unknown connection - 96 in Hindi Love Stories by Heena katariya books and stories PDF | अनजान रीश्ता - 96

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अनजान रीश्ता - 96

पारुल जब देखती है तो सेम खड़ा था। वह दरवाजे की ओर देखती है तो दरवाजा तो बंद था। तब उसका ध्यान बालकनी की ओर जाता है। बालकनी का दरवाजा खुला था । पारुल टेबलेट को बेड पर रखकर खड़ी हो जाती है। सेम की ओर आगे बढ़कर कहती है।

पारुल: ( डरते हुए ) तुम... तुम यहां क्या कर रहे हो!? ।
सेम: क्यों!? मैं नहीं आ सकता क्या!? ।
पारुल: नहीं मेरा वो मतलब नहीं था... पर अगर किसी ने देख लिया तो...!?।
सेम: किसीने या फिर भाई ने देख लिया तो मुसीबत हो जाएगी। 
पारुल: ( अविनाश के बारे में सोच कर भी उसके रोंगटे खड़े हो जाते है। ) सेम... तुम ऐसे नहीं आ सकते...! ।
सेम: क्यों!? पहली बार तो ऐसा नहीं किया... मैं इसे मिलने आया हूं! कई बार आ चुका हूं! ।
पारुल: सेम! सुनो! मेरी बात समझने की कोशिश करो! पहले की बात अलग थी और अब की बात अलग है... ( सेम का हाथ पकड़ने की कोशिश करती है। ) ।
सेम: ( पारुल उसका हाथ पकड़े उससे पहले ही दो कदम पीछे ले लेता है। ) ना! ना! मिसेज खन्ना! कोशिश भी मत कीजिएगा.. । वर्ना मुझे खुद भी नहीं पता मैं क्या करूंगा।
पारुल: ( सेम के लहजे से मानो उसे एक चुभन सी हो रही थी। )  सेम तुमने शराब पी है क्या!?।
सेम: ( दर्द के साथ हंसते हुए ) हाहाहाहाहा! शराब की जरूरत उन्हें पड़ती है! जिनका दिल टूटा हो, मेरा तो दिल मेरे पास है ही नहीं तो क्या ही दर्द होगा। 
पारुल: सेम.. प्लीज मेरी बात समझने की कोशिश करो! प्लीज अभी जाओ तुम, यह सही वक्त नहीं है बात करने का! ।
सेम: अब बाकी ही क्या रहा है! पारो? सबकुछ तो लूट गया मेरा! अब कौन सा सही वक्त है जो अभी तक नहीं आया! अब और क्या खोना बाकी है! अब तो मेरे पास में खुद भी नहीं रहा! खुद को संभालने के लिए।
पारुल: ( सेम की ओर दर्द भरी आंखों से देख रही थी। ) सेम.... ।
सेम: हाहाहाहाहा.... फिर से तुम्हारे पास कोई सफाई नहीं हैं! राइट!? । और मुझे कुछ उम्मीद भी नहीं है! । 
पारुल: सेम! प्लीज!..... ( गिड़गिड़ाते हुए ) ।
सेम: अच्छा एक बात बताओ अगर कभी मैं मर गया तब बता पाओगी की क्यों किया तुमने ऐसा! ? । अगर वैसे ही मुझे सच का पता चलता है तो वैसे ही सहीं! ।
पारुल: ( चिल्लाते हुए ) सेम! तुम ऐसा वैसा कुछ नहीं करोगे!? ।
सेम: क्यों!? क्यों!? तुम्हे मुझे जीने नहीं देना, ना ही मरने दे रही हो! तुम चाहती क्या हो पारो!? । क्या चाहती हो!?।
पारुल: ( जमीन पर गिरते हुए ) आई डोंट नो! मैं खुद अभी नहीं समझ पा रही... मैं तुम्हे कैसे बता सकती हूं! ।
सेम: ( पारुल के करीब आकर बैठते हुए ) क्यों! क्यों तुम नहीं समझ पा रही हो! इसमें समझने वाली बात ही क्या है!? पारो! शुरुआत से तुम्हारी जिंदगी में था भाई का तुम्हारी जिंदगी में नामो निशान नहीं था। तो उसमे इतना सोचने का सवाल ही कहां से आता है।
पारुल: ( सिर को ना में हिलाते हुए... पारुल की आंखों से टीप-टीप आंसू गिर रहे थे।) तुम...बात को जितनी सीधी समझ रहो.... ये उनसे बिलकुल विपरीत है... सेम... तुम नहीं समझोगे।
सेम: तो मुझे समझाओ! पारो! अब मेरा दिमाग काम करना बंद हो गया हैं! इतने सवाल है की कभी कभी तो मुझे समझ नहीं आ रहा की मैं मैं हूं भी या नहीं! । प्लीज मैं हाथ जोड़ता हूं ( दोनो हाथ जोड़ते हुए ) अब! इससे पहले बात और भी बिगड़ जाए! बतादो! । प्लीज... तुम।
पारुल: मैं नहीं बता सकती सेम! प्लीज! ।
सेम: क्यों पारो! क्या तुम्हे इतना भी भरोसा नहीं है मुझ पर!? ।
पारुल: सेम वो बात नहीं है... मैं... वो... ।
सेम: ( उठते हुए ) फाइन.... । 
पारुल: ( सिर उठाकर सेम की ओर देख रही थी। ) ।
सेम: फाइन... ( आसपास देखते हुए... तभी वह सोफा के नजदीक जाते हुए... चाकू उठाता है। ) ।
पारुल: ( सेम की ओर देख रही थी की वह क्या कर रहा है...लेकिन जब वह चाकू उठाता है! पारुल के चेहरे पर गम के भाव के बजाय डर साफ साफ झलकने लगा था। ) सेम... ( खड़े होते हुए ) ।
सेम: आहान! डरो.. मत मैं तुम्हे कुछ नहीं करूंगा... तुम्हे चौंट पहुंचाने के बारे में तो मैं सपने में भी नहीं सोच सकता... यह तो मेरे लिए है... ( चाकू की ओर देखते हुए....। ) ।
पारुल: ( बौखलाते हुए ) सेम.... पागलपंती मत करो.... तुम्हे चौंट लग जाएगी....प्लीज... छोड़ दो! । ( सेम की ओर आगे बढ़ती है।) ।
सेम: आहान! जहां हो वहीं रहो! ( हाथ की नब्ज पर चाकू रखते हुए ... ) ।
पारुल: ( अपनी जगह पर थमते हुए ) सेम.... प्लीज कम से कम तुम तो ऐसा मत करो!? तुम तो मुझे समझने की कोशिश करो! ? ।
सेम: ( अब वह अपने आंसू रोक नहीं पाता । ) क्या समझूं मैं पारो! और कैसे समझूं!?। तुम ही बताओ... जब तुम्हारी होने वाली बीवी अचानक आधी रात को एक सुनसान जगह पर मिलने बुलाती है... बिना कुछ कहे! और दुल्हन के वेश भूषा में वह कहती है वह किसी और से शादी करने जा रही है... और तो और.... कुछ दिन बाद पता चलता है की वह उसी के भाई से शादी करती है.... तो तुम ही बताओ पारो... कैसे समझूं.... मैं तुम्हे ..... आखिर कार मैं सामान्य इंसान ही हूं! पारो! कोई भगवान नहीं... जो इतनी हद तक शांत रह सकूं... । अब तुम बताओ... तुम सच बताओगी... या.... ( हाथ को चाकू से दबाव डालते हुए ) ।
पारुल: सेम... पागलों जैसी हरकते मत करो... चाकू लग जाएगी... प्लीज उसे दूर करो... प्लीज... ।
सेम: ( चाकू से और जोर से दबाव डालते हुए.. थोड़ा खून निकलता दिख रहा था... ।) हा या ना..... ।
पारुल: सेम प्लीज.... ।
सेम: ( चाकू अपने हाथ में सीधा कर के चुभता है.... जिससे खून की धार फूटती है... ।) 
पारुल: ( चिल्लाते हुए ) सेम..... ( मानो.... उसका दिल हलक तक आ गया था।) ।
सेम: ( लहू... उसके हाथ से बह रहा था... । हंसते हुए) हाहाहाहाहा.... बोलो पारो! जितना जल्दी करोगी... उतनी ही मुझे कम तकलीफ पहुंचेगी.... ( चाकू की धार सीने पर  मुस्कुराकर रखते हुए ) ।
पारुल: ( उसकी आंखों में खौफ साफ साफ दिख रहा था.... . गला मानो ऐसे सुख रहा था जैसे वह सालो से प्यासी हो। ) ।
सेम: बोलो पारो! या मेरी जान लेकर ही मानोगी.... ( चाकू से सीने पर दबाव डालते हुए.... ) ।
पारुल: फाइन..... मैं सबकुछ बताऊंगी.... पर पहले प्लीज... तुम... वो चाकू दूर करो....... प्लीज.... मैं हाथ जोड़ती हूं तुम्हारे आगे प्लीज.... मैं सब कुछ सच सच बताऊंगी... । ( जमीन पर गिरते हुए... ) । 
सेम: ( चाकू को जमीन पर फेंकते हुए वह भी जमीन पर बैठ जाता है। पारुल को रोता हुआ देखकर उसके दिल में एक अजीब सा दर्द हो रहा था। उसने कभी नहीं सोचा था कि कभी ऐसा भी दिन आएगा... जब पारुल के रोने की वजह सेम खुद होगा.... लेकिन शायद कोई रास्ता ही नहीं था... सेम के पास... । ) 
पारुल: ( आंसू पोछते हुए... जल्दी से फर्स्ट एड बॉक्स ढूंढ रही थी..... उसका दिमाग काम करना ही बंद हो गया था। बिल्कुल पागलों की तरह वह बॉक्स ढूंढ रही थी। तभी ड्रॉअर में से उसे फर्स्ट एड मिलता है। वह जल्दी से... बॉक्स लाते हुए सेम के पास बैठ जाती है। लेकिन खून की वजह से उसके पांव चिपक रहे थे। पारुल कांपते हुए हाथो से जल्दी.. रुई से दबाकर खून रोकने की कोशिश कर रही थी लेकिन... खून रुकने का नाम नहीं ले रहा था...पारुल ज्यादा रुई लेकर और ज्यादा दबाव डालते हुए... खून को रोक रही थी। सेम यह देखकर मुस्कुरा रहा था.... पारुल को खुद के लिए परेशान देखकर उसे सुकून सा मिल रहा था। पारुल का पूरा ध्यान तो खून पर था वह सेम के चेहरे की ओर एक  बार भी नहीं देखा था। " चलो पारो! यह मरहम पट्टी तो होती रहेगी! पहले जो वादा तुमने किया है... वह निभाओ.... । " पारुल को गुस्सा आ रहा था... आज जिस तरह की हरकत सेम ने की है वह कभी सपने में भी नहीं सोच सकती थी.... लेकिन फिर भी... वह ना चाहते हुए भी... बात की शुरुआत करती है..... । 


( यहां से शुरुआत होगी पारुल और अविनाश के अतीत की... । आप लोगो की कमेंट पर डिपेंड करेगा की में नेक्स्ट पार्ट कब डालूंगी.... जल्दी भी आ सकता है.... और रेगुलर भी सो..... और इस पूरी स्टोरी में मेरे ख्याल से सबसे बेस्ट पार्ट 79 है... जो की अपलोड करने की देरी है बिलीव मि अविनाश एंड पारुल की सारी कहानी वहीं से शुरू होती है ।) ।