व्हाट इज़ दिस ? !(दानी की कहानी )
------------------------------
      बात बड़ी बहुत पुरानी है | जब दानी की शादी हुई  थी तब दानी बीस वर्ष की थीं | उन दिनों हर घर में फ्रिज और टेलीफ़ोन नहीं होते थे | 
    खाना भी पहले स्टोव पर बनता जिसे प्राइमस कहा जाता था | मज़े की बात की दानी को प्राइमस जलाना भी नहीं आता था|
    दानी के घर पर तो कच्चे-पक्के कोयलों की अँगीठी पर खाना बनता था |उनके यहाँ एक सेविका थी विमला ,वो घर का सारा काम करती सो उन्हें अँगीठी जलानी भी नहीं आती थी | 
"वैसे ,आप बच्चों को कहती हैं कि सब कुछ आना चाहिए ---"जब दानी कोई बात शेयर करतीं ,उनकी शैतान बिटिया यह ज़रूर कहती | 
"तो ,कोई अच्छी बात थोड़े ही है कि काम न आए | हर इंसान को ज़माने के अनुसार कम से कम इतना काम तो आना ही चाहिए कि वह अपने घर का काम कर सके--" 
    हाँ,यह भी है कि दानी की शादी से पहले उनके घर एक स्टोव आया था जिसमें एक गोल बत्ती होती थी और जिसको मिट्टी के तेल से जलाया जाता था | उस बत्ती वाले गोल से डिब्बे के नीचे एक और बड़ा सा गोल डिब्बा होता था जिसमें मिट्टी का तेल भर दिया जाता ,उसी भाग में एक घुमाने वाला लंबी डंडी में लगा हुआ एक छोटा सा गोल घेरा सा था जिसकी सहायता से बत्ती को ऊपर-नीचे किया जा सकता था | 
     मज़े की बात यह कि दानी ने कभी वह भी नहीं जलाया था और शादी के बाद तो उन्होंने एक नया तरह का स्टोव देखा जिसको उन्होंने देखा तो कई घरों व जगह पर था ,हलवाइयों की दुकानों पर ऐसे बड़े-बड़े स्टोव जलते देखे थे लेकिन उनमें जब प्रेशर से आग निकलती ,उन्हें डर लगता था | 
      शादी के बाद दानी को जिस स्टोव पर खाना बनाने की नौबत आई वह प्रेशर वाला स्टोव था जिससे दानी को बहुत डर लगता था |  दानू ने उन्हें वह स्टोव  जलाना सिखाया था |उसमें जब पिन लगाकर उसकी फ़्लेम ठीक करनी पड़ती और वो ऊपर को आती तब दानी  घबरा जातीं | बहुत दिनों बाद दानी उस पर खाना बनाने के लिए तैयार हो सकीं |जैसे ही उस पर खाना बनाने का समय आया ,उनका दिल धक -धक  करने लगा | 
     एक बार दानू के प्रोजेक्ट के कुछ महत्वपूर्ण लोग दानी के यहाँ डिनर पर आए | दानी के तो हाथ-पैर ही फूल गए |इसमें दो विदेशी मेहमान भी थे ,जिन्हें ठेठ भारतीय भोजन करना था | 
    एक स्टोव ,वो भी गैस वाला ! हाँ,प्राइमस --और कितनी सारी चीज़ें बनानी |जबकि दही बड़े और खीर आदि दानी ने पहले ही दिन बनाकर पड़ौस के घर के फ्रिज में रख दिए थे ,दानी के पास तो तब तक फ्रिज ही नहीं था | 
 "कैसे रहते थे मम्मा आप लोग फ्रिज के बिना --गैस नहीं ,फ्रिज नहीं --" बिटिया बोली |
"हम जिस वातावरण में रहते हैं ,वैसी ही आदत पड़ जाती है ---"दानी ने अपनी बिटिया को समझाया था | 
"तुम्हारे भाई के होने पर लगभग डेढ़ साल में घर में गैस और फ्रिज आ गए थे ,तुम्हारे पापा ने गैस बुक करवा रखी थी पर उन दिनों गैस की लाईन लगती थी ---" दानी ने बिटिया को समझाया था | 
      ख़ैर बात तो थी ,दानू के मेहमानों के आने की और दानी की उस बहादुरी की जब उन्होंने इतना सारा खाना एक ही स्टोव पर बनाया था | 
      उन दिनों दानी की सहायता करने के नाम पर शंकर नाम का एक लड़का हुआ करता था जिसकी पत्नी लछमी को दानी ने अपनी सहायता के लिए बुला लिया था | 
     दानी ने नया डिनर-सैट निकाला ,डाइनिंग टेबल पर खूब सुन्दर मैट्स लगाकर क्रॉकरी उस पर सजा दी ,लछमी की सहायता से सब खाना लगवा दिया | मेहमानों के आने पर  लछमी ने गरमागरम पूरियाँ तलनी शुरू कीं | दानी को दानू के मेहमानों के साथ बैठना था | 
     लछमी को भी स्टोव का कोई ख़ास अनुभव नहीं था ,बीच में स्टोव की लौ धीमी होने पर लछमी ने इशारे से दानी को बुलाया | 
     डिनर लगभग समाप्ति पर ही था ,दानी उनसे 'एक्सक्यूज़ मी 'कहकर मेज़ से उठकर रसोईघर में गईं और स्टोव में पंप करने लगीं | अचानक स्टोव पर रखी कढ़ाई का गर्म तेल दानी के हाथ पर छलक आया ,दानी के मुख से चीख़ निकल गई | 
     खाना खाते  हुए सब लोग चौंक उठे ,दानू  रसोईघर की ओर भागे ,पीछे से मिसेज़ एट्रिक भी 'ओ! व्हाट हैप्पंड' बोलती हुई दानू के साथ अंदर चली आईं | 
    दानी ने तब तक लछमी से नीली रोशनाई (स्याही,उन दिनों पैन में भरी जाती थी )लाने को कह दिया था जो वह पीछे वाले कमरे से जाकर ले आई थी और उसने दानी के हाथ पर उसे उंडेल दिया था | 
"व्हाट इज़ दिस ?" मिसेज़ एट्रिक ने उस रोशनाई को दानी के हाथ पर देखकर ज़ोर से पूछा | 
    तब तक दानी के कहने से लछमी बॉलकनी में रखे सिल-बट्टे पर कच्चा  आलू भी पीस लाई थी | उसने दानी को बैठाकर उनके रोशनाई से भरे नीले हाथ पर  पिसा हुआ आलू  लगाना शुरू कर दिया था | 
     दानू मिसेज़ एट्रिक को समझाकर कमरे में ले गए | 
      दानी भी कुछ देर में बेहतर महसूस करने लगीं थीं और हाथ पर एक कपड़ा बाँधकर अंदर आकर बैठ गईं थी | 
      मिसेज़ एट्रिक दानी को देखते ही उनसे सवाल पूछने लगी ;
"आय डोंट अंडरस्टेंड ,व्हाट इज़ दिस ?"
       तब दानू ने उन्हें समझाने की कोशिश की कि जले हुए पर यह लगाने से ठंड पड़ती है और छाले भी नहीं पड़ते | किन्तु मिसेज़ एट्रिक इतनी परेशान हो चुकी थीं कि बार-बार बोले जा रही थीं;
"दिस इज़ वेरी अनहाइजनिक ---" 
       चांस की बात है उस दिन घर में बरनौल नहीं था | (उन दिनों एक ही दवाई प्रसिद्ध थी जो जले हुए पर लगाई जाती थी ) | मिसेज़ एट्रिक तब तक बैचैन रहीं जब तक दानू ने शंकर से ट्यूब मंगवाकर दानी के हाथ से कच्चा आलू निकलवाकर ट्यूब न लगवा दी | 
  "तो क्या मम्मा ,सच में ऐसा होता था ,ये सब लगाया जाता था ?" दानी की बिटिया भी बड़ी असमंजस में थीं | 
"बेटा ! इसीलिए मैं आपको ये सब कहानियाँ सुनाती रहती हूँ कि तुम्हें पता चले कि एक ऐसा भी ज़माना था ---" दानी ने हँसकर अपनी बिटिया को उत्तर दिया | 
 
डॉ. प्रणव भारती  
 pranavabharti @gmail.com