी?",दिव्यजीत बोला....
"लेकिन मैंने आपका क्या बिगाड़ा है ,जो आप मुझे मारना चाहते हैं",सतरुपा ने पूछा....
"बस यूँ ही मज़े के लिए",दिव्यजीत बोला....
"मज़े के लिए......क्या किसी की जान लेना आपके लिए मज़े की बात है",सतरुपा ने पूछा....
"हाँ! ऐसा करने में मुझे बहुत मज़ा आता है",दिव्यजीत बोला...
"लेकिन आप ऐसा करके जिन्दा नहीं बच पाऐगें,पुलिस आपको ढूढ़ ही लेगी",सतरुपा बोली....
"मुझे पता है कि तुम पुलिस की मुखबिर हो इसलिए तो अब तुम भी जिन्दा नहीं बचोगी",
और ऐसा कहकर दिव्यजीत ने सतरुपा के मुँह को फिर से टेप लगा दिया और उसने उस स्टोररूम की लाइट बंद की,फिर वो फार्महाउस की सभी जगह की लाइट बंद करके अपनी कार में जा बैठा,कार स्टार्ट की ओर फार्महाउस से बाहर निकल गया,कार बाहर जाने की आवाज सतरूपा ने ठीक से सुनी थी,अब वो उस फार्महाउस में बिलकुल अकेली थी,वो बँधी हुई थी और अपने लिए वो कुछ भी नहीं कर सकती थी.....

क्रमशः....
सरोज वर्मा....