Talak in Hindi Short Stories by B M books and stories PDF | तलाक

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तलाक

सुबह ने अपना अस्तित्व जमा लिया था। शरदीकी खुशनुमा मौसम चारो ओर छाई हुई थी। रहमत जब अपनी निंद से उठा तो अपनेआप को घर में अकेला पाया। उसने शबाना को आवाज लगाई और अपने बेटे को भी आवाज लगाई पर सामने से कोई आवाज न आया.। उसने सोचा की शबाना बच्चे के साथ शायद बार गई होगी तो आ जाएगी।

रहमत सुबह का नित्यकर्म करके नास्ते के टेबल पर बैठा तो देखा टेबल पर नास्ता न था। वह किचन में गया पर वहाँ परभी कुछ बना हुआ नहीं था। उसने सोचा की शायद वह जल्दी में होनेकी वजह से नास्ता नहीं बना पायी होगी। उसने खुद ही नास्ता बनाने का सोचा। उसने चाय उबालने गेस पर रखी परंतु चाय का मसाला उसे कहीं नहीं मिला। उसने फोन लिया और शबाना का नंबर लगाया। थोडी देर बाद सामने से आवाज आई, ‘हेल्लो रहमत’।

‘हेल्लो शबाना तुम कहाँ हो? और नास्ता भी नहीं बनाया। अच्छा वो सब छोडो, मुझे ये बताओ की मैने वहाँ चाय उबालने रखी है, पर मुझे चाय का मसाला कहीं मिल नहीं रहा है। तुम्हे तो पता है ना कि सुबह की चाय मुझे कितनी पसंद है। तो बताओ कहाँ रखा है मसाला?’ शबानाने फोन पर से ही किचन के कबाट में रखे मसाले की जानकारी दी। रहमतने चाय बनाली पर फोन अभी चालू था। शबाना तुम वापस कब लौट रही हो? रहमतने पूछा। और इतनी सुबह तुम कहाँ गई हो। फोन में सामने से एक खामोशी सी छा गई। रहमतने जोर जोर से हेल्लो, हेल्लो बोला, लंबी खामोशी को तोडते शबानाने फोन पे कहा, यह क्या बोल रहे हो तुम रहमत, कल रात तो तुमनेही तो सब कुछ खत्म कर दीया था। अब सब खत्म हो गया है। रोते रोते शबानाने फोन काट दिया।

रहमत को फोन कटते ही रातके वो खौफनाक लम्हे याद आ गए। उसका चेहरा इस खुशनुमा मौसममे सुखे पत्ते की तरह सुख गया। उसको याद आया की उसके घरका सितमगर तो वो खुद ही था। जिसने अपने ही बगीचे के फूल को खाट कर बस काटे बचाए थे। जिस पर उसको अब अकेले ही चलना था।

शबाना ये नाम याद आते ही रहमत के दिलो दिमाग में खुशनामा माहोल पैदा हो जाता था। जब पहेली बार उसे कॉलेज के मैदान में देखा तो बस देखता ही रह गया था।

हालांकी बुर्खेमें खाली शबाना की दो आँखे ही दिख रही थी मगर रहमतने पाया की रहमत की दो आँखे शबाना के बुर्खे से एकदम नजदीकी से होकर शबाना के जिस्म पर से गुजर रही है। उसकी आंखो पर तो रहमत दीवाना ही हो गया। उसे लगा जैसे वे आँखे उसके देखने के लिए ही बनी है। वो दो आँखोमें एक गहरा कुवा है। जीसमे रहमत को छलांग मारनी थी। जब दोस्तों से पता चला की वह उसकी जूनियर है, जो अभी अभी दिल्ली से कानपूर आई है और पहले सालमें दाखिल हुई है। जिसका नाम शबाना है और उसके पिता एक कारखाने में क्लार्कका काम करते है।

इतनी जानकारी किसीभी शख्स को जानने के लिए काफी होती है। रहमत पहले ही नजर का दिवाना बन चुका था। वो दुसरे रोज शबाना की दो आँखे देखा करता। वो कई बार सोचता की हिंमत करके वो उसके पास जाए और अपने प्रेम का ईझहार करे लेकीन सोच की सोच में ही रह जाती। इसी तरह छह मास बित गए।

फिर एकदिन रहमत ने शबाना को बसस्टॉप पर खडे रहते देखा। हिंमत कर वो बस स्टॉप पर शबाना के पास जाकर खडा हो गया। रहमतने शबाना के सामने देखते हुए सलाम वालेकुम कहा, वालेकुम सलाम शबानाने जवाब दिया। में आपकी ही कॉलेज में पढता हुँ, आपका सिनियर हुँ। रहमत ने बताया। जानती हुँ, मैने कई बार आपको आपके दोस्तो के साथ कई बार कॉलेज के गार्डन में देखा है। शबानाने पलके निचे करके जवाब दिया। मेरा नाम रहमत है। आपका... शबाना... वाह... बडा ही खुबसुरत नाम है। रहमतने शबाना की ओर देखते हुए कहा। तभी वहाँ से बस आ गई और वह बस में चली गई।

रहमत को शबाना की आवाज सुनते ही मानों कानों मे गुदगुदी सी मच गई। रहमत का शबाना के साथ ऐसे ही मुलाकात का दोर शुरु हो गया। शबाना भी रहमत को अब एक अच्छा दोस्त समझने लगी थी। पर कहमत दोस्त न बनकर शबाना का साथ जिंदगी के आखरी लम्हे तक चाहता था। इस लिए जब रहमतने कॉलेज खत्म कर लिया तो एक ओफिसमें नोकरी तलाश कर ली और अपने परिवार से शबाना की बात छेड दी। परिवार रहमत की पसंद से राजी हुए। दोनो परिवार की आपस में बातचीत चालू हो गई और जल्द ही उन दो परिवारोमें रिश्तेदारी बंध गई। इस दौरान किसीने शबाना की मंजूरी लेना जरूरी न समझा। वहाँ तक की रहमतने भी शबाना का दिल का हाल जानने की कोशिश न की। शबाना आगे पढना चाहती थी। पर परिवार का मानना था कि लडकिया ससुराल में ही अच्छी। इसलिए तो परीक्षा खत्म होते ही रहमत और शबाना का निकाह हो गया।

निकाह की पहली रात जब रहमतने शबाना को निकाह के जोडे में देखा तो मानो उसे देखता ही रह गया। उसे लगा जैसे कोई तराशा हुआ हीरा उसके पलंग पर पडा है। जिसका वो अब मालिक बन चूका है।

उसने शबाना के नजदीक जाकर अपनी बेगम बन चूकी शबाना के जिस्म पर कुछ इस तरह निगाह फेरी की शबानाने अपना जिस्म पूरी तरह अपने में सिकोड लिया और पूरी तरह सहम सी गई। रहमत को अब शर्मोहया से कोई वास्ता न था। वो तो बस अब उन आँखो के नशे में चकनाचूर होता चाहता था। वो इपनी बेगम के जिस्म पर पूरी तरह अपना अस्तित्व जमाना चाहता था। ... रहमत बहोत ही गुस्सेल स्वभाव का था। छोटी छोटी बातोमें उसे गुस्सा आ जाता था। दुसरी तरफ शबाना जो बडी शांत और संवेदनशील स्वभआव की थी।

इसलिए एकबार जब कुछ मामुलीसी बात पर रहमत गुस्सा हो गया तो दो दिन तक शबाना रुठा रहा। तभी भी शबाना ने ही उसे मनाया था। इस रुठने मनानेकी अब शबाना को आदत सी हो गई थी।

एक साल बाद जब रहमत के घर लडका जन्मा तबभी रहमत के स्वभाव में कोई बदलाव नहीं आया। लडका अब एक सालका हो गया था। शबाना अपने घरकी देखभाल और अपने लडके मे इतनी उलझी रहती की उसे दुसरी किसी बात का होंश ही नहीं रहता था। रातको थक हार कर पलंग पर गीरते ही सो जाती थी।

रहमत को अब इस बात की शिकायत रहेती की शबाना अब उस पर पहले जैसा ध्यान नही देती और उसके मनमें ये विचारोंने कब्जा लिया की वो अब उससे उब चूकी है। ऐसे कईं विचारोंने रहमत के मनमें घर बना लिया था। उसमें दो-तीन लोगों की कही-कहाई बातों से भी रहमत का शक यकीन में बदल गया था।

इस लिए उस रात वो शराब के नशे में जब घर लौटा तो शबाना ने लडके को सुला कर बस थोडी राहत की साँस ली ही थी की रहमत को इस हालत में देख कर घबरा गई। रहमत नशेमें इतना समाया था की उसे किसी बातका हौंश नहीं था। शबाना जब रहमत को सहारा देने आगे बढी तो रहमतने शबाना का सहारा लेने से इनकार कर दिया। और बडबडाने लगा ‘तुम्हे मेरी कोई परवा नहीं है। तुम अब मुझसे पहले जैसा प्यार नहीं करती। तुम अब मुझसे उब चूकी हो। तुम्हे अब कोई और मिल गया है ना। कोई और पसंद आ गया है ना। तो जाओ उसके पास, रोका किसने है तुम्हे?’

शबाना रहमत के मनका यह पूरा ख्याल जानकर दंग रह गई। पर अभी रहमत से बात करना फिजुल था। ईसलिए वह रहमत से सुबह बात करेगी एसा सोच कर उसे सुलाने के लिए बेडरूम ले जाने की कोशिशमें लग गई। ‘छोड दो मुझे। यह दिखावा बंद करो। तुम्हे मेरी कोई परवाह नहीं है। तुम चली जाओ यहाँ से’ वह ऐसे ही बडबडाता रहा। शबाना उसे पकडे बेडरुममें दाखिल हुई। तभी रहमतने शबाना को झटका देकर अपने से जुदा कया। ‘तुम अब मेरी नहीं रही। में तुम्हे कितना चाहता हुं, पर तुम्हे मेरी कोई कद्र ही नहीं है। जाओ में तुम्हे अपने बंधन से आझाद करता हुँ। में तुम्हे तलाक देता हुँ।’ और रहमतने तीन बार तलाक... तलाक... तलाक... बोल कर शबाना को तलाक दे दिया।

शबाना के कान जैसे बंद हो गये थे। उसकी मनकी हालत लडथडासी गई। वे उपने मुंह कुछभी न बोल सकी। बस जमीन पर बिखर सी गई। इतना बोलने के बादभी अभी तक गई नहीं। लिख के दुं क्या? और रहमतने लडखडाते पेन और पेपर पर तलाक... तलाक... तलाक... लिखके शबाना के सामने फेंका।

शबाना अपनी शुद्ध-बुद्ध मानो खो चूकी थी और जमीन पर बस बैठी पडी रही। रहमत बडबडाते सो गया। रात के दस बज चूके थे। शबाना के शरीर में मानो जान ही नहीं थी। उसने अपने लडके को उठाया और वहाँसे अपने पिता के घर पहोंची।

रहमत को सबकुछ याद आ गया। वह चलते चलते अपने बेडरुम तक पहुंचा जहाँ उसके टेबल पर एक कागद पडा था। रहमतने कागज उठाया। उसमें रहमत की लिखाई थी। उसे पढते ही रहमत की आँखो से आँसु सरकने लगे।

और कागज के वो शब्द उसके कानों में गुंजने लगे तलाक... तलाक... तलाक...