Amanush - 17 in Hindi Detective stories by Saroj Verma books and stories PDF | अमानुष-एक मर्डर मिस्ट्री - भाग(१७)

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अमानुष-एक मर्डर मिस्ट्री - भाग(१७)

इन्सपेक्टर धरमवीर घर पहुँचे और उन्होंने डेटेक्टिव करन थापर को फोन पर शिरिष की कहीं सभी बातें सुना डाली,बातें सुनकर करन बोला....
"तब तो सतरुपा की जान को भी खतरा हो सकता है",
"हाँ! मैं भी वही सोच रहा था",इन्सपेक्टर धरमवीर बोले....
"तो अब हम लोग ऐसा क्या करें कि वो सही सलामत रहे,क्योंकि मुझे उस सिंघानिया पर बिलकुल भी भरोसा नहीं कि वो कब क्या कर दे",करन बोला....
"हाँ! मैं कुछ सोचता हूँ इस बारें में और कल ही इस समस्या को सुलझाने की कोशिश करता हूँ,अब तुम आराम करो",इन्सपेक्टर धरमवीर बोले...
"ठीक है! गुड नाईट!" और ऐसा कहकर करन ने फोन रख दिया...
अब जब दूसरे दिन करन धरमवीर से मिला तो उसने उससे पूछा...
"तो क्या सोचा तुमने सतरुपा के सेफ्टी के बारें में"?
"मैं सोच रहा हूँ कि सिंघानिया,रोहन और शैलजा के कमरों में माइक्रोफोन छुपा दें,जिससे हमें उन लोगों की गतिविधियों का पता चलता रहे",इन्सपेक्टर धरमवीर बोले...
"आइडिया तो अच्छा है,लेकिन उन लोगों के कमरें में माइक्रो फोन छुपाएगा कौन?",करन ने पूछा...
"सतरुपा और कौन"इन्सपेक्टर धरमवीर बोले....
"लेकिन ये काम बहुत रिस्की हो सकता है,अगर किसी ने सतरुपा को उन लोगों के कमरे में माइक्रो फोन छुपाते देखा लिया तो फिर तो सतरूपा की खैर नहीं",करन बोला....
"अब जो भी है,अगर हमें मुजरिम को पकड़ना है तो इतना खतरा तो उठाना ही पड़ेगा",इन्सपेक्टर धरमवीर बोले...
"क्या रुपा ये काम करने के लिए तैयार होगी",करन ने पूछा...
"उसका मन नहीं भी होगा ये काम करने तो तब भी उसे करना ही पड़ेगा क्योंकि अगर वो ऐसा नहीं करेगी तो उसकी जान के लिए खतरा बढ़ जाएगा",इन्सपेक्टर धरमवीर बोले....
"तो वो कब आ रही है हम लोगों से मिलने",डेटेक्टिव करन ने पूछा...
"अब ये तो नहीं पता,क्योंकि उसे यहाँ बुलाने के लिए बहाना बनाना पड़ेगा,अब तो मुझे बहाना बनाने में भी शरम लगने लगी है,बार बार झूठ बोलकर उसे सिंघानिया के घर से यहाँ लाना पड़ता है",इन्सपेक्टर धरमवीर बोले....
"अब इतना तो करना ही पड़ेगा,उस बेचारी के बारें में भी तो जरा सोचो,वो कितना रिस्क उठाकर सिंघानिया के घर में रह रही है",करन बोला...
"तुम्हें उसकी बड़ी चिन्ता है",इन्सपेक्टर धरमवीर बोले...
"क्यों ना होगी उसकी चिन्ता,वो हमारे कहने पर ही तो सिंघानिया के घर पर रह रही है",करन बोला.....
"बात तो तेरी बिल्कुल सही है",इन्सपेक्टर धरमवीर बोले...
"वैसे लड़की है बड़ी अच्छी,घर के काम काज भी बहुत अच्छे से कर लेती है",करन बोला....
"क्या तू उसे पसंद करने लगा है?",इन्सपेक्टर धरमवीर ने पूछा....
"ऐसी कोई बात नहीं है",करन बोला....
"लेकिन तेरी आँखे तो कुछ और ही कह रहीं हैं",इन्सपेक्टर धरमवीर बोले....
"अच्छा! ये सब छोड़ो,पहले ये बताओ सतरूपा को यहाँ बुलाने के लिए कौन सा बहाना सोचा है",करन ने पूछा....
"वही तो सोच रहा था,लेकिन कुछ सूझ ही नहीं रहा है",इन्सपेक्टर धरमवीर बोले...
"मैं तो कहता हूँ कि इस बार तुम उसे लाने के लिए किसी कोन्स्टेबल को भेज दो,ऐसा करने से तुम्हें कोई बहाना भी नहीं बनाना पड़ेगा",करन बोला....
"हाँ! यही ठीक रहेगा",इन्सपेक्टर धरमवीर बोले....
फिर दोनों ऐसे ही बातें करते रहे और फिर शाम को जब इन्सपेक्टर धरमवीर ने कोन्स्टेबल बंसी यादव को देविका को लाने सिंघानिया के घर भेजा तो उन्हें पता चला कि दिव्यजीत सिंघानिया देविका को बहुत बड़े प्रोपर्टी डीलर प्रकाश मेहरा की पार्टी में लेकर गया है,पार्टी का खाना बनाने का काम भी सिंघानिया को ही सौंपा गया था,ये सब बाते कोन्स्टेबल बंसी यादव को सिंघानिया की माँ शैलजा ने बताईं थीं,ये सुनकर इन्सपेक्टर धरमवीर ने करन को फोन किया और उसे सारी बात बताई,तब करन बोला तुम चिन्ता मत करो मैं वहाँ जाने का कोई जुगाड़ लगाता हूँ,हम लोग सतरुपा को उस सिंघानिया के साथ अकेला नहीं छोड़ सकते,फिर कुछ समय बाद करन वहाँ अपना हुलिया बदलकर वेट्रेस बनकर वहाँ पहुँच गया.....
वो लड़की के रुप में था,इसलिए उसे किसी ने नहीं पहचाना और वो आसानी से सतरुपा के पास पहुँच गया और उसे कोल्ड ड्रिंक सर्व करते हुए बोला....
"मैंम लीजिए!",
सतरुपा ने कोल्ड ड्रिंक ले ली,लेकिन उसने करन के चेहरे की ओर नहीं देखा,वो वैसे भी बहुत नर्वस और घबराई हुई सी अपनी सीट पर बैठी थी,पार्टी किसी सेवेन स्टार होटल के लाँन में ऑर्गेनाइज्ड की गई थी,जब सतरुपा ने करन की ओर नहीं देखा तब करन ने उससे दोबारा पूछा...
"मैंम! आप और कुछ लेगीं",
"जी! नहीं!",सतरुपा बोली...
इस बार फिर भी जब सतरुपा ने करन की ओर देखें बिना ही ना कह दिया तब करन ने उससे दोबारा पूछा...
"मैंम! कुछ स्नैक्स लेना चाहेंगीं आप,जैसे कि दाल पकौड़ा,वेज कबाब या और कुछ",
"कहा ना! कुछ नहीं चाहिए,फिर क्यों मेरा दिमाग़ खा रही हो", सतरुपा बोली....
"मैंम! एक बार मेरी तरफ तो देख लीजिए",करन बोला....
"क्यों? तुम कोई हूरपरी हो जो मैं तुम्हें देखूँ",सतरुपा बोली...
"नहीं! मेरा वो मतलब नहीं था मैंम!",वेट्रेस बना करन बोला...
"तुम फिर क्या मतलब था तुम्हारा?" सतरुपा बनी देविका ने वेट्रेस बने करन की ओर देखते हुए कहा...
और जब सतरुपा ने वेट्रेस के रुप में करन को देखा तो वो बोली...
"आप और यहाँ",
"जी! आपकी खिदमत करने आया हूँ",करन बोला....
"माँफ कीजिए,मैंने देखा नहीं आपकी तरफ,वैसे बहुत अच्छी लग रही हो",सतरुपा करन की ओर देखते हुए मुस्कुराकर बोली...
तब करन सतरूपा से बोला....
"थैंक्यू!"
"आप यहाँ क्यों आएँ हैं,किसी ने पहचान लिया तो",सतरुपा फुसफुसाते हुए बोली...
"तुम्हारी सेफ्टी के लिए मैं यहाँ आया हूँ,तुम परेशान मत होना,जब तक ये पार्टी चलेगी,मैं यहीं पर रहूँगा,
"ठीक है",सतरुपा बोली...
और फिर करन वहाँ से चला गया,वो सब जगह जा जाकर देख रहा था कि कहाँ क्या चल रहा है,इसके बाद वो किचन में पहुँचा,जहाँ सिंघानिया और रघुवीर मौजूद थे,उन दोनों के अलावा वहाँ पर और कोई नहीं था,दिव्यजीत सिंघानिया ने सैफ वाली ड्रेस और सैफ वाली टोपी लगा रखी थी, वहाँ पर जब उसने रघुवीर को खाना खाते हुए देखा तो उसे बहुत ही ताज्जुब लगा,उसने मन में सोचा कि इसका मतलब रघुवीर और सिंघानिया के बीच कुछ तो ऐसा चल रहा है,जिसकी खबर ना तो पुलिस को है और ना ही और लोगों को,फिर करन ने छुपकर दोनों की बातें सुनने की कोशिश की, उसने सुना कि रघुवीर दिव्यजीत सिंघानिया से कह रहा था.....
"साहब! आज फिर से आपके हाथ पका हुआ इतना लज़ीज़ खाना खाने को मिला,ऐसे ही मुझे खिलाते रहिए, आप कितना अच्छा मीट पकाते हैं,अगर एक दो दिन तक आपके हाथ का पका मीट मुझे खाने को नहीं मिलता ना तो मुझे तलब सी लगी रहती है",
"तुम भी तो मेरा इतना ख्याल रखते हो,इसलिए तुम्हारे काम के लिए इतना ईनाम तो बनता है",दिव्यजीत सिंघानिया बोला....
"साहब! ये तो सब आपकी ही मेहरबानी है,नहीं तो अब तक तो मैं भूखा ही मर गया होता",रघुवीर बोला...
"ऐसा मत बोल रघुवीर! तेरी मेहरबानियाँ भी कुछ कम नहीं है मुझ पर",सिंघानिया बोला....
रघुवीर और सिंघानिया के बीच बातें चल ही रहीं थीं कि तभी करन का धक्का लगने से उस रैक के कुछ बरतन गिर पड़े ,जिसके पीछे करन खड़ा था,अब करन ने वहाँ से भागने में ही समझदारी समझी और वो वहाँ से भाग गया,सिंघानिया और रघुवीर भी आवाज सुनकर चौकन्ने हो गए और वे भी उस ओर भागे जहाँ से आवाज़ आई थी,लेकिन उन दोनों के हाथ कुछ नहीं लगा....
और तभी बाहर सतरुपा के पास ब्लू-व्हेल बार का मालिक आकर बैठ गया,जहाँ सतरुपा पहले डान्स किया करती थी,वो पार्टी के प्रोग्राम के लिए बार से कुछ लड़कियांँ नाचने के लाया था और फिर वो सतरूपा से बोला...
"तुम सतरुपा हो ना!"
बार मालिक का सवाल सुनकर सतरूपा के तो जैसे होश ही उड़ गए....

क्रमशः....
सरोज वर्मा....