Amanush - 16 in Hindi Detective stories by Saroj Verma books and stories PDF | अमानुष-एक मर्डर मिस्ट्री - भाग(१६)

Featured Books
  • ચતુર

    आकारसदृशप्रज्ञः प्रज्ञयासदृशागमः | आगमैः सदृशारम्भ आरम्भसदृश...

  • ભારતીય સિનેમાનાં અમૂલ્ય રત્ન - 5

    આશા પારેખઃ બોલિવૂડની જ્યુબિલી ગર્લ તો નૂતન અભિનયની મહારાણી૧૯...

  • રાણીની હવેલી - 6

    તે દિવસે મારી જિંદગીમાં પ્રથમ વાર મેં કંઈક આવું વિચિત્ર અને...

  • ચોરોનો ખજાનો - 71

                   જીવડું અને જંગ           રિચાર્ડ અને તેની સાથ...

  • ખજાનો - 88

    "આ બધી સમસ્યાઓનો ઉકેલ તો અંગ્રેજોએ આપણા જહાજ સાથે જ બાળી નાં...

Categories
Share

अमानुष-एक मर्डर मिस्ट्री - भाग(१६)

शिशिर हैंडसम था तो देविका आसानी से उसके जाल में फँस गई,शिशिर ने बहुत कोशिश की कि उसे देविका से जिज्ञासा के बारें में कोई जानकारी मिल सकें,लेकिन ऐसा ना हो सका,मुझे पल पल की खबर शिशिर देता रहता था,लेकिन फिर एक दिन ऐसा हुआ कि मुझे शिशिर के बारें में कोई जानकारी नहीं मिली,उसका फोन भी नहीं लगा तो तब मुझे शक़ हुआ,इसलिए मैं फौरन उस जगह पहुँचा जहाँ शिशिर रहता था,मेरे पास भी उस घर की दूसरी चाबी रहती थी क्योंकि शिशिर ने मुझे वो दूसरी चाबी देते हुए कहा था कि ना जाने कब मुझे उस चाबी की जरूरत पड़ जाएँ,मैंने घर का दरवाजा खोला तो शिशिर की लाश बिस्तर पर पड़ी थी,शायद उसे जहर दिया गया था....
शिशिर एक ऐसे घर में रहता था,जहाँ आस पड़ोस से उसका कोई लेना देना नहीं था,इसलिए उसके मरने की किसी कोई खबर भी नहीं लगी,मैं अपनी कार से वहाँ पहुँचा था और उसकी लाश को कार में डालकर मैं अपने शहर आ गया,वहाँ मैंने उसका पोस्टमार्टम करवाया तो पता चला कि उसे जहर ही दिया गया था,मेरा शक़ सही निकला,वे सब मेरे जान पहचान के डाक्टर्स थे,इसलिए मैंने उन डाक्टरों से उसके बारें में किसी से भी कुछ ना बताने के लिए कहा,इस तरह से शिशिर की मौत की खबर दब गई और मैंने उसका अन्तिम संस्कार कर दिया,मैंने अभी तक अपने माता पिता से भी शिशिर के मौत की खबर छुपाकर रखी है,इसके बाद मैं शिशिर बन के देविका के पास पहुँचा और उससे नजदीकियांँ बढ़ानी शुरू कर दीं,फिर पता नहीं इसके बाद देविका भी कहीं गायब हो गई,एक साल तक वो मुझे नहीं दिखी,लेकिन अब एक साल के बाद वो मुझे सिंघानिया के साथ उसके ही होटल में दिखी...
ये कहते कहते शिरिष चुप हो गया,तब इन्सपेक्टर धरमवीर उससे बोले.....
"ओह...तो ये है पूरा माजरा"
"जी! हाँ! लेकिन जिज्ञासा का आज तक पता नहीं चला कि वो कहाँ गई और वो अनामिका भी आज तक लापता है",शिरिष बोला...
"इसका तो एक ही मतलब बैठता है कि कहीं इन सभी के पीछे सिंघानिया का हाथ तो नहीं है",इन्सपेक्टर धरमवीर बोले...
"मुझे भी कुछ ऐसा ही लगता है",शिरिष बोला...
"तो ये पता कैंसे चलेगा कि सिंघानिया ही गुनाहगार है",इन्सपेक्टर धरमवीर बोले...
"सर! मैंने आपको सारी बात बता दी है,अब आप ही कुछ कर सकते हैं,मैं तो इस पहेली को सुलझाते सुलझाते थक चुका हूँ,लेकिन मुझे तो कोई रास्ता ही नज़र नहीं आ रहा और सबसे बड़ी ताज्जुब की बात है कि वो देविका मुझे पहचान ही नहीं पाई,जबकि मैंने उसके साथ इतना वक्त बिताया था",शिरिष सरकार बोला...
"क्योंकि वो देविका नहीं है",इन्सपेक्टर धरमवीर बोले...
"अगर वो देविका नहीं है,तो फिर कौन है वो",शिरिष ने पूछा...
"वो हमारी ही साथी है,हमने उसे सिंघानिया के घर में देविका बनाकर भेजा है",इन्सपेक्टर धरमवीर बोले...
"ओह...तभी उसने मुझे नहीं पहचाना",शिरिष बोला...
"और कुछ बता सकते हो तुम सिंघानिया के बारें में,जो मुझे पता ना हो,कुछ ऐसी बातें जो तुमसे देविका ने कभी बताईं हों",इन्सपेक्टर धरमवीर ने शिरिष से पूछा..
"ऐसा तो और कुछ सिंघानिया के बारें में मुझे नहीं पता,लेकिन हाँ एक बात जरूर मुझे पता है ,जो देविका ने ही मुझे बताई थी", शिरिष बोला...
"वो भला क्या",इन्सपेक्टर धरमवीर ने पूछा...
"वो कहा करती थी कि सिंघानिया अक्सर रात में अपने फार्महाउस में रुका करता था,देविका को शक़ था कि वो वहाँ लड़कियों के साथ रंगरलियाँ मनाने जाता है,देविका जब उससे कभी कुछ पूछती थी तो वो उससे मारपीट किया करता था,मैंने कई बार देविका के बदन पर मारपीट के निशान देखें हैं",शिरिष बोला...
"इसका मतलब है कि देविका सिंघानिया से तुम्हारा बहुत ही करीबी का रिश्ता था,तभी तो तुम्हें उसके बदन के निशान के बारें में पता है",इन्सपेक्टर धरमवीर ने पूछा...
"जी! मैं आपसे कुछ नहीं छुपाऊँगा,हाँ मेरा उसके साथ बहुत ही करीबी का रिश्ता था,वो मुझ पर बहुत भरोसा करती थी,मुझे अपने मन की सभी बातें शेयर किया करती थी",शिरिष बोला...
"और कुछ भी बताया था उसने किसी के बारें में",इन्सपेक्टर धरमवीर ने पूछा...
"जी! वो रोहन के बारें में भी बहुत कुछ कहा करती थी",शिरिष बोला...
"क्या कहा करती थी वो उसके बारें में?",इन्सपेक्टर धरमवीर ने पूछा...
"यही कि रोहन के कहने पर ही उसने दिव्यजीत से झूठे प्यार का नाटक करके शादी की थी,असल में वो उसे चाहती ही नहीं थी,रोहन अक्सर उसे धमकी दिया करता था कि वो जो चाहेगा उसे वही करना पड़ेगा, नहीं तो वो सबको उसका राज बता देगा",शिरिष बोला...
"कैंसा राज?",इन्सपेक्टर धरमवीर ने पूछा...
"असल में देविका अनाथ थी और हमेशा से किसी अनाथालय में पली बढ़ी थी,जब वो काँलेज में पढ़ने लगी तो अमीर बुड्ढ़ो को अपने जाल में फँसा कर उन्हें ब्लैकमेल करके वो उनसे पैसा ऐठा करती थी,जब उसे दिव्यजीत से शादी करनी थी तो वो अपने साथ किराए के माँ बाप लेकर आई थी,ये बात केवल रोहन को पता थी, इसलिए रोहन उसका फायदा उठाया करता था",शिरिष बोला...
"मतलब ये देविका भी पहुँची हुई चींज थी",इन्सपेक्टर धरमवीर बोले....
"वो दिल की बुरी नहीं थी,हालातों ने उसे ऐसा बना दिया था,उसने हमेशा से अकेलापन और गरीबी देखी थी, जिसकी वजह से वो ऐसी हो गई थी",शिरिष बोला...
"मतलब क्या है तुम्हारे कहने का",इन्सपेक्टर धरमवीर ने पूछा...
"मतलब अनाथालय में उसके साथ बहुत शोषण हुआ था,वहाँ की मालकिन शहर के नामीगिरामी लोगों को उस अनाथालय में बुलाकर वहाँ की लड़कियों को उनके हवाले सौंप देती थी और जब कोई लड़की वो बुरा काम करने से मना करती तो वो उसे गरम सलाखों से जलाया करती थी,उन्हें खाना नहीं देती थी,यहाँ तक की पानी भी नहीं देती थी,इसलिए मजबूरी में उन लड़कियों को वो सब काम करने पड़ते थे", शिरिष बोला...
"ओह...इन सभी हालातों से गुजरकर देविका सिंघानिया के घर तक पहुँची थी",इन्सपेक्टर धरमवीर बोले...
"जी! जब देविका दस साल की थी,तब अनाथालय की मालकिन ने उसे किसी सेठ के आगे हड्डी की तरह डाल दिया था,वो उस रात बहुत तड़पी,बहुत रोई लेकिन किसी ने उसकी एक ना सुनी,उस दिन के बाद एकाध महीने या पन्द्रह में वो किसी अमीर आदमी के सामने हड्डी की तरह डाली जाने लगी,उन हालातों से जूझते जूझते उसने खुद को पक्का बना लिया,फिर उसे उन चींजों से कोई फर्क नहीं पड़ता था, इसलिए जब वो काँलेज में पढ़ने लगी तो उसने खुद ही अपने ग्राहक ढूढ़ने शुरु कर दिए और कमाने लगी, फिर उसने अपनी जिन्दगी उसी प्रकार जीनी शुरू कर दी जैसी वो चाहती थी और उसके आगे की कहानी आप जानते ही हैं,शिरिष बोला...
"ओह...तो ये थी देविका की कहानी",इन्सपेक्टर धरमवीर बोले...
"जी! मुझे जितना पता था तो आपको बता दिया",शिरिष बोला....
"ठीक है,तुम इसी शहर में रहना,मुझे जब भी तुम्हारी जरूरत होगी तो मैं तुमसे मिलने आता रहूँगा" इन्सपेक्टर धरमवीर बोले...
"जी! मैं तो यही हूँ,मुझे अपनी बहन के बारें में पता करना है और अपने भाई के कातिल को भी तो ढूढ़ना है",शिरिष बोला...
"तो अब मैं चलता हूँ,जल्द ही मुलाकात होगी",
और ऐसा कहकर इन्सपेक्टर धरमवीर चले गए...

क्रमशः...
सरोज वर्मा...