Dani ki kahani - 18 in Hindi Children Stories by Pranava Bharti books and stories PDF | दानी की कहानी - 18

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दानी की कहानी - 18

दानी की कहानी

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" मम्मा ! चलो न ,कब से प्रौमिज़ करती हैं पर पूरा नहीं करतीं --" चुनमुन ठुमक रही थी |

अब वो क्या समझे माँ की व्यस्तताएँ ! उसे अपनी शॉपिंग से काम !

कुमुद को एक ही दिन मिलता था छुट्टी का | स्कूल मैं पढ़ाती थीं वे ! शनीवार को भी अध्यापिकाओं को आधे दिन के लिए जाना पड़ता |

हर रोज़ सुबह का समय तो पता ही नहीं चलता था | पूरे घर के लिए नाश्ते-खाने की तैयारी में कहाँ बीत जाता !!

महाराज खाना बनाने आते ,दानी के व बच्चों के लिए गरम रोटियाँ बना देते लेकिन नाश्ते का ध्यान कुमुद को ही रखना पड़ता |

खाने के लिए भी तैयारी करनी पड़ती | वैसे कुमुद ने एक लिस्ट बनाकर महाराज को दे दी थी |

लेकिन बच्चों को कुछ अलग ही खाना होता | और अब काफ़ी दिनों से व्यस्तता के चलते वह बच्चों को समय भी नहीं दे पा रही थी |

" इन बच्चों का पेट ही नहीं भरता शॉपिंग से---" मम्मी भुनभुनाने लगीं |

"भर्ता नहीं खाना है मम्मा,मॉल जाना है ,शौपिंग करनी है ,वहीं पीज़ा खाना है |"

चुनमुन का शोर सुनकर बड़ा कानू भी आ गया ,उसे मौका मिल गया था | बोला ;

"आप पूरा नहीं करतीं तो प्रौमिज़ क्यों करती हैं ?"

बच्चों के पिता शांत बैठे रहते | कोई भी बात हो मम्मी से कह दो ,मम्मी से पूछ लो | उनके रटे-रटाए उत्तर होते |

चुनमुन को शोर मचाने में भला देर कहाँ लगती थी और माँ का गुस्सा सातवें आसमान पर !

आज तो इन बच्चों को सबक सिखाना ही पड़ेगा ,कुमुद ने सोचा और उन्होंने बच्चों को डांट लगानी शुरू की |

दानी ही कोशिश करके माँ-बच्चों में सुलह करवाती रहतीं | आज भी वे अपने कमरे से निकलकर बाहर आईं और दोनों बच्चों को अपने कमरे में ले गईं |

"अच्छा ,बताओ --तुम मम्मी के ऊपर इतना गुस्सा करते हो तो क्या तुम वे सारे वायदे पूरे करते हो जो उनसे करते हो ?"

"हाँ जी दानी ,हम तो सभी वायदे पूरे करते हैं ---" चुनमुन गुस्से से बोली |

"अच्छा ! बड़ी अच्छी बात है ये तो ---कानू ! तुम भी न बेटा मम्मी से किये सब वायदे पूरे करते हो ?"

"तो क्या दानी --आपको तो पता है ,मैं तो सभी वायदे पूरा करता हूँ ---इसका नहीं पता !"कानू ने चुनमुन की ओर इशारा किया |

चुनमुन जी तो और फ़ेल गईं ,उसे बिलकुल अच्छा नहीं लगा बड़े भाई का ऐसा कहना |
"कानू भैया गंदे हैं -----"वह ज़मीन पर पसर गई |

अब कानू को भी गुस्सा आ गया ,भला उसे छोटी बहन कैसे कैसे कह सकती है ?

जब भी कहीं से कुछ चौकलेट्स या कोई और अछी चीज़ आती है ,वह छोटी बहन के लिए ज़रूर रखता है ,अबसे नहीं रखेगा |

अब भी तो वह चुनमुन को सपोर्ट करने आया था लेकिन ये है ही नहीं ऐसी कि इसे सपोर्ट किया जाए !

कानू का भी मुँह फूलकर कुप्पा हो गया |

तब दानी ही आईं फिर से बीच -बचाव करने |

"अच्छा ,बताओ ,तुम दोनों मम्मी की हैल्प करते हो ?"

"हम क्या हैल्प करेंगे दानी ? हम तो खुद ही छोटे हैं |"

"तो ,तुम वैसे छोटे हो और वैसे हर बात में मम्मी से अपनी तुलना करते हो |क्या तुमने कभी सोचा कि मम्मा को कुछ हेल्प करा सकते हो ? मम्मा का समय बचेगा तो वे तुम्हें देंगी न ?"

"पर हम कर क्या सकते हैं ?"

"जब मम्मा बिज़ी हों ,तुम उनसे पूछ सकते हो कि उनके लिए क्या कर सकते हो ? कभी पूछा है क्या ?"

"नहीं तो ---" चुनमुन ने अपने आँसू पोंछते हुए कहा |
"अपना वायदा पूरा किया कि तुम अपनी बिखरी किताबें अपनी अलमारी में समेटकर रखा करोगे --?"

"वो तो हम कर लेंगे --"कानू जी बोले | चुनमुन ने भी उसकी हाँ में हाँ मिलाई |

"वही तो ---जैसे तुम कर लोगे वैसे ही मम्मा भी तुम्हें ले जाएंगी|"दानी ने दोनों को समझाते हुए कहा |

दोनों बहन -भाई ने एक दूसरे की ओर देखा और अपने कमरे में अपनी पुस्तकों को व्यवस्थित करने चल दिए |

अब दोनों का झगड़ा खतम हो चुका था और वे दोनों ही यह सोच रहे थे कि ऐसा क्या करें जिससे मम्मा खुश हो जाएँ |

डॉ. प्रणव भारती

यूँ तो दानी से सभी बच्चे बहुत खुश रहते थे लेकिन समय की बात है कभी बिगड़ जाते बच्चे तो बिगड़ जाते |

फिर तो दानी से भी न संभलते !

आज तो माँ की आई बनी थी ,आज भी कुमुद के पास ढेर सी कॉपियाँ चैक करने के लिए थीं |

"इंसान अपने वायदे का मूल्य ही नहीं समझता ,उसके सामने चुप रहना ही ठीक है ---"