तुम्हे गाने पसंद है। हा थोडे बहुत पर, ज्यादा नही। कहते हे की, संगीत दुनिया का वो वरदान है जो जीवन को आनंदमय तथा बहुत ही मजेदार बना देता है। सात राग का जो विज्ञान है, वो अदभूत है। एक एक राग जो की कहते है, कई मानसिक बीमारीयो का अंत ला सकता है। ये कहते ही वो गाना गुनगुनाने लगा। कई तरा के शोर आसपास गुंज रहे थे। पर बेचर को उसकी कोई परवाह न थी। वो अपने मस्ती मे गाना गुनगुनाते युही जुमे जा रहा था। पास में खडा बिनोय अपने आप मे ही जाने कुछ खोज रहा था।
सुबह सुबह यहा रोजाना हडकंप सी मची रहेती। लोक ईधर उधर भागते रेहते। पता नही वो कहा पहोंचना चाहते थे पर बस दरवाजा खुलता कोई अंंदर आता तो कोई बहार जाता। दोपहेर तक ये धमाचोकडी के बाद चीजे कुछ शांत सी हो जाती। फीर दो तीन सिपाही इस इमारत का ध्यान रखते हो, वेसे पेहरेदार बने फीरते रहेते। बाकी के अंदर रहेने वाले लोग अपना अपना काम करते रहेते।
चार वर्षो से सुबह नियमित तौर पे डॉ. शीतल यहॉ पहोंच जाती। दामजी शामजी पागलखाना जो की काफी पुराना अस्पताल था। यहां पुराने से पुराने पागल रहेते थे। यहॉ कीतने डॉक्टर आये और चले गये। साल के साल बदलते रहे। पर पागल कम न हुए, बडती आबादी मे यहॉ भी आबादी बडती रही। तभी तो जहॉ पहेले दो मंजीला इमारत थी अब वो चार इमारती बन गई है।
तीसरी मंजिल पे संशोधन का कार्य होता है। नये छात्र जो की डाक्टर बनना चाहते है, या जो मनोवैज्ञानिक क्षेत्र मे कार्य करना चाहते, वो यहा पर कुछ पुराने तथा कुछ नये पागलो को लेकर उन्हे समजने की कोशिश करते है। कई दाक्तर अभी यह समझ रहे है की, ये जो पागल है, तो ये पागल क्युं है? या शायद इनकी समझदारी हमारे समझ के बहार है इसलिये हमे ये पागल लगते है। या कही इनके लिये, हम ही तो पागल नही है? मनोवैज्ञानिक इन पागलो की गती विधीयो की, तथा इन के मन की समस्या क्या है, ये सुलझाने मे पडे थे।
डॉ. शीतल को जब यहा पे नोकरी मीली तो शायद पहेले उसको डर था की कही इन सब के साथ रेहकर वो तो उन जेसी नही बन जायेगी ना। तभी तो परिवार की एक लौती लडकी पागलखाने की दाक्तर बने ये सब को मंजुर नही था। पिताने जीस जगह उन की पहोंच थी वहा सीभारीश की परंतु कोइ लाभ न हुआ। शीतल भी अपने सीनयरो को तथा डायरेक्टरो को ट्रान्सभर की बात बताती रही। परंतु डायरेक्टरो ने कहा दो साल यहा काम करलो फीर तुम्हारा ट्रान्सफर एक सामान्य इंसानो के अस्पताल मे करवा देंगे। पर चार वर्षो से कुछ न हुआ। शीतल भी अब इन चार सालो मे मानो यहा के वातावरण में ठल सी गइ है। तभी तो जब शुरुवात मे वे मरीजो को देखती तो काफी डरी डरी सी रहेती। परंतु धीरे धीरे वो समझ गइ की उसे खतरा इन पागलो से नही है। बल्की उनके आसपास खुमते वो सुधरे हुवे समाज के लोगो से है। जो की बस उसके खुबसुरत जीस्म को नोचने के लीए शीकारी की तरह ताक लगाये बेठे रहेते। तभी तो शीतल अब इन समदार लोगो की नियत को जान के तथा उनके साथ काम से काम का व्यवहार रखने लगी है।
काम से काम के इस रवैये से कई बार स्टाफ मे उन के प्रति नफरत तो कइ बार डर बना रहेता। इन चार सालो मे शीतल के बारे मे कइ अफवाहे भी उडी। कइ मर्द दाक्तर के साथ उसका नाम भी जोडा गया पर, कीसी ने कुछ देखा नही था अबतक बस सुनी सुनायी बाते थी।
रोज सुबह 9 से 2 तक वो इस पागलखाने मे रेहती। सभी पागल मरीजो की जांच करती। यहा विविध प्रकार के पागल रहेते थे। कई पागल थे जो की मात्र अंग्रेजी मे ही बात करते थे। उनको देख के लगता की वो शायद अंग्रेज के समाज से होगे। कइ राजकारणी पागल थे जो की अपनी खुर्सी की चिंता मे ही लगातार रहेते। कई पागल समजदारो की तरह कुछ उलजाने वाली बाते करते थे। जीनकी बाते कीसी की समझ मे नही आती, तो वहा के लोग इन बातो को आध्यात्मिक बाते मानते। कुछ तो ऐसे थे जो कुछ न करते, बस अपने मे ही उलजे रहेते। शायद वो जीवन का वो रहस्य खोजने मे लगे थे वे जो शायद सामान्य इंसान के परे की बात थी।
पागलखाने मे सभी मरीज सिर्फ पागल ही नही होते थे। कइ शिफारीश से बने हुए पागल थे। जो की पैसो के दम से तथा अपनी काली करतुत, जो की उन्हो ने बडे शान से की थी उन्हे चुपाने के लिये अपने परिवार के दम पर अपने गुन्हा चुपाने के लिये बने बनाये पागल थे। पागलो का अगर सर्वे होता तो पत्ता चलता की इसली पागलो के मुकाबले बने बनाये की संख्या हर साल बठ रही है, परंतु क्या करे मरीज तो मरीज होता है। यहा पर प्रेम मे हारे चुके पागल भी थे। जिनको अभी आस थी की उनकी जाने बहार जाने तमाना उसे ठुंठते हुए आयेगी और उसका हाथ थाम ते हुए, उसे अपना लेगी। अरमान एक एसा ही पागल प्रेमी था जो की शकीना से बेइन्तहा मुहब्बत करता था। पर पैसो का खेल उसकी मुहब्बत से जीत गया, और शकीना किसी औऱ से निकाह कर के चली गई। तब से अरमान बस शकीना के इंतजार मे बेठा है।
शीतल अब इन सबसे परिचित थी। कीस पागल के साथ कीस तरह का व्यवहार योग्य है अब उसे समझ मे आ गया था। तभी तो सभी पागल उससे खुश रहेते। दाक्तर को देखते ही हला मचाने वाले मरीज अब अच्छी तरह से शीतल से इलाज करवाते। एक और दाक्तर थे जो महीला वोर्ड में रहेते थे। महीला वोर्ड के अपने ही चर्चे थे, अपने ही किस्से थे। परंतु डॉ. गुलाटी एक अनुभवी दाक्तर थे इसलिये सभी चीजे शांत रहेती।
डॉ. गुलाटी दुसरे अस्पताल मे से बदली के तोर पे यहा आए थे। इसलिये काफि अनुभवी थे। यहा अकेले ही रहेते थे। सारा परिवार गांव मे खेती और मकान संभाले बेठा था। डॉ. गुलाटी मन ही मन शीतल से प्यार करते थे। पर शीतल के कडक स्वभाव के सामने, उनकी शीतल के सामने जाकर उसे अपने दील की बात बताने की हिंमत शायद ही उनमे थी। तभी तो दोनो बस अच्छे दोस्त बने बेठे थे। गुलाटी शीतल को इंम्प्रेस करने का एक मोका नही छोडता था। पर शीतल शायद समज ही नही पाती थी। गुलाटी ने एक दफा बातो बातो मे पुछ ही लिय़ा। अच्छा शीतल ये बतावो तुम्हारा शादी के बारे मे क्या विचार है और तुम्हे केसा लडका पसंद आयेगा?
शादी तो करनी है घरवाले शायद, लडके भी देख रहे है। मुझे तो एक एसा लडका चाहिए जो की, देह की सुंदरता को नही पर मेरे गुणु को चाहे। दाक्तर न भी हो पर एक अच्छा इंसान हो तो भी चलेगा। पैसे से धनी न हो पर दील का धनी होना चाहिए। बस ये कुछ गुण हे जो मुझे एक लडके मे चाहिए। परंतु पत्ता नही एसा कोइ लडका होगा भी की नही। ये कहते ही वो सोच मे गीर गई। पर नजर घुमाके देखती तो पत्ता चलता की ये सब बाते सुनकर परेशान हो रहा एक इंसान तुम्हारा इंतजार कर रहा था। परंतु शीतल को कभी गुलाटी का प्यार पत्ता ही नही चला। इसलिये तो अगले ही साल शीतल ने अपने शादी का न्यौता गुलाटी को तथा सभी स्टाफ के हाथ मे थमा दीया। कइ मरीज, डॉ. शीतल शादी करने वाली है ये समाचार से खफा थे। उनको एसा लगने लगा की अब वो वापस नही आएगी। और जो पागल शीतल के चाहक थे उन्हे तो ये शादी ना काबिले बरदाश्त थी। पागलखाने मे एक ही चर्चा थी डॉ. शीतल की शादी।
शादी हो गइ। डॉ. गुलाटी भी शादी मे गये, बधाइ दी। चार महीने शीतल अस्पताल मे नही आई। डॉ. शीतल की जगह जब दुसरे दाक्तर को पागलो ने देखा तो, पागलो का मानना सही हुआ, सभी पागलो मे यह चर्चा होने लगी, डॉ. शीतल अब कभी वापस नही आएगी वो अब घर और बच्चो को संभालेगी।
यहां दुसरी तरफ दील मे एक चोट लिये बेठे आशिक गुलाटी बस काम कीये जा रहे थे। थोडे समय बाद जब परिवार ने एक लडकी के बारे मे बताया तो बिना लडकी को देखे शादी के लिये हा कह दी। परिवार भी लडके की शादी से खुश थे। शादी हो गइ, गुलाटी ने सीमा को जब पहेली बार सुहागरात पे देखा, तो मुंह दीखाइ मे गुलाटीने सीमा को एक गुलाब का फुल भेट के रुप मे दीया। सीमा पढी लीखी लडकी थी। इसलिये गुलाटी को औऱ उनके परिवार को उसने अच्छे से संभाल लीया था। गुलाटी भी मन को मना चुके थे, इसलिए सीमा के साथ वो नए सिरे से जीवन को देखने लगे थे।
डॉ. शीतल भी पांच वे महीने से ड्युटी मे वापस जुड के पागलखाने के मरीजो की देखभाल करने लगी। पागलखाने के मरीजो के लिए ये तहेवार सा माहोल बन गया। मरीजो का मन फीर से इस अस्पताल मे लगने लगा। शीतल को गुलाटी की शादी के बारे स्टाफ से पत्ता चला, शीतल ये सुनकर काफी ज्यादा खुश हुइ। गुलाटी शादी के कारण छुट्टी पे था। इसलिये हाथोहाथ बधाइ दे न पाइ, परंतु मोबाईल पे बात करके बधाइ दे दी। वहां गुलाटी जो की अच्छी खासी कोशिश कर रहा था शीतल को भुलने की, शीतल की अवाज सुनते ही फीर से उसके विचारो मे खोने लगा।
समय ऐसे ही बितता रहा। शीतल भी अब दो दो जवाबदारीयो को निभाना सीख गइ थी। पति काफी मदगार स्वभाव का था। इसलिये हंमेशा वो शीतल को घर के कामो मे मदद करता। कभी जल्दी काम से घर लोटता और अगर शीतल को आने मे देर लगती तो कभी कभी खाना बनाके अपने बीवी को आराम भी देता। शीतल एसा पति पाकर अपने आपको भाग्यशालि मानती। दोनो ने सहेमती से दो साल तक बच्चे नही करेंगे ये निश्चित पहेले ही कर लीया था। शीतल का जीवन, उसने शादी के बाद वाला जो जीवन सोचा था बिलकुल वेसे ही व्यतित हो रहा था।
गुलाटी ने अपने पास वाले अस्पताल मे अपनी बदली करवाली थी। बदली कीस वजह से करवाइ ये शीतल को समझ नही आ रहा था। पर व्यस्त माहोल मे ये सब विचार के लीए समय ही नही था। पागलखाने में भी रोजाना कुछ नए मरीज भर्ती होते, तो कुछ पागल के तोर पर ही अपनी अंतिम श्वास लेते और शब घर मे पहोंचते। कुछ थोडे से ठीक होकर वापस अपने परिवार के पास लोट जाते। कइ पागल जो ठीक होकर जाते वे कुछ समय बाद दुबारा पागल बन लोट के आते। ऐसे ही नए पुरानो की अदली बदली होती रहेती।
ऐसे ही व्यस्त समय तथा काम मे पांच साल बीत गये, शीतल जो अब दो साल के बच्चे की मां बन चुकी थी, और अब तीन जवाबदारी से घीर गई थी। शीतल अब अपस्पाताल मे थोडा कम ही रुकती, कुछ ज्यादा ही इंमर्जन्सी वाला मामला हो तो थोडा समय ज्यादा रुक जाती। उसने अपने जेसे दुसरे दो दाक्तर को तैयार कर लिया था। जो उसके गेरमौजुदगी मे सारा मामला संभाल लेते। करीबन शाम के पांच बजे जीस समय तकरीबन कोइ नया मरीज नही आता। औऱ सब शांति से घर जाने की तैयारी मे लगे रहेते है।
एक एब्युलंस मे एक मरीज को लाया गया। जीस के सीर मे पट्टी बांधी हुइ थी। सीनीयर डॉ. शीतल हाजर न थी। इसलीए डो. सैफालिने भर्ती का सारा किस्सा संभाला। मरीज को दाखला मिल गया। सुबह जब शीतल पहोंची तब उसे सारा किस्सा बताया गया। शीतल ने मरीज के पेपर तथा रेकोर्ड चेक कीया। मरीज का नाम पठकर वो एकदम से कुछ याद आया हो वेसे शांत हो गइ और जल्दी से नये मरीज से मिलने के लिये वोर्ड के तरफ भागी। बाकी के दो जुनियर क्या हो रहा है ये समझने की कोशिश कर रहे थे। शीतल ने उस मरीज को देखा, उसने जब उसके मुंह के तरफ देखा तो शीतल की आंख मे आंसु भर आये, ये मरीज डॉ. गुलाटी था। इतने समय के बाद मित्र जब मीला तो इस रुप में।
रेकोर्ड मे लीखा था एक रात्री जब गुलाटी नींद से उठा और अंधेरे मे पानी लेने के लिए सिडीयो से उतर रहा था तब अंधेरे के कारण उनका पैर फीसला औऱ सीर पे चोट लगी। जिससे उनकी ये हालत हुई। शीतल ने गुलाटी का इलाज चालु कीया। शीतल को इन सब बातो मे से एक बात ये सत्ता रही थी की पांच महीने से गुलाटी यहां पे है पर उसकी पत्नी उससे क्यों मिलने नही आइ। गुलाटी की माता कइ बार अपने बेटे से मिलने को आ जाती थी। परंतु पत्नि एक बार भी नही दीखी है। गुलाटी के सामान मे नजर डाला तो, शीतल को उसकी पत्नी सीमा की तस्वीर देखने मिली थी।
एक दीन जब वो रास्ते से जा रही थी। तो देखा सीमा सामान लेकर घर जा रही थी। शीतल ने उससे बात करने को चाहा। पर सीमा गाडी मे नीकल चुंकी थी। शीतल ने उस गाडी का पीछा कीया शीतल को सीमा से पुछना था क्यां तुम्हे कभी अपने पति की याद नही आती? पर साथ मे शीतल को लगा शायद वो अपने पति को इस हालात मे देख नही पाती होगी, इसलिए उससे गुलाटी के बारे मे बात करके, उसको फिर से परेशान न कर दे। शीतल को लगा सीमा से नही मिलना चाहिए। सीमा की गाडी एक घर के पास रुकी। शीतल को लगा अब आ गयी हु, तो हालचाल पुछ के चली जाउंगी। सीमा ने गाडी रोकी गाडी से उतर के सामान लेकर वो दरवाजे के पास रुकी अंदर से दरवाजा खुला। शीतल ने दुर से अपनी गाडी मे से देखा, दरवाजे पे एक आदमी खडा था जो सीमा को देखते ही खुश हो गया, दोनो गले मिले और अंदर चले गये। दरवाजा बंद हो गया।
शीतल को कुछ समझ मे नही आया। उसने गाडी पास मे लगाइ और चोर की तरह घर के पीछे से एक खिडकी खुल्ली थी वहा पर नीचे चुप कर खडे हो कर अंदर से कुछ सुनाइ दे उस तरह सुनने की कोशिश करने लगी। अंदर से बहुत धीमी अवाज आ रही थी। शीतल कान लगाकर ध्यान से सुनने की कोशिश मे लगी।
तुम मुझसे प्यार करती हो सीमा अंदर से आवाज आई। ये क्या कह रहे हो, प्यार नही करती तो अभी यहां नही रहेती में। जब तुम्ह से पहेली बार अस्पताल मे मिली थी, जब मे अस्पताल मे अपने पति को डब्बा देने आती थी। तभी मुझे तुमको देखते ही कुछ होने लगा था। फिर पहली बार जब तुम्ह मुझसे बाते करने आये तो मे काफी डर गइ थी। पहेली बार जब तुमने मुझे स्पर्श कीया तो मानो मे रेत की पुतली की तरह अपने आप मे ही बेह गइ। इसलिए तो जब तुम अचानक से रात को घर मे आ गये तो पहेले तो मे खुश हुइ पर डर भी था, क्युंकी मेरा पति घर मे ही था। तुम्हे लगा वे रात को अस्पताल मे होंगा, पर वो मेरा पति रात को घरमे ही ठहर गया था। मुझे डर लग रहा था पर तुम्हे मुझे प्यार करते हुए मझा आ रहा था। औऱ अचानक से पत्ता नही क्युं पर पहेली बार मेरा पति रात को उठ गया, नही तो मेरा पति एसा है जो रात को सोया तो सुबह ही जागेगा। जेसे ही जागा और मुझे नही देखा, पर उस को लगा की मे नीचे पानी पीने गइ होंगी, इसलिए वो भी पानी पीने नीचे उतरा और कीचन मे हम दोनो को देख लिया। मे तो मेरे पति को देख कर डर गइ। मेरा पति जब तुम्हे मारने को तुम्हारी तरफ दोडा। तब तुमने डंडे से उसके सीर पर मारा, पहेले तो लगा वो मर गया पर वो तो गहेरी चोट के कारण पागल सा हो गया। परंतु अगर मे तुम्ह से प्रेम न करती तो पोलिस को सारी सच्चाइ बता देती और आज तुम्ह जेल मे होते, तब तुम्ह मुझ से इस तरह लिपटे न होते। मेरी जान अगर मे जेल में होता तो तुम्ह भी कहा बच पाती। मुंह बंद हे तभी तुम्ह यहा खडी हो।
शीतल ने हलके से खीडकी के अंदर जाका तो दोनो हस कर, एक दुसरे से गले मिल रहे थे और वहा से दोनो अपने कमरे मे चले गये। शीतल ये सब सुनकर हैरान रह गइ। इंसान इतना नीचे गीर सकता है ये उसने नही सोचा था। सीर्फ शरीर की वासना के लिये कोइ केसे एक इंसान का पुरा जीवन बर्बाद कर सकता है। वो जेसे तेसे अपने घर पहोंची, घर पहोंच ने के साथ ही वो अपने बच्चे से गले लग कर बीलक बीलक के रोने लगी। उसका पति जब घर पहोंचा तो अपनी पत्नि को इस हालत मे देखकर पति भी डर गया। उसे लगा मेने कोइ गलती तो नही कर दी। जिस से शीतल मुझ से खफा है। वो भाग के शीतल के पास गया। शीतल के पास जाकर खडे हो गया। शीतल ने जब पति को पास खडा देखा तो बच्चे को छोड पति के गले लग के रोने लगी। पति ने शीतल को शांत कीया। शीतल काफि देर ऐसे ही गले लगी रही। पतिने भी उसे उठाकर पलंग पर लेटाके सुलाने की कोशिश की।
थोडे समय बाद गुलाटी मे थोडे सा सुधार था। वे अब खुश था की वो फिर से शीतल के साथ है। भले ही जीवन मे वो मेरे साथ न हो पर अस्पताल मे तो वह मेरी देखभाल कर रही है ना। वहां शीतल ने भी जो देखा सुना सबको बुरा सपना समझ कर सब कुछ भुब कर फिर से सामान्य जीवन जीने की कोशिश कर रही थी। शीतल अब जब भी इन पागलो को देखती है, तो उसे यही लगता है की सभ्य समाज के मुखोटे वाले समजदार लोगो से, ये पागल काफि समझदार और अच्छे है।