Amanush - 4 in Hindi Detective stories by Saroj Verma books and stories PDF | अमानुष-एक मर्डर मिस्ट्री - भाग(४)

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अमानुष-एक मर्डर मिस्ट्री - भाग(४)

करन थापर सतरुपा के बताए हुए पते पर पहुँच गया,उसने वहाँ जाकर देखा कि वो बस्ती बहुत ही गन्दी थी,सँकरी सँकरी गलियाँ,यहाँ वहाँ बहती नालियाँ और गाली गलौच करते लोग,सतरुपा की खोली को जाने वाली गली भी बहुत ही सँकरी थी,इसलिए उसने अपनी कार वहीं खड़ी करने में ही समझदारी समझी,फिर वो अपनी कार वहीं खड़ी करके सतरुपा की खोली की ओर बढ़ गया,उसने सतरुपा की खोली के सामने पहुँचकर दरवाजे पर दस्तक दी तो भीतर से आवाज़ आई....
"आती है....अभी आती है मैं"
फिर सतरुपा ने दरवाजा खोला,करन ने उसका हुलिया देखा तो वो उसे देखता ही रह गया क्योंकि वो सादे से सलवार कमीज,खुले बाल और और फूहड़ से मेकअप के बिना बहुत ही खूबसूरत लग रही थी,उसके हाथ आटे में सने हुए थे,शायद वो उस वक्त रोटियाँ बना रही थी,करन को सामने देखकर वो उससे बोली....
"तो तू आ गया सेठ! चल बैठ जा,बस मेरे भाई के लिए मैं ये रोटियाँ बना दूँ,फिर चलती है मैं तेरे साथ,वो स्कूल से आएगा तो खाना खा लेगा",
"ठीक है बना दो",
करन ऐसा कहकर वहीं पर रखी हुई कुर्सी पर बैठ गया,करन ने देखा कि एक छोटा सा सीलन भरा कमरा है,बल्ब की रोशनी है और एक सीलिंग फैन लगा है,कोने में एक बिस्तर पड़ा है,जिस पर दो गद्दे तहें बनाकर रखें हैं और रसोईघर सतरुपा ने कमरे के दूसरे कोने पर बना रखा है,कुल मिलाकर दोनों बहन भाई के रहने के लिए वो कमरा पर्याप्त था,करन बड़े ध्यान से कमरे को निहार रहा था तो सतरुपा ने उससे पूछा....
"क्या देखता है सेठ! कि हम गरीब लोग कैंसे गुजारा करते हैं"?
"मैं भी कोई अरबपति नहीं हूँ",करन बोला...
करन की इस बात पर सतरुपा को हँसी आ गई और वो उससे बोली...
"अच्छा! ये सब छोड़,बोल खाना खाएगा",
"नहीं! रहने दो!" करन बोला....
"हाँ! तेरी बीवी ने तो तुझे बहुत भारी भरकम नाश्ता खिलाकर भेजा होगा",सतरुपा बोली...
"नहीं! देर से सोकर उठा था तो जल्दबाजी में नाश्ता नहीं कर पाया,मैंने सोचा तुम मेरा इन्तजार कर रही होगी",करन बोला...
"अग्गाबाई! तो तू भूखा है और बताता भी नहीं,चल पहले कुछ खा ले"
और ऐसा कहकर सतरुपा ने एक प्लेट में भिण्डी की सब्जी,आम का अचार और दो रोटियाँ रखकर करन को थमा दी,फिर करन खाना खाने लगा,करन को खाना बहुत अच्छा लग रहा था,वो इतने दिनों के बाद घर का बना खाना खा रहा था,जब उसकी पत्नी हंसिका जिन्दा थी तो वो उसे अपने हाथों से खाना बनाकर खिलाया करती थी,करन ने फौरन ही दोनों रोटियाँ चट कर दीं तो तब सतरुपा ने उससे पूछा....
"और कुछ लेगा सेठ"?
"नहीं! बस रहने दो",करन बोला...
"ऐसे कैंसे रहने दो,ले दो रोटी और थोड़ी सी सब्जी और ले ले"
और ऐसा कहकर सतरुपा ने करन की प्लेट में दो रोटियाँ और थोड़ी सब्जी डाल दी,करन चुपचाप से खाने लगा और जब वो खा चुका तो तब तक सतरुपा भी रोटियाँ बना चुकी थी,तब वो करन की ओर पानी का गिलास बढ़ाते हुए बोली....
"प्लेट वहीं रख दे सेठ! ले पानी पी ले",
फिर करन ने सतरूपा के हाथ से गिलास लेकर पानी पिया और उससे बोला....
" चलो अब चलते हैं",
तब सतरुपा बोली...
"दो रोटी मैं भी खा लूँ सेठ,सुबह से काम में लगी हुई थी इसलिए खाने का वक्त नहीं मिला",
"हाँ..हाँ..खा लो,मैं तब तक अपनी कार में जाकर तुम्हारा इन्तजार करता हूँ"करन बोला....
"सेठ! तेरो को बाहर जाने की जरूरत नहीं है,मैं फटाफट खाना खाकर तेरे साथ चल रही है ना!",सतरुपा बोली....
"ठीक है"
और ऐसा कहकर करन ने अपना फोन निकाला और उसमें बिजी हो गया,सतरुपा ने फटाफट खाना खाया और दीवार पर लगे छोटे से आइने में अपनी शकल देखी,काँधों पर दुपट्टा लिया,अपना फोन उठाया और फिर चप्पल पहनते हुए वो करन से बोली....
"चल! सेठ! मैं तैयार है",
और फिर दोनों घर के बाहर आए,सतरुपा जैसे ही घर का ताला लगाने लगी तो वो करन से बोली...
"अग्गाबाई! मैं बटुआ लेना तो भूल ही गई"
"उसकी जरूरत नहीं है,मेरे पास पैसे हैं",करन बोला....
"मैं तेरे से पैसे कैंसे ले सकती है सेठ!",सतरुपा बोली...
"अभी चलो,वैसे भी बहुत देर हो चुकी है",करन बोला...
"अच्छा चलो"
फिर वो करन के साथ चल पड़ी,वो दोनों जाकर कार में बैठ गए और अपने गन्तव्य की ओर चल पड़े, तब सतररुपा ने करन से पूछा....
"सेठ! हमलोग कहाँ जा रहे हैं",
"मेरे दोस्त के घर",करन ने जवाब दिया..
"वहाँ क्यों जा रहे हैं?",सतरुपा ने पूछा....
"मेरे दोस्त की पत्नी ब्यूटीशियन है,वो तुम्हारा हुलिया ठीक करेगी,तुम्हें बोलने का लहज़ा सिखाऐगीं और अमीर औरतों की तरह बर्ताव करना भी सिखाऐगी,तभी तो तुम हूबहू देविका जैसी दिख पाओगी"करन बोला...
"अच्छा! तो उस चुड़ैल का नाम देविका है",सतरुपा बोली...
"हाँ! तुम्हें दिव्यजीत सिंघानिया की पत्नी बनने का नाटक करना है",करन बोला...
"कहीं ये वही दिव्यजीत सिंघानिया तो नहीं,जो बहुत अमीर है,वो तो कई बार मेरे बार भी आ चुका है",सतरुपा बोली....
"क्या कह रही हो तुम,इतना अमीर आदमी एक छोटे से मामूली बार में आकर क्या करेगा,उसे जाना होगा तो किसी क्लब वगैरह में जाएगा",करन बोली...
"मैं सच्ची कहती सेठ! आई शपथ(माँ कसम)! वो दिव्यजीत सिंघानिया ही था",सतरुपा बोली...
फिर सतरुपा की बात सुनकर करन ने अपनी कार साइड में लगाई और अपना फोन खोलकर उसने सतरुपा को दिव्यजीत सिंघानिया की फोटो दिखाकर पूछा...
"अब बताओ,तुमने इसी को बार में देखा था"
फिर सतरुपा ने दिव्यजीत सिंघानिया की फोटो देखी और उससे बोली....
"हाँ! सेठ !वो यही था",
"क्या तुम बता सकती हो कि वो बार में किससे मिलने आता था",
"वो पहले शशी से मिलने आता था,उसके बाद शशी ना जाने कहाँ चली गई,उसकी कोई खबर नहीं मिली,फिर वो बसन्ती से मिलने आने लगा,उसके बाद बसन्ती का भी कोई पता ठिकाना नहीं मिला, दोनों के गुमशुदा हो जाने के बाद वो फिर कभी बार में नहीं आया",सतरुपा बोली...
"क्या तुम कभी दिव्यजीत सिंघानिया से आमने सामने मिली हो,उससे कभी बात हुई तुम्हारी?",करन ने सतरूपा से पूछा....
"नहीं! कभी बात नहीं हुई उससे मेरी,बस जब वो अपनी बड़ी बड़ी कारों में उन दोनों को घुमाने ले जाता था तो तभी दूर से ही देखा है उसे",सतरुपा बोली....
"तब ठीक है,नहीं तो वो तुम्हें पहचान लेता",करन बोला...
"मुझे तो वो आदमी ठीक नहीं दिखता था,ना जाने उसने बसन्ती और शशी के साथ क्या किया होगा" सतरुपा बोली...
"तुम ऐसे यकीन के साथ कैंसे कह सकती हो कि सिंघानिया ने ही उन दोनों को कुछ किया होगा",करन ने पूछा...
"क्योंकि? उन दोनों को आखिरी बार उसकी ही कार में देखा गया था",सतरुपा बोली...
"ओह...तब तो ये सिंघानिया बहुत ही पहुँची हुई चींज है",
फिर ऐसा कहकर करन ने कार स्टार्ट की और दोनों चल पड़े....

क्रमशः...
सरोज वर्मा...