दानी की कहानी 
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     दानी बहुत दिनों बाद बच्चों से मिल सकीं | दानी कुछ दिनों के लिए अपनी सहेलियों के साथ पर्यटन पर चली गईं थीं | 
जैसे ही वे वापिस आईं ,बच्चों ने उन्हें अपने झुरमुट में घेर लिया | 
सबकी आँखों में कई अन्य सवालों के साथ एक बड़ा सवाल भरा हुआ था | 
दानी हमारे लिए क्या लाई होंगी ? लेकिन यह नहीं पूछा ,उन्होंने कहा ;
"दानी ! आप नहीं थीं तो हमें किसी ने कहानी भी नहीं सुनाई --"
" अब मैं आ गई हूँ न ! अब ससुनाउंगी न कहानी---"  
दानी व उनकी पुत्र -वधु  मुस्कुरा रहे थे | बच्चों की आँखों में ललक देखकर वे समझ रही थीं कि बच्चे उनसे क्या पूछना चाहते हैं | 
"दानी को फ़्रेश तो होने दो --जो लाई होंगी ,मिल जाएगा न !" 
"हमने तो कुछ कहा नहीं ,आप क्यों ऐसा बोल रही हैं --" टीनू जी ने बड़ी स्मार्टली कहा | 
"अच्छा ! जैसे तुम्हारी शरारत मैं समझती ही नहीं ---"मुस्कुराकर वे दानी के लिए चाय-नाश्ते का इंतज़ाम करने रसोईघर में चली गईं जहाँ महाराज खाना बनाने की तैयारी में थे | 
लेकिन बच्चे तो बच्चे ठहरे ,उन्हें कहाँ चैन था |दानी के वॉशरूम जाने के बाद वे उनके पीछे -पीछे दरवाज़े तक गए | 
बड़े भैया के पुकारने से वे वापिस आए | 
"ये क्या पागलपना है ?दानी को चैन तो लेने दो ----" 
    थोड़ी देर में दानी फ़्रेश होकर लौटीं तो मन ही मन मुस्कुरा रहीं थीं | सबके लिए कुछ न कुछ तो लाना ही था ,लाईं भीं| 
छुटकी रूठकर बैठी थी ,उसे लगता था कि दानी उसके लिए मोबाइल लाएँगी  लेकिन वो तो उसके लिए चित्रात्मक पुस्तकें और गुड़िया लेकर आईं थीं | 
"कितनी गुड़िया हैं मेरे पास ,आप फिर से गुड़िया ले आईं | मुझे नहीं खेलना इससे --" उसकी आँखों में आँसू भर उठे | 
दानी को बड़ा खराब लगा ,अभी केवल पाँच बरस  की थी छुटकी फिर अभी से मोबाइल देने कि क्या तुक थी ?
ये कैसा ज़माना आ गया है ,बच्चे पुस्तकों की जगह मोबाइल में सिर घुसे बैठे रहते हैं | 
उन्होंने छुटकी को समझाने की काफ़ी कोशिश की लेकिन वह तो नाराज़ ही बैठी रही | 
महाराज की बेटी भी छुटकी के बराबर ही थी | दानी बोलीं ;
"ठीक है ,मैं सोना को दे देती हूँ तुम्हारी गुड़िया ,तुम्हारे पास तो बहुत हैं ---हमें शेयर करना आना चाहिए "
छुटकी चौंक उठी ,सोना दूर से ललचाई नज़रों से उसकी खूबसूरत गुड़िया को देख रही थी | 
" नहीं दानी ,अब जब आप ले ही आई हैं तो मैं इसे रख लेती हूँ ---" उसने बड़े नखरे से दानी से कहा | 
"नहीं ,अब तो मैं तुमसे लेकर सोना को दे ही दूँगी ,देखो  वह कैसे देख रही है ! 
छुटकी घबरा गई मोबाइल तो अभी मिलेगा नहीं और गुड़िया भी हाथ से जाएगी | उसने नई गुड़िया अपनी बाहों में समेट  लिया | 
न जाने अचानक उसे क्या हुआ ,उसे लगा कि उसके पास तो बहुत गुड़िया हैं | उसे सोना को भी एक गुड़िया दे देनी चाहिए | 
   दानी बच्चों को बहुत समझाती थीं कि चीज़ों को बाँटना सीखें | कुछ चमत्कार ही हुआ कि छुटकी ने सोना को अपनी दूसरी एक गुड़िया दे दी | 
सोना के चेहरे पर खुशी की चमक देखकर छुटकी को भी अच्छा लगा और दानी को तो अच्छा लगा ही | उनकी छुटकी शेयर करना सीख रही थी | 
उन्होंने छुटकी से वायदा किया कि वे उसे मोबाइल दिलवा देंगी अगर दसवीं कक्षा तक वह प्रथम आती रही | 
"ओह! इतने दिनों बाद ?" फिर थोड़ी देर में बोली ;
"आप ठीक कह रही हैं दानी ---हमारी पढ़ाई में इससे विघ्न पड़ता है न !?"
   दानी प्रसन्न हो गईं ,उनकी छुटकी बड़ी समझदारी की बातें करने लगी थी |  
 
डॉ. प्रणव भारती